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Sunday, 22 December, 2024
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मिज़ोरम पूर्वोत्तर में आख़िरी क़िला है जिसे कांग्रेस बचाना चाहेगी, भाजपा जीतना

कांग्रेस के लिए मिज़ोरम बहुत अहम है क्योंकि पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों में ये इकलौता राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस के लिए मिज़ोरम उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बाकी के राज्य जहां शुक्रवार को मतदान हो रहा है.

2013 के चुनावों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री ललथनहवला सत्ता पर काबिज़ हुए. उन्होंने 40 में से 34 विधानसभा सीटे जीतीं. मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को केवल पांच सीटें मिली थीं. पर एमएमएफ राज्य में सत्ता में 1998 से 2008 तक थे.

नया गठबंधन

ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट एक चुनाव पूर्व गठबंधन है जिसमें सात दल हैं, यह इन चुनावों में एक और प्रमुख खिलाड़ी है. भाजपा जिसकी राज्य में इससे पहले कोई पहचान नहीं थी, इस बार 39 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उसका ध्येय है पूर्वोत्तर भारत में अपना विस्तार करना.

कांग्रेस के लिए ये चुनाव उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है जितने की चर्चा हो रही है. मिज़ोरम उन तीन राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस सत्ता में है- दूसरे दो पंजाब और कर्नाटक और केंद्र शासित पुडुचेरी हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि पूर्वोत्तर का ये इकलौता राज्य है जिसपर उसका नियंत्रण है.

भाजपा की तैयारी

कांग्रेस तेज़ी से पूर्वोत्तर इलाके में अपनी ज़मीन खोती जा रही है और भाजपा हर मौके को तुरंत हथिया रही है. भाजपा के लिए पूर्वोत्तर भारत ऐसा क्षेत्र था जिसको वो समझता नहीं था फिर भी भाजपा सात में से छह राज्यों में सत्ता में आ पाई – चाहे चुनाव जीत कर या गठबंधन बना कर या फिर अन्य तरीकों से उसने सत्ता हथियाई.

पार्टी ने राज्य में अपना काम साल के शुरू में कर दिया था. भाजपा के पूर्वोत्तर के प्रभारी राम माधव और असम के वरिष्ठ मंत्री हेमंत बिस्व सर्मा ने रणनीति तैयार की और स्थिति पर बारीक नज़र रखी.


यह भी पढ़ें: मिज़ोरम चुनाव: क्या भाजपा पूर्वोत्तर में कांग्रेस का आखिरी किला ढहा पाएगी?


पर भाजपा के लिए ये ज़रूरी है कि उसका सम्मानजनक प्रदर्शन हो ताकि पूरे पूर्वोत्तर में वो अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सके.

क्षेत्रीय खिलाड़ियों के लिए ये अपने अस्तित्व की और प्रासंगिगता की लड़ाई है. एमएनएफ अब एक दशक से सत्ता से बाहर है और वह वापस सत्ता में आना चाहती है. नवगठित ज़ेडपीएम को अच्छा प्रदर्शन करना बहुत ज़रूरी है अगर वह अपने को राज्य की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में पेश करना चाहता है.

शराबबंदी

एंटी इंकम्बेंसी के अलावा, मौजूदा सत्ता के लिए शराबबंदी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है. अपने पांचवें कार्यकाल में मुख्यमंकत्री ललथनहवला ने 14 साल बाद शराबबंदी जुलाई 2014 में खत्म कर दी थी. इस ईसाई बहुल राज्य में, जहा प्रेसबिटेरियन चर्च बहुत शक्तिशाली है, शराबबंदी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है और हर पार्टी अपना अलग रुख रखे हुए है.

कांग्रेस पूरी शराबबंदी के खिलाफ है तो एमएमएफ पूरी पाबंदी चाहती है. भाजपा बाहर से आने वाली शराब को रोकना चाहती है पर स्थानीय शराब को प्रोत्साहन देना चाहती है. ज़ेडपीएम ने पूर्ण शराबबंदी की मांग की है.

मिज़ोरम में चाहे 40 ही सीटें भले क्यों न हों, पर चुनाव में खासी गहमागहमी है. अब नतीजे बताएंगे कि भाजपा एक्स फैक्टर बन के उभरती है जो सारी चुनावी गणित में उलटफेर कर के अपने लिए एक जगह बना पाती है या ऐसा नहीं होगा.

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