पटना: सोमवार को 40 की उम्र पार कर चुकी एक दलित धोबिन मुन्नी रजक को रिटर्निंग ऑफिसर से एक प्रमाणपत्र मिला, जिसमें विधान परिषद में उनके चयन की पुष्टि की गई थी- जो 75 सदस्यीय उच्च सदन है और जहां वो विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) विधायक के तौर पर बैठेंगी.
दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं एक विधायक बन गई हूं. मई के आखिरी सप्ताह में मेरी पार्टी (आरजेडी) के नेता मुझे ढूंढते हुए मेरे घर बख़्तियारपुर आए और उन्होंने कहा कि साहेब (पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव) मुझे तलाश रहे हैं. जब मैं वहां पहुंची तो मुझे एक कमरे में ले जाया गया जिसमें (लालू की पत्नी और पूर्व सीएम) राबड़ी देवी, (लालू के सबसे बड़े बेटे) तेजू (तेज प्रताप यादव) भैया, और परिवार के दूसरे सदस्य मौजूद थे.’
उन्होंने कहा, ‘जब लालू जी ने मुझे बताया कि उन्होंने मुझे एमएलसी बनाने का निर्णय किया है, तो कुछ मिनटों तक मेरे मुंह से कोई शब्द ही नहीं निकला, फिर मैंने उनका धन्यवाद किया. लालू जी और राबड़ी देवी मेरे लिए माता-पिता की तरह रहे हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं पिछले 30 साल से एक धोबिन का काम कर रही हूं. मैं एक बाल श्रमिक थी और मेरे माता-पिता भी धोबी थे’.
तीन बच्चों की मां ने ऐलान किया कि वो बेरोजगारी और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि जैसे सार्वजनिक मुद्दे उठाएंगी. उन्होंने कहा, ‘मैं जात और पेशे से एक धोबिन हूं. मैं सदन के भीतर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नकारात्मक विचारों को धोकर साफ कर दूंगी’.
रजक के चुनावी हलफनामे से पता चलता है कि उनके पास 28 लाख रुपए की चल और अचल संपत्ति है.
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे (एनडीए) ने आरजेडी के इस कदम की आलोचना करने में देर नहीं लगाई.
बीजेपी एमएलसी नवल किशोर यादव ने कहा, ‘हम उनके चुनाव का स्वागत करते हैं. लेकिन सच्चाई यही है कि मुन्नी रजक केवल एक चेहरा भर रहेंगी. एमएलसी के रूप में आवंटित उनके पैसे का इस्तेमाल (लालू) परिवार करेगा’.
यादव ने आगे कहा कि आरजेडी ने श्याम रजक को किनारे कर दिया है, जो उनकी नज़र में रजक समुदाय का एक अधिक जाना माना चेहरा हैं.
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उम्मीदवार के चयन में बदलाव?
ऐसा लगता है कि इन विधान परिषद चुनावों में बिहार के राजनीतिक दलों ने सामान्य प्रथा से हटकर जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं का समर्थन किया है- इस साल पंचायत कोटा के अंतर्गत चुने गए तमाम एमएलसी करोड़पति की हैसियत रखते हैं.
सोमवार को निर्विरोध चुने गए सभी सात उम्मीदवारों- अशोक कुमार पाण्डेय, मुन्नी रजक, क़ारी सुहेल (आरजेडी), रवींद्र प्रसाद सिंह, आफाक़ अहमद ख़ान (जनता दल-यूनाइटेड) और हरि साहनी तथा अनिल शर्मा (बीजेपी)- ने कथित रूप से अपनी-अपनी पार्टियों के सबसे निचले स्तर से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था.
जहां तक रजक का सवाल है, वो पिछले एक दशक से अधिक से आरजेडी की सक्रिय सदस्य रही हैं.
आरजेडी एमएलसी सुनाल सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले 15 वर्षों में उन्होंने पार्टी द्वारा आयोजित हर धरना प्रदर्शन में हिस्सा लिया है. 20 मई को जब सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) ने लालू जी के आवास पर छापेमारी की, तो वो 10 सर्कुलर रोड (राबड़ी देवी का पटना आवास) के बाहर धरने पर बैठी थीं’. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि रजक की तरक्की आम लोगों को एक संदेश है कि लालू जी अभी भी उनके साथ खड़े हैं.
पार्टी सूत्रों के अनुसार, पहली बार महज़ इत्तेफाक से आरजेडी परिवार के नोटिस में तब आईं, जब लालू ने उन्हें बख़्तियारपुर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे (एनडीए) के खिलाफ और आरजेडी के पक्ष में मंच से एक गीत गाते हुए देखा.
2019 की एक घटना का उल्लेख करते हुए एक आरजेडी नेता ने कहा, ‘लेकिन ये स्थानीय चैनलों द्वारा प्रसारित मुन्नी देवी की तस्वीर थी जिसने लालू जी को प्रभावित किया होगा. वो लोलू जी से मिलने रांची पहुंचीं थीं, उस समय वे न्यायिक हिरासत में थे और राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका इलाज चल रहा था. वो लालू जी से मिलना चाहतीं थीं लेकिन अधिकारियों ने उन्हें अंदर घुसने की अनुमति नहीं दी. उन्हें ज़ोर-ज़ोर से रोते और छाती पीटकर चिल्लाते हुए सुना गया कि लालू जी को फंसाया गया था’.
लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने भी ये कहते हुए रजक के चुने जाने का स्वागत किया कि इससे दबे कुचले लोगों को एक आवाज़ मिली है.
लगभग 22 उप-जातियों के साथ बिहार की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जातियों (एससी) की कुल आबादी करीब 16 प्रतिशत है.
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