लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने मॉब लिन्चिंग को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार की नीति की देन के कारण सर्वसमाज के लोग इसका शिकार हो रहे हैं.
उन्होंने शनिवार को ट्वीट किया कि ‘मॉब लिन्चिंग एक भयानक बीमारी के रूप में देश भर में उभरने के पीछे वास्तव में खासकर बीजेपी सरकारों की कानून का राज स्थापित नहीं करने की नीयत व नीति की ही देन है जिससे अब केवल दलित, आदिवासी व धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोग ही नहीं बल्कि सर्वसमाज के लोग व पुलिस भी शिकार बन रही है.’
माब लिन्चिग एक भयानक बीमारी के रूप में देश भर में उभरने के पीछे वास्तव में खासकर बीजेपी सरकारों की क़ानून का राज स्थापित नहीं करने की नीयत व नीति की ही देन है जिससे अब केवल दलित, आदिवासी व धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोग ही नहीं बल्कि सर्वसमाज के लोग व पुलिस भी शिकार बन रही है।
— Mayawati (@Mayawati) July 13, 2019
उन्होंने आगे लिखा कि ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केन्द्र को गम्भीर होकर मॉब लिन्चिग पर अलग से देशव्यापी कानून अब तक जरूर बना लेना चाहिये था लेकिन लोकपाल की तरह मॉब लिंचिग के मामले में भी केन्द्र उदासीन है व कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार साबित हो रही है. ऐसे मे यूपी विधि आयोग की पहल स्वागतोग्य है.’
ज्ञात हो कि विधि आयोग के अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) आदित्य नाथ मित्तल ने मॉब लिन्चिंग की रिपोर्ट के साथ तैयार मसौदा विधेयक उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष पेश किया है. इस 128 पन्नों की रिपोर्ट में प्रदेश में मॉब लिन्चिंग के अलग-अलग मामलों का जिक्र है. इसमें 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कानून को तत्काल लागू करने की संस्तुति की गई है. आयोग ने रिपोर्ट में इस बात का खासतौर पर जिक्र किया है कि वर्तमान कानून मॉब लिन्चिंग से निपटने में सक्षम नहीं है. ऐसी दुस्साहसिक घटनाओं के लिए एक अलग कानून होना चाहिए.
आयोग ने इस अपराध के लिए सात साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का सुझाव दिया.
आयोग ने सुझाव दिया कि कानून को उत्तर प्रदेश मॉब लिंचिंग निरोध अधिनियम कहा जा सकता है और इसके तहत पुलिस अधिकारियों और जिला अधिकारियों और जिला अधिकारियों की जिम्मेदारियों का निर्धारण होने के साथ-साथ ड्यूटी करने में असमर्थ होने पर उन्हें दंड का प्रावधान भी दिया गया हो.
साल 2012 से 2019 से आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में मॉब लिंचिंग के 50 मामले हुए हैं। जिनमें 50 पीड़ितों में से 11 की मौत हो गई। इनमें से गोरक्षकों द्वारा हमले समेत 25 मामले गंभीर हमलों के थे. कानून आयोग की सचिव सपना चौधरी ने कहा, ‘इस स्थिति की पृष्ठभूमि में आयोग ने अध्ययन किया और उसी अनुसार लिंचिंग से निपटने के लिए राज्य सरकार को जरूरी कानून की सिफारिश की.’