scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होमराजनीतिTRS में असंतोष और BJP का बढ़ता असर देख ‘मिलनसार’ बने KCR- बैठकों, शादियों और शोक सभाओं में हो रहे हैं शामिल

TRS में असंतोष और BJP का बढ़ता असर देख ‘मिलनसार’ बने KCR- बैठकों, शादियों और शोक सभाओं में हो रहे हैं शामिल

हाल के चुनावों और उपचुनावों में हार और कुछ सदस्यों के पार्टी छोड़ने के बाद मुख्यमंत्री पर आरोप लगते रहे हैं कि वह अपनी टीम के सदस्यों के लिए ‘उपलब्ध’ नहीं होते हैं. ऐसे में वह अब अपने व्यवहार में बदलाव लाने में जुटे नजर आ रहे हैं.

Text Size:

हैदराबाद: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पिछले कुछ समय में पार्टी को पहुंची क्षति को देखते हुए फिलहाल ‘रिपेयर मोड’ में नजर आ रहे हैं. यह बात खुद उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति के सहयोगी ही कह रहे हैं. पार्टी के संस्थापक- जिनकी अपनी टीम के सदस्यों के लिए भी ‘उपलब्ध’ न होने को लेकर आलोचना की जाती रही है- ने पिछले कुछ हफ्तों के दौरान तमाम लोगों से मिलने-जुलने के लिए समय निकाला है.

केसीआर के व्यस्त कार्यक्रमों में केवल विधायकों और एमएलसी के साथ बैठकें ही शामिल नहीं हैं, बल्कि इस दौरान वह कई विवाह समारोहों में भी शामिल हुए.

ये बैठकें ऐसे समय पर ‘बढ़ी’ हैं जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) देश के सबसे नए राज्य में टीआरएस के वर्चस्व के लिए एक चुनौती बनकर उभर रही है. भाजपा ने पिछले महीने हुजूराबाद विधानसभा उपचुनाव में टीआरएस को हराया था और पिछले साल ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में भी उसका प्रदर्शन प्रभावशाली रहा था. टीआरएस पिछले साल दुब्बाका विधानसभा उपचुनाव भी भाजपा से हार गई थी.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बंडारू श्रीनिवास राव ने दिप्रिंट से कहा, ‘केसीआर के हर कदम के पीछे कोई न कोई रणनीति होती है. वे बेहद चतुर राजनेता हैं. मैं यह तो नहीं कहूंगा कि वह भाजपा से डरे हुए हैं और इसलिए यह सब कर रहे हैं. लेकिन वह सतर्कता जरूर बरत रहे हैं, ताकि हालिया झटके के बाद स्थिति और न बिगड़े.’

राव ने आगे कहा, ‘यही नहीं अगर चुनाव थोड़ा करीब आ जाते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें और अधिक दिखने की जरूरत है, तो उनकी बॉडी लैंग्वेज, उनकी कार्यशैली तुरंत बदल जाती है.’


यह भी पढ़ें : पूर्व PM देवेगौड़ा के पोते ने जीती हासन MLC सीट, अब राजनीति में दूसरा सबसे बड़ा वंश


सात शादियों और एक प्रदर्शन में लिया हिस्सा

केसीआर ने पिछले गुरुवार को दो एमएलसी—बंदा प्रकाश और रविंदर राव—के साथ अलग-अलग मुलाकात की. उन्होंने हैदराबाद में मुख्यमंत्री के विशाल कार्यालय-और-आवास प्रगति भवन में राव के परिवार से भी मुलाकात की.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री पिछले बुधवार को टीआरएस सांसद प्रभाकर रेड्डी के बेटे के विवाह समारोह में भी शामिल हुए.

इस महीने की शुरुआत में केसीआर एक विधायक के पिता के निधन के बाद टीआरएस विधायक बंदला कृष्ण मोहन रेड्डी और उनके परिवार को सांत्वना देने हैदराबाद से करीब 200 किलोमीटर दूर जोगुलम्बा-गडवाल जिले तक पहुंचे. नवंबर की शुरुआत में केसीआर ने महबूबनगर में कैबिनेट मंत्री श्रीनिवास गौड़ से मुलाकात की थी और उनकी मां की मृत्यु के बाद परिवार को सांत्वना देने पहुंचे थे.

पिछले महीने के अंत में 28 नवंबर को केसीआर ने तेलंगाना राज्य खादी और ग्रामोद्योग के अध्यक्ष मोहम्मद यूसुफ जाहिद से मुलाकात की, जो उन्हें अपनी बेटी की शादी के लिए आमंत्रित करने आए थे. उसी दिन पांच एमएलसी भी मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे और विधान परिषद के लिए चुने जाने पर उन्हें धन्यवाद दिया.

17 नवंबर को केसीआर ने तीन विवाह समारोहों में हिस्सा लिया- इसमें एक समारोह पार्टी विधायक मयनामपल्ली हनुमंत राव के बेटे की शादी का था और दूसरा तेलंगाना राजपत्रित अधिकारी संघ अध्यक्ष वी. ममता के परिवार के किसी सदस्य का. वह तेलंगाना पिछड़ा वर्ग आयोग सदस्य जुलुरी गौरीशंकर की बेटी की शादी में भी शामिल हुए. गौरीशंकर ने 2019 में केसीआर पर तीन किताबें लिखी थीं.

केसीआर नवंबर में डिप्टी स्पीकर पद्मा राव गौड़ की बेटी की शादी में भी शामिल हुए थे.

सीएम सिर्फ अपनी पार्टी या सरकार के लोगों से ही नहीं मिलते रहे. बल्कि पिछले हफ्ते वह कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक कोमातीरेड्डी राज गोपाल रेड्डी से भी मिले, जो कि उन्हें अपने बेटे की शादी के लिए निमंत्रण देने आए थे.

केसीआर ने केंद्र के साथ जारी धान खरीद विवाद पर चर्चा के लिए 16 नवंबर को पार्टी विधायक दल की बैठक की. 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से यह पहला मौका था जब उन्होंने केंद्र के खिलाफ विरोध जताया. केसीआर और उनकी पार्टी के सहयोगी धान खरीद के मुद्दे को लेकर पिछले महीने सड़कों पर भी उतरे. प्रदर्शनकारियों की सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने हर विधायक की तरफ से अपने विचार व्यक्त किए जाने से पहले खुद उन सबका नाम लेकर परिचय कराया.

‘एक के बाद एक झटके अखरने लगे’

अधिक ‘मिलनसार’ बनने के केसीआर के हालिया प्रयास उनके लिए पूरी तरह नए नहीं हैं. केसीआर को लोगों के बीच रहने और खासकर ऐसे एक नेता के तौर पर जाना जाता है जो हर चुनाव से पहले मिलना-जुलना काफी बढ़ा देते हैं.

टीआरएस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘दुब्बाका के ठीक ही उन्होंने पार्टी को मजबूत करने की कोशिशें शुरू कर दी थीं लेकिन हुजूराबाद की हार के बाद इसने और अधिक गति पकड़ी ली, क्योंकि यह झटका थोड़ा ज्यादा बड़ा था. उनकी शैली में बदलाव आए हैं- मैं पार्टी में कुछ समय पहले ही आया हूं, फिर भी मुझे बैठकों का हिस्सा बनाया जा रहा है. मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में और अधिक संगठनात्मक बदलाव नजर आएंगे.’

खम्मम जिले के कुछ टीआरएस नेताओं ने भी अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केसीआर और पार्टी के काम करने के तौर-तरीकों को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष है.

पिछले महीने के अंत में टीआरएस के दो वरिष्ठ नेताओं ने एमएलसी चुनावों को लेकर पार्टी छोड़ दी थी. उनमें से एक, करीमनगर के पूर्व मेयर एस. रविंदर सिंह ने इस्तीफे के साथ केसीआर को एक भावनात्मक नोट भी लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि कैसे कुछ नेताओं का ‘घमंडी’ रुख पार्टी के प्रदर्शन को नुकसान पहुंचा रहा था. एमएलसी का टिकट नहीं मिलने के बाद रविंदर सिंह ने पार्टी छोड़ दी थी. इस्तीफा देने वाले दूसरे नेता गट्टू रामचंद्र राव थे, जो पार्टी का एक प्रमुख चेहरा माने जाते थे.

जून में केसीआर के करीबी सहयोगी और उनकी कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री रहे एटाला राजेंदर ने जमीन कब्जाने के आरोप लगने पर सीएम द्वारा उनका विभाग छीन लिए जाने के बाद पार्टी छोड़ दी थी. पार्टी छोड़ने के बाद राजेंदर ने मुख्यमंत्री पर कथित तौर पर निरंकुश शासन का आरोप लगाते यह तक कह डाला था कि केसीआर मंत्रिमंडल में मंत्री रहना ‘गुलाम’ होने से भी बदतर था. पूर्व टीआरएस नेता ने यह भी बताया था कि कैसे मंत्री तक भी बिना अप्वाइंटमेंट लिए मुख्यमंत्री से नहीं मिल सकते थे, और कैसे उन्हें कई बार सीएम के दरवाजे से लौटा तक दिया गया.

राजेंदर ने इसके बाद भाजपा के टिकट पर हुजूराबाद से उपचुनाव लड़ा और टीआरएस के प्रचार अभियान की कमान खुद केसीआर की तरफ से संभाले जाने के बावजूद उन्होंने इस सीट पर जीत हासिल की.

श्रीनिवास राव ने कहा, ‘हुजुराबाद में एक बड़ा झटका लगने का कारण यह था कि केसीआर एटाला को अपने मुकाबले खड़े होने और जीत हासिल करने से रोक नहीं पाए. वह यह भी जानते हैं कि निचले स्तर पर पार्ट कार्यकर्ताओं में असंतोष है और अगर वह इसकी अनदेखी करते हैं तो आने वाले समय में वह उनके छिटकने का कारण भी बन सकता है. यह स्थिति कुछ ऐसी है कि जैसे पैर में चुभा कांटा बहुत नुकसान नहीं पहुंचाता है लेकिन वही कांटा अगर आंख में चुभ जाए तो ज्यादा घातक साबित हो सकता है.’
केसीआर के लिए पिछले साल दुब्बाका उपचुनाव में भाजपा से हारना पहला झटका था. भाजपा ने इस जीत के बाद ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल चुनाव में भी अपना आंकड़ा और बढ़ा लिया और टीआरएस बहुमत हासिल करने में विफल रही.

119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा में भाजपा के पास सिर्फ तीन विधायक हैं, वहीं टीआरएस विधायकों की संख्या 100 से अधिक हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि दोनों उपचुनावों में भाजपा की जीत मजबूत उम्मीदवारों के वजह से हुई और इसे राज्य में पार्टी की स्थिति मजबूत होने का नतीजा नहीं माना जा सकता है. फिर इसने यह धारणा तो बना ही दी है कि तेलंगाना में टीआरएस या केसीआर के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठने की गुंजाइश है, जहां सत्तारूढ़ दल एक लंबे समय से लगभग निर्विरोध शासन कर रहा है.

भाजपा सांसद धर्मपुरी अरविंद ने रविवार को दावा किया कि टीआरएस के कुछ और निर्वाचित प्रतिनिधि भाजपा में शामिल होने के लिए उनके संपर्क में हैं और पार्टी उन्हें अपने पाले में लाने के लिए तैयार है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments