लखनऊ/अयोध्या: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अयोध्या में राम मंदिर पर भगवा ‘धर्म ध्वज’ फहराया, जो मंदिर के निर्माण कार्य के पूरा होने का प्रतीक है. अपने संबोधन में उन्होंने हाशिये पर खड़े समुदायों की ओर संदेश दिया और इसे ‘राम राज्य’ और ‘विकसित भारत’ की अवधारणा से जोड़ा.
कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा कि यह ध्वज ब्रह्मा की उपस्थिति का प्रतीक है और सत्य व धर्म का प्रतिनिधित्व करता है. उन्होंने कहा कि यह ध्वज सत्य की विजय को दर्शाता है.
पीएम मोदी ने कहा, “यह धर्म ध्वज सिर्फ एक झंडा नहीं है. यह भारतीय सभ्यता के पुनरुत्थान का प्रतीक है. इसका केसरिया रंग, सूर्यवंश का चिन्ह, पवित्र ‘ॐ’, और कोविदार वृक्ष मिलकर राम राज्य की भव्यता को दर्शाते हैं. यह ध्वज एक प्रतिज्ञा, एक उपलब्धि और संघर्ष से सृजन तक की यात्रा का प्रतीक है, सदियों की तपस्या के साकार रूप में.”
प्रधानमंत्री ने कहा, ”आज पूरा भारत और दुनिया राम की भावना से भरी हुई है. हर राम भक्त एक गहरी संतुष्टि और कृतज्ञता महसूस कर रहा है. एक दिव्य आनंद का अनुभव है. सदियों से चले आ रहे घाव और पीड़ा अब भरने लगे हैं. सदियों पुराना संकल्प पूरा हो रहा है. आज उस तपस्या का पूर्णत्व है जिसकी लौ 500 वर्षों से जल रही थी.”
पीएम मोदी ने अगले 10 वर्षों में भारत को “गुलामी की मानसिकता” से मुक्त करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद भी औपनिवेशिक सोच जारी रही और लोगों ने मान लिया कि विदेशी विचार बेहतर होते हैं. “कहा जाता है कि हमारा संविधान विदेशी संविधानों से प्रेरित है, लेकिन सच यह है कि भारत लोकतंत्र की जननी है. लोकतंत्र हमारे DNA में है,” उन्होंने कहा.
कार्यक्रम का संदेश
प्रधानमंत्री के भाषण में खासकर वंचित तबकों के लिए स्पष्ट राजनीतिक संदेश था. पीएम ने दो बार उस ऋषि मंदिर का उल्लेख किया, जो राम मंदिर परिसर में है और जहां निषादराज, जिन्होंने वनवास के दौरान भगवान राम को गंगा पार कराई थी, और माता शबरी, जिन्होंने राम को बेर अर्पित किए थे, सहित अन्य के मंदिर हैं.
कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि निषादराज और शबरी के मंदिरों को ब्राह्मण ऋषियों के मंदिरों के साथ रखना सामाजिक समावेशन का सशक्त संदेश देता है. उनका मानना है कि यह भाजपा की उन रणनीतियों में फिट बैठता है जिसके तहत वह विभिन्न जातियों को एक बड़े हिंदुत्व छाते के नीचे लाने की कोशिश करती है. निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली निषाद पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी है. इसी तरह शबरी का मंदिर बनाना आदिवासी समुदायों में भाजपा के समर्थन को मजबूत कर सकता है.

वाराणसी के डोम समुदाय के तीन सदस्यों को भी ध्वज फहराने के कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया. ये लोग दिवंगत डोम राजा जगदीश चौधरी के परिजन हैं, जिन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम बतौर उम्मीदवार सुझाया था.
डोम समुदाय अंतिम संस्कार से जुड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाता है और ‘पवित्र अग्नि’ प्रदान करता है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह मृतकों की आत्मा को शांति देती है. हालांकि इस भूमिका को अक्सर ज्यादा मान्यता नहीं मिलती. पहली बार इस समुदाय के लोगों को ऐसे कार्यक्रम में बुलाया गया.
गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने का आह्वान
राम मंदिर ध्वजारोहण समारोह में पीएम ने कहा, “हमें भगवान राम से सीखना चाहिए, उनके चरित्र को समझना चाहिए और उनके आदर्शों का पालन करना चाहिए.” यह समारोह मंदिर के वास्तु निर्माण के पूरा होने का प्रतीक था.

पीएम मोदी ने कहा कि भारत को “गुलामी की मानसिकता” छोड़नी होगी, जिसे उन्होंने 1835 में लागू की गई मैकॉले शिक्षा पद्धति से जोड़ा. उन्होंने कहा कि देश को अगले 10 वर्षों में इस मानसिकता से मुक्त करने का संकल्प लेना चाहिए. “मैकॉले ने भारत में गुलामी की मानसिकता की नींव रखी… अगले 10 साल में हमें इस मानसिकता को समाप्त करने का प्रयास करना है,” उन्होंने कहा.
लंबी अवधि की योजनाओं पर जोर देते हुए पीएम बोले कि भारत को वर्तमान से आगे की सोच रखनी चाहिए. “2047 में जब भारत स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, हमें विकसित भारत का निर्माण करना होगा. हमें देश की नींव अगले हजार वर्षों के लिए मजबूत करनी होगी,” उन्होंने कहा.
उन्होंने अल्पकालिक सोच के प्रति आगाह किया. “अगर हम सिर्फ आज पर ध्यान देंगे तो आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय करेंगे. भारत हमारे पहले भी था और हमारे बाद भी रहेगा,” उन्होंने कहा. उन्होंने जोड़ा कि भारत एक “ऊर्जावान समाज” है जिसे दूरदृष्टि के साथ आने वाले दशकों और सदियों के बारे में सोचना होगा.
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