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Monday, 4 November, 2024
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आंतरिक कलह, कई सारे पॉवर सेंटर, BJP फैक्टर—किन वजहों से मात खा रही महाराष्ट्र कांग्रेस

नासिक एमएलसी चुनावों में तांबे परिवार की बगावत को लेकर कुछ कांग्रेस नेताओं ने भाजपा को ‘घर तोड़ने’ का जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन अन्य का कहना है कि समस्या की जड़ पार्टी के भीतर ही है.

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मुंबई: भारत जोड़ो यात्रा के बाद मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के लिए कांग्रेस इसी महीने से जमीनी स्तर पर दो महीने चलने वाली हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा की तैयारियों में जुटी है. लेकिन महाराष्ट्र में पार्टी के अपने ही कुछ वरिष्ठ नेता न तो हाथ से हाथ मिला रहे हैं और न एक-दूसरे को देखना तक पसंद कर रहे हैं.

विश्लेषकों के साथ-साथ पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का भी कहना है कि कई सारे पॉवर सेंटर होना, वरिष्ठ नेताओं की परस्पर विरोधी बयानबाजी और दशकों से कांग्रेस के विश्वस्त माने जाने वाले राजनीतिक परिवारों की बगावत ने राज्य में पार्टी को खासा नुकसान पहुंचाया है.

इनमें से कुछ ने यह रेखांकित करते हुए कि लोकसभा भेजे जाने वाले सांसदों की संख्या के लिहाज से (यूपी के बाद) दूसरे नंबर पर रहने वाले राज्य महाराष्ट्र में यह स्थिति पार्टी को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली है.

यह स्थिति और भी विडंबनापूर्ण है कि 1885 में तत्कालीन बॉम्बे में जन्मी कांग्रेस अब वह अपने जन्मस्थान में ही खुद खत्म होती नजर आ रही है.

महाराष्ट्र कांग्रेस में एक बड़ी दरार उभरने की ताजा घटना तब सामने आई जब विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट के परिवार के सदस्यों ने आगामी विधान परिषद चुनावों के लिए नासिक स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्याशी पर पार्टी के फैसले को लेकर विरोध जताया. थोराट के बहनोई और भतीजे—कांग्रेस नेता सुधीर तांबे और उनके बेटे सत्यजीत तांबे—दोनों को इसी माह पार्टी से निलंबित कर दिया गया था.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह असहज करने वाली घटना पार्टी के भीतर व्यापक अंतर्विरोध होने का ही संकेत देती है.

राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई कहते हैं, ‘ऐसा लगता है कि सभी शीर्ष नेता साथ मिलकर काम नहीं कर रहे. महाराष्ट्र में कांग्रेस सिर्फ बातें करने वाले और कुछ काम न करने वाले नेताओं वाली पार्टी बन गई है.’

उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र में जन्मी पार्टी यहीं पर बहुत कमजोर स्थिति में दिख रही है, हालांकि विदर्भ क्षेत्र में यह अभी भी कुछ हद तक प्रासंगिक बनी हुई है. पार्टी ने जमीनी स्तर पर कोई काम या कोई कार्यक्रम नहीं किया है.’

जहां कुछ कांग्रेसी नेता ‘परिवार तोड़ने’ के लिए स्पष्ट तौर पर भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं अन्य कहते हैं कि समस्या काफी हद तक आंतरिक है.

विभाजित परिवार, ‘घर तोड़ने वाली’ भाजपा?

वरिष्ठ नेता सुधीर तांबे को 30 जनवरी को प्रस्तावित एमएलसी चुनावों में नासिक स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस का आधिकारिक उम्मीदवार माना जा रहा था. लेकिन अपने नामांकन के बजाये उन्होंने अपने बेटे सत्यजीत के लिए रास्ता बनाने की कोशिश की, जो युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं.

चूंकि सारी आवश्यक कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हो पाई, इसलिए सत्यजीत ने पार्टी की सहमति के बिना आगे बढ़कर एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन दाखिल कर दिया.

कांग्रेस के सूत्रों ने इस माह के शुरू में दिप्रिंट को बताया था कि सत्यजीत के मामा बालासाहेब भांजे के इस कदम से हैरान और ‘नाखुश’ थे.

तांबे-थोराट परिवार में फूट कांग्रेस के लिए भी एक झटका है. लगभग दो दशकों तक तांबे और थोराट परिवार ने मिलकर दो जगहों पर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की है. नासिक एमएलसी सीट पर सुधीर तांबे ने लगातार तीन बार कब्जा जमाया, और अहमदनगर जिले में संगमनेर विधानसभा क्षेत्र से बालासाहेब थोराट ने लगातार सात बार जीत हासिल की है.

File photo of Satyajeet Tambe | Photo: satyajeettambe.com
सत्यजीत तांबे की फाइल फोटो | फोटो: satyajeettambe.com

ताजा विवाद ने कुछ कांग्रेस नेताओं को भाजपा पर अंगुली उठाने का मौका दे दिया है, जिसने नासिक एमएलसी चुनाव में सत्यजीत के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा है. युवा नेता ने भाजपा के ‘समर्थन’ पर सार्वजनिक बयान भी दिया है. हालांकि, पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने पिछले बुधवार को मुंबई में संवाददाताओं से कहा, ‘भाजपा में तो यह परिपाटी चलती आ रही है, वे लोगों के परिवार तोड़ने की कोशिश करते हैं. उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं मिल रहा, इसलिए वे दूसरों का घर तोड़ने में जुटे हैं.’

तांबे की बगावत के पीछे भाजपा की भूमिका को लेकर बहस के बीच कांग्रेस के अन्य गढ़ों में भी इसका स्पष्ट प्रभाव पड़ता दिख रहा है.

2019 के विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में कांग्रेस से जुड़े ‘वंशवादियों’ का पूरा का पूरा कुनबा ही भाजपा में शामिल हो जाने की घटनाएं सामने आई थीं जो कि अपने साथ पार्टी का पूरा जनाधार भी समेट ले गए थे.

उदाहरण के तौर पर, मार्च 2019 में तत्कालीन कांग्रेसी नेता सुजय विखे-पाटिल भाजपा में चले गए और अहमदनगर से पहली बार सांसद बने. छह महीने बाद उनके पिता राधाकृष्ण विखे-पाटिल भी उसी राह पर चल पड़े और अब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. विखे पाटिल ने अपने सियासी जीवन में कई पार्टियों का दामन थामा, लेकिन परिवार का सबसे लंबा जुड़ाव कांग्रेस के साथ ही रहा है.

इसी तरह, चार बार इंदापुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व सांसद हर्षवर्धन पाटिल 2019 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे. उनके चाचा, शंकरराव पाटिल ने 1980 के दशक में दो बार कांग्रेस के गढ़ बारामती संसदीय क्षेत्र पर कब्जा जमाया था और 1970 के दशक में कैबिनेट मंत्री थे.

नारायण राणे और उनके बेटे ने 2005 में शिवसेना छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया था और पार्टी को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाने में मदद दी. और फिर 2017 में पार्टी छोड़ दी. दो साल बाद तटीय जिलों में अपने समर्थन के आधार पर वह औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो गए. राणे अब केंद्रीय मंत्री हैं.

Union Minister Narayan Rane inaugurates Khadi India Pavilion at India International Trade Fair 2022
केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर 2022 में खादी इंडिया पवेलियन का उद्घाटन किया | (फोटो/पीआईबी)

काफी समय से ऐसी अटकलें जारी हैं कि कांग्रेस के भरोसमंद दो अन्य परिवार भी भाजपा में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं—नांदेड़ के चव्हाण और लातूर के देशमुख. हालांकि, कांग्रेस विधायक अशोक चव्हाण और अमित देशमुख कई मौकों पर ऐसी अफवाहों का जोरदारी से खंडन कर चुके हैं.

खुद एक राजनीतिक परिवार से आने वाले एक कांग्रेस नेता ने कहा, ‘भाजपा उन परिवारों को अपने साथ लेने की कोशिश कर रही है जो जीत सकते हैं चाहे वे किसी भी पार्टी के हों. वे अपना खुद का जनाधार नहीं बढ़ा सकते हैं, इसलिए ऐसे लोगों और परिवारों का सहारा लेने की कोशिश करते हैं जो सालों से जीतते आ रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस मामले में भी उन्होंने सत्यजीत को आजमाने की कोशिश की है और उन्हें निर्दलीय खड़ा किया है. यह शर्मनाक है, लेकिन कोई विकल्प नहीं है. भाजपा कांग्रेस ही नहीं, अन्य दलों के उम्मीदवारों को भी तोड़ने की कोशिश कर रही है. यहां तक कि पवार, भोसले जैसे परिवारों पर भी उसकी नजर है. ऐसा जारी रहेगा. यह उनकी रणनीति है.’

एक अन्य कांग्रेसी नेता ने कहा, ‘वे ऐसे बड़े परिवारों में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं जो कोऑपरेटिव सेक्टर में प्रमुख खिलाड़ी हैं. हालांकि, सहकारिता मुख्यत: राज्य का विषय है, लेकिन इस कार्यकाल में मोदी सरकार ने सहकारिता पर एक नया मंत्रालय बनाया है और चूंकि महाराष्ट्र में तमाम सहकारी समितियां हैं, इसलिए भाजपा इन राजनीतिक परिवारों को तोड़ने की कोशिश कर रही है.’

पिछले हफ्ते, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने ‘घर तोड़ने’ के आरोपों पर पलटवार किया. उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस एक डूबता जहाज है और एमवीए (महा विकास अघाड़ी) सहयोगियों में कोई एकता नहीं है. इसलिए कांग्रेस हम पर घर तोड़ने के आरोप लगा रही है.’


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कई सारे पॉवर सेंटर

इस माह के शुरू में राज्य कांग्रेस ने हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के लिए नागपुर में एक बैठक की थी. लेकिन बालासाहेब थोराट, अशोक चव्हाण, यशोमति ठाकुर और विश्वजीत कदम जैसे कई वरिष्ठ नेता किसी न किसी कारण बैठक से दूर रहे.

और ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है. पिछले माह जब एमवीए ने भाजपा और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के खिलाफ विशाल विरोध रैली का आयोजन किया था, तब चव्हाण इसमें शामिल नहीं हुए और इसके बजाये अपने भतीजे की शादी में चले गए. उन्होंने अपनी जगह पत्नी को रैली में भेजा.

2019 में पटोले ने विधानसभा चुनाव से पहले ‘पोल खोल यात्रा’ (भाजपा का पर्दाफाश) की थी, लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने यह कहते हुए इससे दूरी बना ली थी कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया.

विश्लेषकों का कहना है कि फिर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पटोले ने शिवसेना और एनसीपी के साथ सत्ता में होने के बावजूद आगामी नगरपालिका चुनावों में अकेले जाने को लेकर परस्पर विरोधी बयान दिए, जिससे कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई.

महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले | ट्विटर/@NANA_PATOLE

2021 में जब एमवीए सत्ता में थी, तब कांग्रेस के 28 विधायकों ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि पार्टी के मंत्री विकास कार्यों और वित्तीय मदद को लेकर सदस्यों की मदद नहीं कर रहे हैं.

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में कांग्रेस असमंजस की स्थिति से जूझ रही है. कोई नेता नहीं है. कई वरिष्ठ नेताओं ने अपने-अपने गुट और गढ़ बना रखे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘न तो कोई सामंजस्य है और न ही कोई ऐसा नेता नहीं है जो पार्टी को साथ जोड़ सके और कांग्रेस के लिए अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ना मुश्किल है. जमीनी स्तर पर कोई संगठन नहीं है.’

हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने कहा कि पार्टी में कोई भ्रम नहीं है, और इस तरह की बातों के लिए सीधे तौर पर भाजपा को जिम्मेदार ठहराया.

चाव्हाण ने कहा, ‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, पार्टी के भीतर कोई भ्रम नहीं है. एमएलसी चुनाव के दौरान भी भाजपा ने ही क्रॉस वोटिंग कराने की कोशिश की थी. यह बात किसी से छिपी नहीं है. यह वोटों में सेंध लगाने और भ्रम फैलान की भाजपा की रणनीति है. यहां तक कि नासिक में भी यही किया गया और यह एक गंभीर मुद्दा है. फॉर्म दिए जाते समय ही चीजों पर चर्चा करके उसका समाधान निकाला जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हम इस पर काम कर रहे हैं.’

‘अनुशासन’ की कमी

दिप्रिंट ने जिन कई कांग्रेस नेताओं से बात की, उनका यही कहना था कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से पर्याप्त सुपरविजन या भागीदारी के अभाव ने महाराष्ट्र में कई पॉवर सेंटर बना दिए हैं.

एक तीसरे पार्टी नेता ने कहा, ‘पार्टी में जिस अनुशासन की जरूरत थी, वह नहीं है. यदि कोई बात नहीं मानता है तो आलाकमान की तरफ से कार्रवाई की जानी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.’

उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की तरफ से जांच के आदेश दिए जाने और पार्टी नेतृत्व को रिपोर्ट भेजे जाने के बाद भी पिछले साल एमएलसी चुनाव के दौरान कथित तौर पर क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने कहा, ‘कार्रवाई न होना सत्यजीत जैसे लोगों को प्रोत्साहित करता है.’

पिछले साल जून में एमएलसी चुनावों के दौरान कांग्रेस के सात विधायकों ने कथित तौर पर पार्टी की पहली वरीयता के उम्मीदवार चंद्रकांत हंडोरे की जीत नाकाम करने के लिए कथित तौर पर क्रॉस-वोटिंग की, जबकि दूसरी वरीयता वाले उम्मीदवार भाई जगताप ने जीत हासिल कर पार्टी को अजीब स्थिति में ला खड़ा किया.

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस की मौजूदा स्थिति के लिए केवल पटोले ही जिम्मेदार नहीं है और यह पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं की सामूहिक विफलता है.

उन्होंने कहा, ‘सत्यजीत तांबे के बारे में अटकलें एक माह से जारी थीं, यहां तक कि फडणवीस ने थोराट के सामने ही सार्वजनिक तौर पर एक कार्यक्रम के दौरान ऐसे संकेत भी दिए थे कि सत्यजीत पर उनकी नजर है. लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. यह दुखद है.’

हालांकि, इस बार कांग्रेस की अनुशासन समिति ने तांबे पिता-पुत्र की जोड़ी के खिलाफ कार्रवाई में जल्दबाजी दिखाई. सत्यजीत को छह साल के लिए निलंबित कर दिया गया है, जबकि सुधीर तांबे को जांच होने तक निलंबित किया गया है.

पिछले हफ्ते नागपुर के विधायक आशीष देशमुख ने पार्टी आलाकमान को एक पत्र भेजा था, जिसमें आज कांग्रेस की हताशा, खासकर सत्यजीत तांबे के विद्रोह जैसी घटना के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पटोले को जिम्मेदार ठहराया है.

पत्र में कहा गया है, ‘जून 2022 में हंडोरे बतौर उम्मीदवार पहली पसंद थे, लेकिन आदेश को दरकिनार कर भाई जगताप की जीत सुनिश्चित की गई. 4 जुलाई, 2022 को फ्लोर टेस्ट के दौरान कम से कम 10 विधायक अनुपस्थित रहे और इसलिए शिंदे सरकार को आसानी से बहुमत मिल गया, और अब सत्यजीत तांबे की बगावत ने पार्टी को शर्मिंदा कर दिया है.’

गौरतलब है कि शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के फ्लोर टेस्ट के दौरान अशोक चव्हाण और धीरज देशमुख सहित 10 कांग्रेस विधायक अनुपस्थित रहे थे, क्योंकि वे समय पर नहीं पहुंच पाए थे, जिससे पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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