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Monday, 23 December, 2024
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‘सपा वोटर को लुभाने की कोशिश’, नेता बोले- भारत रत्न की मांग दबाने के लिए BJP दे रही नेता जी को पद्मभूषण

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2014 से यादव समुदाय का झुकाव लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ओर रहा है, जबकि विधानसभा चुनावों में सपा को वोट देना जारी है.

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लखनऊ: भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने बुधवार को घोषणा की कि समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाएगा. इस फैसले को एक “चतुराई भरी” चाल के रूप में माना जा रहा है, न कि यूपी में बीजेपी के मुख्य प्रतिद्वंदी सपा के कोर वोट बैंक यादवों तक पहुंचने की एक पुरानी कोशिश है.

घोषणा के तुरंत बाद, सपा के वरिष्ठ नेताओं ने एक पुरानी मांग दोहराई – कि ‘नेताजी’ (मुलायम सिंह यादव) को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए था. बता दें कि मुलायम सिंह यादव का निधन 10 अक्टूबर 2022 को हुआ था.

इस घोषणा ने सत्तारूढ़ बीजेपी की यादव समुदाय तक पहुंच के बारे में राजनीतिक अफवाहें फैला दी हैं. एसपी नेताओं ने व्यक्तिगत तौर पर स्वीकार किया कि यह कदम नेताजी के लिए जो कि “भारत रत्न की मांगों की सभी आवाजों को चुप कराने” के लिए “सिर्फ चतुराई भरी राजनीति” है. उनका कहना था कि नेताजी “सांप्रदायिकता-विरोधी” राजनीति का चेहरा थे जो कि रामजन्म भूमि आंदोलन और 1980 व 1990 की रथयात्रा से उदित पार्टी बीजेपी की विचारधारा के बिल्कुल खिलाफ था.

घोषणा किए जाने के कुछ घंटों बाद, मैनपुरी के सांसद और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव ने ‘नेताजी’ के लिए भारत रत्न की मांग दोहराई.

डिंपल और अखिलेश यादव गणतंत्र दिवस समारोह और ध्वजारोहण समारोह के लिए सैफई पहुंचे थे.

डिंपल यादव ने पत्रकारों से कहा, ‘नेताजी को पद्म विभूषण (सरकार द्वारा) से सम्मानित किया जाएगा, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए था. और यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना चाहिए था. हमारी मांग है कि नेताजी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए.’

शिवपाल ने इटावा में कहा, “नेताजी ने हमेशा किसानों और गरीबों की आवाज उठाई थी, इसलिए सभी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की मांग पूरी की जानी चाहिए.”


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‘नेताजी को भारत रत्न देने की मांग को दबाने कि लिए उठाया कदम’

जबकि सपा नेता कह रहे हैं कि घोषणा की “अपेक्षा नहीं थी”, पार्टी के कई अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट से बात की और स्वीकार किया कि यह कदम आश्चर्यजनक नहीं था क्योंकि नेताजी के लिए भारत रत्न की मांग उनकी मृत्यु से पहले ही उठाई गई थी और पार्टी के कई नेताओं ने मुखर रूप से उनकी मृत्यु के बाद यह मांग उठाई थी.

2020 में, पार्टी नेता दीपक मिश्रा ने मांग उठाई कि तीन बार के सीएम और पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए, जिसके बाद समर्थन जुटाने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया गया.

मुलायम के निधन के बाद सपा के कई नेताओं ने यह मांग उठाई. पार्टी प्रवक्ता आई.पी. सिंह ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मुलायम के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान की मांग की. उन्होंने यूपी के सीएम को पत्र भी लिखा था कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का नाम “धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव एक्सप्रेसवे” रखा जाए. संभल विधायक इकबाल महमूद ने भी ऐसी ही मांग की थी.

दिप्रिंट से बात करते हुए, सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि “भाजपा का अपना एजेंडा है” और नेताजी को “ऐसा कोई सम्मान दिए जाने की बात नहीं थी”. हालांकि, अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

यादव समुदाय के एक पूर्व सपा विधायक ने कहा, ‘यह बीजेपी की सोची समझी चाल है. वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि नेताजी के लिए भारत रत्न की आवाज को दबा दिया जाए और यादवों तक अपनी पहुंच जारी रखी जाए, जो सपा के कोर वोटर हैं.’

कुछ नेताओं ने कहा कि कैसे ‘नेताजी’ की मृत्यु के बाद यूपी बीजेपी का वरिष्ठ नेतृत्व ‘नेताजी’ को श्रद्धांजलि देने के लिए सैफई पहुंचा था, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मेदांता अस्पताल पहुंचे थे, जहां यादव अपनी मृत्यु से पहले कई दिनों तक भर्ती रहे थे.

उस वक्त यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला समेत कई पार्टी नेताओं ने सैफई का दौरा किया था.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “यह सब राजनीति थी… कोई भावना नहीं थी, केवल राजनीति थी.”.

बीजेपी की यादवों पर नजर है लेकिन यह कोई नई बात नहीं है

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी यादव समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है, जिसका विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ओर झुकाव दिखा है.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा कराए गए नेशनल इलेक्शन स्टडी के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में सपा के बाद बीजेपी को यादव समुदाय की तरफ से सबसे ज्यादा वोट मिले थे. जहां 53 फीसदी यादवों ने सपा को वोट दिया था, वहीं बीजेपी को 27 फीसदी यादवों ने वोट किया था.

2017 के विधानसभा चुनावों में इंडिया टुडे द्वारा एकत्र किए गए चुनाव के बाद के आंकड़ों में, लगभग 80 प्रतिशत यादवों ने सपा को वोट दिया था.

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनावों में, कुल 23 प्रतिशत समुदाय ने भाजपा को वोट दिया था, जबकि एसपी-बीएसपी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को लगभग 60 प्रतिशत यादव वोट मिले थे, जैसा कि सीएसडीएस के चुनाव के बाद के अध्ययन में बताया गया है.

चुनावों के बाद सीएसडीएस के सर्वेक्षण में बताया गया कि 2022 के विधानसभा चुनावों में यादवों ने फिर से सपा का साथ दिया और यादव वोट शेयर का 83 फीसदी हिस्सा सपा को मिला.

सीएसडीएस के एक रिसर्च प्रोग्राम लोकनीति में प्रोफेसर और को-ऑर्डिनेटर संजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर बीजेपी यादव समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि विधानसभा चुनावों की तुलना में लोकसभा चुनावों में यादव वोटों का झुकाव बीजेपी की ओर हो जाता है.’

2022 के चुनावों को “अलग” बताते हुए जब यूपी के इतिहास में यादवों और मुसलमानों का सर्वाधिक ध्रुवीकरण देखा गया, उन्होंने कहा कि यादव समुदाय आम चुनावों में भाजपा की ओर स्पष्ट रूप से झुका हुआ दिखता है, भले ही सपा लगभग को लोकसभा चुनावों में 52-53 प्रतिशत वोट मिलते हों.

उन्होंने कहा, “पिछले चुनावों में, यह देखा गया है कि लोकसभा चुनावों में सपा को मिले वोटों में लगभग 18-19 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो कि स्पष्ट रूप से दिखाता है कि लोकसभा चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ यादवों का झुकाव बढ़ा है. 2024 के आम चुनावों से पहले, भाजपा के पास इस बात के सबूत हैं कि अगर वे थोड़ी और मेहनत करते हैं, तो वे यादवों को अपने पक्ष में लामबंद कर सकते हैं.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मिर्जा अस्मर बेग ने दिप्रिंट से कहा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बड़ी संख्या में यादवों ने बीजेपी को वोट किया क्योंकि वे अपने हिंदुत्व एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रहे थे.

उन्होंने कहा, “पिछले चुनाव को छोड़कर, यादव समुदाय की एक बड़ी संख्या 2014 से भाजपा के लिए मतदान कर रही है. बीजेपी उस चुनाव के नतीजे से खुश और हैरान थी और तब से अपने वोट बैंक का विस्तार चाहती है, और अपने प्रतिद्वंद्वी के कोर वोटर को भी अपने पाले में लाने की उम्मीद कर रही है.”

“सपा एक जाति-आधारित पार्टी है और यादवों से वोट की अपील करती है लेकिन बीजेपी की बहुसंख्यक हिंदुत्व की राजनीति सभी जातियों को शामिल करके चलती है. एक और कारण यह है कि भाजपा 2017 से राज्य में सत्ता पर काबिज है व 2014 से केंद्र में बीजेपी की सरकार है और यह बात दीगर है कि जीतने वाली पार्टी कई चीजों को अपने पक्ष में करने में थोड़ा सक्षम होती है. हमेशा एक बड़ी संख्या में कुछ ऐसे वोटर्स होते हैं जो पहले से तय करके नहीं रखते कि किसे वोट करना है और अंतिम समय में ये वोटर्स हमेशा खेल पलट देते हैं. साथ ही मीडिया की चकाचौंध और सत्ताधारी पार्टी के पास मौजूद संसाधन भी एक वर्ग (मतदाताओं का) को आकर्षित करते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)


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