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Thursday, 21 November, 2024
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उत्तर भारतीयों की योग्यता पर सवाल उठाने वाले मंत्री संतोष गंगवार ने खुद कितने रोजगार पैदा किए

संतोष गंगवार बरेली से 8 बार सांसद रह चुके हैं बावजूद इसके बरेली में रोजगार का हाल-बेहाल है, कई फैक्ट्रियां बंद हो गईं हैं.

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लखनऊ/बरेली : बरेली के सांसद और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार नौकरियों पर दिए गए अपने बयान के कारण काफी चर्चा में हैं. हाल ही में उन्होंने कहा कि नौकरियां तो हैं लेकिन उत्तर भारतीयों में योग्यता की कमी है. हालांकि, इस बयान पर उन्होंने सफाई भी दी. लेकिन, वह तब तक सोशल मीडिया पर ट्रोल हो चुके थे. उनके इस बयान से उनके खुद के लोकसभा क्षेत्र बरेली के युवा भी आहत हैं. उनका कहना है कि आठ बार से क्षेत्र के सांसद बनने के बावजूद भी संतोष गंगवार ने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया, जिससे युवाओं के लिए बरेली में रोजगार के अवसर पैदा हुए हों. नौकरी की तलाश में अभी भी अधिकतर युवा पलायन ही करते हैं. उनकी काबिलियत पर सवाल उठाकर ‘मंत्री जी’ ने सबको आहत कर दिया है.

‘काबिलियत है लेकिन नौकरी तो बताए मंत्री जी’

बिहारीपुर इलाके में रहने वाले इंजीनियरिंग ग्रेजुएट रविंदर सिंह का कहना है, ‘इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बावजूद बरेली में कोई जाॅब के अवसर पैदा नहीं हुए हैं. न तो कोई कंपनी यहां अपना सेटअप लगाने में इच्छुक है और न ही सरकार की ओर से ऐसा कुछ प्रयास किया गया. जब पिछली बार मोदी सरकार में संतोष गंगवार मंत्री बने थे, तो एक नई उम्मीद जगी थी कि बरेली में उद्योग लगेंगे, फैक्ट्रियां लगेंगी. लेकिन यहां फैक्ट्रियां लगना तो दूर जो थीं वो भी पिछले कुछ सालों में बंद हो गईं.’
सुभाष नगर के रहने वाले आदित्य रस्तोगी का कहना है, ‘बरेली के युवाओं में योग्यता की कमी नहीं है. लेकिन यहां नौकरियां ही नहीं हैं. इसी कारण बाहर का रुख करना पड़ता है.’ आदित्य के मुताबिक, संतोष जी बरेली से लगातार जीतते आ रहे हैं. उन्हें यहां के युवाओं के लिए कुछ करना चाहिए.

फूड पार्क महज ‘ड्रीम’ प्रोजेक्ट बनकर रह गया

ऐसा कहा जाता है कि सांसद संतोष गंगवार की कोशिश से बरेली में फूड पार्क खुलना तय हुआ, लेकिन ये प्रोजेक्ट छह साल में भी पूरा नहीं हो पाया. बहेड़ी के मुड़िया मुकर्रमपुर में छह साल से मेगा फूड पार्क विकसित करने की कवायद चल रही है. प्रशासन ने सीलिंग की 250 एकड़ जमीन यूपीएसआईडीसी को मेगा फूड पार्क के लिए दी थी. 2017 में सीएम योगी के दौरे के बाद से परियोजना को रफ्तार देने के लिए सरकारी मशीनरी ने खूब मीटिंग की. विदेशी के साथ स्थानीय कंपनियों को भी मेगा फूड पार्क में लाने की घोषणा की गई. लेकिन, कुछ महीने बाद ही वादों की हवा निकल गई. हालांकि, यूपीएसआईडीसी ने जरूर सड़क और नालियां बनाने का काम शुरू किया, बावजूद इसके अभी तक खाद्य प्रसंस्करण केंद्र की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है.


संजय नगर निवासी व्यापारी रोहित कुमार की मानें तो फूड पार्क शहर से काफी दूर बना है. इसे जिस तरह से ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा था ये तो महज ‘ड्रीम’ बनकर रह गया है. युवाओं और व्यापारियों को काफी उम्मीद थी जो कि अब खत्म हो रही है.

संतोष गंगवार के करीबियों की मानें तो बरेली में जल्द ही टेक्सटाइल पार्क की शुरुआत होगी. कुछ कारणों से ये प्रोजेक्ट लटका हुआ था. लेकिन उनके प्रयास से इसके जल्दी शुरू होने की उम्मीद है जिससे हजारों युवाओं को रोजगार मिलने की उम्मीद है. स्थानीय अखबारों की मानें तो ये 124 करोड़ का प्रोजेक्ट है. ये मीरगंज के गांव रहपुरा जागीर में शुरू किया जाएगा. इस गांव को पिछली बार सांसद बनने के बाद संतोष गंगवार ने गोद लिया था.

फैक्ट्रियां क्यों हो गईं बंद

बरेली के लोग बताते हैं कि एक दौर में यह जिला फैक्ट्रियों के लिए जाना जाता था. अब बरेली की पांच बड़ी फैक्ट्रियां रबड़ फैक्ट्री, नेकपुर चीनी मिल, आईटीआर, विमको, जबकि कैम्फर फैक्ट्री के हालात भी कुछ ज्यादा अच्छे नहीं हैं. इन बड़ी फैक्ट्रियों के अलावा तमाम छोटी ओद्यौगिक इकाइयां भी बंद हो चुकी हैं. जिसके कारण यहां के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे शहरों में पलायन करना पड़ता है.

करीब 19 वर्ष पहले 1999 में रबड़ फैक्ट्री के घाटे में जाने के बाद यह फैक्ट्री बंद हो गई थी. फैक्ट्री बंद होने पर तमाम कर्मी सड़क पर आ गए, उनके बकाया अभी भी लंबित हैं. केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने किसी तरह चरणबद्ध तरीके से ईपीएफ भुगतान शुरू कराया. लेकिन अभी भी कुछ कर्मी बचे हैं. 19 साल से बंद चल रही रबर फैक्ट्री की जमीन के मालिकाना हक और कर्मचारियों के मुआवजे को लेकर लगातार विरोध होता रहता है.

फैक्ट्री में काम कर चुके सुभाष बताते हैं, ‘प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही एक बार फिर फैक्ट्री की जमीन पर औद्योगिक गतिविधियाें की सुगबुगाहट शुरू हुई लेकिन कुछ नहीं हुआ. सांसद संतोष गंगवार से भी कर्मचारियों ने मुलाकात कर दोबारा शुरू कराने की बात कही लेकिन, केंद्र व प्रदेश में सरकार होने के बावजूद कुछ नहीं हुआ. इसी तरह बरेली के सीबी गंज इलाके में स्थित विमको फैक्ट्री का हाल हुआ. 2015  में वहां के कर्मचारियों ने फैक्ट्री बंद करने के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन भी किया था लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी.

8 बार के सांसद हैं संतोष
संतोष गंगवार बरेली से 1989 से चुनाव जीतते आ रहे हैं. हालांकि 15वीं (2009-2014) लोकसभा में उन्हें कांग्रेस के प्रवीण सिंह एरन के हाथों हार झेलनी पड़ी थी. लेकिन, 2014 में एक बार फिर 7वीं बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. बरेली लोकसभा सीट पर अब तक 17  बार चुनाव हुए हैं और इसमें 8 बार बीजेपी ने बाजी मारी है. दिलचस्प यह भी है कि आठों बार संतोष गंगवार ही सांसद बने हैं.

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वाजपेयी-मोदी दोनों सरकारों में बने मंत्री

13वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार में वह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री के साथ-साथ संसदीय कार्य राज्य मंत्री का पदभार भी संभाल चुके हैं. इसके अलावा वह विज्ञान एवं तकनीकी राज्यमंत्री भी रह चुके हैं. 2014 में लोकसभा चुनाव में संतोष गंगवार बरेली से सांसद चुने गए थे. मोदी सरकार में स्वतंत्र प्रभार के मंत्री बने थे. संतोष गंगवार को उस समय कपड़ा मंत्रालय सौंपा गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले हुए मंत्रिमंडल विस्तार में संतोष गंगवार को वित्त मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया था. एक बार फिर हुए मंत्रिमण्डल विस्तार में उनका कद बढ़ा कर फिर राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया. 2019 में दोबारा बनी मोदी सरकार में उन्हें केंद्रीय श्रम और रोजगार मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया. बरेली के पत्रकारों का कहना है कि संतोष बीजेपी में वाजपेयी और मोदी दोनों के पसंदीदा लोगों में माने जाते हैं.

लगातार जीतने के हैं कई कारण

नाम न छापने की शर्त पर संतोष गंगवार के ही एक करीबी बताते हैं कि यूपी में बरेली बीजेपी का मजबूत गढ़ है. यही कारण है कि संतोष गंगवार लगातार जीतते रहे हैं. वह पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी व मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी दोनों की ‘गुड बुक’ में शामिल रहे हैं. यही उनका ‘कौशल’ है. संतोष मीडिया से बातचीत में आमतौर पर विनम्र रहते हैं. जिले में उनकी छवि भी साफ है. लेकिन राजनिति के वह बिलकुल भी ‘कच्चे खिलाड़ी’ नहीं है. यही कारण है कि बरेली में पिछले 30 साल में किसी भी बीजेपी नेता का कद संतोष गंगवार जितना नहीं बन पाया. यही कारण है कि वह बार-बार जीत जाते हैं. इसके अलावा संतोष गंगवार जाति से कुर्मी हैं और बरेली में 3.5 लाख से अधिक कुर्मी मतदाता हैं. ये फैक्टर भी उनकी जीत में अहम भूमिका निभाता है.

छात्र राजनीति से मंत्री तक का सफर

70 वर्षीय संतोष ने अपनी शिक्षा रूहेलखंड विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालय से पूरी की थी. पढ़ाई के दौरान वह छात्र राजनीति से जुड़े रहे. इंदिरा गांधी की ओर से लगाई गयी इमरजेंसी के दौरान उनको जेल के चक्कर भी काटने पड़े. गंगवार ने अपना पहला चुनाव साल 1981 मे बरेली से भाजपा के टिकट पर लड़ा जिसमें उनकी हार हुई. 1984 मे हुए आम चुनावों मे वो दोबारा हारे. उसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के बरेली से 1989 में अपना पहला चुनाव जीता.

 

साल 1996 में बरेली में वह शहरी कोऑपरेटिव बैंक की स्थापना को लेकर पूरी तरह सक्रिय थे और 1996 की शुरुआत में वह इस बैंक के चेयरपर्सन के रूप में कार्यरत थे. वह बीजेपी की राजनीति में नब्बे के दशक में अहम हो गए. आमतौर पर विवादों से दूर रहने वाले संतोष गंगवार अब अपने बयान को लेकर उलझते नजर आ रहे हैं क्योंकि रोजगार के नए मौके की आस लगाए बैठे बरेली के हजारों युवा भी हताश हैं.

इस पूरे मामले पर दिप्रिंट ने सांसद संतोष गंगवार से कई बार इस मुद्दे पर बात करने की कोशिश की, यहां तक कि उनके ऑफिस से खबर से जुड़े सवाल को ई-मेल करने को कहा गया, जिसका जवाब अभी नहीं आया है. जवाब आते ही खबर को अपडेट की जाएगी.

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