नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन आखिरकार मंगलवार को हो गया. राज्य में सीएम शिवराज सिंह चौहान की शपथ के 29 दिन बाद राज्यपाल लालजी टंडन ने उनके मंत्रियों को शपथ दिलाई. दोपहर 12 बजे राजभवन में हुए एक सादे सामारोह में 5 मंत्रियों ने मंत्री पद की शपथ ली. इसमें भाजपा के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, मीना सिंह और कमल पेटल मंत्री बने. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे से सिंधिया के वफादार और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट और गोंविद सिंह राजपूत ने मंत्री पद की शपथ ली.
सोमवार शाम को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मंजूरी मिलने के बाद सीएम शिवराज सिंह ने पार्टी नेताओं से फोन पर चर्चा की. इसके बाद सीएम चौहान ने मंगलवार के सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए. मंगलवार सुबह उन्होंने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात की. फिर शपथ ग्रहण का समय तय किया गया. दोपहर 12 बजे मंत्रियों को शपथ दिलाई गई. भाजपा आलाकमान से मंजूरी मिलने के बाद पांच मंत्रियों को शपथ दिलाने का निर्णय लिया गया. शिवराज ने अपने कैबिनेट विस्तार में जातीय समीकरण का भी विशेष ध्यान रखा.
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राज्य में महिला और आदिवासी वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए विधायक मीना सिंह, ओबीसी वर्ग से विधायक कमल पटेल, अनुसूचित जाति वर्ग से तुलसी सिलावट शाामिल किए गए हैं. वहीं सामान्य वर्ग से ब्राह्मण चेहरे डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा और गोविंद सिंह राजपूत को मौका दिया गया है. डॉ. मिश्रा की कांग्रेस सरकार को गिराने और भाजपा सरकार को बनाने में अहम भूमिका रही है. वहीं कांग्रेस की कमलनाथ सरकार मंत्रिमंडल में तुलसी सिलावट के पास स्वास्थ्य और राजपूत के पास परिवहन विभाग का जिम्मा था.
23 मार्च को शिवराज ने ली थी सीएम पद की शपथ
23 मार्च को सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश के सीएम पद की जिम्मेदारी संभाली थी. कोरोना के संकट को देखते हुए उन्होंने अकेले ही शपथ ली थी. कोरोना के संकट के दौर में भी शिवराज ने अकेले ही राज्य की कमान संभाली रखी. इस दौरान मंत्रिमंडल नहीं बनाने को लेकर वे कई बार कांग्रेस के निशाने पर भी रहे. कुछ दिनों पहले पूर्व सीएम कमलनाथ ने आरोप भी लगाया था कि देश का इकलौता ऐसा राज्य है जहां कोई गृहमंत्री है न कोई स्वास्थ्य मंत्री. गौरतलब है कि 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी 15 साल के वनवास के बाद राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी. लेकिन सिंधिया खेमे की बगावत के कारण सीएम कमलनाथ को 20 मार्च को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
सिंधिया ने बिगाड़ा था कमलनाथ का खेल
राज्य की कमलनाथ सरकार उस समय संकट में आ गई थी जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस ने पार्टी छोड़ दी. वहीं सिंधिया समर्थक विधायक और मंत्री भी बेंगलुरु चले गए थे. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद राज्य की कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल छा गए थे. इसके बाद भाजपा कमलनाथ सरकार के बहुमत साबित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी. इसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य सरकार 24 घंटे के अंदर फ्लोर टेस्ट करे. कोर्ट के आदेश के बाद स्पीकर ने सभी 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिया था. वहीं राज्य विधानसभा में बहुमत परीक्षण से पहले ही कमलनाथ ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था.