कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल के शामिल रहे उनके एक पूर्व सहयोगी ने लिखा है कि सारदा चिट फंड घोटाला देश में भ्रष्टाचार का सबसे बुरा मामला है.
धम्म अधम्म नाम की किताब जो अभी प्रकाशित होनी बाकी हैं, में 79 वर्षीय उपेन बिस्वास ने लिखा है कि पोंजी स्कैम एक ‘बड़ी धोखाधड़ी थी जिसने भारत के अन्य सभी घोटालों को पीछे छोड़ दिया.’ विश्वास एक पूर्व आईपीएस अधिकारी भी हैं, जो अतिरिक्त सीबीआई निदेशक के रूप में काम कर चुके हैं.
2013 में सामने आया सारदा घोटाला भ्रष्टाचार का पहला ऐसा मामला था जिसमें ममता बनर्जी सरकार आरोपों में घिरी थी. तृणमूल के कई वरिष्ठ सांसदों, मंत्रियों और नेताओं को इसमें आरोपी बनाया गया, जबकि कम से कम दो पार्टी सांसदों–सुदीप बनर्जी और तापस पाल—और एक मंत्री मदन मित्रा को घोटाले के सिलसिले में सीबीआई ने गिरफ्तार भी किया था.
इसके बाद से इस मामले में आरोपी रहे मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी और सोवन चटर्जी जैसे कुछ टीएमसी नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं.
दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में बिस्वास, जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जेल पहुंचाने वाले चारा घोटाले की जांच का श्रेय दिया है, ने कहा कि उनकी किताब में सारदा घोटाले के साथ-साथ शासन और सिविल सेवा से जुड़े अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई है.
उन्होंने बताया कि सीबीआई के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा और तत्कालीन विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से जुड़े जांच एजेंसी के विवाद को भी उन्होंने इसमें शामिल किया है.
मौजूदा समय में बीएसएफ के महानिदेशक के तौर पर काम कर रहे अस्थाना को अपना ‘शिष्य’ बताते हुए बिस्वास ने कहा कि इस अधिकारी को दुर्भावनापूर्ण और गलत तरीके से सीबीआई निदेशक बनने से रोका गया था.
बिस्वास ने कहा कि अस्थाना उनकी उस टीम के सदस्य थे जिसने लगभग दो दशक पहले चारा घोटाले की जांच की थी.
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी बिस्वास 2002 में सेवानिवृत्त हुए थे और 2011 में राजनीति और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. ममता सरकार के पहले कार्यकाल में बिस्वास पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बने, लेकिन 2016 में चुनाव हार गए.
मुख्यमंत्री ने इसके बाद उन्हें पश्चिम बंगाल के एससी, एसटी और ओबीसी आयोग का अध्यक्ष बना दिया जो कि एक कैबिनेट मंत्री के पद के बराबर दर्जा रखता है.
हालांकि, बिस्वास ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने पार्टी को यह जानकारी दे दी है कि वह इस साल विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे.
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‘देश का सबसे बुरा घोटाला’
बिस्वास ने दिप्रिंट को बताया कि यह किताब, जिसे दिप्रिंट ने देखा भी, को सम्राट अशोक के धम्म के नाम पर रखा गया है.
इसमें ‘सारदा स्कैम’ के नामक एक चैप्टर में इस मुद्दे को शामिल किया गया है. बिस्वास लिखते हैं, ‘यह बहुत बड़ी धोखाधड़ी थी जिसने भारत के अन्य सभी घोटालों को पीछे छोड़ दिया. यहां पर, प्रभावशाली लोगों और गरीब सुदीप्त सेन द्वारा वामपंथियों और दक्षिणपंथियों को लूटने के लिए एक बड़ी साजिश रची गई.’
सेन सारदा फर्मों के सीईओ और एमडी थे और वह इस समय जेल में बंद हैं.
बिस्वास ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने एक निजी कारण से किताब में सारदा घोटाले का जिक्र किया है.
उन्होंने कहा, ‘एक बेहद जटिल किस्म के केस रहे चारा घोटाले जिसमें तमाम प्रभावशाली लोग शामिल थे, की जांच से जुड़ा रहने के कारण मैं किसी वित्तीय घोटाले की जांच संबंधी बारीकियों को अच्छी तरह समझता हूं.’
उन्होंने बताया, ‘मैंने अपनी किताब में सारदा पर इसलिए फोकस किया क्योंकि वाम मोर्चा के एक पूर्व मंत्री ने अपने राजनीतिक भाषणों में कई बार मेरे नाम का जिक्र किया, जो मामला बाद में अदालत भी पहुंच गया. पूर्व मंत्री ने कहा था कि उपेन बिस्वास को छोड़कर तृणमूल के सभी विधायकों ने चुनावी खर्च के तौर पर मुकुल रॉय के माध्यम से सुदीप्त सेन से 25 लाख रुपये लिए थे. इस बयान पर रॉय ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया और मामला अदालत पहुंच गया. इस पर हर सुनवाई के दौरान मेरे नाम का उल्लेख किया गया.’
बिस्वास ने कहा कि पूर्व मंत्री कभी अपनी बात से पीछे नहीं हटे और बाद में रॉय ने भी मानहानि के मामले को आगे नहीं बढ़ाया.
उन्होंने बताया, ‘लेकिन मैंने दस्तावेजों के रूप में फैसलों और सीबीआई के हलफनामों की सभी प्रमाणित प्रतियां जुटाई. करीब सात साल तक पूरे मामले को देखने के बाद मैं सीबीआई जांच से निराश हूं. एजेंसी ने राजनीतिक दबाव में आकर कुशल और ईमानदार अधिकारियों को हटा दिया. मैंने किताब में इन मुद्दों पर विस्तार से जानकारी दी है.’
कभी भी ममता बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस की सार्वजनिक आलोचना न करने वाले बिस्वास ने आगे कहा कि वह किसी को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं सरकार या सत्ताधारी पार्टी की शीर्ष नेता को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता क्योंकि मामला अभी जांच के दायरे में है.’
साथ ही आगे कहा, ‘लेकिन हम जानते हैं कि एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ है और यह रातोरात नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले आदेश में सीबीआई को जांच का जिम्मा संभालने का निर्देश देते हुए कहा था कि इसमें बड़ी साजिश का खुलासा होना जरूरी है. मैं विशेष रूप से इस बयान—बड़ी साजिश—का मतलब अच्छी तरह जानता-समझता हूं क्योंकि मैं चारा घोटाले के दौरान इस पहलू से परिचित रहा हूं. बड़ी साजिश में प्रभावशाली लोग, ज्यादातर राजनेता और वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं.’
तृणमूल के साथ अपने रिश्तों पर पूर्व आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘मैंने राजनीति में आने की ममता बनर्जी की पेशकश कई बार ठुकरा दी थी. लेकिन 2011 में उन्होंने मुझसे कहा कि आदिवासी और पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए कुछ करने के लिए उन्हें मेरी जरूरत हैं. मैं इस पर राजी हो गया. लेकिन, इस बार मैं चुनाव नहीं लड़ने जा रहा हूं.’
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‘ईमानदार राकेश अस्थाना’
बिस्वास की किताब में सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की प्रशंसा भी की गई है, जिनके खिलाफ 2018 में उनके संगठन की तरफ से ही कम से कम आधा दर्जन मामले दर्ज किए गए थे.
बिस्वास ने अस्थाना के खिलाफ दर्ज मुकदमों का हवाला देते हुए लिखा है, ‘यदि शिष्य राकेश अस्थाना को सीबीआई से हटाया नहीं गया होता तो अदालती कार्यवाही के बाद तमाम ताकतवर अपराधियों को दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया होता.’
बिस्वास ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे लगता है कि मेरे शिष्य के साथ गंभीर अन्याय हुआ है. उन्हें सिर्फ सीबीआई से हटाने के लिए कम से कम आधा दर्जन झूठे मुकदमे दर्ज किए गए थे. (सारदा) घोटाले के साजिशकर्ताओं ने खुद अपनी खाल बचाने के लिए एक गहरी साजिश रची थी.’
उन्होंने कहा, ‘अगर वह सीबीआई में होता, तो हम अपराधियों को दोषियों के रूप में जेल में सजा काटते देख रहे होते. वे इस तरह आराम से बाहर नहीं घूम रहे होते.’
बिस्वास ने बताया कि वह अस्थाना के संपर्क में हैं, जो दो साल पहले उनसे मिलने कोलकाता आए थे.
पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘मैं उसके संपर्क में हूं. वो मुझे फोन करते रहते हैं. मैं उन्हें दशकों से जानता हूं. मैंने एक सक्षम आईपीएस अधिकारी और एक अच्छे जांच अधिकारी के रूप में उन्हें आगे बढ़ते देखा है. वह ईमानदार हैं.’
बिस्वास ने कहा, ‘वह संभवत: अगले सीबीआई निदेशक बन जाएंगे.’
79 वर्षीय बिस्वास ने बताया कि अपनी किताब में उन्होंने दो चैप्टर नारद स्टिंग और जंगलमहल की लूट पर समर्पित किए हैं, लेकिन इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने से इनकार कर दिया.
उन्होंने बताया, ‘किताब छपने के लिए चली गई है और जल्द ही प्रकाशित हो जाएगी. मैं केवल यही कह सकता हूं कि मैंने इस बारे में भी विस्तार से बताया है कि कैसे जंगलमहल में आदिवासी समुदाय के साथ समाज के कुछ वर्गों की तरफ से शोषण और धोखाधड़ी की गई है.’
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