scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमराजनीतिशिवराज सिंह चौहान दबाव में तो हैं, लेकिन उनके MP CM पद से हटने की संभावना नजर नहीं आती

शिवराज सिंह चौहान दबाव में तो हैं, लेकिन उनके MP CM पद से हटने की संभावना नजर नहीं आती

ये अफवाहें बंद कमरों में सिलसिलेवार बैठकों के बाद उड़नी शुरू हुईं, जो चौहान के विरोधी समझे जाने वाले, MP बीजेपी नेताओं के बीच हुईं, जिनमें कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और प्रहलाद पटेल शामिल हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: किसी भी संभावित बदलाव की अफवाहों को ख़ारिज करते हुए, प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष, वीडी शर्मा ने बृहस्पतिवार को दिप्रिंट से कहा, कि मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बदलने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

इन अफवाहों की उत्पत्ति बंद कमरों में सिलसिलेवार बैठकों से हुई थी, जो चौहान के विरोधी समझे जाने वाले, MP बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुईं, जिनमें बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, राज्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा, और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल शामिल हैं.

ऐसा लगता है कि इन विरोधियों द्वारा बार बार स्पष्टीकरण देने से, कि चौहान सीएम बने रहेंगे, इन अटकलों को और बल मिला. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और फग्गन सिंह कुलस्ते भी, पिछले कुछ दिनों में इस मुद्दे पर बयान देते रहे हैं.

मिश्रा ने इसी हफ्ते पत्रकारों से कहा: ‘शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा के नेतृत्व में, बीजेपी पूरी तरह एकजुट और संगठित है. माननीय शिवराज सिंह जी मुख्यमंत्री थे, शिवराज सिंह जी मुख्यमंत्री हैं, और शिवराज सिंह जी मुख्यमंत्री रहेंगे’.

संयोग से, पिछले साल एमपी में, कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद के दिनों में, प्रदेश बीजेपी मुख्यालय के बाहर जमा भीड़ के बीच से, एक नारा अकसर सुनाई देता था: ‘हमारा मुखिया कैसा हो, नरोत्तम मिश्रा जैसा हो’.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

ऐसा माना जाता है, कि राज्य में कोविड-19 से निपटने को लेकर, जिसकी पार्टी नेताओं ने आलोचना की है, और पिछले महीने दामोह में असैम्बली चुनाव में हार के बाद, चौहान पर नज़र बनी हुई है. इन हालात में प्रदेश के प्रमुख नेताओं की सिलसिलेवार दख़लअंदाज़ियों ने, सबका ध्यान आकर्षित किया है, भले ही उन्हें शिष्टाचार बैठकें बताया जा रहा हो.

मई के अंतिम सप्ताह में, विजयवर्गीय ने भोपाल में मिश्रा से मुलाक़ात की. पिछले हफ्ते के दौरान विजयवर्गीय ने, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास कैलाश सारंग, और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल से मुलाक़ात की. उसके बाद, वो बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा से मिले.

दिप्रिंट से बात करते हुए, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष शर्मा ने चौहान को बदले जाने की तमाम अटकलों को ख़ारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘महामारी के बीच हमारी सरकार बड़ी मेहनत से काम कर रही है, और मुख्यमंत्री को बदलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता’.

अन्य प्रदेश नेताओं ने, नाम छिपाने की शर्त पर, स्वीकार किया कि चौहान दबाव में हैं. कुछ नेता दामोह के परिणाम को, अकेले चौहान की विफलता बता रहे हैं. लेकिन, कुछ दूसरों का कहना है, कि राज्य में उनके विरोधी कोविड की स्थिति, और दामोह उपचुनावों के बहाने,उन्हें निशाने पर लेने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि चौहान एक जन नेता हैं, जिन्हें बदलना आसान नहीं है.


य़ह भी पढ़ें: ‘सेक्युलर’ शिवराज ने ‘लव जिहाद’, गाय और दूसरे मुद्दों पर क्यों अपना लिया है आक्रामक हिंदुत्व


चौहान पर बीजेपी में राय बटी

बीजेपी 2018 के विधान सभा चुनावों में, कांग्रेस के हाथों परास्त हो गई थी. लेकिन पिछले मार्च में चौहान फिर से, सत्ता वापसी करने में कामयाब हो गए, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए, और अपने साथ 22 अन्य विधायक भी ले आए.

कुछ बीजेपी नेताओं का कहना है, कि दामोह की हार के लिए अकेले चौहान ज़िम्मेदार हैं, और उन्हें लगता है कि 2023 के लिए कोई विकल्प तलाशना होगा, क्योंकि उन्हें सत्ता की बागडोर संभालते हुए, अब 15 साल से अधिक हो गए हैं. वो इस ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, कि चौहान को 2018 में जनादेश नहीं मिला था, और आज वो मुख्यमंत्री हैं, तो ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से हैं’.

एक बीजेपी नेता ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हम सरकार में हैं और हम उपचुनाव नहीं जीत पाए. ये वास्तव में चौंकाने वाली बात है. उसके ऊपर से कोविड-19 को ठीक से न संभाल पाना, एक ऐसा मामला है जिसका ख़ामियाज़ा आख़िरकार केंद्र को भुगतना होगा’.

नेता ने आगे कहा, ‘केंद्रीय नेतृत्व पहले ही 2023 (असैम्बली) चुनाव, और 2024 चुनावों पर उसके नतीजों के बारे में सोच रहा है. पश्चिम बंगाल चुनाव पार्टी के लिए एक बड़ा आघात हैं. और अगर हम हिंदी-भाषी में हारने लगेंगे, तो 2024 की संभावना मुश्किल हो जाएगी’.

एक दूसरे नेता ने कहा, ‘चौहान ने जिस तरह से कोविड-19 को हैण्डल किया, उसकी आलोचना सिर्फ विपक्ष की ओर से नहीं हुई, लेकिन पार्टी के भीतर से भी नेताओं ने उनके कामकाज पर सवाल खड़े किए’.

नेता ने आगे कहा, ‘राज्य में पूरी अव्यवस्था थी, और पार्टी सदस्यों तथा सहयोगियों की बात सुनने की बजाय, ऐसा लगता था कि सरकार को मुठ्ठी भर नौकरशाह चला रहे हैं. केंद्रीय नेतृत्व को इसकी जानकारी थी, लेकिन उसके ध्यान भी पश्चिम बंगाल चुनावों पर था, और इसलिए उस अवधि के दौरान कुछ नहीं हुआ’.

चल रही अटकलों पर बात करते हुए, एक तीसरे बीजेपी नेता ने कहा, कि राज्य के नेता जो काफी समय से, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नज़र जमाए थे, अब चौहान के खिलाफ केस बनाने की, एक ‘हताश कोशिश’ कर रहे हैं.

नेता ने आगे कहा, ‘बहुत से लोग उम्मीद कर रहे थे, कि पश्चिम बंगाल में जीत होने पर, कैलाश विजयवर्गीय को इनाम से नवाज़ा जाएगा, चाहे उन्हें कुर्सी पर बिठाया जाए, या उनकी पसंद के किसी अन्य व्यक्ति को’. नेता ने कहा, ‘लेकिन, पश्चिम बंगाल की हार से बस चौहान को थोड़ी राहत मिल गई, भले ही वो दामोह हार गए हों. इसलिए अब कुछ नेता उन्हें निशाने पर ले रहे हैं, और कह रहे हैं कि वो बहुत बेअसर रहे हैं’.

नेता ने कहा, ‘जहां तक मुख्यमंत्री बदलने का सवाल है, उसकी संभावना नहीं है. फिलहाल, केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान सिर्फ उत्तर प्रदेश पर है. जहां तक 2023 (जब अगले विधान सभा चुनाव होंगे), और चौहान का विकल्प तलाशने का सवाल है, राजनीति में कुछ भी संभव है, और राज्य के नेता अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन चौहान को हटाना कोई आसान काम नहीं है’.

एक चौथे नेता का कहना था, कि इन अटकलों के पीछे ‘ज़रूर कोई मंशा है’. उन्होंने कहा, ‘चाहे वो उत्तर प्रदेश हो, कर्नाटक हो, या मध्य प्रदेश हो, तीनों ही राज्यों में ताक़तवर मुख्यमंत्री हैं, जो कुछ मामलों में पहले ही पार्टी बड़े हैं, जा पार्टी से बड़े बन रहे हैं’.

नेता ने आगे कहा, ‘केंद्रीय नेतृत्व इससे अवगत है. कुछ मामलों में वो कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उसके पास मुख्यमंत्री के मुक़ाबले में कोई नेता नहीं है. और इसलिए, उन्हें नियंत्रण में रखने के लिए, दबाव बनाने की ये तरकीबें इस्तेमाल की जा रही हैं.

‘बदलना मुश्किल’

कुछ बीजेपी नेताओं का कहना है, कि साल के शुरू में हुए विधानसभा चुनावों में, पश्चिम बंगाल की हार और दक्षिणी सूबों में ख़राब प्रदर्शन के बाद, केंद्रीय नेतृत्व ‘जल्दबाज़ी’ में कोई फैसला नहीं करेगा.

एक नेता ने कहा, ‘अगर वो पश्चिम बंगाल जीत जाते, जैसा कि हर कोई अपेक्षा कर रहा था, तो कैलाश विजयवर्गीय के समर्थकों ने, मध्यप्रदेश में एक नैरेटिव तैयार कर लिया था, कि उसके नतीजे में एमपी में भी बदलाव होगा. नरोत्तम मिश्रा को भी पश्चिम बंगाल में, कई सीटों की ज़िम्मेदारी दी गई थी, और उन्होंने वहां के कोई दौरे किए, इस उम्मीद में, कि इससे उनकी क़िस्मत भी चमक जाएगी. लेकिन परिणाम से केवल चौहान को फायदा हुआ है, और सवाल अब ये है कि फायदा कितनी देर तक रहेगा’.

एक अन्य बीजेपी नेता ने आगे कहा, कि चौहान एक जन नेता हैं, और उन्हें बदलना आसान नहीं होगा.

नेता ने आगे कहा, ‘जहां तक कोविड-19 की दूसरी लहर को संभालने का सवाल है, मुझे कोई एक राज्य बताइए जो फेल न हुआ हो. बल्कि, ये केंद्र सरकार है जिसकी आलोचना हुई है. तो हम इससे चौहान को कैसे निशाना बना सकते हैं?’ उन्होंने ये भी कहा, ‘वो सभी नेता जो ये कहानियां फैला रहे हैं, उन्हें कुछ महीने बाद शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी, क्योंकि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है’.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: 8 महीने से ‘टेंपररी सीएम’: शिवराज चौहान को एमपी में स्थिर सरकार का नेतृत्व करने के लिए नंबर मिले


 

share & View comments