कोलकाता: वास्तविक और रील लाइफ के पुलिस अधिकारी जिन्होंने फिल्में बनाई, नाटक लिखे वहीं अन्य अधिकारी जिनके सितारे 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान सीतलकुची गोलीबारी कांड के गर्दिश में जाने लगे, दोनों पूर्व आईपीएस को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से मैदान में उतारा है.
जहां देबाशीष धर ने भाजपा द्वारा उन्हें बीरभूम का उम्मीदवार घोषित करने से पहले व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए सेवा से इस्तीफा दे दिया था, वहीं प्रसून बनर्जी ने टीएमसी द्वारा उन्हें मालदा उत्तर का उम्मीदवार घोषित करने से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली.
पश्चिम बंगाल में सेवारत पुलिस अधिकारियों के रूप में उनके अनुभव अलग-अलग हैं — जैसा कि उन्होंने जिन पार्टियों की सेवा करना चुना है. बनर्जी के विपरीत धर का कहना है कि वे काम से “परेशान” थे.
दिप्रिंट से बात करते हुए रायगंज रेंज के महानिरीक्षक पद से सेवानिवृत्त बनर्जी ने कहा कि राजनीति उन्हें जनता तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचने में मदद करेगी.
उन्होंने कहा, “जब तक मैंने वर्दी पहनी थी, मैं तटस्थ था. रूल बुक हमें प्रतिबंधित करती है. बोलने या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है, एक नेता रहते हुए कोई भी व्यक्ति लोगों तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंच सकता है.”
जब बनर्जी ने सेवानिवृत्त होने का फैसला किया तो उनकी सेवा के साढ़े छह साल बाकी थे. 2006-बैच के आईपीएस अधिकारी, उन्होंने पहले दक्षिण दिनाजपुर और मालदा में पुलिस अधीक्षक (एसपी) और बालुरघाट और मालदा में पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) और अपराध जांच विभाग (सीआईडी) में भी काम किया है.
इसके अलावा, बनर्जी ने एक लोकप्रिय बंगाली टेलीविजन शो, देशेर माटी में स्क्रीन पर पुलिस अधिकारी का किरदार भी निभाया है. उन्होंने कई डॉक्युमेंट्री और लघु फिल्में और लिखित नाटक भी बनाए हैं और इस साल के अंत में एक डॉक्युमेंट्री फिल्म की शूटिंग के लिए कश्मीर और मणिपुर का दौरा करने की योजना बना रहे हैं.
बनर्जी ने कहा, “हर साल 31 दिसंबर को मैं लोगों को अपने द्वारा किए गए काम का रिपोर्ट कार्ड दूंगा. यह जानना उनका अधिकार है. चूंकि, मैंने एक पुलिस अधिकारी रहते हुए इस जिले में सेवा की है, मैंने इस क्षेत्र को अपनी आंखों से देखा है, जिससे मुझे लोगों तक अधिक कुशलता से पहुंचने में मदद मिलेगी.”
गृह विभाग की प्रभारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब बनर्जी की राजनीतिक बॉस होंगी.
बनर्जी जो मालदा उत्तर में भाजपा के मौजूदा सांसद खगेन मुर्मू से मुकाबला करेंगे, ने कहा, “ममता बनर्जी ने मुझे अधिकारी रहते हुए मेरे द्वारा किए गए अच्छे काम की याद दिलाई और कड़ी मेहनत जारी रखने के लिए कहा. अभिषेक बनर्जी ने भी अपना समर्थन दिया.”
टीएमसी उम्मीदवार के रूप में बनर्जी के नाम की घोषणा के तुरंत बाद मीडिया से बात करते हुए राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता, भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा, “वे वर्दी में टीएमसी के लिए काम करते थे और अब वह हाथों में पार्टी का झंडा लेकर काम करेंगे.”
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‘अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव’
एक अन्य आईपीएस अधिकारी — 2010 बैच से — धर ने कहा कि पिछले तीन साल ने उन्हें “परेशान” कर दिया था, इसलिए उन्होंने पिछले महीने सेवा से इस्तीफा दे दिया.
धर को 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान भारत के चुनाव आयोग द्वारा कूच बिहार के पुलिस अधीक्षक (एसपी) तैनात किया गया था, जब सीतलकुची में एक मतदान केंद्र के पास केंद्रीय बलों द्वारा की गई गोलीबारी में चार लोग मारे गए थे.
इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने धर को निलंबित कर दिया और अनिवार्य प्रतीक्षा पर भेज दिया.
धर, जिन्होंने सीबीआई में भी काम किया, ने कहा, “राज्य ने मुझसे सलाह ली थी कि सीबीआई आंतरिक रूप से कैसे काम करती है, लेकिन अचानक, 2016 में, मंत्री सुजीत बोस ने मेरे बारे में सीएम से शिकायत की जब मैं बिधाननगर में एडीसीपी (अतिरिक्त डिप्टी पुलिस आयुक्त) था और उसके बाद चीज़ें खराब हो गईं. पश्चिम बंगाल में अधिकारियों पर हमेशा राजनीतिक दबाव रहता है.
पूर्व आईपीएस अधिकारी टीएमसी के मौजूदा सांसद शताब्दी रॉय के खिलाफ बीरभूम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे, ऐसे समय में जब पार्टी के बीरभूम के मजबूत नेता अनुब्रत मंडल कथित मवेशी तस्करी की जांच के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद हैं.
धर ने कहा, “मुख्यमंत्री के पास सलाहकारों का एक समूह है, इनमें नौकरशाहों से लेकर पत्रकार तक शामिल हैं. वे जो कहते हैं उन पर भरोसा किया जाता है. सीतलकुची घटना के बाद से मुझे कभी उनसे बात करने का मौका नहीं मिला. मैं अब कोई समझौता नहीं कर सकता, मैं हमेशा अपनी वर्दी के साथ न्याय करना चाहता था.” उन्होंने कहा कि अगर उन्हें लोकसभा में जन प्रतिनिधि चुना जाता है तो उन्होंने प्रशासनिक सुधार लाने की योजना बनाई है.
लेकिन पूर्व आईपीएस अधिकारी हुमायूं कबीर, जो टीएमसी के टिकट पर 2021 विधानसभा चुनाव जीते और डेबरा के लिए विधायक चुने गए, ने कहा कि सेवा में रहते हुए उन्हें कभी भी “राजनीतिक दबाव” का सामना नहीं करना पड़ा.
उन्होंने कहा, “मैं अब एक विधायक हूं, मैं अपने ओसी (प्रभारी अधिकारी) से बात नहीं करता – शायद दो महीने में एक बार या अभिवादन के आदान-प्रदान के लिए. एसपी और ओसी अपनी ड्यूटी निभाते हैं, मैं उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करता.”
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पुलिस अधिकारियों के राजनीति में आने का पश्चिम बंगाल में अब तक कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं पड़ा है.
राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सेवारत लोक सेवक, जिनसे निष्पक्ष रूप से लोगों की सेवा करने की उम्मीद की जाती है, वे अपनी सेवा छोड़कर मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो रहे हैं. एक आईपीएस को प्रताड़ित किया गया, इसलिए उन्होंने राजनीति में शामिल होने का सहारा लिया और दूसरे को सत्तारूढ़ दल का पक्ष लेने के लिए टिकट दिया गया है.”
चक्रवर्ती ने कहा कि इस तरह के कदमों से जनता के मन में प्रशासन की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते हैं, जिससे लोगों के लिए काम करने की अपेक्षा की जाती है.
चक्रवर्ती ने कहा, “किसी भी नौकरशाह ने, जो राजनीति छोड़ कर शामिल नहीं हुआ है, अतीत में बंगाल में प्रभाव नहीं डाला है. राजनीति किंगमेकर की भूमिका निभाने के विशेषाधिकारों और सुविधाओं का आनंद लेते रहने का एक आसान तरीका है. एक लोक सेवक रहते हुए व्यक्ति को लोगों तक पहुंचने और उनकी सेवा करने के पर्याप्त और अधिक अवसर मिलते हैं. एक नेता के रूप में, आपको अधिक शक्ति मिलती है.”
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