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Saturday, 21 December, 2024
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लद्दाख के नेताओं ने PM मोदी को लिखा पत्र, कहा- कैबिनेट फेरबदल में UT और वहां के बौद्धों को रखा बाहर

बुधवार को पीएम मोदी के मंत्रिमंडल के व्यापक फेरबदल में, कई बदलाव देखने को मिले, जिनमें कुछ बड़े विभाग नए चेहरों को सौंपे गए, और कई युवा मंत्री शामिल किए गए.

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नई दिल्ली: बीजेपी सदस्यों सहित लद्दाख़ के बौद्ध नेता इस सप्ताह मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल से नाराज़ हैं, और उनका कहना है कि इस क़वायद में उनके समुदाय और क्षेत्र की अनदेखी की गई है.

बहुत से नेताओं ने विरोध में प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्र लिखे हैं और इस क़वायद को ‘निराशाजनक’ क़रार दिया है.

बीजेपी लद्दाख़ सचिव ग़ुलाम अब्बास आबिदी, जिन्होंने मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों को लिखा, का कहना था कि इस इलाक़े ने हमेशा पार्टी का साथ दिया है. उन्होंने आगे कहा कि केंद्र-शासित क्षेत्र के किसी भी नुमाइंदे को केंद्र सरकार में शामिल न करना बहुत ‘निराशाजनक’ है. पत्र में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, आगे कहा गया कि राष्ट्रीय स्तर पर आख़िरी बार लद्दाख़ का प्रतिनिधित्व, एक दशक पहले कांग्रेस सरकार के अंतर्गत हुआ था.

बुधवार को पीएम मोदी के मंत्रिमंडल के व्यापक फेरबदल में, कई बदलाव देखने को मिले, जिनमें कुछ बड़े विभाग नए चेहरों को सौंपे गए, और कई युवा मंत्री शामिल किए गए, जिसमें देश के सभी प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नज़र आया.

बीजेपी लद्दाख़ नेताओं की चिंताओं को ज़्यादा महत्व नहीं दे रही है, और उसका कहना है कि प्रतिनिधित्व के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल एकमात्र प्लेटफॉर्म नहीं है, और पार्टी इस क्षेत्र का ख़याल रखती है.

‘BJP ने बौद्धों और लद्दाख़ की अनदेखी की’

2011 की जनगणना के अनुसार, बौद्ध लोग भारत की कुल आबादी का 0.7 प्रतिशत हैं, जिसमें 87 प्रतिशत नवबौद्ध (आम्बेडकरवादी जो धर्म बदलकर बौद्ध हो गए) हैं, और 13 प्रतिशत पारंपरिक बौद्ध हैं.

नवबौद्धों की सबसे बड़ी संख्या महाराष्ट्र में है, जहां उनमें से 77 प्रतिशत वास करते हैं. पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश वो अन्य सूबे हैं जहां एक बड़ी बौद्ध आबादी है.

पारंपरिक बौद्धों के प्रतिशत के मामले में शीर्ष पांच सूबे/यूटी हैं- लद्दाख़ (39.7 प्रतिशत), सिक्किम (27.4 प्रतिशत), अरुणाचल प्रदेश (11.8 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (10 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (3 प्रतिशत). लद्दाख़ में बौद्ध धर्म सबसे प्रमुख धर्म है.

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में, लद्दाख़ की एकमात्र लोकसभा सीट बीजेपी की झोली में गई थी.

पीएम मोदी को लिखे पत्र में बीजेपी नेता तासी ग्यालसन ने कहा: ‘जैसा कि आपकी जानकारी में होगा, क्रमिक सरकारों की दशकों की अनदेखी के बाद, हमारी पार्टी ने 2019 में लद्दाख़ को केंद्र-शासित क्षेत्र का दर्जा दिया है, जिसकी न सिर्फ लद्दाख़ के लोगों ने ख़ुशी मनाई, बल्कि देश भर में इसकी राजनीतिक गूंज सुनाई दी’.

इस गोपनीय पत्र में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, लिखा है कि ‘अब ऐसे समय, जब केंद्र-शासित क्षेत्र लद्दाख़ अभी अपने शुरूआती दौर में है, ये इलाक़ा बहुत सारे राजनीतिक खींचतान और दबाव का शिकार हैं, जिनमें जेके के विनाशकारी तत्व भी शामिल हैं…साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ये भी ज़रूरी है, कि हमारी सीमाओं के साथ चीन की हरकतों के मद्देनज़र, लोगों की भावनाओं और उनके हौसले को मज़बूत और एकजुट बनाए रखा जाए…नई कैबिनेट के गठन में लद्दाख़ को नुमाइंदगी न देना बहुत निराशाजनक रहा है, और ये ‘स्थानीय आकांक्षाओं’ के खिलाफ गया है’.

कौशोक थिकसे ने अनुरोध किया कि स्थानीय सांसद को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए.

इस बीच, लेह के मेयर ईशे नामग्याल ने अपने फेसबुक पेज पर लद्दाख़ के प्रति ‘भेदभाव भरे रवैये’ को लेकर बहुत सख़्त शब्दों में एक पोस्ट लिखा. ‘मोदी सरकार ने इस संवेदनशील सीमावर्त्ती इलाक़े को पिछली मोदी 01 सरकार में भी नज़रअंदाज़ किया था, जब हमारे दो बार के वरिष्ठ सांसद थुप्सतान छेवांग की अनदेखी की गई थी. जामयांग त्सेरिंग नामग्याल इस कैबिनेट फेरबदल में एक योग्य उम्मीदवार थे, चूंकि वो अकेले बौद्ध सांसद हैं, जिनका ताल्लुक़ अनुसूचित जनजाति से है’.

लद्दाख़ बीजेपी के एक नेता ने कहा, ‘जब भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया, और उसे दो केंद्र-शासित क्षेत्रों में बांट दिया तो लद्दाख़ ने, जो एक बौद्ध क्षेत्र है, उस फैसले पर ख़ुशी मनाई थी’. उन्होंने आगे कहा, ‘कश्मीर ज़्यादा फायदे में रहा है, जो कश्मीर के प्रभुत्व को लेकर हमारा आरोप भी रहा है…जितेंद्र सिंह कश्मीर से मंत्री हैं…लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में हमारी कोई नुमाइंदगी नहीं है…हमारी अनदेखी जारी है’.

सरकारी सूत्रों ने दावा किया कि कैबिनेट फेरबदल में ‘कश्मीर से मणिपुर’ तक का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है, और उन्होंने ये भी कहा कि मंत्रिपरिषद में दो बौद्ध शामिल हैं- बीजेपी से किरन रिजीजू, और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से रामदास अथावले.

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर, बीजेपी प्रवक्ता आरपी सिंह ने दिप्रिंट से कहा, कि यूटी का दर्जा देते समय पार्टी ने लद्दाख़ के लोगों की भावनाओं का ध्यान रखा था. उन्होंने आगे कहा, ‘प्रतिनिधित्व के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ही एकमात्र प्लेटफॉर्म नहीं है, हमारे सांसद वहीं से हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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