नई दिल्ली: केंद्र सरकार अभी तक सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थलों अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता पर अपना पक्ष नहीं रखा है. सुप्रीम कोर्ट 17 फरवरी को इस कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. बढ़ते दबाव और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर काशी, मथुरा, संभल या अन्य विवादित मस्जिद स्थलों को “हिंदू धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने” के लिए न्यायिक उपायों की मांग के बावजूद, सरकार की स्थिति साफ नहीं है.
2020 में कानून को चुनौती दिए जाने के पांच साल और कई समय सीमा समाप्त हो जाने के बावजूद, केंद्र सरकार का जवाब लंबित है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के अन्य नेता और कार्यकर्ता, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इसे “ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने” के लिए खत्म या संशोधित करने का दबाव बना रहे हैं. हालांकि, ऐसा संशोधन विवादित ढांचों पर दावे और प्रति-दावे की बाढ़ ला सकता है और हिंदू-मुस्लिम विभाजन को और गहरा सकता है.
पूजा स्थलों अधिनियम, 1991 के अनुसार, किसी पूजा स्थल का “धार्मिक स्वरूप” 15 अगस्त 1947 को जैसा था, वैसा ही बना रहेगा. इस कानून में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि को छूट दी गई थी, क्योंकि यह उस समय अदालत में विचाराधीन मामला था.
गुरुवार को कांग्रेस ने पूजा स्थलों अधिनियम, 1991 को चुनौती देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. कांग्रेस ने इसे “दुर्भावनापूर्ण और प्रेरित” बताते हुए कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखता है, जो संविधान की मूल विशेषता है. कांग्रेस की याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर कहा है कि “राष्ट्र का ध्यान भविष्य पर होना चाहिए, न कि अतीत के अत्याचारों को सुधारने पर.”
बीजेपी के राष्ट्रीय आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने शुक्रवार को पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस “हिंदुओं के खिलाफ युद्ध” छेड़ रही है और उनके मौलिक अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस को “नया मुस्लिम लीग” करार देते हुए मालवीय ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “कांग्रेस ने भारत के विभाजन को धार्मिक आधार पर मंजूरी दी. इसके बाद वक्फ कानून लागू किया, जिससे मुसलमानों को संपत्तियों पर अधिकार जताने और पूरे देश में मिनी-पाकिस्तान बनाने की अनुमति मिली. इसके बाद 1991 का पूजा स्थल अधिनियम लागू किया, जिसने हिंदुओं को उनके ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को वापस पाने के अधिकार से वंचित कर दिया.”
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय के अनुसार, यह कानून “बाबर, हुमायूं, मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा किए गए अवैध कार्यों को वैध करने के लिए बनाया गया था.” कांग्रेस की याचिका पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह हमारी पहचान के अधिकार, न्याय के अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार के खिलाफ है. सभी विवादित स्थलों पर सर्वे होना चाहिए, जहां मुगल काल में मंदिरों को तोड़ा गया था. कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है. यह एक राजनीतिक रूप से प्रेरित याचिका है.”
बीजेपी के सोशल मीडिया रणनीतिकार मालवीय ही अकेले नहीं हैं जो 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देकर “ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने” की मांग कर रहे हैं. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान के बाद कि हिंदू नेताओं को हर दिन मंदिर-मस्जिद के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ—जो बीजेपी के “हिंदू हृदय सम्राट” में से एक माने जाते हैं—ने हिंदुओं का संभल मस्जिद भूमि पर दावा किया.
संभल की शाही जामा मस्जिद पर कोर्ट के आदेशित सर्वे के बाद पिछले साल नवंबर में इलाके में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी.
एक कदम और आगे बढ़ते हुए, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भागवत की खुलेआम आलोचना करते हुए कहा कि वह “हिंदुओं का दर्द महसूस नहीं कर रहे हैं.” इसके अलावा, आरएसएस के मुखपत्र “ऑर्गनाइजर” के एक संपादकीय में कहा गया कि “सांस्कृतिक न्याय” के लिए “सत्य” जरूरी है, खासकर संभल के मामले में.
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एजेंडा तय करना
पिछले साल 21 दिसंबर को पुणे में ‘विश्वगुरु भारत’ पर एक लेक्चर सीरीज में बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “राम मंदिर आस्था का विषय था, और हिंदुओं का मानना था कि इसे बनाया जाना चाहिए. लेकिन हर जगह ऐसे मुद्दे उठाना और यह दावा करना कि ये पहले हिंदू स्थान थे, जिससे नफरत और दुश्मनी पैदा हो, अस्वीकार्य है.”
भागवत ने आगे कहा, “भारतीयों को अपने अतीत की गलतियों से सीखना चाहिए और अपने देश को दुनिया के लिए एक आदर्श बनाना चाहिए, यह दिखाते हुए कि विवादास्पद मुद्दों से बचकर समावेशिता को कैसे अपनाया जा सकता है. अतिवाद, आक्रामकता, जोर-जबरदस्ती और अन्य देवी-देवताओं का अपमान हमारी संस्कृति नहीं है. यहां कोई बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक नहीं है; सभी एक हैं; हर किसी को अपने पूजा करने के तरीके का अभ्यास करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.”
2022 में, भागवत ने एक समान भाषण दिया था, जिसमें पूछा था, “हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढते हो? मस्जिद में जो होता है वह भी प्रार्थना का ही एक रूप है.”
हालांकि, इस बार उनके बयान के एक हफ्ते के भीतर, आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने संभल पर एक संपादकीय प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया कि “शाही जामा मस्जिद की जगह एक मंदिर था, और इस सभ्यतागत न्याय की खोज को अब पूरा करने का समय आ गया है.”
संपादकीय में आगे कहा गया, “डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने जाति आधारित भेदभाव की जड़ों तक जाकर इसे खत्म करने के लिए संवैधानिक समाधान दिए. हमें धर्म के नाम पर दुश्मनी और भेदभाव को खत्म करने के लिए इसी तरह के तरीकों की जरूरत है. केवल इसलिए न्याय तक पहुंच और सत्य जानने के अधिकार से इनकार करना कि कुछ उपनिवेशित अभिजात वर्ग और छद्म-बुद्धिजीवी इसे जारी रखना चाहते हैं, कट्टरता, अलगाववाद और दुश्मनी को प्रोत्साहित करेगा.”
जनवरी में प्रयागराज में महाकुंभ के शुरू होने से पहले, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “संभल को इस्लाम के आने से बहुत पहले, भगवान विष्णु के दसवें अवतार, कल्कि के जन्मस्थान के रूप में भविष्यवाणी की गई थी. ‘आइने-अकबरी’ जैसे ऐतिहासिक दस्तावेजों में 1526 में श्री हरि विष्णु मंदिर को तोड़कर जामा मस्जिद बनाने का उल्लेख है.”
भागवत की टिप्पणियों के संदर्भ में, काशी और मथुरा में हिंदुओं के ऐसे दावे दिखाते हैं कि हिंदुत्व का एजेंडा अभी भी जारी है.
इस मुद्दे पर एक समाचार चैनल से बात करते हुए योगी ने कहा, “किसी विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं कहा जाना चाहिए. जिस दिन हम इसे मस्जिद कहना बंद कर देंगे, लोग वहां जाना बंद कर देंगे. मस्जिद जैसे ढांचे बनाकर किसी की आस्था को ठेस पहुंचाना इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है. ऐसे स्थलों पर पूजा करना खुदा को भी स्वीकार नहीं.”
उन्होंने कहा कि इस्लाम, सनातन धर्म के विपरीत, जहां मंदिर धार्मिक प्रथा का केंद्र हैं, पूजा स्थलों की आवश्यकता नहीं रखता.
‘अब नहीं, तो कब?’
बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नायकों में से एक और फैजाबाद के सांसद, विनय कटियार ने दिप्रिंट से कहा कि उन्होंने और उमा भारती ने 1991 में पूजा स्थलों अधिनियम का विरोध किया था.
उन्होंने कहा, “जब यह कानून लाया गया, तो हमने, उमा भारती और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इसका विरोध किया. इसे खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि यह पक्षपातपूर्ण है. अगर इसे संशोधित किया जाए, तो यह हिंदुओं के लिए काशी, मथुरा और संभल को कम समय में प्राप्त कर सकता है. संभल में मंदिर के प्रमाण हैं. एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के पास पर्याप्त सबूत हैं. कौन इसे नकार सकता है?”
एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “हिंदुओं के लिए काशी और मथुरा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं. ज्ञानवापी पर एएसआई की रिपोर्ट ने मंदिर के दावों को मजबूत किया है. इसलिए, हिंदू समाज से पूजा स्थलों अधिनियम की समीक्षा करने का दबाव बढ़ रहा है. यह अधिनियम मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए संसद में पारित हुआ था और यह अडिग नहीं है। जब यह अधिनियम पारित हुआ था, तब भी हमारे नेता उमा भारती और [एलके] आडवाणी जी ने इसका विरोध किया था.”
उन्होंने आगे कहा, “हिंदू सोच रहे हैं कि अगर काशी और मथुरा, राम मंदिर की तरह, मोदी जी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में प्राप्त नहीं हुए, तो कब होंगे? यह दरवाजे खोल सकता है, लेकिन महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक स्थलों के दावों की समीक्षा के लिए कुछ बदलाव किए जा सकते हैं.”
“जब भागवत जी ने कहा कि हर मस्जिद पर दावा नहीं करना चाहिए, तो कई हिंदू संतों ने उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया. यह जागरूक हिंदू समुदाय के मूड को दर्शाता है, जो चाहता है कि महत्वपूर्ण धार्मिक ढांचे हिंदुओं को सौंपे जाएं क्योंकि हमारी सरकार है. सरकार को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, लेकिन अधिनियम पर फिर से विचार करने का दबाव बढ़ रहा है.”
पिछले साल शून्यकाल के दौरान, उत्तर प्रदेश से भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने अधिनियम को खत्म करने की मांग की थी. उन्होंने कहा, “इस कानून के प्रावधान न केवल मनमाने हैं बल्कि असंवैधानिक भी हैं. यह संविधान में निर्दिष्ट समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. यह कानून न्यायिक समीक्षा को प्रतिबंधित करता है, जो कानून के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है।… यह कानून उन विदेशी आक्रमणकारियों का पक्ष लेता है जिन्होंने ज्ञानवापी, भगवान कृष्ण की भूमि और अन्य हिंदू मंदिरों पर बलपूर्वक कब्जा किया. यह कानून भगवान राम और भगवान कृष्ण के बीच अंतर पैदा करता है, जो दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं.”
अन्य भाजपा सांसद, जैसे मनोज तिवारी, ने 2023 में ज्ञानवापी विवाद के दौरान मंदिरों को वापस पाने की मांग की थी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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