नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नेतृत्व ने पहलगाम आतंकी हमले को हिंदुओं पर हमला बताने से अभी तक परहेज़ किया है, लेकिन संगठन के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने अपने संपादकीय में इस हमले को “पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी समूह” द्वारा की गई “निर्दोष हिंदुओं की अमानवीय हत्या” बताया है.
पिछले हफ्ते छपे अपने संपादकीय में इसने लिखा, “पहलगाम हमले में, चाहे जो भी धर्मनिरपेक्ष नैरेटिव हो, तथ्य यह है कि पीड़ितों को धर्म के आधार पर अलग-अलग किया गया और इस्लामी तरीके से पुष्टि के बाद केवल हिंदुओं की हत्या की गई थी. मुस्लिम हत्याएं केवल कोलैटरल डैमेज थीं, लक्षित हत्या नहीं.”
संपादकीय में बी.आर. आंबेडकर का हवाला देते हुए कहा गया है कि उन्होंने “सावधानीपूर्वक शोध के बाद पाया था कि हिंदुओं के प्रति घृणा और काफिरोफोबिया ही पाकिस्तान के विचार के पीछे मूल कारण है.” इसमें कहा गया है कि भारत के “पहले आक्रमणकारी” मोहम्मद बिन कासिम से लेकर पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख असीम मुनीर तक, यही विचारधारा मार्गदर्शक शक्ति रही है.
इस समस्या को सही तरीके से डायग्नोज करने वक्त आ गया है, यह तर्क देते हुए संपादकीय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूरी दुनिया में, “काफिरोफोबिया की विचारधारा आतंकवाद का मूल कारण है, और इस्लामी आतंकवाद इसका चेहरा है”.
इसमें कहा गया है, “हिंदू इस हमले से बच गए हैं, लेकिन इस वैचारिक खतरे के बारे में स्पष्टता न होने के कारण उन्हें क्रूर धर्मांतरण और विभाजन का सामना करना पड़ा है.” कश्मीर या पाकिस्तान तक सीमित होने से कहीं आगे, “युद्ध” इस “अमानवीय विचारधारा” को हराने के लिए है.
इसमें कहा गया है, “अब वक्त आ गया है कि इस मानव-विरोधी हठधर्मिता को दिए गए ‘धर्मनिरपेक्ष आवरण’ को बौद्धिक रूप से हटा दिया जाए.”
पिछले हफ्ते इस त्रासदी पर बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “धर्म पूछकर लोगों की हत्या करने वाले कट्टरपंथी, हिंदू ऐसा कभी नहीं करेंगे. इसलिए देश को मजबूत होना चाहिए.”
पाकिस्तान का सीधे तौर पर नाम लिए बगैर भागवत ने कहा, “हम अपने पड़ोसियों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाते या उनका अपमान नहीं करते, लेकिन अगर कोई बुराई करने पर आमादा है, तो इसका इलाज क्या है? राजा का कर्तव्य लोगों की रक्षा करना है और वह अपना कर्तव्य निभाएगा.”
इस बीच, पिछले हफ्ते हुए आतंकवादी हमले पर तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने इसे “हमारे राष्ट्र की एकता और अखंडता पर हमला” कहा था.
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पहलगाम और मुर्शिदाबाद के बीच समानता
हालांकि, ऑर्गनाइजर के संपादकीय में पहलगाम हमले और मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर हुई हिंसा के लिए जिम्मेदार उसी विचारधारा को दोषी ठहराया गया है, जिसे इस महीने की शुरुआत में संसद में पारित किया गया था.
यह वही “काफिरोफोबिया” है, जिसे संपादकीय में इस विश्वास के रूप में वर्णित किया गया है कि “हर कोई जो इस्लाम के प्यूरिटन रूप का पालन नहीं कर रहा है, वह काफिर है और इसलिए धर्मांतरण या हत्या का हकदार है.” इसने तर्क दिया कि इसी वजह से पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ लक्षित हिंसा हुई.
इसमें कहा गया है, “पीड़ितों में से हर कोई कह रहा है कि उनके घरों और दुकानों को पहले से ही चिह्नित किया गया था और फिर हिंदू होने के कारण उन्हें निशाना बनाया गया.”
इसमें कहा गया है कि “पाकिस्तान समर्थित जमात-ए-इस्लामी” 1971 के दूसरे विभाजन के बाद से बांग्लादेश में “काफिरोफोबिया में विश्वास करने वाले इस्लामवाद की असहिष्णु विचारधारा” को सफलतापूर्वक पोषित कर रहा है और इसे घुसपैठ के ज़रिए से पश्चिम बंगाल में निर्यात किया जा रहा है. “बांग्लादेश या पश्चिम बंगाल में जो हो रहा है, हिंदुओं को निशाना बनाना, वह इसी का सिलसिला है.”
इसने लिखा, जबकि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और किसी का आतंकवादी दूसरे व्यक्ति का स्वतंत्रता सेनानी होता है जैसे सामान्य “क्लीशै” हमले के औचित्य के रूप में गढ़े जा रहे हैं, यह केवल “कट्टरपंथ के तुष्टीकरण” द्वारा किया जा रहा है.
ये तुष्टीकरण करने वाले अक्सर ऐसे मामलों के लिए आरएसएस और भाजपा के उदय को दोषी ठहराते हैं, यह तर्क देते हुए कि “हिंदुत्व सभी धर्मनिरपेक्ष लोगों के लिए एक पसंदीदा पंचिंग बैग है”.
इसमें कहा गया है कि “जब पश्चिम बंगाल में इस्लामवादियों द्वारा विरोध प्रदर्शन के नाम पर हिंदू घरों, मंदिरों और दुकानों को निशाना बनाया गया, तो इसी तरह के औचित्य दिए गए थे.”
संपादकीय की शुरुआत आंबेडकर की विवादास्पद पुस्तक ‘पाकिस्तान या भारत का विभाजन’ के निम्नलिखित अंश से हुई: “ये मुस्लिम आक्रमण केवल लूट या विजय की लालसा से नहीं किए गए थे. उनके पीछे एक और उद्देश्य था. मोहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध के खिलाफ अभियान एक दंडात्मक प्रकृति का था और सिंध के राजा दाहिर को दंडित करने के लिए किया गया था, जिन्होंने सिंध के समुद्री बंदरगाह शहरों में से एक देबुल में एक अरब जहाज को जब्त करने के लिए प्रतिपूर्ति करने से इनकार कर दिया था, लेकिन, इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदुओं की मूर्तिपूजा और बहुदेववाद पर प्रहार करना और भारत में इस्लाम की स्थापना करना भी इस अभियान का एक उद्देश्य था.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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