गुवाहाटी: उग्रवाद प्रभावित मणिपुर में जातीय तनाव बढ़ रहा है, क्योंकि कुछ समूहों का दावा है कि “म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश के गैर कानूनी तौर पर आए माइग्रेंट्स” को देश से निकाले जाने का आंदोलन यहां जोर पकड़ रहा है. राज्य के जातीय मेइती समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले छात्र संगठनों के नेताओं ने सोमवार को मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बीरेन सिंह के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि अप्रवासी “मणिपुर के लोगों” को हाशिए पर डाल रहे हैं.
इम्फाल घाटी में जातीय मैतेई या गैर-आदिवासियों और पहाड़ियों में रहने वाले कूकी आदिवासी समुदायों के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव के साथ-साथ म्यांमार में जुंटा द्वारा चलाए जा रहे प्रतिवाद अभियानों से भाग रहे शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से संकट बढ़ गया है. इनमें से कई शरणार्थी एक ही जातीय समूह कुकी-चिन-ज़ोमी-मिज़ो जनजाति के हैं, जो मणिपुर की पहाड़ियों में रहते हैं.
सोमवार को प्रदर्शन कर रहे छह छात्र संगठनों ने राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने और लागू करने और जनसंख्या आयोग के गठन की मांग की.
रविवार को जारी एक बयान में, इन निकायों ने आरोप लगाया कि पहाड़ियों में अप्राकृतिक रूप से जनसंख्या में वृद्धि देखी जा रही है, आरक्षित वन भूमि में नए गांव उभर रहे हैं, और अफीम के बागान नए क्षेत्रों में फैल गए हैं.
“भारतीय सीमाओं के दूसरी ओर से आने वाले बाहरी लोग, विशेष रूप से म्यांमार, जिनके चेहरे मणिपुर वालों से मिलते जुलते हैं, त्वचा का रंग और एक भाषा होने का पूरा फायदा उठा रहे हैं, क्योंकि वे अपने गांवों के निर्माण और डेवल्पमेंट कर रहे हैं, भूमि का अतिक्रमण कर रहे हैं जो पहाड़ियों पर राज्य की भूमि है,” बयान में दावा किया गया, “मणिपुर में रहने वाले लोगों के लिए कभी न खत्म होने वाला खतरा”बना हुआ है.
डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स अलायंस ऑफ मणिपुर (डीईएसएएम) के अध्यक्ष लीशांगथेम लाम्यांबा ने दिप्रिंट को बताया कि मणिपुर में गैरकानूनी तौर पर आए अप्रवासी यहां के डेमोग्राफिक संतुलन को बिगाड़ रहा है, 2011 की जनगणना में पहाड़ियों में आदिवासी समुदायों के बीच 39.54 प्रतिशत की एक दशक में वृद्धि देखी जा रही है जबकि अगर घाटी के बेहतर विकास की बात करें तो वो 15.72 प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिए.
लीशांगथेम ने आरोप लगाया,“बड़ी संख्या में गैर कानूनीतौर पर आए माइग्रेंट हैं जो हाल ही में म्यांमार के साथ झरझरा सीमा के माध्यम से मणिपुर में प्रवेश कर चुके हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में वन भूमि के अतिक्रमण के साथ नए गांव बस रहे हैं. ”
पिछले हफ्ते, पहाड़ी जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुकी छात्र संगठन और इंडीजीनियस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के प्रदर्शनकारियों का कांगपोकपी जिले में सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष हुआ, जब सरकार आरक्षित वन भूमि पर कथित अतिक्रमण को हटाने के लिए आगे बढ़ी.
मणिपुर में कांगपोकपी, चुराचंदपुर, तमेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति जिलों को “पहाड़ी जिलों” के रूप में अधिसूचित किया गया है. 2011 की जनगणना के अनुसार, मणिपुर में जातीय कुकी आबादी 28.5 लाख आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है.
पहाड़ी समुदायों के नेताओं ने आरोप लगाया है कि निष्कासन अभियान राज्य के कानूनी तौर पर रह रहे लोगों को टार्गेट कर रहा है. कूकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) के प्रवक्ता डॉ. सेलेन हाओकिप ने कहा कि “चुराचांदपुर जिले में के सोंगजैंग के नाम से एक गांव को 20 फरवरी को बेदखल कर दिया गया था. इस गांव में 1800 के दशक के पुराने रिकॉर्ड हैं. आरक्षित वनों या वन्यजीव अभ्यारण्यों में कोई अवैध बंदोबस्त नहीं है.
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युद्धविराम समझौते से हटने की घोषणा की
झड़पों के बाद, राज्य सरकार ने दो कुकी विद्रोही समूहों, कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) के साथ एक दशक से अधिक पुराने सस्पेंशन ऑफ़ ऑपरेशन (एसओओ) समझौते से अपनी वापसी की घोषणा की. सरकार ने तर्क दिया कि इन विद्रोही समूहों का नेतृत्व राज्य के बाहर से आए लोग कर रहे हैं.
शनिवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में, KNA ने कहा कि 10 मार्च को एक कैबिनेट बैठक में समझौते से हटने का निर्णय एसओओ के “एसेंस” का खंडन करता है, जिसने “मणिपुर की पहाड़ियों में भारी शांति लाभांश की शुरुआत की थी.”
इस बीच, सीएम बीरेन सिंह ने एक ट्वीट में कहा कि केएनए और जेडआरए पहाड़ियों में “आंदोलन को कथित रूप से प्रभावित कर रहे थे.”
Chaired a meeting with the Council of Ministers along with senior Police officials & deliberated on various issues concerning the protection of reserved forest, which are guarded and announced under the jurisdiction of the Central Government. pic.twitter.com/RPMlcn3Smx
— N.Biren Singh (@NBirenSingh) March 10, 2023
राज्य सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति में यह भी सुझाव दिया गया है कि बेदखली अभियान का उद्देश्य क्षेत्र में बढ़ती अफीम की खेती को खत्म करना था.
कुकी विद्रोही समूह जो छठी अनुसूची के तहत मणिपुर के भीतर अधिक सेल्फ डिटरमिनेशन की मांग कर रहे हैं, ने अगस्त 2008 में केंद्र और राज्य सरकार के साथ ऑपरेशन के निलंबन समझौते पर हस्ताक्षर किए.
कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) के तहत 25 कुकी समूहों के कैडरों को तब से 13 नामित शिविरों में रखा गया है, सरकार समय-समय पर केएनओ और यूपीएफ दोनों के साथ त्रिपक्षीय एसओओ समझौते का विस्तार करती है. इस समझौते को पिछले महीने एक साल के लिए बढ़ाया गया था. वर्तमान में, केएनओ में 17 समूह हैं और यूपीएफ में आठ हैं.
केएनओ के प्रवक्ता हाओकिप ने आरोपों से इनकार किया कि इसका नेतृत्व राज्य के बाहर से था.
उन्होंने कहा, “केएनओ अध्यक्ष पी.एस. हाओकिप का जन्म नागालैंड के फेक जिले के अखन गांव में हुआ था.”
हाओकिप ने बताया, “जबकि ZRA के अध्यक्ष थंगलियानपौ गुइते का जन्म मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के मुआलमुआम गांव में हुआ था. वह चुरचंदपुर लौटने के लिए सैन्य जुंटा से बच गया.”
केएनओ ने कहा कि थांगलियानपौ पूर्व में नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी, म्यांमार से सांसद थे, लेकिन अब उन्होंने भारतीय नागरिकता हासिल कर ली है.
हाओकिप ने कहा, “इस सरकार को लगता है कि केएनओ और यूपीएफ अफीम की खेती और नशीली दवाओं के मुद्दों में शामिल हैं, जो सच नहीं है.”
उन्होंने कहा, “केएनओ ने 2016 से पिछले साल के अंत तक उन बागानों का उन्मूलन शुरू कर दिया था – सभी फोटोग्राफिक साक्ष्य और वीडियो सरकार को भेजे गए थे. इसके बावजूद, कुछ समूह हो सकते हैं जो समझौते का हिस्सा नहीं हो और जो खेती में लगे हुए हों.”
हाओकिप के अनुसार, राज्य सरकार ने अपना अभियान कुकी क्षेत्रों में केंद्रित किया है, लेकिन अन्य हिस्सों में भी अफीम के बागान हैं.
हाओकिप कथित, जनसांख्यिकीय निवास की ओर इशारा करते हुए कहा, “जब भूमि के मुद्दों की बात आती है, तो कुकी सबसे पहले खामियाजा भुगतने के लिए कतार में हैं, क्योंकि मेइती इंफाल घाटी के केंद्र में स्थित हैं, जो सत्ता की सीट है, जबकि नागा दूर-दराज की पहाड़ियों में रहते हैं.”
कुकी विद्रोह 1991 में शुरू हुआ, जब स्थानीय समुदायों ने नगालिम-इसहाक मुविया (NSCN-IM) के जातीय-नागा नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल द्वारा किए गए नरसंहार के मद्देनजर खुद को सशस्त्र कर लिया. माना जाता है कि 1993 में टेंग्नौपाल में NSCN-IM द्वारा 115 कुकी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार दिया गया था. हत्याओं के कारण नागालैंड से मणिपुर की पहाड़ी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कुकी शरणार्थी आए.
‘बहुसंख्यक शासन’
विवाद के बीच, स्वदेशी जनजातीय नेताओं के फोरम (ITLF) ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है जिसमें कहा गया है कि मणिपुर सरकार ने “चुपके से, उचित अधिसूचना के बिना, चुराचंदपुर-खौपुम अनुसूचित पहाड़ी क्षेत्र को संरक्षित वन घोषित कर दिया है, जिससे क्षेत्र के लगभग सौ गांवों में रहने वाले हजारों आदिवासियों को प्रभावित कर रहा है.”
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371C – मणिपुर के संबंध में एक विशेष प्रावधान है जिसके तहत – राज्य विधान सभा में पहाड़ी क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों वाली एक समिति के गठन और कार्यों का प्रावधान करता है.
ITLF के अध्यक्ष पगिन हाओकिप ने दिप्रिंट को बताया, “राज्य सरकार हमेशा आदिवासी स्वायत्तता के खिलाफ रही है.
उन्होंने कहा ,”371C के भीतर एक संभावित समाधान के साथ असहमति के परिणामस्वरूप दक्षिणी मणिपुर स्वायत्त प्रादेशिक परिषद (SMATC) की अलग मांग हुई है, और यह आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि कट्टरपंथी समूह भविष्य में अलग राज्य या UT की मांग करते हैं.”
कुकियों का यह भी मानना है कि मैतेई बहुल विधान सभा में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. 60 सदस्यीय सदन में, 40 सीटें इम्फाल घाटी के मैतेई बहुल क्षेत्रों के लिए आरक्षित हैं, जबकि केवल 20 सीटें कुकियों और नागाओं के प्रभुत्व वाली पहाड़ियों के लिए आरक्षित हैं, जो मणिपुर में कुल आबादी का 45 प्रतिशत हैं.
डॉ. सेलेन हाओकिप ने कहा, “आपके पास जो भी तंत्र है, छठी अनुसूची या 371 सी – अपने वर्तमान स्वरूप में, वे राज्य विधानसभा में प्रतिनिधित्व में असंतुलन को दूर किए जाने तक प्रभावी नहीं होंगे.”
उन्होंने कहा, “छठी अनुसूची आदिवासी लोगों के लिए बनाई गई थी, चाहे वे पहाड़ी हों या मैदानी. असम में बोडो या मैदानी जनजातियों को वह दर्जा दिया गया है. लेकिन हमारे मामले में, राज्य में बहुसंख्यकवादी शासन द्वारा हमारी भूमि, जंगल आदि के लिए किसी भी तरह के संवैधानिक सुरक्षा उपायों के खिलाफ बड़े पैमाने पर बचाव किया गया है.
‘जातीयता का मुद्दा’
कुकी नेताओं का यह भी कहना है कि म्यांमार से “गैर कानूनी तौर पर माइग्रेशन” के आसपास राज्य सरकार का प्रवचन जातीयता का मुद्दा है.
एस हाओकिप ने कहा, “यदि म्यांमार से मणिपुर आने वाले लोग अलग-अलग जातीय समूह के थे, तो मुझे नहीं लगता कि उनके साथ समान व्यवहार किया जाएगा. वे इस समय म्यांमार में मौजूद मानवीय संकट के कारण यहां हैं.”
ITLF द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि स्वतंत्रता-के पहले से ही मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को उनकी अपनी भूमि में “विदेशी या म्यांमार” कहा जा रहा है, जो पूरी तरह से “भेदभावपूर्ण, अपमानजनक और अक्षम्य” है.
ज्ञापन में कहा गया है, “आदिवासियों को विदेशी या म्यांमार के रूप में लेबल करना भी असंवैधानिक है क्योंकि इन जनजातियों को मान्यता दी गई थी और भारत के संविधान में आदिवासियों की अनुसूची सूची में शामिल किया गया था.”
(संपादनः आशा शाह)
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