नई दिल्ली: मोदी सरकार में शामिल तमाम मंत्रियों को पिछले हफ्ते उस समय प्रधानमंत्री की ओर से सवालों की झड़ी का सामना करना पड़ा जब उन्होंने फीडबैक लेने की कवायद की. ये सवाल कोविड प्रबंधन और सरकारी योजनाओं की लोकप्रियता जैसे मसलों से जुड़े थे.
भाजपा सूत्रों के अनुसार कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी, जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मत्स्य पालन और पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह, आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन उन पांच समूहों का हिस्सा थे जिन्हें ऐसी समीक्षा का सामना करना पड़ा.
माना जाता है कि एक सत्र में प्रधानमंत्री ने मंत्रियों से यह भी पूछ लिया कि उनमें से कितने लोगों ने पिछले कुछ महीनों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और आंगनवाड़ी का दौरा किया है.
कई बार उन्होंने सरकारी योजनाओं के संबंध में सवाल किया और मंत्रियों से जानना चाहा कि क्या उन्हें इस पहल में कोई कमी लगती है और क्या ये योजनाएं लोगों के बीच लोकप्रिय हैं. उनसे पूछा गया कि कोविड टीकाकरण अभियान में क्या कमियां रही हैं और ये कमियां दूर करने के लिए मंत्रियों की तरफ से क्या कदम उठाए गए.
सूत्रों ने बताया कि मोदी ने यह सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक खाका भी खींचा कि सरकारी विभाग अधिक कुशलता से काम कर सकें और साथ ही यह भी पता लगाया जा सके कि मौजूदा सरकार की पहल जमीनी स्तर पर कितनी प्रभावी साबित हो रही है.
प्रधानमंत्री की कवायद पर बात करते हुए पार्टी के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने (मोदी ने) मूलत: सरकार के प्रदर्शन की समीक्षा और खामियां दूर करने की कोशिश के साथ भविष्य की चुनौतियों के लिए अपने सहयोगियों और कैडर को सतर्क किया… इसके पीछे यह संदेश भी छिपा है कि ‘ये सोचकर आराम से न बैठ जाएं कि संकट खत्म हो गया है.’
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‘प्रधानमंत्री के साथ जीरो ऑवर’
ऐसी ही एक बैठक में मौजूद एक मंत्री ने कहा, ‘यह जीरो ऑवर की तरह था, जहां उन्होंने (मोदी) वास्तविक प्रतिक्रिया मांगी और अधिक प्रभावी शासन के लिए कुछ सुझाव भी दिए… उनका जोर भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर क्षमता हासिल करने पर था.’
ऊपर उद्धृत मंत्री के मुताबिक, मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि पूर्व में उनकी तरफ से निचले स्तर पर कामकाज पर लगातार नज़र रखे जाने से कुछ परियोजनाओं की दक्षता में सुधार हुआ था और सुझाव दिया कि प्रत्येक मंत्री एक जिला या एक गांव गोद लें ताकि इसकी लगातार निगरानी हो सके कि सरकारी योजनाओं को कैसे लागू किया जा रहा है.
इस संवाद प्रक्रिया में शामिल रहे एक पदाधिकारी ने बताया कि मोदी ने 7 जून को हुई एक बैठक में पार्टी महासचिवों से कहा, ‘यह उम्मीद करना बेमानी है कि सरकार सब कर सकती है और हर जगह मौजूद हो सकती है….इसमें जो जगह खाली रह जाती है उसे भरना आपका कर्तव्य है.’
पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में प्रधानमंत्री ने भाजपा के सभी महासचिवों से पांच घंटे तक मुलाकात की. बैठक में उन्होंने दूसरी कोविड लहर के दौरान उनकी तरफ से उठाए गए कदमों के बारे में भी पूछा.
एक दूसरे पदाधिकारी ने बताया कि इस दौरान मोदी ने कहा, ‘भाजपा कार्यकर्ता क्या अपने क्षेत्र में एक आंगनवाड़ी नहीं गोद ले सकते हैं या हम अपने संबंधित क्षेत्र में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की निगरानी की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले सकते हैं, या फिर कोविड के दौरान अपने क्षेत्र के एक गांव में बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे की व्यवस्था ठीक करने का जिम्मा नहीं संभाल सकते?’
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री की राय थी कि अगर पार्टी के हर कार्यकर्ता ने एक आंगनवाड़ी की जिम्मेदारी संभाल ली होती तो ‘हम कोविड के कहर से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम हो गए होते.’
महासचिवों के साथ बैठक में मौजूद पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री अप्रैल-मई के शुरुआती, बेहद अहम दिनों में दिखी पार्टी और बुनियादी सरकारी ढांचे की गैर-मौजूदगी को लेकर खासे चिंतित थे, जब कोविड ने पूरे देशभर में भारी तबाही मचाई थी…और केवल विपक्षी दल ही आक्रामक रूप से लोगों की मदद करते नज़र आ रहे थे.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा प्रयास इस स्तर का होना चाहिए कि जब भी संकट की स्थिति आए और किसी चीज की जरूरत हो, भाजपा के लोग मदद के लिए मौजूद हों’.
मोदी की तरफ से ‘जीरो ऑवर’ का यह आइडिया पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को दिया गया था.
मोदी की तरफ से समीक्षा की इस कवायद से पांच दिन पहले 2 जून को सरमा ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. मोदी ने तब मुख्यमंत्री से कहा था कि राज्य सरकार के कामकाज और योजनाओं के बारे में नकारात्मक फीडबैक जुटाने के लिए ‘जीरो ऑवर’ शुरू करें.
मोदी ने उन्हें बताया था कि उन्होंने खुद इस विचार को तब लागू किया था जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे. प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री से कहा था, ‘अच्छा बोलने वाले तो तुमको बहुत मिलेंगे, लेकिन बुराई सुनो….तभी आप (गलतियां) सुधारने में सक्षम होंगे.’
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कैबिनेट में फेरबदल, चुनावी राजनीति फिर से केंद्र में
सप्ताह भर चली इन बैठकों के बाद प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह और नड्डा के साथ राज्यों में पार्टी के संगठनात्मक मामलों और आने वाले दिनों में संभावित कैबिनेट फेरबदल पर चर्चा की थी.
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘इनमें (चर्चा के मुद्दे) कैबिनेट फेरबदल भी एक था. चूंकि कोविड की दूसरी लहर के मामले घट रहे हैं और टीकाकरण बढ़ रहा है… सरकार ऐसा मान रही है कि आगामी चुनाव वाले राज्यों में चुनावी तैयारियों की शुरुआत हो जाने के बीच कैबिनेट और राज्यों में आवश्यक बदलाव करने का यह उपयुक्त समय है.’
नेता ने आगे कहा, ‘कई मंत्री ऐसे हैं जो कई विभागों को संभाल रहे हैं… उनके विभागों का फिर से बंटवारा करने और यूपी, बिहार में सहयोगियों को प्रतिनिधित्व देने की जरूरत है और कुछ नए चेहरों को भी शामिल किया जाना है….पहले (ये बदलाव) पिछले साल होने वाले थे लेकिन कोविड महामारी ने सरकार की प्राथमिकता बदल दी और इसे टाल दिया गया था.’
नेता ने यह भी कहा कि शुक्रवार की बैठक में चुनाव वाले राज्यों के मंत्रिमंडलों में गैर-प्रतिनिधित्व वाली जातियों की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की संभावित आवश्यकता पर चर्चा हुई.
उक्त नेता ने कहा, ‘सबसे बड़ी चुनौती 2024 के लिए एक रोड मैप तैयार करना और इन महीनों के दौरान कोविड के कारण हुई राजनीतिक क्षति को पूरा करना है.’
एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बोर्ड परीक्षाएं रद्द करने से लेकर किसान आंदोलन को शांत करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और गरीब कल्याण योजना के तहत दिवाली तक गरीबों के लिए मुफ्त राशन देने तक, सरकार अपने खिलाफ नकारात्मक धारणा को खत्म करने के लिए पहले ही कुछ कदम उठा चुकी है.
नेता ने कहा, ‘अवधारणा में कोई बड़ा बदलाव केवल पूर्ण टीकाकरण के माध्यम से ही संभव है और…टीम में बदलाव सरकार के प्रति सोच बदलने की कोशिश को गति देगा.’
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