कोलकाता: ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने, आसनसोल लोकसभा सीट के उप-चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) उम्मीदवार के तौर पर लड़ाने के लिए, अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न ‘शॉटगन’ सिन्हा का चयन करके, अपनी दुश्मन बीजेपी की रणनीति अपना ली है.
इस सप्ताह के शुरू तक, सिन्हा बिहार कांग्रेस के एक नेता थे, जिससे उन पर लगा बाहरी का ‘तमग़ा’ और भी मज़बूत हो जाता है, जिसका इस्तेमाल ममता ने अकसर बंगाल में बीजेपी उम्मीदवारों के चयन को लेकर किया है. लेकिन, ‘बाहरी’ को लेकर उनका स्पष्ट रूप से ह्रदय परिवर्तन हुआ है, और उन्हें ग़ैर-बंगाली आबादी को अपील करने की ज़रूरत महसूस हुई है- ये वही रणनीति है जिसे बीजेपी ने अपनाया हुआ है.
हालांकि ये सिर्फ टीएमसी के लिए वोटों का मामला नहीं है. पार्टी राष्ट्रीय विस्तार की योजना बना रही है, और देश के दूसरे प्रांतों के प्रतिनिधित्व तथा ‘बाहरियों’ को, वो इसी योजना में फिट करने की कोशिश कर रही है.
अभी तक किसी टीएमसी नेता ने आसनसोल चुनाव क्षेत्र से कोई चुनाव नहीं जीता है. ये सीट पहले गायक से राजनेता बने बाबुल सुप्रियो के पास थी, जिन्होंने 2014 और 2019 दोनों बार इसे बीजेपी के लिए जीता था. पिछले साल सितंबर में सुप्रियो पाला बदलकर टीएमसी में आ गए.
पिछले हफ्ते जब चुनाव आयोग ने बंगाल तथा दूसरे राज्यों के उप-चुनावों का ऐलान किया, तो टीएमसी ने सुप्रियो को बैलीगंज असेम्बली सीट से अपना उम्मीदवार नामित किया, जो पिछले साल नवंबर में पदस्थ विधायक सुब्रत मुखर्जी की मौत के बाद से ख़ाली थी.
अब ख़ाली हुई आसनसोल सीट से चौंकाने वाले नए उम्मीदवार थे शत्रुघ्न सिन्हा, जिन्होंने बड़े उत्साह के साथ ‘निमंत्रण’ स्वीकार कर लिया.
Happy to share that on an invite from our own, tigress of Bengal, tried, tested, successful honourable CM, Bengal @Mamataofficial I have joined #TMC. Shall be contesting under the dynamic leadership of a great lady, great leader of the masses in true sense, Mamata Banerjee
— Shatrughan Sinha (@ShatruganSinha) March 15, 2022
सिन्हा 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने पटना साहिब चुनाव क्षेत्र से हार गए थे, लेकिन फिर भी वो एक लोकप्रिय चेहरा हैं, और उन्हें अपनी ‘बिहारी बाबू’ छवि के बावजूद नहीं, बल्कि उसकी वजह से चुना गया.
कोलकाता से क़रीब 200 किलोमीटरक दूर आसनसोल बंगाल का दूसरा सबसे बड़ी आबादी का शहर है. इस पट्टी में फलते फूलते कोयला, स्टील, और रेलवे उद्योग, झारखंड, बिहार, और उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी-भाषी प्रांतों के, बहुत से श्रमिकों को अपनी ओर खींचते हैं.
टीएमसी के पश्चिम बर्दवान प्रदेश सचिव और संयोजक, वी शिवदासन दासु ने कहा, ‘आसनसोल एक मिली-जुली आबादी है- यहां पर ग़ैर-बंगाली, बंगाली और मुसलमान रहते हैं. काफी हद तक ये एक औद्योगिक पट्टी है जिसमें कोयला खदानें भी हैं, इसलिए यहां श्रमिक वर्ग ज़्यादा संख्या में है. शत्रुघ्न सिन्हा एक लोकप्रिय चेहरा हैं; लोग उन्हें पहचानते हैं, और हिंदी बोलने वालों के साथ वो बहुत अच्छे से जुड़ जाते हैं. इसलिए पार्टी को लगा कि वो आसनसोल सीट को जीत सकते हैं’.
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शॉटगन राष्ट्रीय विस्तार की लंबी योजना में फिट बैठते हैं
राष्ट्रीय विस्तार पर निगाहें जमाए, टीएमसी दूसरे राज्यों से प्रतिनिधित्व को भी हासिल करना चाह रही है. पार्टी ने दो पूर्व कांग्रेस नेताओं- असम से सुष्मिता देव और गोवा से लुईज़ीन्हो फलेरो को राज्यसभा भेजा है, और अब सिन्हा से उम्मीद लगाए है, कि वो टीएमसी के लिए आसनसोल जीतकर लोकसभा में दाख़िल होंगे.
टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘शत्रुघ्न सिन्हा के पास संसदीय मामलों का अनुभव है. वो अतीत में एक सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. एक ऐसे टीएमसी नेता के साथ जो बिहार से हैं, पार्टी का लोकसभा में ज़्यादा मज़बूत और बेहतर प्रतिनिधित्व होगा. अलग अलग राज्यों से आए प्रतिनिधियों के संसद में होने से, टीएमसी की पहचान में इज़ाफा होगा’.
फिर भी, आसनसोल में बाबुल सुप्रियो की पिछली ठोस उपलब्धियों को देखते हुए, शत्रुघ्न सिन्हा की पसंद सहज ज्ञान के विपरीत ही नज़र आती है.
बाबुल सुप्रियो क्यों नहीं?
आसनसोल में बाबुल सुप्रियो दो बार तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को बुरी तरह पटख़नी दे चुके हैं. एक बीजेपी उम्मीदवार के नाते, 2014 में उन्होंने टीएमसी की डोला सेल को हराया, और 2019 में अपनी कामयाबी को दोहराते हुए, इस बार अभिनेत्री मुन मुन सेन को परास्त किया.
ये देखते हुए कि आसनसोल में उनकी चुनावी ताक़त आज़माई हुई है, आश्चर्य होता है कि टीएमसी ने उन्हें, कहीं और से लड़ाने का फैसला किया है.
वी शिवदासन दासु के अनुसार, इसका एक कारण विरोधी लहर है. ‘जब कोई नेता किसी एक सीट से लगातार चुनाव जीतता रहता है, तो वहां नकारात्मकता भी पैदा हो जाती है. इसलिए हो सकता है कि बाबुल आसनसोल के लिए फिट न रहे हों’.
उन्होंने आगे कहा कि सिन्हा आसनसोल में बहुतों के लिए एक जाना पहचाना चेहरा हैं. ‘अगर आप देखें तो जब बाबुल ने यहां आसनसोल से चुनाव लड़े, तो वो मुम्बई में रहते थे. इसलिए मुझे नहीं लगता कि सिन्हा को, ऐसे व्यक्ति के तौर पर देखा जाएगा जो बंगाल से नहीं हैं… यहां 90 प्रतिशत लोग उन्हें जानते हैं’.
‘इससे फर्क नहीं पड़ता कि उम्मीदवार कौन है’
राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ घोष ने, जो कोलकाता की रबींद्र भारती यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर हैं, कहा कि अपनी सामाजिक स्कीमों की वजह से, टीएमसी के आसानी से आसनसोल उप-चुनाव जीतने की संभावना है.
उन्होंने कहा, ‘सच कहूं तो आसनसोल में बीजेपी के संगठन की ताक़त नज़र नहीं आती. टीएमसी के लक्ष्मी भंडार (महिलाओं के लिए आय सहायता योजना) जैसे सामाजिक कल्याण के फायदों ने, लोगों को उसे वोट देने के लिए तैयार कर दिया है. जब तक विपक्षी पार्टियां ऐसी सामाजिक स्कीमों पर हावी होने वाली कोई रणनीति नहीं लातीं, तब तक उप-चुनाव जीतना भी मुश्किल रहेगा’. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस और सीपीआई(एम) गंभीर दावेदार नहीं हैं, क्योंकि उनके पास ‘काडर्स को लामबंद करने के लिए संगठन नहीं है’.
घोष का कहना है कि इस संदर्भ में, शत्रुघ्न सिन्हा उतने ही अच्छे उम्मीदवार हैं जितना कोई और.
उन्होंने कहा, ‘इससे शायद ही कोई फर्क पड़ता है कि टीएमसी उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा हैं. अगर टीएमसी का टिकट मुझे दे दिया जाता, तो मैं भी उप-चुनाव जीत जाता. आसनसोल में लोग पार्टी के लिए वोट दे रहे होंगे, उम्मीदवार के लिए नहीं’.
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