नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में होली के दिन कांग्रेस सरकार को एक बड़ा झटका लगा है. बीते दो दिनों से चल रहे सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के महज 20 मिनट बाद ही कांग्रेस ने सिंधिया को पार्टी ने बर्खास्त भी कर दिया.
वहीं सिंधिया समर्थक मंत्री और विधायकों ने भी अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया है. ये सभी विधायक सोमवार से ही बेंगलुरु में मौजूद हैं. वहीं एक ओर कांग्रेस विधायक बिसाहूलाल सिंह ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है.
वहीं, कमलनाथ ने भी राज्यपाल को पत्र लिखकर सिंधिया समर्थक छह मंत्रियों को तत्काल हटाने को कहा है.
इधर, मध्य प्रदेश में दिग्गज नेताओं में गिने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का फैसला ऐसे वक्त में आया है जब आज उनके पिता माधवराव सिंधिया की जयंती है. पिता की जयंती के मौके पर ज्योतिरादित्य ने जो निर्णय लिया वह ठीक उन्हीं के पिता के पदचिन्हों पर लिया गया फैसला जान पड़ता है.
माधवराव सिंधिया ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनसंघ से की. राजमाता के कारण माधवराव जनसंघ में गए. 1971 में राजमाता ने अपने बेटे माधवराव को जनसंघ के टिकट पर गुना से चुनावा लड़वाया. इसके बाद इंदिरा गांधी की मजबूत स्थिति को देखते हुए वे कांग्रेस में शामिल हो गए.
माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी में जब खुद को उपेक्षित महसूस किया तो उन्होंने पार्टी छोड़कर अलग से नई पार्टी बनाई जिसका नाम मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी था. उन्होंने चुनाव भी लड़ा और विजयी भी रहे. हालांकि बाद में उन्होंने फिर अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
यह भी पढ़ें: सिंधिया समेत उनके 14 समर्थकों का कांग्रेस से इस्तीफा, कमलनाथ सरकार अल्पमत में आई
वहीं सिंधिया परिवार की सिसायत में एंट्री विजयाराज सिंधिया के साथ शुरु हुई. राजमाता ने कांग्रेस के टिकट पर 1957 में गुना शिवपुरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ा. यहां से उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की. इसके बाद 1962 का चुनाव भी कांग्रेस से जीता.
लेकिन 1967 में कांग्रेस से नाराज होकर राजमाता विजयराजे सिंधिया जनसंघ से जुड़ गईं थीं. इसके बाद वे यहां से लोकसभा चुनाव भी जीतीं.
इसी तरह कांग्रेस पार्टी में अपनी अनदेखी को देखकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने पिता और दादी की तरह कांग्रेस से अलग होने की घोषणा कर दी है.