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Monday, 23 December, 2024
होमराजनीतिये हैं वो नेता जब तक कांग्रेस में थे दरकिनार रहे, पार्टी बदली और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली

ये हैं वो नेता जब तक कांग्रेस में थे दरकिनार रहे, पार्टी बदली और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली

ममता बनर्जी, हेमंत बिस्वा सरमा, जगन मोहन रेड्डी, नेफ्यू रियो सहित कई ऐसे नेता हैं जो जब तक कांग्रेस में रहे दरकिनार रहे लेकिन जैसे ही दूसरी पार्टी का दामन थामा कुछ ही दिनों और वर्षों के बाद सूबे के मुख्यमंत्री बना दिए गए.

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नई दिल्ली: त्रिपुरा में बिप्लब कुमार को हटाकर 69 साल के डॉ. माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया गया है. माणिक साहा ने राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है. कांग्रेस में लंबा समय बिताने के बाद साहा 2016 में ही बीजेपी में शामिल हुए थे और अब 2022 में ही उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी भी मिल गई.

पार्टी बदलकर दूसरी पार्टी में आकर मुख्यमंत्री बनने वाले साहा पहले व्यक्ति नहीं है. ममता बनर्जी, हेमंत बिस्वा सरमा, जगन मोहन रेड्डी, नेफ्यू रियो सहित कई ऐसे नेता हैं जो जब तक कांग्रेस में रहे वो दरकिनार रहे लेकिन जैसे ही उन्होंने दूसरी पार्टी का दामन थामा और जैसे ही उन्होंने पार्टी बदली कुछ ही दिनों और वर्षों के बाद सूबे के मुख्यमंत्री बन गए.

ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राजनीतिक जीवन 1970 में कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता बनने के साथ शुरू हुआ था. साल 1976 से लेकर 1980 तक वह महिला कांग्रेस सचिव रही थीं. 1984 में वह सीपीएम के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर सांसद बनीं. ममता का राजनीतिक जीवन कांग्रेस पार्टी में परवान तो चढ़ा लेकिन फिर उन्होंने बंगाल कांग्रेस पर सीपीएम की कठपुतली होने का आरोप लगाया और फिर 1997 में कांग्रेस से अलग हो गईं.

लगभग एक साल बाद फिर ममता बनर्जी ने 1998 में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और वह पार्टी की अध्यक्ष बनीं. पार्टी बनाने के बाद साल 1998 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की.

उतार-चढ़ाव से भरे अपने लंबे राजनीतिक सफर के बाद साल 2011 में ममता बनर्जी की टीएमसी ने मां, माटी, मानुष के नारे के साथ विधानसभा चुनावों में भारी जीत हासिल की और ममता मुख्यमंत्री बनीं.


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हेमंत बिस्वा सरमा

पिछले साल असम विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली जीत के बाद हेमंत बिस्वा सरमा ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. कभी कांग्रेस के बड़े नेता रहे हेमंत बिस्वा ने छात्र राजनीति से अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत की थी. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन से बिस्वा ने राजनीति में कदम रखा और फिर साल 1990 में वह कांग्रेस से जुड़ गए. मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया उन्हें कांग्रेस में लेकर आए थे.

हेमंत बिस्वा साल 2006, 2011 और 2016 में जलबाकुरी सीट से विधायक चुने गए. कांग्रेस में रहकर बिस्वा ने तरूण गोगोई के नेतृत्व में कई मंत्रालय संभाले लेकिन फिर मतभेद बढ़ने के कारण बिस्वा 10 विधायकों के साथ कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी शामिल हो गए. बीजेपी में शामिल होने के बाद पिछले साल ही वह मुख्यमंत्री बन गए.

जगन मोहन रेड्डी

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे जगन मोहन रेड्डी ने साल 2004 में राजनीति में आने की इच्छा जताई. वे कड़प्पा से सांसद बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस हाई कमान ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया.

अपना सपना पूरा करने के लिए उन्होंने साल 2009 तक इंतजार किया. कड़प्पा लोकसभा सीट जीतकर उन्होंने राजनीति में अपने जीवन की शुरुआत की.

लेकिन दुर्भाग्य से उसी साल सितंबर में उनके पिता वाईएस राजशेख रेड्डी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई. जगन मोहन अपने पिता के बाद आंध्र प्रदेश का सीएम बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस हाई कमान उन्हें ये पद नहीं देना चाहती थी.

कई मतभेदों के बाद 29 नवंबर 2010 में जगन मोहन रेड्डी ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया और लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. आखिरकार साल 2019 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से जीतकर जगमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री बनें.

माणिक साहा

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से ग्रैजुएट करने वाले साहा साल 2016 में भाजपा में शामिल होने से पहले विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य थे. वह 2020 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने.

बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुके साहा त्रिपुरा क्रिकेट संगठन के अध्यक्ष भी हैं.

भाजपा में उनका कद उनकी स्वच्छ छवि और बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड के कारण बढ़ा है, जिसमें नवंबर 2021 में हुए चुनावों में सभी 13 नगर निगमों में भाजपा को जीत दिलाना शामिल है.

राजनीति में आने से पहले वह हापनिया स्थित त्रिपुरा मेडिकल कॉलेज में माणिक साहा पढ़ाया करते थे. साहा 2016 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए थे. वह 2020 में पार्टी प्रमुख बनाये गए और इस साल मार्च में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. साहा सीएम बनने के बाद कहा कि ‘मैं पार्टी का एक आम कार्यकर्ता हूं और आगे भी रहूंगा.’


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