चंडीगढ़: इस साल, 24 मार्च को 2001 बैच के पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी गुरकीरत किरपाल सिंह को भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने राज्य के गृह सचिव पद से हटा दिया. आठ महीने से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन अब तक उन्हें कोई नई पोस्टिंग नहीं मिली है.
राज्य की नौकरशाही में बहुत से लोग सिर्फ अंदाज़ा ही लगा पा रहे हैं कि उन्हें क्यों हटाया गया. वरिष्ठ अधिकारियों के बीच कई तरह की चर्चाएं हैं, लेकिन ज़्यादातर का मानना है कि इसकी वजह यह थी कि उन्होंने खनन सचिव के तौर पर (यह जिम्मेदारी उनके पास गृह विभाग के साथ थी) एक फाइल पर साइन करने से इनकार कर दिया था. माना जा रहा है कि इसी वजह से उन्हें ‘सज़ा’ दी गई, क्योंकि पंजाब की सत्ता संभाल रहे राजनीतिक नेतृत्व जिसमें मान और AAP के वरिष्ठ नेता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया शामिल हैं, को यह पसंद नहीं आया.
किसी और राज्य में, 25 साल से ज्यादा के बेदाग करियर वाले और ऑल-इंडिया UPSC टॉपर गुरकीरत किरपाल को एक बड़ी उपलब्धि माना जाता. आम आदमी पार्टी के पंजाब में सत्ता में आने से पहले, वे पूर्व मुख्यमंत्रियों प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के विशेष प्रधान सचिव रह चुके हैं.
गुरकीरत किरपाल ने दिप्रिंट से बात करने से इनकार कर दिया, जब उनसे मान सरकार द्वारा आठ महीने से ज्यादा समय तक बिना काम के वेतन पाने की उनकी इस असामान्य ‘उपलब्धि’ पर सवाल किया गया, लेकिन वे अकेले ऐसे अधिकारी नहीं हैं.
2007 बैच की आईएएस अधिकारी कंवलप्रीत बराड़ भी 24 फरवरी से पोस्टिंग का इंतज़ार कर रही हैं, जब उन्हें पंजाब स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर पद से हटा दिया गया था. उनसे संपर्क करने पर उन्होंने भी यह बताने से इनकार कर दिया कि इस ‘पेड ब्रेक’ की वजह क्या हो सकती है.
2011 बैच के आईएएस अधिकारी पुनीत गोयल भी 25 फरवरी से बिना पोस्टिंग के हैं, जब उन्हें खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के निदेशक पद से हटाया गया था.
हालांकि, इन तीन अधिकारियों के मामले सबसे चौंकाने वाले हैं, क्योंकि वे लंबे समय से बिना पोस्टिंग के हैं, लेकिन पंजाब में AAP सरकार द्वारा अधिकारियों के साथ ‘कोल्ड वॉर’ चलाना आम बात बन चुकी है.
मार्च 2022 में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से, दर्जनों वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को महीनों तक बिना काम के रखा गया है. इसकी वजहें कभी साफ तौर पर नहीं बताई गईं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक इसका संबंध इस बात से है कि उन्होंने मान या दिल्ली में बैठे पार्टी नेताओं को नाराज़ कर दिया था. सूत्रों का कहना है कि यह ‘सज़ा’ तभी खत्म होती है, जब अधिकारी बिना शर्त माफी मांगते हैं और यह तभी संभव होता है जब उन्हें नेतृत्व से मिलने का मौका दिया जाए.
दिप्रिंट ने सरकार का पक्ष जानने के लिए मुख्य सचिव के.ए.पी. सिन्हा से फोन कॉल और मैसेज के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश की, साथ ही पार्टी के प्रवक्ताओं मालविंदर सिंह कांग और नील गर्ग से भी सवाल भेजे. हालांकि, रिपोर्ट के छापे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला.
लंबी सूची
1996 बैच के आईएएस अधिकारी अजय कुमार सिन्हा को अक्टूबर में पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (PSPCL) के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद से कोई पोस्टिंग नहीं दी गई है—यह पद उन्हें फरवरी में दिया गया था. सिन्हा 31 जनवरी, 2026 को रिटायर होने वाले हैं और उससे पहले उन्हें कोई पोस्टिंग न मिलना पंजाब में प्रशासनिक रिकॉर्ड बना सकता है.
2015 बैच के आईएएस अधिकारी परमवीर सिंह को अक्टूबर में पटियाला नगर निगम के कमिश्नर पद से हटाए जाने के बाद से कोई पोस्टिंग नहीं दी गई है. पिछले एक साल में परमवीर का नौकरशाही सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. अगस्त 2024 में उन्हें पहले मानसा के डिप्टी कमिश्नर पद से हटाया गया, जिसके बाद अक्टूबर तक उन्हें कोई पोस्टिंग नहीं मिली. अक्टूबर में उन्हें तरनतारन का डिप्टी कमिश्नर बनाया गया, लेकिन कुछ ही हफ्तों में उन्हें हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर अकाली दल के एक वरिष्ठ नेता के साथ मंच साझा किया था. मार्च 2025 तक वे बिना पोस्टिंग रहे, जब उन्हें पटियाला नगर निगम का कमिश्नर नियुक्त किया गया.
1997 बैच के राहुल भंडारी को फरवरी 2024 में दिल्ली स्थित पंजाब भवन के प्रिंसिपल रेजिडेंट कमिश्नर पद से हटाया गया था और सितंबर 2024 तक उन्हें कोई काम नहीं दिया गया. आखिरकार सितंबर में उन्हें पशुपालन और मत्स्य विभाग का प्रभार दिया गया, जिसे राज्य में “साइडलाइन” पोस्टिंग माना जाता है.
1999 बैच के आईएएस अधिकारी अजय कुमार शर्मा, जो फिलहाल भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात हैं, जनवरी 2023 में स्वास्थ्य सचिव पद से हटाए जाने के बाद चार महीने से ज्यादा समय तक बिना पोस्टिंग रहे. मई में जाकर उन्हें नया प्रभार मिला. बताया जाता है कि उन्होंने अन्य अधिकारियों के समर्थन में आवाज़ उठाई थी और बाद में आम आदमी क्लीनिकों के प्रचार के लिए पैसे मंजूर करने से इनकार कर दिया था, जिससे उनके राजनीतिक आकाओं की नाराज़गी हुई.
1994 बैच के विकास प्रताप सिंह और 2007 बैच के मोहम्मद तैयब को जून के आखिरी हफ्ते से अगस्त के मध्य तक कोई पोस्टिंग नहीं दी गई. बाद में विकास प्रताप को सामाजिक सुरक्षा, महिला एवं बाल विकास विभाग का अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाया गया, जबकि तैयब को जेल विभाग का सचिव नियुक्त किया गया और साथ ही उन्हें पुलिस महानिरीक्षक (जेल) का अस्थायी प्रभार भी दिया गया. इसी तरह 2014 बैच की पंजाब सिविल सर्विस (पीसीएस) अधिकारी जीवन जोत कौर जून के पहले हफ्ते से अगस्त के मध्य तक बिना पोस्टिंग रहीं, जब उन्हें संसदीय कार्य विभाग में उप सचिव बनाया गया.
कुछ अन्य अधिकारी भी हफ्तों तक बिना पोस्टिंग रहे हैं. जब पूछा गया कि क्या सरकारी सेवा नियम इतने लंबे समय तक बिना पोस्टिंग के रहने की अनुमति देते हैं, तो कार्मिक विभाग में पहले काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी (जिन्होंने नाम न बताने की शर्त रखी) ने दिप्रिंट से कहा कि सेवा नियम इस स्थिति पर पूरी तरह चुप हैं. उन्होंने कहा, “सेवा नियम एक नौकरशाह के लिए काम करते समय मार्गदर्शक सिद्धांत तय करते हैं. सरकार को किसी अधिकारी को काम न देने से रोकने वाला कोई नियम नहीं है. जब सेवा नियम बनाए गए थे, तब ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की गई थी.”
पूर्व वरिष्ठ अधिकारी इस हालात पर अफसोस जताते हैं. पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव और लेखक रमेश इंदर सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि यह सज़ा देने का तरीका है. उन्होंने कहा, “किसी अधिकारी को बिना पोस्टिंग के इसलिए रखा जाता है क्योंकि सरकार के पास उसके खिलाफ आगे बढ़ने का कोई और तरीका नहीं होता. उनके खिलाफ कुछ भी नहीं मिलता. इसका नौकरशाही पर मनोबल तोड़ने वाला असर पड़ता है. साथ ही सरकार के लिए भी इसके नकारात्मक मायने होते हैं. बाकी नौकरशाही काम करना बंद कर देगी, जिससे प्रदर्शन खराब होगा. इस लिहाज़ से यह सरकार के लिए भी फायदेमंद नहीं है.”
पंजाब के पूर्व विशेष मुख्य सचिव और कॉलमिस्ट के.बी.एस. सिद्धू ने दिप्रिंट से कहा कि एक उचित समय सीमा के भीतर अधिकारी को पोस्टिंग दी जानी चाहिए, चाहे वह कैडर पोस्ट हो या उसके बराबर का कोई पद.
सिद्धू ने कहा, “अगर सरकार किसी अधिकारी को पोस्ट नहीं कर पा रही है, तो वह कैडर नियमों का उल्लंघन कर रही है. दूसरी बात, सरकार उनसे कोई काम नहीं ले रही लेकिन फिर भी उन्हें वेतन दे रही है, जो आर्थिक रूप से अक्षम है. ऐसी स्थितियों का इस्तेमाल कैडर और सहयोगियों को यह संदेश देने के लिए किया जाता है कि ये अधिकारी मौजूदा सरकार की ‘अच्छी किताबों’ में नहीं हैं. 15–20 दिन ठीक हैं, लेकिन किसी अधिकारी को इतने लंबे समय तक पोस्टिंग का इंतजार कराना सही नहीं है.”
एक अन्य सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “अन्य सरकारों के दौर में भी किसी अधिकारी को हफ्तों या एक महीने तक बिना पोस्टिंग के रखा गया है, लेकिन तब भी इसे असामान्य माना जाता था. इतने लंबे समय तक किसी अधिकारी को बिना पोस्टिंग के रखना नौकरशाही के लिए बेहद हतोत्साहित करने वाला है. यह नौकरशाही को साफ संदेश देता है. जो काम कर रहे हैं, उन्हें बताया जा रहा है कि सिस्टम में असहमति या अलग नज़रिये की कोई जगह नहीं है. या तो पूरी तरह लाइन पर चलिए, या फिर उन लोगों में शामिल हो जाइए जिनके पास कोई काम नहीं है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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