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Thursday, 19 December, 2024
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‘बेगम’ ममता बनाम बीजेपी ‘दंगाई’- कैसे हाई-प्रोफाइल नंदीग्राम की लड़ाई ने सांप्रदायिक मोड़ ले लिया है

पूर्वी मिदनापुर के 16 विधानसभा क्षेत्रों में से एक नंदीग्राम की आबादी में 34 फीसदी मुस्लिम है. शेष निर्वाचन क्षेत्रों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से नीचे है.

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नंदीग्राम: नंदीग्राम, जहां पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अपने पूर्व शागिर्द और बीजेपी नेता, सुवेंदु अधिकारी से टक्कर ले रही हैं, 2021 विधान सभा चुनावों का अभिकेंद्र बनकर उभरा है. तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ओर से नंदीग्राम में, ज़ोर-शोर से किए जा रहे प्रचार के बीच- अकसर सांप्रदायिक नेचर के व्यंग बाण ख़ूब चल रहे हैं.

जहां अधिकारी ने बनर्जी को ‘बेगम’ कहकर मुख़ातिब किया है, और उनपर निशाना साधने के लिए, अकसर पाकिस्तान का ज़िक्र किया है, वहीं ममता मतदाताओं को गुजरात, और उत्तरपूर्वी दिल्ली की याद दिला रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को निशाने पर लेने के लिए, उनके नाम लिए बिना ममता ‘दुर्योधन और दुशासन’ के नामों का सहारा ले रही हैं, और ‘दैत्य’ तथा ‘दंगाबाज़’ जैसे शब्द भी इस्तेमाल कर रही हैं.

बीजेपी नेताओं ने, जिनमें अधिकारी भी शामिल हैं, शुरू में ‘तोलाबाजी’ (रंगदारी), चिटफंड घोटालों, और ‘कट मनी’ को लेकर, बनर्जी को निशाने पर लिया, लेकिन अब वो मानते हैं कि ये सब ‘गौण’ मुद्दे हैं, चूंकि पहले नंदीग्राम को ‘जिहादियों से मुक्त कराने की ज़रूरत है’.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘चुनाव प्रचार तृणमूल के भ्रष्टाचार पर खड़ा किया गया था, क्योंकि गांव वालों ने सबसे ज़्यादा झेला था. लेकिन ‘कट मनी’ और (तूफान) अंफान राहत (कोष) की लूट, अब मुद्दे नहीं रहे हैं. वो अब गौण हो चुके हैं. नंदीग्राम को जिहादियों से मुक्त कराने की ज़रूरत है. अब यही हवा है’.

बदले में, तृणमूल कांग्रेस के सदस्य, बीजेपी पर चुनाव का ध्रुवीकरण करने, और स्थानीय निवासियों के मन में, डर बिठाने का आरोप लगा रहे हैं.

नंदीग्राम की आबादी में, जो ईस्ट मिदनापुर की 16 विधानसभा सीटों में से एक है, 34 प्रतिशत मुसलमान हैं. बाक़ी सीटों पर मुसलमानों की ये संख्या 20 प्रतिशत से कम है.

नंदीग्राम की तटीय बस्तियों के ग्रामवासी, चुनावों से पहले हिंसा का डर और आशंका जता रहे हैं

बृंदनपुर गांव की नयनी चिट्टी ने कहा, ‘कुछ दिन पहले उन्होंने (असामाजिक तत्वों) हमारे घरों के पास बम फेंके थे. वो हर समय हमें डराए रखना चाहते हैं. हम अरक्षित महसूस करते हैं’.

2019 के चुनावी नतीजों के आंकड़ों के अनुसार, नंदीग्राम राज्य के उन पांच शीर्ष विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में है, जहां तृणमूल 68,000 वोटों से आगे थी.


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भूमि आंदोलन के कई मुसलमान नेता TMC के साथ

नंदीग्राम, जहां एक अप्रैल को मतदान होना है, वही जगह है जहां 2007 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे, जिन्होंने चार साल बाद बनर्जी को, सत्ता की कुर्सी पर पहुंचाने में मदद की थी.

इस प्रमुख सीट पर, बीजेपी ने न केवल मुसलमानों के बीच समर्थन को लेकर, बल्कि इस बात पर भी बनर्जी को निशाने पर लिया है, कि कई मुसलमान नेता जो भूमि आंदोलन का हिस्सा थे, बाद में टीएमसी में शामिल हो गए थे.

2007 में, भूमि विरोध आंदोलन के कई नेताओं ने मिलकर, भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी (बीयूपीसी) नाम से एक संस्था बनाई थी, जिसका उद्देश्य वाम मोर्चे की भूतपूर्व सरकार द्वारा, औद्योगीकरण के लिए किए गए, भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ना था.

फोरम में उस समय 14 सदस्य थे. उनमें शामिल थे मेघनाद पाल, शेख़ सुफियान, स्वदेश दास, खोकन शिथ और अबू ताहिर- ये सब नंदीग्राम के निवासी थे.

पाल को छोड़कर, अधिकांश नेता- जिनमें बहुत से मुसलमान हैं- अब टीएमसी के साथ हैं.

सुफियान सीएम के चुनाव एजेंट हैं, जबकि दास उनके चार प्रस्तावकों में से एक हैं. पाल, अधिकारी के चुनाव एजेंट हैं.

इसी महीने एक रैली के दौरान, अधिकारी ने ये कहते हुए बनर्जी पर हमला किया, कि उनके साथ काम करने वाले नेताओं के नाम ही, उनकी ‘धर्मनिरपेक्ष साख’ का ‘ठोस सबूत’ हैं.

TMC सदस्यों का कहना है कि ‘ब्रेनवॉश किए गए हिंदू’ परिवर्तन चाह रहे हैं

बनर्जी ने अपनी पूरी कोर टीम को, चुनावी तैयारियों की निगरानी के लिए, नंदीग्राम में लगा दिया है.

टीएमसी राष्ट्रीय महासचिव सुब्रत बक्शी, पूर्व मंत्री पूर्नेंदु बोस, और राज्यसभा सांसद डोला सेन तथा सुखेंदु शेखर रॉय, सुफियान के घर में डेरा डाले हुए हैं, जिसे चुनावी बंदोबस्त की निगरानी के लिए, बनर्जी के चुनाव ऑफिस में तब्दील कर दिया गया है.

बीजेपी के तानों से निपटने के अलावा, टीएमसी का कहना है, कि वो यहां एक और मुद्दे से दोचार है- ‘ब्रेनवॉश किए गए हिंदू’ जो ‘परिवर्तन’ चाह रहे हैं.

एक स्थानीय टीएमसी नेता रबीयुल इस्लाम ने कहा, ‘बीजेपी ने हम पर पाकिस्तानी और जिहादी का ठप्पा लगा दिया है. हम सदियों से यहां रह रहे हैं, हम पाकिस्तानी कब बन गए? हम तो हिंदी भी नहीं बोलते. कुछ गांव वाले अब हमसे कहते हैं, कि उन्हें परिवर्तन चाहिए. वो कहते हैं कि अगर तृणमूल सत्ता में आ गई, तो उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा. इस हद तक ब्रेनवॉश किया गया है’.

पार्टी के एक और नेता शेख़ अब्दुल ने कहा, ‘कुछ हिंदू सभाओं की पांच-छह टीमें घर घर जा रही हैं, और ग्रामीणो से कह रही हैं कि जिहादी राज को ख़त्म करें. कौन है जिहादी? वो गांव वालों में ख़ौफ पैदा कर रहे हैं’.

Trinamool’s block office in Nandigram | Madhuparna Das
नंदीग्राम में तृणमूल का ब्लॉक ऑफिस/मधुपर्णा दास/दिप्रिंट

दिप्रिंट से बात करते हुए पूर्नेंदु बोस ने कहा, ‘ये सही है कि वो स्थिति को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमें लोगों पर भरोसा है. हमने भी अपनी रणनीति तैयार की है, कि बीजेपी की आक्रामकता से कैसे निपटना है’.


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बीजेपी ने नंदीग्राम में बेस बनाया

बीजेपी नंदीग्राम में अपना काडर खड़ा करने में कामयाब हो गई है, जिनमें बहुत से सीपीएम कार्यकर्त्ता हैं, जो टीएमसी कार्यकर्त्ताओं के हाथों ‘प्रताड़ित’ होने का आरोप लगाते हुए, पिछले दो सालों में पार्टी में शामिल हुए हैं.

बीजेपी, जो 2019 के आम चुनावों में नंदीग्राम में, ममता की पार्टी से 68,000 मतों से पीछे थी, दावा कर रही है कि कम से कम 60 प्रतिशत तृणमूल काडर, और तमाम पूर्व सीपीएम सदस्य, अब उसके लिए काम कर रहे हैं.

तेखली पुल जहां 2007 में पुलिस द्वारा ग्रामीणों पर गोलियां चलाई गई थीं./ मधुपर्णा दास/दिप्रिंट
तेखली पुल जहां 2007 में पुलिस द्वारा ग्रामीणों पर गोलियां चलाई गई थीं./ मधुपर्णा दास/दिप्रिंट

ईस्ट मिदनापुर ज़िले के बीजेपी प्रमुख, नबारुण नायक ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने यहां बदलाव के लिए ज़मीन तैयार कर ली थी. सीपीएम काडर्स जिन्हें 2011 के बाद तृणमूल कांग्रेस ने प्रताड़ित किया था, 2018 के पंचायत चुनावों से पहले हमारे साथ आ गए थे. सुवेंदु अधिकारी के जाने के बाद से, तृणमूल छोड़ने वालों का तांता लग गया है. अब सीपीएम, तृणमूल और पुराने बीजेपी सदस्य सब मिलकर, भगवा परिवर्तन लाने के लिए काम कर रहे हैं’.

नायक, जो 23 साल से पार्टी के साथ रहे हैं, और आरएसएस के सदस्य हैं, ने कहा कि शुरू में उन्हें, टीएमसी सदस्यों के साथ तालमेल बिठाने में समस्याएं आईं थीं, जो बीजेपी में शामिल हुए थे.

उन्होंने आगे कहा, ‘सीपीएम भी हमारी तरह एक काडर-आधारित पार्टी है. हमारी विचारधाराएं अलग हो सकती हैं, लेकिन अनुशासन और कमांड स्ट्रक्चर वही है. तृणमूल किसी विचारधारा पर नहीं बनी थी, बल्कि ये कम्यूनिस्ट हटाओ आंदोलन की उपज है. फिलहाल हम सब एक समान उद्देश्य को लेकर एक साथ हैं’.

उन्होंने दावा किया कि पार्टी के पास ज़िले भर के 3,210 बूथों के लिए, चुनावी एजेंटों की सूची मौजूद है. नायक ने ये भी कहा, ‘हमारे पास हर बूथ के लिए चार एजेंट्स हैं, इस बार कोई पीछे नहीं हटेगा’.

लेकिन तृणमूल ने बीजेपी के इस दावे को ख़ारिज किया, कि तृणमूल काडर्स उसमें शामिल हो रहे हैं.

तृणमूल महासचिव सुब्रत बक्शी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सुवेंदु जैसे कुछ लालची और निर्लज्ज लोग बीजेपी में चले गए हैं. लेकिन काडर का हमारा आधार बरक़रार है. नंदीग्राम की 17 पंचायतों के 357 सदस्यों में से, केवल 17 सदस्य सुवेंदु के साथ गए हैं. तो फिर उनका समर्थन कहां है?’

उन्होंने आगे कहा, ‘अपने सांप्रदायिक एजेंडा से, वो लोगों को गुमराह और भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें अब अपने माथे पर तिलक तगाने की ज़रूरत क्यों पड़ गई? पहले तो उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया’.

लेकिन, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलिप घोष ने कहा, कि ‘तृणमूल घबराई हुई है, और इसीलिए वो हम पर, ध्रुवीकरण करने का आरोप लगा रहे हैं’.

‘…उन्हें अपने अंदर झांकना चाहिए, कि उन्होंने ऐसा क्या किया, कि एक समुदाय विशेष उनसे दूर चला गया. और ये धर्म का मामला नहीं है. ग्रामीणों का उनसे (ममता) मोहभंग, निरंतर भ्रष्टाचार की वजह से हुआ है’.

नंदीग्राम वासी TMC से नाराज़

घोष के दावों की गूंज स्थानीय निवासियों की शिकायतों में भी सुनाई पड़ी.

महादेब भर, जो तेखाली पुल पर चाय का एक छोटा सा स्टाल चलाते हैं- जहां 2007 की पुलिस फायरिंग में कुछ गांववालों की मौत हुई थी- ने कहा, ‘नंदीग्राम में हम सब तृणमूल के साथ थे. मैं बीजेपी में नहीं गया, लेकिन मैं तृणमूल का भी हिस्सा नहीं रहना चाहता’.

‘उन्होंने हमारा अंफान राहत कोष लूट लिया. मैंने अपना घर फिर से बनाने में 30,000 रुपए लगा दिए, वो पूरा तबाह हो गया था. हमें कोई पैसा नहीं मिला. ये एक मुख्य कारण है कि तृणमूल काडर्स, अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं’.

बृंदनपुर गांव की नयनी चिट्टी बताते हुए रो पड़ीं कि अंफान में, जिसने पिछली मई में राज्य के एक हिस्से को तबाह कर दिया था, अपना सब कुछ गंवा देने के बाद, उन्होंने किस तरह अपने परिवार की गुज़र बसर के लिए संघर्ष किया.

‘मैंने भीख मांगी. हमारे पास कुछ नहीं था. हमें अंफान का पैसा भी नहीं मिला, और (मनरेगा के तहत) अपने 100 दिनों की मज़दूरी भी नहीं मिली. क्या दीदी को ये नहीं पता? वो अधिकारी बाबू को दोष देती हैं. लेकिन दूसरे गांवों का क्या? उनके लिए वो किसे दोषी ठहराती हैं?’

सोनाचूरा गांव की सुमित्रा गायन मंडल ने कहा कि उसके परिवार को, राज्य सरकार की कृषक बंधु स्कीम के तहत, 6,000 रुपए देने का वादा किया गया था, लेकिन उसमें से सिर्फ 1,000 रुपए दिए गए.


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