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Thursday, 2 May, 2024
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ममता ने 2022 में गोवा की ‘नवी सकल’ का किया वादा, राज्य में चुनावी दस्तक देने के लिए तैयार TMC

तृणमूल कांग्रेस अगले साल चुनाव में गोवा की सभी 40 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी और पार्टी के नेता और रणनीतिकार प्रशांत किशोर की आई-पीएसी ने इसकी तैयारी के लिए पहले ही राज्य में डेरा डाल दिया है.

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कोलकाता/मुंबई: इस बार गर्मियों में ममता बनर्जी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार बंगाल की सत्ता पर काबिज होने वाली तृणमूल कांग्रेस ने अब राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की पूरी तैयारी कर ली है. और उसने अलग-अलग छोर के दो राज्यों- पूर्व में त्रिपुरा और पश्चिम में गोवा को अपनी इस योजना का हिस्सा बनाया है.

इन दोनों राज्यों में से गोवा में अगले साल चुनाव होने वाले हैं और तृणमूल वहां शानदार शुरुआत सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिश कर रही है.

पिछले छह हफ्तों में पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने वाले कांग्रेस, आप, शिवसेना और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं की मदद से गोवा में अच्छी-खासी पैठ बना ली है. यही नहीं, ममता बनर्जी की पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है और गोवा की सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. यहां विधानसभा चुनाव फरवरी 2022 में होने वाले हैं.

राज्य में पार्टी की चुनावी तैयारियों पर नजर रखने के लिए तृणमूल के वरिष्ठ नेता, सांसद और मंत्री सितंबर से ही चरणबद्ध तरीके से गोवा में डेरा डाले हैं. दिप्रिंट को पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ममता बनर्जी का इस महीने के अंत में आने का कार्यक्रम है- 28 अक्टूबर के आसपास या उसके बाद. तृणमूल ने राज्य में अपना दफ्तर भी खोल लिया है और सभी जिलों में विस्तार की योजना बना रही है.

प्रशांत किशोर की इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पीएसी), जो तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक-चुनावी रणनीति का प्रबंधन संभालती है, ने भी दो महीने पहले गोवा में अपनी टीम और कार्यालय स्थापित कर लिया है.

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पश्चिम बंगाल के मंत्री मानस भुनिया, जो कई हफ्तों से गोवा में डेरा डाले हुए हैं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘यहां जबरदस्त उत्साह नजर आ रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं गांवों में घूम रहा हूं और लोगों की प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं. वे सत्ता में भाजपा की वापसी नहीं चाहते हैं, और 2017 में कांग्रेस की हार के बाद उन्हें उस पर भरोसा नहीं रह गया है. उन्होंने बंगाल चुनाव पर बारीकी से निगाह रखी है और मानते हैं कि दीदी ही एकमात्र ऐसी ताकत हैं जो भाजपा से लड़ सकती है.

पूर्व सांसद ने दावा किया, ‘गोवावासी खासकर धर्मनिरपेक्षता के लिए दीदी को पूरा समर्थन देने के पक्ष में हैं. जैसा आप जानते हैं, गोवा एक ऐसा राज्य है जहां ईसाइयों की अच्छी खासी आबादी है. उन्हें भाजपा की तरफ से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.’

गोवा में 66 प्रतिशत आबादी हिंदू है, जबकि ईसाइयों की संख्या 25 प्रतिशत (2011 की जनगणना मुताबिक) है.

बंगाल के खेल और युवा मामलों के राज्य मंत्री मनोज तिवारी ने भी कई हफ्ते गोवा में ही बिताए हैं.

पूर्व क्रिकेटर तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने फुटबॉलर और अन्य स्पोर्ट्स आइकन्स से बात करना शुरू कर दिया है. कम से कम दो सीनियर फुटबॉलर और एक काफी सीनियर बॉक्सर पहले ही दीदी पर भरोसा जता चुके हैं. गोवा अपनी खेल संस्कृति में समृद्ध है, लेकिन भाजपा सरकार ने वहां खेल प्रेमियों की मदद के लिए कुछ नहीं किया है. हम उन सभी का समर्थन जुटाने के लिए उनसे बात कर रहे हैं.’

राज्य सभा में तृणमूल के नेता डेरेक ओ ब्रायन पिछले दो महीने से ही गोवा में डेरा डाले हैं.


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मजबूत जनाधार बना रहे

तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने पिछले माह कोलकाता में पार्टी के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोवा में आप या शिवसेना के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार किया था.

और सितंबर के बाद से तृणमूल कांग्रेस गोवा के वरिष्ठ राजनेताओं और बुद्धिजीवियों को पार्टी में शामिल करने में जुटी है, जिसमें राज्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रह चुके लुइजिन्हो फलेरियो, कांग्रेस की गोवा इकाई के पूर्व महासचिव यतीश नाइक और कांग्रेस नेता स्वाति केरकर शामिल हैं.

आई-पीएसी के एक सदस्य ने अपना नाम न देने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘राज्य में भाजपा के मौजूदा विधायकों में से कम से कम 10 तो कांग्रेस से आए हुए हैं. इसलिए उन्होंने 2017 में भी जनादेश हासिल नहीं किया था. पार्टी के भीतर कई गुट हैं और तमाम वरिष्ठ नेता मौजूदा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से नाखुश हैं और खासकर हालिया यात्रा के दौरान उन्हें जिस तरह से अमित शाह का समर्थन मिला था. उसके स्वाभाविक सहयोगी एमजीपी (महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी) की तरफ से गठबंधन से इनकार कर दिया जाना भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका है.’

फलेरियो ने कहा, ‘अगर आज देश में आशा की कोई किरण है जिसने भाजपा और उनकी विभाजनकारी राजनीति के घातक ब्रांड को सफलतापूर्वक पराजित किया है तो वह ममता बनर्जी ही हैं.’

इस हफ्ते तृणमूल में शामिल हुईं केरकर ने कहा कि उनके पास आप और कांग्रेस को छोड़ने और तृणमूल में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उन्होंने कहा, ‘न तो कांग्रेस और न ही आप ने मुझे गोवा के लोगों के पक्ष में स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए एक मंच दिया. बार-बार आग्रह के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.’

केरकर 2014 के संसदीय चुनावों में आप उम्मीदवार थी. 2016 में वह कांग्रेस में शामिल हो गई थीं.

निर्दलीय विधायक प्रसाद गांवकर ने भी तृणमूल कांग्रेस को अपने समर्थन का वादा किया है. हालांकि, वह औपचारिक तौर पर पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं क्योंकि विधानसभा में अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं, उनके भाई संदेश गांवकर सहित उनके समर्थकों का एक समूह इस महीने के शुरू में पार्टी में शामिल हो गया था.


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‘कांग्रेस का आधार सिमट रहा’

हालांकि, गोवा में तृणमूल कांग्रेस से ज्यादा सुगबुगाहट तो चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की आई-पीएसी को लेकर है जो गोवा में पार्टी के नैरेटिव को आगे बढ़ा रही है.

राजनीति पर नजर रखने वालों के साथ-साथ सभी पार्टियों के नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि रणनीति यह है कि तृणमूल कांग्रेस राज्य में अपनी मौजूदगी के साथ तटीय राज्य पर एकदम छा जाए, पूरे राज्य को पार्टी के विज्ञापनों और होर्डिंग्स से भर दिया जाए, ममता बनर्जी की तस्वीरों के साथ तमाम प्रचार सामग्री झोंक दी जाए और गोवा में तृणमूल की दस्तक को ‘गोएंची नवी सकल’ (गोवा की नई सुबह) के रूप में प्रचारित किया जाए.

आई-पीएसी के सदस्य गोवा के प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ताओं, गैरसरकारी संगठनों के संस्थापकों, शिक्षाविदों, पत्रकारों और संपादकों और अन्य लोगों के साथ आमने-सामने बैठक करके समर्थन जुटाने के प्रयासों को मजबूती दे रहे हैं.

गोवा के एक वरिष्ठ अधिवक्ता, जिनसे आई-पीएसी ने संपर्क साधा था और तृणमूल कांग्रेस को समर्थन के लिए उनके साथ एक बैठक भी की थी, ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘उनकी कोशिश ऐसी लगती है कि यहां चुनाव से पहले नैरेटिव कैसे कायम किया जाए. वे राय कायम करने में अहम भूमिका निभाने वालों से मिल रहे हैं, मीडिया को मैनेज करने की कोशिश कर रहे हैं. गोवा में हर जगह उनके होर्डिंग लगे हैं, और प्रभावित करने के लिए वे लोगों से व्यक्तिगत रूप से भी मिल रहे हैं.’

पिछले एक महीने में जबसे तृणमूल ने गोवा में चुनाव लड़ने के अपने इरादे की घोषणा की है, उसने राज्य में विभिन्न क्षेत्रों की कई प्रतिष्ठित हस्तियों को पार्टी में शामिल किया है. इनमें बॉक्सर लेनी डी’गामा, पूर्व भारतीय फुटबॉल डिफेंडर डेन्जिल फ्रैंको, पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर एंथनी रैबेलो, फिल्म निर्माता टोनी डायस और कार्यकर्ता जयेश शेतगांवकर शामिल हैं, जो ‘गोवा अगेंस्ट कोल’ (गोवा के बड़े पैमाने पर कोल हब में बदलने से रोकने और यहां पर्यावरण संरक्षण का एक मंच है) अभियान चलाते हैं.

इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में कांग्रेस के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को भी अपने साथ जोड़ा है. आई-पीएसी ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा कि 200 से अधिक कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने तृणमूल कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है. इसमें गोवा कांग्रेस की महिला इकाई की महासचिव प्रिया राठौर के अलावा उत्तरी गोवा के एक विधानसभा क्षेत्र वालपोई में कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष दशरथ मांड्रेकर शामिल हैं.

महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के अध्यक्ष दीपक धवलीकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस गोवा में कांग्रेस के जनाधार को पूरी तरह खत्म कर रही है. वे व्यापक स्तर पर पूर्व कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पूल के साथ राज्य में अपना कैडर तैयार कर रहे हैं. इसने सही मायने में पार्टी (कांग्रेस) के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है, और अब अपनी चुनावी तैयारियों को तेज करने के लिए बाध्य किया है.’

लेकिन कांग्रेस विधायक और गोवा के लिए पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एलेक्सो रेजिनाल्डो लौरेंको ने तृणमूल कांग्रेस से किसी तरह की प्रतिस्पर्धा की बात को खारिज किया और कहा कि गोवा में राजनीति अन्य राज्यों की तरह नहीं है और आई-पीएसी इसे समझ नहीं पा रही है.

लौरेंको ने तटीय राज्य में राजनीतिक दलबदल के लंबे इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘गोवा में हर कोई अंतत: करता वही है जो वह चाहता है. प्रशांत किशोर समझदार हैं और वे महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को अच्छी तरह समझ सकते हैं, लेकिन गोवा की स्थिति एकदम अलग है.’

गोवा के राजनीतिक टिप्पणीकार क्लियोफेटो कॉटिन्हो ने भी राज्य की चुनावी विशिष्टता पर लौरेंको के विचारों से सहमति जताई. उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि गोवा के चुनाव अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों से बहुत अलग हैं और तृणमूल कांग्रेस की मौजूदगी यहां उतना असर नहीं डाल पाएगी जितना इसका प्रचार अभियान छाया हुआ है.

उन्होंने कहा, ‘गोवा में चुनाव पार्टियों के बजाय व्यक्तियों पर केंद्रित होते हैं. इस मामले में लुइजिन्हो फलेरियो का प्रभाव भी राज्य में उनके एक सीमित क्षेत्र तक ही कायम है. यह एक ऐसा राज्य है जहां एक निर्वाचन क्षेत्र में कुल 7,000 वोट भी जीत दिला सकते हैं और हार-जीत का अंतर बहुत कम हो सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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