कांग्रेस राज्य आधारित संबंध चाहती है लेकिन कुछ पार्टियां आधार बढ़ाने के लिए गठबंधन का उपयोग करना चाहती हैं – एक परिदृश्य जहाँ 2019 दो विपक्षी मोर्चों को देख सकता है।
नई दिल्ली: 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए बहु प्रतीक्षित महागठबंधन या सभी विपक्षी दलों के भव्य गठबंधन के पूरा होने की संभावना नहीं लग रही है।
कांग्रेस आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली और कुछ अन्य राज्यों में चुनाव पूर्व गठबंधन की इच्छुक नहीं है, क्षेत्रीय दल एकजुटता दिखा रहे हैं जैसे वो कांग्रिस को नियमों को निर्देशित करने से रोक सकें।
पिछले हफ्ते, चार मुख्यमंत्री और महागठबंधन के संभावित सदस्य – ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, एचडी कुमारस्वामी और पिनारायी विजयन – दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल के साथ विवाद में उनके समर्थन में आए, इस कदम ने महागथबंधन के निर्माण में बढ़ती गलत फहमियों को स्पष्ट कर दिया।
कांग्रेस ने केजरीवाल की राज निवास में धरना देने के लिए आलोचना की थी और इसे “काम न करने का बहाना” कहा था।
हालांकि कांग्रेस का एक वर्ग केजरीवाल के साथ समझौता करने का पक्ष लेता है, पर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी आप पार्टी के साथ किसी भी गठबंधन का विरोध करने के लिए जाने जाते हैं, जिसे उन्होंने 2014 में यूपीए के निष्कासन के लिए जिम्मेदार ठहराया था। कांग्रेस नायडू की तेलुगू देशम पार्टी और आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी केसी चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के साथ किसी गठबंधन में भी रूचि नहीं रखती है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने दिप्रिंट को बताया, “राहुलजी को पहले फैसला करना होगा कि भाजपा को सत्ता से हटाने या पार्टी के खोए क्षेत्रों को वापस पाने के लिए उनकी तत्काल प्राथमिकता है या नहीं। यदि यह पहले करना है, तो उन्हें लोकसभा चुनाव में दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में आप पार्टी के साथ सहयोग करने के बारे में सोचना चाहिए।”
पश्चिम बंगाल में, कांग्रेस नेताओं ने कहा कि पार्टी वामपंथी गठबंधन में और अधिक सीटें जीत सकती है लेकिन वह बनर्जी को नाराज नहीं कर सकती, जो खुद को भाजपा विरोधी गठबंधन के आधार के रूप में पेश कर रही हैं।
एनसीपी के महासचिव डीपी त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया, “आपको एक साथ विभिन्न राजनीतिक दलों को समायोजित करना होगा। आज के समय में राजनीति की यही वास्तविकता है।”
महागठबंधन की प्रकृति और रूप-रेखा पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच मतभेदों ने 2019 में एक से अधिक भाजपा विरोधी समूहों की संभावना का खुलासा किया है।
केंद्र में दिलचस्पी, रास्ते में कांग्रेस
चार मुख्यमंत्रियों का केजरीवाल को समर्थन करने के निर्णय का अर्थ स्पष्ट रूप से, राज्यों के मामलों में कथित हस्तक्षेप के मुद्दे पर केंद्र में एनडीए सरकार को घेरना था। लेकिन इस कदम को कांग्रेस पर अधिक लक्षित किया गया था जो एक समेकित भव्य गठबंधन के रास्ते में आ रहा है। नेताओं ने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए कहा कि कांग्रेस एक महागबंधबंधन का पक्ष लेती है, लेकिन यह पूर्व-चुनाव समझौता राज्य-विशिष्ट होना चाहती है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में चुनाव पूर्व गठजोड़ करना चाहेगी लेकिन अन्य राज्यों में, जहाँ यह प्रभुत्व के लिए क्षेत्रीय दलों के खिलाफ सीधे मुकाबले में है, अकेले लड़ना पसंद करेगी|
एक पार्टी रणनीतिकार ने कहा “इस तरह के गठबंधन कांग्रेस की कीमत पर नहीं हो सकते हैं जिसकी पूरे भारत में मौजूदगी है|”
हालाँकि क्षेत्रीय नेता महागठबंधन में अपने पदचिन्हों को उन क्षेत्रों में विस्तारित करने का अवसर देखते हैं जिन पर पारंपरिक रूप से दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों – कांग्रेस और भाजपा का प्रभुत्व है| उनमें से कई दिल्ली में अपनी महत्वाकांक्षायें रखते हैं और वे चाहते हैं कि कमजोर कांग्रेस उनको यह समझाने में मदद करे|
यह विचलन और हितों का टकराव तब प्रकट हुआ था जब चार मुख्यमंत्री केजरीवाल के समर्थन में उतरे थे|
कांग्रेस के महासचिव ने दिप्रिंट को बताया, “वे (गैर-कांग्रेसी विपक्षी मुख्यमंत्री) हमारे साथ चुनाव से पहले या चुनाव के बाद सौदेबाजी के लिए एक दबाव समूह बनाने की कोशिश कर रहे हैं|”
यह एनसीपी द्वारा अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ियों को अपना प्रभावी समर्थन देने के फैसले की व्याख्या करता है|
भाजपा के लिए आराम और चिंता
विपक्षी शिविर में विभाजन भाजपा के लिए अच्छी खबर है क्योंकि वे फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (जिसे ज्यादा वोट, वो जीता) प्रणाली में भगवा पार्टी के लिए इसे आसान बना सकते हैं|
जिसके बारे में वे ज्यादा परेशान हैं, वह है उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन और बिहार में कांग्रेस-आरजेडी-एनसीपी-एचएएम-‘अन्य’ (‘अन्य’ एक या अधिक निराश एनडीए भागीदार) का गठबंधन| इन दो राज्यों ने 2014 में भाजपा के 93 उम्मीदवारों को लोकसभा में भेजा था|
जो भाजपा को कुछ और भी प्रसन्नता दे सकता है वह हैं चार में से तीन मंत्री, कुमारस्वामी, बनर्जी और नायडू, जिन्होंने केजरीवाल का साथ दिया, और साथ ही जिनके कभी न कभी केंद्र में सत्तारूढ़ दल के साथ किसी समय प्रगाढ़ सम्बन्ध थे|
भाजपा के साथ एनसीपी के आलिंगन भी एक रहस्य नहीं हैं| विपक्षी शिविर में तथाकथित दबाव समूह के पास अन्य गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों को शामिल करने की क्षमता है जो चुनावों के बाद किसी भी पक्ष की तरफ जा सकते हैं जैसे कि – उड़ीसा के नवीन पटनायक और यहाँ तक नितीश कुमार भी, जो एनडीए में असहजता के संकेत दिखा रहे हैं।
यदि कांग्रेस और इन क्षेत्रीय राजनेताओं के बीच मतभेद बने रहते हैं, तो 2019 के लोकसभा चुनाव दो विपक्षी मोर्चों का साक्षी हो सकता है – जिनमें से एक का नेतृत्व कांग्रेस और दूसरे अनजान दल का नेतृत्व क्षेत्रीय राजनेताओं में से किसी एक द्वारा किया जाएगा।
एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने 2019 में पार्टी के “निश्चित सहयोगियों” को सूचीबद्ध किया है: उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और आरएलडी; महाराष्ट्र में एनसीपी; बिहार में आरजेडी; झारखण्ड में जेएमएम; तमिलनाडु में डीएमके और कर्नाटक में जेडी (एस)।
उन्होंने कहा, “अन्य लोगों की तरह हमें भी देखना है। अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। जैसा कि आज लग रहा है, हम कुछ पार्टियों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन कर सकते हैं और अन्य को उपलक्षित कर सकते हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य भाजपा को हराना है। लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि इस तरह के गठबंधन के परिणामस्वरूप हमारा समर्थन आधार बढ़ता है, कम नहीं होता है।”
हालांकि, क्षेत्रीय दलों के झुकाव की संभावना नहीं है।
Read in English : Mahagathbandhan not quite so ‘maha’ as cracks appear between Congress and regional parties