नई दिल्ली: पूर्वोत्तर में एक नई राजनीतिक ताकत उभर रही है. बीजेपी के त्रिपुरा सहयोगी टिपरा मोथा ने मेघालय की सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ हाथ मिलाकर एक साझा मंच शुरू करने का फैसला किया है, जो राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्र के हितों का प्रतिनिधित्व करेगा.
इस पहल के नेता फिलहाल ज़्यादा जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं, लेकिन सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अगले सप्ताह दिल्ली में इसका ऐलान किया जाएगा. इस दौरान मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा और टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत देबबर्मा मौजूद रहेंगे.
जानकारी यह भी है कि पूर्व कांग्रेस नेता डेनियल लांगथासा—जिन्होंने सितंबर में असम के नॉर्थ काछार हिल्स ऑटोनॉमस काउंसिल में पीपुल्स पार्टी लॉन्च की—भी इस नए मंच का हिस्सा होंगे. इसके अलावा नागालैंड के म्महोनलुमो किकॉन, जो अगस्त तक बीजेपी के एकमात्र राष्ट्रीय प्रवक्ता थे और बाद में पार्टी से इस्तीफा दे दिया, वे भी इसमें शामिल होंगे.
एक नेता ने कहा, “इसमें क्षेत्र की राजनीतिक तस्वीर बदलने की क्षमता है. यह भले अचानक लगता हो, लेकिन इसके पीछे महीनों की शांत लेकिन लगातार कोशिशें हैं.”
यह नई एकजुटता ऐसे समय आई है जब नागालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) का विलय हुआ है. हाल के महीनों में प्रद्योत और लांगथासा सहित कई नेताओं ने सार्वजनिक बयानों में “वन नॉर्थईस्ट” शब्द का उपयोग किया है, जिससे संकेत मिलता है कि नए मंच का नाम यही हो सकता है.
समझौते को अंतिम रूप देने वाले एक नेता ने कहा, “पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदायों के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले हम लोगों को राष्ट्रीय पार्टियों ने अक्सर नज़रअंदाज़ किया है. हमारे कई नेता दिल्ली में बीजेपी के शीर्ष नेताओं से मिलने का इंतजार करते रह जाते हैं. यह साफ था कि हमें एकजुट होना ही होगा. इसके लिए अहंकार छोड़ना जरूरी था—और यह धीरे-धीरे हो रहा है.”
दिलचस्प बात यह है कि प्रद्योत ने सितंबर में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के चुनाव में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF) के लिए प्रचार किया था. इन चुनावों में BPF ने बड़ी जीत हासिल की, जबकि बीजेपी—जो अकेले परिषद पर कब्जा करना चाहती थी—तीसरे स्थान पर रही.
क्षेत्र में नए राजनीतिक गठजोड़ के संकेत और भी मिल रहे थे. उदाहरण के लिए, जब डेनियल—जो कांग्रेस नेता निंदू लांगथासा के बेटे हैं और जिनकी 2007 में डिमा हालाम दाओगा उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी—ने सितंबर में अपनी पार्टी शुरू की, तो प्रद्योत ने उन्हें पत्र लिखकर एक साझा मंच की जरूरत पर जोर दिया.
त्रिपुरा के शाही परिवार के उत्तराधिकारी प्रद्योत ने लिखा, “अब समय आ गया है कि हम न केवल व्यक्तिगत रूप से, बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों के नेताओं के रूप में भी मिलकर पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदायों की आवाज़ के लिए एक साझा मंच बनाएं.” “हमारी चुनौतियाँ एक जैसी हैं—अवैध आव्रजन, जमीन और पहचान का नुकसान, राजनीतिक उपेक्षा, भ्रष्टाचार और सांस्कृतिक विरासत का क्षरण. इसलिए हमारा जवाब भी एकजुट, रणनीतिक और साहसिक होना चाहिए. मुझे विश्वास है कि हम एक मज़बूत क्षेत्रीय आंदोलन खड़ा कर सकते हैं.”
अक्टूबर 2023 में, संगमा ने त्रिपुरा में टिपरा मोथा के लिए प्रचार करते हुए पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदायों से “संवैधानिक समाधान” के लिए एकजुट होने की अपील की थी. यह समाधान असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के आदिवासी समुदायों को शामिल करता है.
जुलाई 2024 में, 10 स्वायत्त परिषदों को चलाने वाली पार्टियों ने 125वें संवैधानिक संशोधन बिल को जल्द पारित कराने के लिए एकजुट होकर दबाव बनाया. यह बिल परिषदों को अधिक वित्तीय और कार्यकारी अधिकार देने से संबंधित है.
ये 10 परिषदें संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्थापित की गई हैं और असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के निर्धारित क्षेत्रों में फैली हुई हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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