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Wednesday, 20 November, 2024
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कर्नाटक में CM बोम्मई के अपने मंत्री ही बने सिरदर्द, बेंगलुरू का प्रभारी बनने के लिए खुलेआम जारी है कलह

बोम्मई कैबिनेट के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने बेंगलुरू की लड़ाई को काफी सार्वजनिक बना दिया है, वहीं कुछ खामोशी के साथ पद के लिए पैरवी कर रहे हैं.

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बेंगलुरू: कर्नाटक मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने सोमवार को बेंगलुरू में लगातार बारिश से प्रभावित हुए क्षेत्रों का दावा किया, जिनके साथ शहर के कई अधिकारी और विधायक मौजूद थे. बोम्मई की सरकार में बेंगलुरू से सात मंत्री हैं, लेकिन सीएम ने निजी तौर पर बारिश-प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने का फैसला किया, क्योंकि बेंगलुरू विकास का विभाग उन्हीं के पास है, जिससे वो वस्तुत: सूबे के राजधानी शहर के प्रभारी मंत्री बन जाते हैं.

जुलाई में जबसे उन्होंने राज्य का ज़िम्मा संभाला, तब से बोम्मई ने एहतियात के साथ बेंगलुरू विकास विभाग अपने पास रखा हुआ है, यहां तक कि उन्होंने किसी भी ज़िले के लिए, पूर्णकालिक प्रभारी मंत्री नियुक्त नहीं किए हैं. मंत्रियों को केवल कोविड रोकथाम और राहत कार्यों की निगरानी के लिए ज़िलों का प्रभार सौंपा गया था.

ऐसा इसलिए है कि बोम्मई को बेंगलुरू का प्रभारी बनाए जाने को लेकर अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के बीच अंदरूनी कलह से जूझना पड़ रहा है, ठीक वैसा ही जैसा उनके पूर्ववर्त्ती बीएस येदिदुरप्पा के साथ था.

बेंगलुरू के लिए इतनी लड़ाई है कि मंत्री खुलेआम एक दूसरे को अपशब्द बोल रहे हैं, जबकि शहर के बीजेपी विधायक इस मामले पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का रुख कर रहे हैं. बीजेपी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सत्ता संघर्ष पर चिंता जताने के लिए वीकएंड पर विधायकों ने राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष से मुलाकात की.


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सार्वजनिक लड़ाई

जहां बोम्मई कैबिनेट के दो वरिष्ठ मंत्रियों- वी सोमन्ना और आर अशोका ने बेंगलुरू की लड़ाई को काफी सार्वजनिक बना दिया है, वहीं डॉ सीएन अश्वथ नारायण जैसे कुछ अन्य मंत्री भी खामोशी के साथ पद के लिए पैरवी कर रहे हैं.

राजस्व मंत्री आर अशोका को बेंगलुरू शहरी क्षेत्र में कोविड रोकथाम की निगरानी का प्रभार दिया गया था, जिससे कैबिनेट के दूसरे सदस्यों में निराशा फैल गई थी लेकिन कोविड मामलों में कमी के साथ ही, बेंगलुरू विभाग के लिए उठने वाली मांग तेज़ होती जा रही है.

आवास मंत्री सोमन्ना जिनके पास येदियुरप्पा सरकार में बेंगलुरू का विकास था, 10 अक्टूबर को अशोका पर भड़क उठे. उन्होंने कहा, ‘अशोका किसी तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जैसे वो कोई सम्राट अशोक हों. मैं उनकी बुलाई सभी बैठकों में जाता हूं, लेकिन जो बैठकें मैं बुलाता हूं वो उनमें कभी नहीं आते. वो समझते हैं कि ये उनकी हैसियत से नीचे हैं’.

इस बीच पूर्व उपमुख्यमंत्री अशोका ने ज़ोर देकर कहा कि वो बोम्मई के निर्देशों का पालन करेंगे.

एक और मंत्री एसटी सोमशेखर ने, जो बेंगलुरू प्रभारी बनने की आकांक्षा रखते हैं, अपनी बेबसी का इज़हार करते हुए कहा कि वो ‘बाहरी’ हैं और इसलिए इस विभाग को गंवा रहे हैं. 2019 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले सोमशेखर ने मीडिया से कहा, ‘मैं बाहर से आया हूं. ऐसा नहीं है कि मुझे बेंगलुरू विभाग मिल जाएगा. ये प्रभार अशोका को दिया जाना चाहिए क्योंकि वो निष्ठावान रहे हैं’.


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बड़ा पैसा- सियासी फायदा

ऐसा पहली बार नहीं है कि मंत्रिमंडल के सहयोगियों में बेंगलुरू की लड़ाई सुर्खियों में आई है. येदियुरप्पा ने भी अपने कार्यकाल के आखिरी दिन तक, ये विभाग अपने पास रखा था. सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार के अंतर्गत दो वरिष्ठ मंत्री- लामलिंगा रेड्डी और केजे जॉर्ज भी बेंगलुरू विकास विभाग को लेकर लड़े थे.

राजनीतिक विश्लेषक और अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड गवर्नेंस में फैकल्टी सदस्य, ए नारायणा ने दिप्रिंट से कहा, ‘दिलचस्पी वहां होती है जहां पैसा जाता है. बजट से सबसे अधिक पैसा बेंगलुरू की इनफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर खर्च होता है. सियासी फंडिंग भी मुख्य रूप से यहीं से आती है’.

उन्होंने आगे कहा कि वित्तीय पहलुओं के अलावा, बेंगलुरू विभाग की मांग के पीछे राजनीतिक कारण भी हैं. उन्होंने कहा, ‘बेंगलुरू में मध्यम वर्ग की निगाहों में आने के लिए, आपको कुछ न कुछ करते हुए दिखना चाहिए और अपनी छवि बनानी चाहिए. एसएम कृष्णा के मुख्यमंत्री रहने से पहले, बेंगलुरू प्रभारी की कोई मांग नहीं थी. आईटी बूम, इनफ्रास्ट्रक्चर और निवेश परियोजनाओं में उछाल के बाद ही ये एक प्रतिष्ठित विभाग बना’.

बेंगलुरू के अंदर बहुत पैसा है. 2021-2022  में राज्य के बजट में बेंगलुरू के लिए 7,795 करोड़ रुपए का प्रावधान था. 2020-21 में ये 8,772 करोड़ रुपए था. इसमें मेट्रो रेल और उप-नगरीय रेलवे जैसी परियोजनाओं की आंशिक फंडिंग के लिए, केंद्र सरकार की ओर से आवंटन शामिल नहीं है.

मिसाल के तौर पर, बीबीएमपी (बेंगलुरू नगर निगम) बजट को ही ले लीजिए- 2021-22 के लिए बजट ख़र्च 9,287.81 करोड़ रुपए था, जबकि पिछले दो वित्त वर्षों के लिए, ये क्रमश: 10,895.84 करोड़ और 10,687 करोड़ रुपए था.

इस साल हो सकते हैं BBMP चुनाव

बेंगलुरू प्रभारी विभाग की लड़ाई इस बात को देखते हुए और भी अहम हो जाती है कि एक साल से अधिक से बीबीएमपी में कोई निर्वाचित परिषद नहीं रहा है और ये चुनाव इस साल के अंत में कराए जाने की संभावना है.

चिकपेट से बीजेपी विधायक उदय गरुड़ाचर ने दिप्रिंट से कहा, ‘बेंगलुरू जैसे शहर के लिए कई बार आपात फैसले लेने होते हैं. चाहे वो सड़कों की मरम्मत हो, बारिश से नुक़सान हो या इनफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं हों. सभी में लगातार निगरानी की ज़रूरत होती है’.

गरुड़ाचर ने आगे कहा, ‘अच्छा है कि ये विभाग मुख्यमंत्री के पास है. चूंकि वो वित्त मंत्री भी हैं इसलिए शहर की ज़रूरतें जल्दी पूरी हो जाती हैं. लेकिन ज़्यादा अच्छा रहता अगर किसी समर्पित मंत्री को ये प्रभार दे दिया जाता’.

बोम्मनाहल्ली से बीजेपी विधायक सतीश रेड्डी ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि ये विभाग लंबे समय तक मुख्यमंत्री के पास रहे’. उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री बहुत तेज़ी से प्रतिक्रिया देते हैं.


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रेड्डी बीजेपी शहर विधायकों के उस समूह में शामिल हैं जो चाहता है कि बोम्मई विभाग को अपने पास बनाए रखें, बजाय अशोका के हवाले करने के, जिन्हें दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था.

एक बीजेपी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, कि शहर के अधिकांश विधायक अशोका से नाराज़ हैं और उन्होंने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के पास शिकायत दर्ज कराई है. बीजेपी विधायक और बेंगलुरू विकास प्राधिकरण अध्यक्ष एसआर विश्वनाथ ने अक्टूबर में ही अशोका के बारे में शिकायत दर्ज कराई थी कि वो, ‘बीडीए के मामलों में लगातार दख़लअंदाज़ी करते हैं, और हमें आज़ादी के साथ काम नहीं करने देते’.

पूर्व बेंगलुरू प्रभारी और कांग्रेस विधायक रामलिंगा रेड्डी ने कहा, शहर को एक समर्पित मंत्री की ज़रूरत है.’ रेड्डी का कहना था कि ‘राज्य की कुल आबादी का छठा हिस्सा बेंगलुरू में रहता है. शहर पर हर साल हज़ारों करोड़ रुपए ख़र्च होते हैं, लेकिन किसी मंत्री की अनुपस्थिति में ये निगरानी करने की कोई व्यवस्था नहीं रह जाती कि ये पैसा कहां जा रहा है.’

ए नारायणा ने आगे कहा, ‘चूंकि बेंगलुरू विभाग किसी और को न देने के मुख्यमंत्री के फैसले से भी परेशानी पैदा हो रही है. इसलिए बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व इस बात का फैसला कर सकता है कि किसे प्रभारी बनाया जाए और इस तरह इस सवाल को हमेशा के लिए शांत कर सकता है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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