मुंबई: काफी समय से लंबित महाराष्ट्र मंत्रिमंडल विस्तार का जिक्र करते हुए, विपक्ष के नेता अजीत पवार ने औरंगाबाद में 30 जनवरी को होने वाले एमएलसी चुनावों के लिए प्रचार करने के दौरान एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली बालासाहेबंची शिवसेना के विधायकों पर अप्रत्यक्ष रूप से ताना मारा और कहा कि उनमें से कई ने नए सूट तो सिलवा लिए हैं, पर (मंत्री बनाने के) संदेश का इंतजार ही कर रहे हैं.
हालांकि, उनके इस कटाक्ष पर दूसरी तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं हुई थी, मगर इस बयान से एमवीए के उन कई विधायकों का दिल जरूर जला होगा जो पिछले साल अगस्त से ही प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार के जरिये सत्ता का हिस्सा पाने की उम्मीद कर रहे हैं. उन्हें अब तक कम से कम तीन बार डेडलाइन (अंतिम समय सीमा) दी जा चुकी है, लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर चलाई जा रही यह गठबंधन सरकार राज्य कैबिनेट में 23 खाली सीटों को कब तक भरने के लिए योजना बना रही है.
भाजपा और बालासाहेबंची शिवसेना दोनों के सूत्रों का कहना है कि यह विस्तार मुख्य रूप से इसी वजह से अटका हुआ है क्योंकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए यह संतुलन बिठाने का एक कठिन काम कर रहे हैं.
हालांकि, पिछले साल अगस्त में दोनों दलों के विधायकों को 18 पोर्टफोलियो (विभाग) आवंटित किए गए थे, मगर फिलहाल शिंदे और फडणवीस के पास ही कुल मिलाकर 20 पोर्टफोलियो हैं. बता दें कि महाराष्ट्र में अधिकतम 43 मंत्री हो सकते हैं क्योंकि मंत्रिपरिषद का आकार कुल विधायकों की संख्या, जो कि 288 है, के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है.
जहां शिंदे के साथ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार से बाहर निकलने वाले सभी 39 विधायकों को कैबिनेट बर्थ मिलने की उम्मीद है, वहीं संजय शिरसाट, संजय गायकवाड़ और बच्चू कडू जैसे कुछ वरिष्ठ विधायकों ने विस्तार की आवश्यकता के बारे में खुलकर संकेत भी दिए हैं. इस बीच, भाजपा के पास 106 विधायक हैं, जिनमें से अब तक फडणवीस सहित केवल 10 ही मंत्रिमंडल में शामिल हैं.
शिंदे अपने नेतृत्व में एमवीए सरकार से बाहर हुए विधायकों को निराश करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते. वह भी खास तौर पर तब जब कि यह मामला कि असली शिवसेना कौन है, चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय के पास है, और गठबंधन सरकार की वैधता दांव पर लगी हुई है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 14 फरवरी को होनी है, जबकि चुनाव आयोग 17 जनवरी को मामले की सुनवाई करेगा.
शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिंदे के पीछे-पीछे (ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से) बाहर निकलने वाले सभी विधायकों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. उन्हें कैसे समायोजित किया जाए और किसे सत्ता में हिस्सेदारी दी जाए, यह तय करना विशेष रूप से मुश्किल है क्योंकि पार्टी का लेबल ही अभी अधर में है. जो भी इससे निराश होंगें, वे इसके बारे में कुछ करने का फैसला कर सकते हैं.’
उन्होंने कहा कि अभी तक धैर्य रखने वाले विधायक भी अब बेचैन हो रहे हैं.
इस विधायक ने कहा, ‘अगले विधानसभा चुनाव से पहले हमारे पास मुश्किल से डेढ़ साल बचे हैं. हरेक दिन की देरी का अर्थ है उम्मीदवारों के लिए संभावित सत्ता का एक दिन खो जाना. यह पैसे की बात नहीं है. यह राजनीतिक हैसियत में बढ़ोतरी के बारे में अधिक है.’
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डेडलाइन के बाद डेडलाइन
वर्तमान सरकार का गठन पिछले 30 जून को सिर्फ दो नेताओं के शपथ लेने के साथ हुआ था – शिंदे ने मुख्यमंत्री के रूप में और फडणवीस ने उनके डिप्टी (उप-मुख्यमंत्री) के रूप में शपथ ली थी. इस सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार ही 40 दिन के बाद किया गया था जब मुख्यमंत्री ने भाजपा और अपनी पार्टी के नौ-नौ मंत्रियों को शामिल किया था.
जैसा कि कई सारे सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया था कि जो लोग पहली सूची में जगह नहीं बना पाए थे उन्हें मुख्यमंत्री और उनके डिप्टी ने इस बात के साथ आश्वस्त किया था कि जल्द ही विस्तार का दूसरा दौर होगा. तब से, इस बारे में आस रखने वालों को कम से कम तीन अंतिम समय सीमाएं (डेडलाइनस) दी जा चुकी हैं. शुरू में कुछ विधायकों को बताया गया था कि ‘पितृ पक्ष’ की अशुभ अवधि समाप्त होने के बाद सरकार एक और विस्तार का विकल्प चुनेगी. पितृ पक्ष’16 दिनों की वह अवधि होती जब लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं और कोई भी नए उद्यम शुरू करने या घर अथवा कार खरीदने से बचते हैं. पिछले साल पितृपक्ष की अवधि सितंबर के अंत में समाप्त हो गई थी.
जब इसके बाद भी विस्तार का कोई संकेत नहीं मिला, तो कई विधायकों को उम्मीद थी कि शिंदे पूरे अक्टूबर चलने वाले नवरात्रि और दीवाली के उत्सवों के बाद ही कोई निर्णय लेंगे. दीवाली के दौरान, फडणवीस ने मीडिया से कहा भी था कि कैबिनेट विस्तार ‘जल्द ही’ होगा.
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दिवाली के बाद शिंदे ने अपनी पार्टी के कुछ विधायकों के साथ एक बैठक के दौरान कहा था कि मंत्रिमंडल का विस्तार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र, जो 19 दिसंबर को शुरू होने वाला था, से पहले किया जाएगा. मगर, यह सत्र भी बिना किसी विस्तार के 29 दिसंबर को समाप्त हो गया.
इसी सत्र के दौरान विपक्ष के नेता अजीत पवार ने कैबिनेट के खाली पदों और महिला मंत्रियों की कमी पर सरकार से सवाल किया था, जिस पर फडणवीस ने कहा था कि सरकार जब भी मंत्रिमंडल का विस्तार करेगी तो महिलाओं को तरजीह दी जाएगी.
हालांकि, अब तो कोई खुली नाराजगी नहीं दिखी है, मगर शिंदे खेमे के जो विधायक अनिश्चितता के बावजूद एमवीए सरकार से बाहर चले गए थे उन्होंने अपना धैर्य खोना शुरू कर दिया है.
प्रहार जनशक्ति पार्टी के निर्दलीय विधायक बच्चू कडू ने पिछले सप्ताह अमरावती में संवाददाताओं से कहा, ‘अगर यह होने जा रहा है, इसे जल्द ही होना चाहिए. हम सब बस यही कह रहे हैं. विधायकों के बीच बेचैनी बढ़ गई है.’ कडू शिंदे की अगुआईं में हुए विद्रोह में शामिल होने वालों में सबसे पहले लोगों में से थे और उन्होंने पिछले साल अगस्त में ही विस्तार के पहले दौर में शामिल नहीं किए जाने पर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी.
शिंदे की दुविधा
इस बारे में बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने कहा कि यह देरी गठबंधन के दो सहयोगियों के बीच या सीएम शिंदे और उनके डिप्टी फडणवीस के बीच के मतभेदों के कारण नहीं, बल्कि शिंदे गुट के भीतर के आपसी मतभेदों की वजह से हो रही है.
देशपांडे ने कहा, ‘ऐसी स्थितियां आ सकती हैं जहां विधायकों को आने और गवाही देने के लिए कहा जा सकता है. अभी लिए गए किसी भी निर्णय से कुछ विधायकों का निराश होना लाजमी है और फिर वे जैसी चाहे कार्रवाई कर सकते हैं.‘ साथ ही, उन्होंने कहा कि शिंदे नहीं चाहते कि मुंबई समेत कई शहरों में होने वाले निकाय चुनावों से पहले उनकी पार्टी को नुकसान पहुंचे.
देशपांडे ने कहा, ‘एक तरीका यह होगा कि (निकाय) चुनाव तक इंतजार किया जाए और फिर (अच्छा) काम करने वालों को पुरस्कृत किया जाए.’
इस बीच बीजेपी के एक नेता ने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार में हो रही देरी पूरी तरह से बालासाहेबांची शिवसेना के भीतर के आंतरिक तनाव की वजह से है, न कि सत्ता के बंटवारे पर दोनों सहयोगियों के बीच की किसी अनबन के चलते.
उन्होंने कहा, ‘कोई भी सरकार जब ऐसी परिस्थितियों में सत्ता में आती है, तो चाहे जिसके पास अधिक संख्या हो, आमतौर पर पार्टियां सत्ता के बंटवारे के लिए 50-50 के फार्मूले को स्वीकार करती हैं. भाजपा इसके खिलाफ नहीं है. ‘
उन्होंने कहा, ‘उनके (शिंदे) साथ गए विधायक इसलिए गए थे क्योंकि उन्हें कुछ हद तक सत्ता और पद पाने की उम्मीद थी. कैबिनेट विस्तार से उनके बीच उस स्तर से अधिक मोहभंग होगा, जितना कि इस बारे में इंतजार करते हुए बैठने से हो रहा है.‘
अब तक, शिंदे सरकार, जिसमें मुख्यमंत्री के पास 13 विभाग और उप-मुख्यमंत्री के पास सात विभाग हैं, को सिर्फ 20 मंत्रियों के साथ दो विधायी सत्रों का सामना करना पड़ा. एक ओर जहां शिंदे विधायी सत्रों की अवधि के दौरान कामकाज के सुचारू रूप से संचालन के लिए कुछ मंत्रियों को अपने कुछ विभागों का प्रभारी बना देते हैं, वहीँ फडणवीस अपने जिम्मे के सात विभागों में से प्रत्येक से संबंधित हर सवाल का जवाब स्वयं देने पर जोर देते हैं.
फडणवीस के कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘यदि उप-मुख्यमंत्री जी कहीं और होते हैं, तो हम पीठासीन अधिकारी को उनके उपलब्ध होने तक किसी विशेष मुद्दे को विलंबित करने के लिए एक नोट भेजते हैं. इसमें बहुत भागदौड़ वाला होती है.’
शिंदे खेमे के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बालासाहेबंची शिवसेना के कुछ मंत्रियों जैसे कि अब्दुल सत्तार, शंभुराज देसाई और खुद शिंदे को भी शीतकालीन सत्र के दौरान गलत कार्यवाहियों के लिए आरोपों का सामना पड़ा और इससे मुख्यमंत्री की चिंताएं और बढ़ गई है.
उन्होंने कहा, ‘अगर सत्तार जैसे मंत्रियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो इससे उन विधायकों में गहरी नाराजगी हो सकती है जो (कैबिनेट) विस्तार से बाहर रह गए हैं. और अगर कथित रूप से भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, तो यह विपक्ष के हाथों में जीत थमाने जैसा होगा और इन मंत्रियों की ओर से भी कड़ी प्रतिक्रिया मिलेगी.’
(अनुवाद: राम लाल खन्ना | संपादन: ऋषभ राज)
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