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Monday, 2 December, 2024
होमराजनीतिMLA की पुलिस सुरक्षा की गुहार, एक विधायक का इस्तीफा; सार्वजनिक विवाद — मध्य प्रदेश BJP इकाई में संकट

MLA की पुलिस सुरक्षा की गुहार, एक विधायक का इस्तीफा; सार्वजनिक विवाद — मध्य प्रदेश BJP इकाई में संकट

मध्य प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत और मोहन यादव की अचानक मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति के एक साल से भी कम समय बाद, राज्य के नेता उन पर और उनके प्रशासन पर ‘उदासीनता’ का आरोप लगा रहे हैं.

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भोपाल: मध्य प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है. शराब माफिया से सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए भाजपा के एक विधायक ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के सामने दंडवत प्रणाम किया, पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने पर पार्टी के एक अन्य विधायक ने विरोध में इस्तीफा दे दिया और कई विधायकों ने प्रशासन पर उदासीनता का आरोप लगाया.

यह घटना राज्य चुनावों में पार्टी द्वारा शानदार जीत दर्ज करने के एक साल से भी कम समय बाद हुई है, जिसमें पार्टी ने 230 में से 163 सीटें जीतीं और एक मजबूत संगठनात्मक उपस्थिति का प्रदर्शन किया. पार्टी ने मुख्यमंत्री के रूप में एक आश्चर्यजनक उम्मीदवार मोहन यादव को भी चुना, जो शिवराज सिंह चौहान युग का अंत था.

हालांकि, भाजपा अब यादव के नेतृत्व वाले प्रशासन पर सार्वजनिक रूप से कटाक्ष करने वाले असंतुष्ट नेताओं को शांत करने के लिए संघर्ष करती हुई दिखाई दे रही है.

दिप्रिंट से बात करने वाले कई भाजपा नेताओं ने इसका कारण चौहान के केंद्र में स्थानांतरित होने के बाद शिकायत निवारण चैनल की अनुपस्थिति को बताया.

नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “सीएम मोहन यादव प्रशासन और विधायकों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं हैं.” यह खींचतान ऐसे समय में हुई है जब भाजपा अपनी राज्य इकाई के पुनर्गठन की प्रक्रिया में है और प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा का चार साल से अधिक का कार्यकाल समाप्त होने वाला है.

एक अन्य भाजपा नेता ने दिप्रिंट से कहा, “पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर नए चेहरे लाने का फैसला किया है, लेकिन यह सुनिश्चित करने का एक तरीका होना चाहिए कि सरकार और पार्टी के भीतर उनकी बात सुनी जाए, जो फिलहाल गायब है.”

पार्टी सूत्रों के अनुसार, यादव को नेताओं और पदाधिकारियों को संकटमोचक के रूप में नियुक्त करने की सलाह दी गई है, लेकिन इस पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

एक दूसरे भाजपा नेता ने कहा, “विधायकों के सामने अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग चुनौतियां हैं, लेकिन समस्या यह है कि सरकार के भीतर संवाद पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है.”

दिप्रिंट से बात करते हुए वी.डी. शर्मा ने कहा, “विधायकों को निर्देश दिया गया है कि वे अपनी शिकायतें सार्वजनिक मंचों पर व्यक्त करने के बजाय पार्टी के आंतरिक चैनलों के माध्यम से उठाएं.”


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पार्टी नेताओं ने लगाए गलत आरोप

10 दिन से भी ज़्यादा समय पहले, भाजपा के मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था, जिसमें कथित तौर पर उन्हें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के सामने दंडवत होते हुए दिखाया गया. उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में शराब की बिक्री पर चिंता जताते हुए अपनी जान को खतरा जताया था.

इसके बाद, पाटन से पार्टी के एक और विधायक अजय विश्नोई ने एकजुटता दिखाते हुए कहा था, “आपने सही मुद्दा उठाया है, लेकिन कोई क्या कर सकता है? पूरी सरकार शराब माफिया के आगे झुकी हुई है.”

विश्नोई ने हाल ही में एक पोस्ट में भाजपा के सदस्यता अभियान के बारे में चिंता जताई थी. उन्होंने बताया कि एक निजी कंपनी से उन्हें एक कॉल आया था जिसमें पैसे लेकर सदस्यता टारगेट को पूरा करने में मदद की पेशकश की गई थी. विश्नोई ने सवाल उठाया कि क्या नेता सदस्यता संख्या बढ़ाने और अपने पदों को आगे बढ़ाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं, जबकि समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है.

उन्होंने लिखा, “हम पुराने कार्यकर्ता इस गिरावट पर पछताने के अलावा कुछ नहीं कर सकते.”

इस घटना से पहले, भाजपा के देवरी विधायक बृजबिहारी पटेरिया ने सर्पदंश से संबंधित मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए रिश्वत मांगने के आरोपी डॉक्टर के खिलाफ पुलिस द्वारा कथित रूप से एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने पर विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया था.

नाराज़ पटेरिया ने पुलिस से मामला दर्ज करने का आग्रह किया था, लेकिन पुलिस द्वारा कथित रूप से इनकार करने पर वे विरोध में थाने के बाहर बैठ गए और बाद में अपना इस्तीफा भेज दिया.

अपने शुरुआती आक्रोश के बाद, पटेरिया ने अपने इस्तीफे पर खेद व्यक्त किया, लेकिन उनके इस कृत्य से उन्हें पूर्व मंत्री और रेहली के पूर्व विधायक गोपाल भार्गव से सहानुभूति मिली, जिन्होंने एक्स पर कहा, “भाजपा सरकार दिन-रात गरीबों के लिए काम कर रही है. ऐसी सरकार में चाहे पुलिस अधिकारी हों या डॉक्टर, जो जनता द्वारा चुने गए विधायक की भी नहीं सुनते, ऐसी कार्यशैली बर्दाश्त नहीं की जाएगी.”

जहां पटेरिया ने इस तरह विरोध करने का विकल्प चुना, वहीं भाजपा सूत्रों के अनुसार, इंदौर के तीन अन्य भाजपा विधायकों ने स्थानीय प्रशासन की उनके मुद्दों के प्रति उदासीनता के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सीएम यादव से मुलाकात की. सीएम इंदौर जिले के प्रभारी भी हैं.

पांच अक्टूबर को शहरी विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कथित तौर पर दमोह के सिंग्रामपुर में यादव द्वारा बुलाई गई कैबिनेट बैठक में शामिल नहीं हुए. एक दिन बाद, एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए, विजयवर्गीय ने टिप्पणी की: “शरीर का वजन कम होना ठीक है, लेकिन राजनीतिक वजन कम नहीं होना चाहिए. कोई भी व्यक्ति अपने शरीर का वजन कभी भी बढ़ा सकता है.”

सार्वजनिक विवाद

मध्य प्रदेश भाजपा के भीतर अंदरूनी कलह की अन्य घटनाएं भी सामने आई हैं. सितंबर में ऐसी तीन घटनाएं सुर्खियों में रहीं.

छतरपुर में केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक पर पूर्व भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह ने विभिन्न विभागों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अपने प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करने का आरोप लगाया. सिंह का समर्थन तीन बार की विधायक ललिता यादव ने किया, जिन्होंने संवाददाताओं से कहा कि मंत्री होने के नाते खटीक को अपने प्रतिनिधियों का इस्तेमाल समझदारी से करना चाहिए.

रायसेन में भाजपा विधायक नरेंद्र शिवाजी पटेल कथित तौर पर भाजपा सांसद दर्शन सिंह चौधरी के साथ बहस में पड़ गए क्योंकि एक निजी स्कूल द्वारा भेजे गए निमंत्रण पर पटेल के नाम से पहले उनका नाम लिखा गया था.

इसी तरह रीवा में भाजपा सांसद जनार्दन मिश्रा और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए सिद्धार्थ तिवारी के बीच तिवारी के दादा और कांग्रेस नेता श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ टिप्पणी को लेकर सार्वजनिक रूप से विवाद हुआ.

भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि इन सभी घटनाओं के बाद, प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने विधायकों को भोपाल में पार्टी मुख्यालय बुलाया और उन्हें सार्वजनिक रूप से अपनी शिकायतें व्यक्त करने से रोका, लेकिन शर्मा का कार्यकाल खत्म होने के बाद विधायकों के साथ संवाद शायद ही कारगर रहा हो.

जुलाई में राज्य के मंत्री और भाजपा नेता नागर सिंह चौहान ने वन मंत्रालय वापस लिए जाने के बाद इस्तीफा देने की धमकी दी थी. चौहान ने आरोप लगाया था कि उनसे मंत्रालय वापस लेने का फैसला उन्हें बताए बिना लिया गया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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