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Saturday, 21 December, 2024
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मोदी सरकार 2.0: रमेश पोखरियाल बने शिक्षा मंत्री, उनके सामने होंगी ये बड़ी चुनौतियां

शिक्षा मंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती 100 दिनों के भीतर आने वाली नई शिक्षा नीति है, देखना महत्वपूर्ण होगा कि वो देश को क्या नया देते हैं?

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार में रमेश निशंक पोखरियाल शिक्षा मंत्रालय संभालेंगे. मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में मानव संसाधन मंत्रालय का कार्यभार पहले स्मृति ईरानी को और बाद में प्रकाश जावड़ेकर को दिया गया. बता दें कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से लेकर दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित भारत विरोधी नारों की वजह से भारतीय शिक्षा जगत लगातार विवादों में रहा.

नए शिक्षा मंत्री के लिए मंत्रालय का कमान संभालते ही सबसे बड़ी चुनौती नई शिक्षा नीति लाना है क्योंकि आने वाले 100 दिनों में शिक्षा नीति सबसे बड़ी चुनौती है. वहीं, नए शिक्षा मंत्री पोखरियाल को इन चुनौतियां भी सामना करना पड़ेगा.

विवादों से बचना

नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में शिक्षा मंत्रालय सबसे ज़्यादा विवादों में रहा था. जेएनयू में कथित देशद्रोह के मामले से लेकर एचसीयू में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या तक पर शिक्षा का क्षेत्र लगातार विवादों में रहा. इसकी आंच दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज से कोलकाता के जाधवपुर यूनिवर्सिटी तक पहुंची. इन तमाम विवादों के पीछे प्रमुख वजह ये बताई गई कि शिक्षा जगत में लेफ्ट और उनके छात्र संघों का प्रभुत्व रहा है. ऐसे में जब पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी तो आरएसएस के छात्रसंघ एबवीपी ने ख़ुद की पुख़्ता जगह बनाने का प्रयास किया. इसी की प्रतिक्रिया में हर जगह शिक्षा जगत को काफी विवाद का सामना करना पड़ा. अगले शिक्षा मंत्री को ये प्रयास करना होगा कि इस क्षेत्र को विवादों से दूर रखा जाए.

शिक्षा सुधार 

भारत में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का हाल ठीक नहीं है. इक्का-दुक्का को छोड़ दें तो कोई भी संस्थान वैश्विक रैंकिंग में टॉप- 200 में भी जगह नहीं बना पाता. वहीं, अगर कोई बड़ा अधिकारी या आर्थिक रूप से समृद्ध व्यक्ति अपने बच्चे को किसी सरकारी स्कूल में भेज दे तो उसकी ख़बर बन जाती है. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि भारत में शिक्षा का क्या हाल. ऐसी ही एक ख़बर मंगलवार को आई थी जिसमें बताया गया था कि मध्य प्रदेश के एक अधिकारी ने अपनी बच्ची को सरकारी स्कूल में भेजा है और ऐसा करने की वजह से उनकी ख़ूब तारीफ हो रही थी. ऐसे में नए शिक्षा मंत्री के ज़िम्मे ये काम होगा कि वो शिक्षा का स्तर ऐसा बनाएं कि वैश्विक रैंकिंग से लेकर प्राइमरी स्कूल तक की स्थिति में सुधार आए.

फीस बढ़ोत्तरी से छात्रों को बचाना

मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में आईआईटी से लेकर आईआईएम तक के फीस में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई थी. इसकी ख़ूब आलोचना भी हुई थी. वहीं, बड़े संस्थानों में छात्रों को मिलने वाली स्टाइपेंड में भी लगातार कमी आई थी. इसके विरोध में दिल्ली में यूजीसी दफ्तर के बाहर ख़ूब प्रदर्शन हुए थे. भारत में अभी भी एक बड़ी आबादी आर्थिक रूप से उच्च शिक्षा पाने में अक्षम है. ऐसे में सरकार को कोशिश करनी होगी कि वो फीस बढ़ोत्तरी और स्टाइपेंड में कटौती जैसी चीज़ों पर ध्यान दे. वहीं, दिल्ली समेत देश भर में निजी स्कूल फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी कर रहे हैं. इस पर भी लगाम लगाए जाने की दरकार है.

कांग्रेस बनाम संघ के इतिहास के बीच का टकराव

देश पर लंबे समय तक कांग्रेस का राज रहा है. ऐसे में पार्टी पर आरोप लगता है कि पार्टी ने जानबूझकर भारत की शिक्षा को इस कदर ढाला है कि इससे इसे राजनीतिक लाभ मिले. वहीं, पहली बार पूर्ण बहुमत से आई भाजपा की पिछली सरकार पर आरोप है कि इसने देशभर में शिक्षा अपने हिसाब से ढालने की कोशिश की है. भाजपा की सरकारों पर गुजरात, मध्य प्रदेश से राजस्थान तक पर शिक्षा को अपनी विचारधारा के हिसाब से ढालने का आरोप लगा है. वहीं, जब मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में वापस से कांग्रेस की सरकार आई तो उन्होंने शिक्षा को अपने हिसाब से फिर से बदलना शुरू कर दिया. इन सबकी वजह से शिक्षा जगत किसी ‘युद्ध के मैदान’ में तब्दील हो गया. अगले शिक्षा मंत्री के ज़िम्मे एक बड़ा काम ये होगा कि वो किसी भी हालत में शिक्षा जगत को एसी ‘जंग’ से बाहर लेकर आएं.

ये कुछ मूलभूत चुनौतियां हैं. इसके अलावा भारत जैसे विविध देश में कई अन्य बातें हैं जिनसे भारत के नए शिक्षा मंत्री को भिड़ना होगा.

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