लखनऊ: साल 2007 यूपी विधानसभा चुनाव में जिस तरह अपनी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ थ्योरी के जरिए मायावती ने सीएम की कुर्सी हासिल की थी ठीक उसी तरह से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी उनकी तैयारी है. दरअसल इस बार फिर से मायावती कई सीटों पर ब्राह्मण कैंडिडेट उतारने के मन बना चुकी हैं. यही कारण है कि अभी तक जितने भी प्रभारी बसपा ने नियुक्त किए हैं उसमें सबसे ज्यादा संख्या ब्राह्मणों की ही है.
25 फीसदी टिकट ब्राह्मणों को!
दरअसल 2007 विधानसभा चुनाव से पहले मायावती ने ब्राह्मणों को लुभाते हुए नारा दिया था- ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी चलता जाएगा’. इसके बाद उन्हें ब्राह्मण+ दलित+मुस्लिम फैक्टर का काफी लाभ मिला था. इस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए वह चुनाव जीतीं. ब्राह्मण वोट बसपा से दूर हुआ तो बसपा भी सत्ता से गायब हो गई. अब मायावती ने अपना पुराना फॉर्मूला नए गठबंधन में लागू करने का फैसला कर लिया. यूपी की कुल आबादी में लगभग 10 प्रतिशत ब्राह्मण हैं. ऐसे में बसपा अपना पुराना फाॅर्मूला इस चुनाव में लागू करने की तैयारी में है. सपा से हुए गठबंधन के बाद बसपा 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. हर सीट पर जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा जाएगा.
प्रभारी घोषित करने में ध्यान रखे समीकरण
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बसपा सुप्रीमो ने अभी तक जितने भी प्रभारी घोषित किए हैं, उनमें सबसे बड़ी तादाद ब्राह्मण नेताओं की हैं. बसपा में माना जाता है कि जिन्हें लोकसभा प्रभारी बनाया जाता है, वही उम्मीदवार होते हैं. इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं होती लेकिन आमतौर पर ऐसा ही होता रहा है. बसपा सुप्रीमो ने लोकसभा के 18 प्रभारी की सूची को अंतिम रूप दिया. इनमें से कई नामों का ऐलान पहले ही किया जा चुका है.
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बसपा के लोकसभा प्रभारियों में भदोही से पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा, सीतापुर से पूर्व मंत्री नकुल दुबे, आंबेडकर नगर से राकेश पाण्डेय, फतेहपुर सीकरी से पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय, कैसरगंज से संतोष तिवारी, घोसी से भूमिहार ब्राह्मण अजय राय, प्रतापगढ़ से अशोक तिवारी और खलीलाबाद से भीष्म शंकर तिवारी (कुशल तिवारी) के नाम तय हैं. लिस्ट में जिन आठ ब्राह्मणों को शामिल किया गया है उनमें से छह पूर्वी उत्तर प्रदेश के हैं जहां ब्राह्मण वोटर्स की संख्या काफी अधिक है.
हालांकि, अभी औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है लेकिन इन सभी नेताओं को लोकसभा टिकट मिलने की उम्मीद है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की ओर से भी कार्यकर्ताओं को बसपा उम्मीदवारों का पूरा समर्थन करने को कहा गया है.
क्या हैं इसके मायने?
लखनऊ यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर कविराज का कहना है कि यूपी की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग अहम फैक्टर है. बसपा सुप्रीमो मायावती इसे बहुत बेहतर तरीके से समझती हैं. माना जा रहा है कि अनुसूचित जाति-मुसलमानों के अलावा सपा के साथ आने से ओबीसी वोट भी बसपा के खाते में जा सकता है. वहीं ब्राह्मणों को टिकट देने से बसपा को लगता है कि उसे भाजपा और कांग्रेस पर बढ़त हासिल हो सकेगी क्योंकि आमतौर पर ब्राह्मणों का भाजपा या कांग्रेस की ओर रुझान रहता है.
सतीश चंद्र मिश्रा की अहम भूमिका
बसपा में मायावती का सबसे करीब नेता सतीश चंद्र मिश्रा को कहा जाता है. सतीश मिश्रा अभी राज्यसभा सांसद हैं और वह 2007 से ही बसपा के लिए ब्राह्मण-अनुसूचित जाति के वोट को दोबारा एकजुट करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. 2007 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा के ब्राह्मण-अनुसूचित जाति वाली सोशल इंजीनियरिंग ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाया था. बसपा को तब 403 विधानसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 206 सीटों पर जीत मिली थी.
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यूपी के पूर्वांचल में ब्राह्मण और ठाकुरों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई जग-जाहिर है. हालांकि मोदी लहर में यह लड़ाई कुंद पड़ गई थी, लेकिन मायावती को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस तरह से ठाकुरों का प्रभाव बढ़ा है ऐसे ब्राह्मणों को अपने पाले में वह लाने में सफल हो सकती हैं. इसी कारण फिर से उनका सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला यूपी के सियासी गलियारों में सुर्खियां बटोर रहा है.