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Friday, 8 November, 2024
होमराजनीतिहार के एक महीने बाद भी हरियाणा कांग्रेस ने विधायक दल का नेता नहीं हुआ नियुक्त, देरी के पीछे क्या है वजह

हार के एक महीने बाद भी हरियाणा कांग्रेस ने विधायक दल का नेता नहीं हुआ नियुक्त, देरी के पीछे क्या है वजह

पार्टी ने पहले विधानसभा सत्र में बिना किसी सीएलपी नेता के प्रवेश किया और अब, जबकि शीतकालीन सत्र 13 नवंबर से शुरू होने वाला है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि यह प्रतिष्ठित पद किसे मिलेगा.

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गुरुग्राम: हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के एक महीने बाद — जबकि अधिकांश एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की गई थी — कांग्रेस में गहरी फूट के बावजूद अभी तक इसने अपने विधायक दल के नेता का नाम घोषित नहीं किया है.

90-सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में 37 विधायकों के साथ, कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) का नेता विपक्ष का नेता (एलओपी) भी बन जाएगा, जिसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है. कांग्रेस ने 25 अक्टूबर को बिना किसी सीएलपी नेता के पहले विधानसभा सत्र में प्रवेश किया और अब, जबकि शीतकालीन सत्र 13 नवंबर को शुरू होने वाला है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि यह प्रतिष्ठित पद किसे मिलेगा.

अनिश्चितता हरियाणा कांग्रेस में बेचैनी पैदा कर रही है. पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जहां अधिकांश विधायक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएलपी नेता बनाए जाने के पक्ष में थे, वहीं सिरसा की सांसद कुमारी शैलजा के नेतृत्व वाला गुट हुड्डा को चुनाव हार के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए किसी नए चेहरे को जिम्मेदारी सौंपना चाहता है.

कांग्रेस आलाकमान ने कांग्रेस विधायक दल के नेता की नियुक्ति के लिए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पार्टी कोषाध्यक्ष अजय माकन और पंजाब के नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा को पर्यवेक्षक नियुक्त किया था. 18 अक्टूबर को उन्होंने चंडीगढ़ में नवनिर्वाचित विधायकों से मुलाकात कर उनके विचार जाने.

पर्यवेक्षकों ने घोषणा की कि चूंकि विधायकों ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को कांग्रेस विधायक दल के नेता के नाम की घोषणा करने के लिए अधिकृत किया है, इसलिए आलाकमान जल्द ही नाम का खुलासा करेंगे.

रोहतक से कांग्रेस विधायक और पिछली विधानसभा (2019 से 2024) में पार्टी के मुख्य सचेतक भारत भूषण बत्रा ने स्वीकार किया कि कांग्रेस विधायक दल के नेता के नाम की घोषणा में बहुत देरी हुई है और विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले इसकी घोषणा की जानी चाहिए.

बत्रा ने शुक्रवार को दिप्रिंट से कहा, “पार्टी नेतृत्व को कांग्रेस विधायक दल के नेता की नियुक्ति को लेकर अनिश्चितता खत्म करनी चाहिए. पर्यवेक्षकों ने करीब तीन हफ्ते पहले विधायकों के विचार जाने थे और इसलिए बिना किसी देरी के कांग्रेस विधायक दल के नेता की घोषणा की जानी चाहिए.”

हालांकि, बत्रा के अनुसार, सीएलपी नेता की नियुक्ति न होने से विधानसभा सत्र के संचालन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि इस पद पर किसी के न होने पर स्पीकर कांग्रेस के किसी भी सदस्य को बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी) में शामिल कर सकते हैं.

थानेसर से कांग्रेस विधायक अशोक अरोड़ा ने कहा कि यह पहला मामला नहीं है जब किसी पार्टी ने विधायक दल के नेता के नाम में देरी की हो.

अरोड़ा ने शुक्रवार को दिप्रिंट को बताया, “पिछले साल, भाजपा लंबे समय तक कर्नाटक विधानसभा में अपने नेता का नाम तय करने में विफल रही थी और इसलिए एलओपी की नियुक्ति छह महीने से अधिक समय तक खिंच गई.”

पिछली विधानसभा में कांग्रेस के एलओपी रहे हुड्डा ने दिप्रिंट से कहा कि उन्हें देरी के पीछे के कारणों की जानकारी नहीं है, लेकिन उन्होंने कहा कि यह महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों की तैयारियों के कारण हो सकता है.

हालांकि, हरियाणा कांग्रेस के नवनियुक्त सह-प्रभारी जितेंद्र बघेल ने कहा कि पार्टी बहुत जल्द नाम की घोषणा करेगी.

बघेल ने शुक्रवार को दिप्रिंट को बताया, “अभी, मैं आज से शुरू हो रही पार्टी की ‘दिल्ली न्याय यात्रा’ में व्यस्त हूं. पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इसमें शामिल रहेंगे. इसके अलावा, केंद्रीय नेतृत्व महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों की तैयारी में व्यस्त है.”


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‘दो बड़ी वजहें’

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की शोधकर्ता ज्योति मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि हरियाणा में विपक्ष की किसी पार्टी द्वारा अपने नेता के नाम का ऐलान करने में इतना समय लगना “अभूतपूर्व” है.

मिश्रा ने कहा, “20 साल में पहली बार किसी पार्टी को राज्य में विपक्ष का नेता तय करने में इतनी दिक्कत आ रही है. मुझे इसके पीछे दो बड़ी वजहें नज़र आती हैं. एक स्पष्ट वजह पिछले तीन चुनावों — 2014, 2019 और 2014 में कांग्रेस की लगातार हार है. 2009 में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से चूक गई थी.”

उन्होंने कहा कि दूसरी वजह कांग्रेस के भीतर “अंदरूनी कलह” है, जो इस साल के विधानसभा चुनावों के दौरान काफी स्पष्ट थी. “अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की महासचिव शैलजा और हुड्डा के नेतृत्व वाले गुटों ने अलग-अलग अभियान चलाए.”

मिश्रा ने कहा कि 2005, 2009, 2014 और 2019 में चुनाव नतीजों के बाद हर बार करीब 15 दिनों के भीतर ही विपक्ष का नेता चुन लिया गया. इस साल कांग्रेस सरकार बनाने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन पार्टी को सिर्फ 37 सीटें मिलीं. इस वजह से इस बात पर बहस छिड़ गई है कि विपक्ष का नेता किसे बनाया जाए.

शैलजा और हुड्डा गुट की पसंद

कांग्रेस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि शैलजा गुट पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के बेटे चंद्र मोहन को कांग्रेस विधायक दल का नया नेता बनाना चाहता है.

इस बीच हुड्डा गुट ने चंडीगढ़ में पार्टी पर्यवेक्षकों के साथ बैठक से पहले अपने दिल्ली स्थित आवास पर 32 विधायकों को इकट्ठा करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया.

बत्रा ने कहा कि विधायक चाहते हैं कि हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल का नेता और विपक्ष का नेता बनाया जाए. हालांकि, नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा कि हुड्डा गुट को झज्जर विधायक गीता भुक्कल, अरोड़ा या उस तबके के किसी अन्य वरिष्ठ विधायक को यह पद दिए जाने पर कोई आपत्ति नहीं होगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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