नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि पड़ोसी देशों से रिश्ते बनाए रखना ज़रूरी है और इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत को अपने पड़ोसियों तक पहुंचना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए.
आरएसएस ने अपनी शताब्दी समारोह के तहत रूस और चीन सहित कई देशों को आमंत्रित किया था, लेकिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की को इसमें शामिल नहीं किया गया. भागवत ने ये बातें दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम “आरएसएस की 100 साल की यात्रा: नए क्षितिज” में कहीं.
आरएसएस सरसंघचालक भागवत ने कहा कि रिश्ते बनाना ज़रूरी है और दूसरों से संपर्क होना चाहिए. उन्होंने कहा कि धर्म या समुदाय चाहे कुछ भी हो, संवाद और जुड़ाव होना ही चाहिए.
भागवत ने कहा, “भारत के विचार, हमारी संस्कृति और सोच को दुनिया में फैलाने के लिए हमारे क्षितिज का विस्तार ज़रूरी है. पहला विस्तार पड़ोसी देशों से होना चाहिए. भारत के ज़्यादातर पड़ोसी कभी भारत का हिस्सा थे.”
पड़ोसी देशों से रिश्तों पर उन्होंने कहा, “नदियां, पहाड़ और लोग वही हैं, केवल नक्शे पर लकीरें खींच दी गई हैं. इन्हें जोड़ना होगा ताकि सब लोग अपने मिले-जुले संस्कारों के साथ आगे बढ़ सकें. धर्म और पंथ अलग हो सकते हैं, लेकिन संस्कारों में कोई फर्क नहीं है.”
भागवत ने कहा कि दुनिया को बदलने से पहले अपने घर को बदलना चाहिए. उन्होंने कहा, “और सबसे पहले यह काम पड़ोसी देशों में होना चाहिए. भारत के ज़्यादातर पड़ोसी कभी भारत का हिस्सा थे—लोग, भूगोल, नदियां और जंगल सब वही हैं; सिर्फ नक्शे पर लकीरें खींच दी गई हैं.”
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत का पहला कर्तव्य होना चाहिए कि “जो हमारे हैं, वे अपनापन महसूस करें.”
उन्होंने कहा, “देश अलग-अलग रहेंगे, लेकिन हमारे विरासत में जो मूल्य हैं, उनके आधार पर हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि वे आगे बढ़ें और उसमें भारत का कुछ योगदान होना चाहिए.”
दिल्ली में हुए इस कार्यक्रम में 55 से ज़्यादा दूतावासों के राजनयिक मौजूद थे. आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, “आज के व्याख्यान में 10 से ज़्यादा राजदूत/हाई कमिश्नर/सीडीए और लगभग 45 दूतावास प्रतिनिधि विभिन्न स्तरों पर शामिल हुए.”
भागवत ने यह भी कहा कि भारत अपने पड़ोसी देशों में सबसे बड़ा है और उसे अपनी भूमिका निभानी चाहिए ताकि वे जुड़े रहें, शांति, स्थिरता और विकास बना रहे.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज दुनिया में तालमेल की कमी है और दुनिया को अपना नज़रिया बदलकर ‘धर्म’ का रास्ता अपनाना होगा.
उन्होंने समझाया, “धर्म पूजा-पाठ और रस्मों से परे है. धर्म सभी तरह के मज़हब से ऊपर है. धर्म हमें संतुलन सिखाता है—हमें भी जीना है, समाज को भी जीना है और प्रकृति को भी जीना है. धर्म वह मध्य मार्ग है जो हमें अतिरेक से बचाता है. धर्म का मतलब है गरिमा और संतुलन के साथ जीना. विश्व शांति सिर्फ इसी दृष्टिकोण से स्थापित हो सकती है.”
भागवत ने भारत को उम्मीद की किरण के रूप में पेश किया और कहा कि जब दुनिया मेल-जोल की भूखी है, तब भारत का काम धर्म का रास्ता दिखाना है, जिसे मज़हब से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भले ही पंथ और मज़हब अलग हों, लेकिन प्रांतीय संस्कृति एक है. उन्होंने कहा, “क्या इस पर कोई मतभेद है? बिलकुल नहीं.”
भागवत ने कहा कि हर वर्ग के लोग इस प्रयास में एकजुट हैं. उन्होंने पहुंच और संवाद पर ज़ोर दिया, ‘मनुष्य से मनुष्य का संवाद, दिल से दिल की बात’.
उन्होंने कहा, “यह शुरू होना चाहिए. इससे जो माहौल बनेगा वह रिश्तों को बेहतर करेगा और दुनिया के लिए भी उपयोगी होगा.”
अपने भाषण में भागवत ने असहिष्णुता और कट्टरता के बढ़ते रुझान पर चिंता जताई और इसे वैश्विक समस्या ‘वोकिज़्म’ और ‘कैंसल कल्चर’ से जोड़ा.
हिंदुत्व की मूल भावना पर टिप्पणी करते हुए भागवत ने कहा कि हिंदुत्व सत्य, प्रेम और अपनापन है. उन्होंने कहा, “हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया कि जीवन सिर्फ अपने लिए नहीं है. यही कारण है कि भारत को दुनिया में बड़े भाई की तरह रास्ता दिखाने की भूमिका निभानी है. विश्व कल्याण का विचार यहीं से जन्म लेता है.”
आरएसएस प्रमुख ने चिंता जताई कि दुनिया अंधभक्ति, संघर्ष और अशांति की ओर बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि पिछले साढ़े तीन सौ साल में उपभोक्तावादी और भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण जीवन की शालीनता घट गई है. भागवत ने महात्मा गांधी की सामाजिक पापों की चेतावनी का हवाला दिया. उन्होंने कहा, “सात सामाजिक पाप बढ़ रहे हैं—काम किए बिना धन, अंतरात्मा के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, इंसानियत के बिना विज्ञान, बलिदान के बिना धर्म और सिद्धांतों के बिना राजनीति.”
भागवत ने ज़ोर दिया कि व्यक्तिवाद की अति बढ़ गई है, जिसने संयम और परंपरागत मूल्यों को खोखला कर दिया है.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज की दुनिया में लोग बस अपनी इच्छाएं थोपना चाहते हैं और संवाद की कद्र नहीं करते. उन्होंने कहा, “अगर हम उनकी राय नहीं दोहराते तो वे हमें ‘कैंसल’ कर देते हैं.” उन्होंने समझाया कि यह एक वैश्विक समस्या बन गई है, जिससे माता-पिता भी बच्चों पर इसके असर को लेकर चिंतित हैं.
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