बेंगलुरु: कर्नाटक में सभी राजनीतिक दल अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अभी से कमर कस रहे हैं लेकिन बीजेपी एक ऐसी ‘घटना’ की योजना बनाने के लिए एक कदम आगे बढ़ गई है जो सभी चुनावों के काउंटडाउन का एक बड़ा हिस्सा होती है. यह घटना है दलबदल.
केंद्रीय गृह मंत्री और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की अध्यक्षता में पिछले शुक्रवार को हुई बैठक के बाद, पार्टी की कर्नाटक इकाई इसके राज्य प्रमुख नलिन कुमार कतील के नेतृत्व में एक समिति का गठन करने के लिए तैयार हो गई है, जो अन्य दलों से बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं की समीक्षा करेगी.
कर्नाटक बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिवों में से एक सी.टी. रवि ने कहा, ‘बहुत सारे लोग बीजेपी में शामिल होने के इच्छा रखते हैं. मगर, हम सिर्फ उनका ही स्वागत करेंगे जो बीजेपी को ताकत दे सकते हैं और लोगों की भलाई के प्रति चिंतित हैं. प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में यह देखने के लिए विशेष टीम बनाई जाएगी कि किसे शामिल होने की इजाजत दी जा सकती है. जहां भी हमें किसी को शामिल करने की जरूरत नजर आएगी, हम उन्हें शामिल करेंगे.’
हालांकि, इस समिति के सदस्यों के अन्य नाम अभी तय नहीं किए गए हैं. वहीं बीजेपी का कैडर इस पैनल के उद्देश्य और इसकी क्षमता को लेकर बंटा हुआ है.
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‘इनसाइडर’ बनाम ‘आउटसाइडर’ का झगड़ा
बीजेपी में शामिल होने के उम्मीदवारों की समीक्षा करने की यह पहल 2019 से भाजपा की कर्नाटक इकाई में ‘इनसाइडर’ बनाम ‘आउटसाइडर’ पर चल रही तकरार के बीच की गई है. उस समय, 16 विधायक जेडी (एस)-कांग्रेस गठबंधन से निकलकर बीजेपी में शामिल हो गए थे जिससे बीजेपी को इस राज्य में सत्ता में आने में मदद मिली थी.
इस 16 में से 13 को अगले विधानसभा उपचुनाव के दौरान बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा और इसमें से 10 को तो बी.एस. येदियुरप्पा मंत्रिमंडल में जगह भी मिली. साल 2019 के दलबदलुओं में से दस बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में भी मंत्री बने हुए हैं लेकिन वो अकसर कैबिनेट सीट की मांग करते रहते हैं.
बीजेपी को उम्मीद है कि इसकी नई समिति वफादार कार्यकर्ताओं और नए लोगों के बीच की असहजता को कम करने में मदद करेगी.
कर्नाटक भाजपा के महासचिव एन. रवि कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोई भी किसी पार्टी से कुछ उम्मीद किए बिना उसमें शामिल नहीं होना चाहता. चाहे यह टिकट के बारे में हो, पद के लिए हो या फिर पार्टी में ओहदे के लिए हो, ऐसी सभी अपेक्षाओं पर समिति विचार करेगी. समिति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके शामिल होने के दौरान या उसके बाद भी कोई समस्या न हो.’
भाजपा नेताओं के अनुसार, यह समिति उन उम्मीदवारों की जीतने की क्षमता का आकलन करेगी जो पार्टी में शामिल होना चाहते हैं. साथ ही, वे पार्टी के विस्तृत योजना में कैसे फिट बैठते हैं.
पार्टी सिर्फ उन्हीं नेताओं को शामिल करने की उम्मीद करती है जो अपनी योग्यता के आधार पर चुनाव जीत सकते हैं, भाजपा के लिए नए निर्वाचन क्षेत्र में जीत के दरवाजे खोल सकते हैं या फिर पार्टी के वोट शेयर को बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं.
रवि कुमार ने कहा, ‘चुनावी साल में इस बात पर विचार करना जरूरी है कि हर नेता पार्टी के लिए क्या लेकर आता है. चाहे वह और अधिक जातिय समर्थन हो, चुनाव लड़ने के लिए वित्तीय क्षमता हो या फिर ऐसे नए भौगोलिक क्षेत्रों में समर्थन जुटाना हो जहां पार्टी को अपनी पकड़ मजबूत करने की जरूरत है … स्वाभाविक रूप से ये सभी मानदंड बन जाएंगे.’
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समीक्षा करें या न करें
बीजेपी को जहां इस समिति से काफी उम्मीदें हैं. वहीं, इसकी उपयोगिता को लेकर इसके कैडर की राय बंटी हुई है.
अपना नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ बीजेपी विधायक ने पूछा, ‘क्या ऐसी कोई समिति वास्तव में अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं की समीक्षा कर सकती है या उन्हें पार्टी में आने से मना कर सकती है? क्या बड़े नाम वाले नेता इस तरह की पड़ताल के लिए राजी भी होंगे?’
इस विधायक ने आगे कहा, ‘कई बड़े नाम वाले नेता सीधे बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के संपर्क में आते हैं. तब ऐसी समिति की क्या भूमिका होगी? यह कमोबेश उन लोगों के बीच जो पार्टी में शामिल होना चाहते हैं और केंद्रीय नेतृत्व के बीच एक कोर्डिनेशन सेल जैसा बना रहेगा.’
हालांकि, इस विधायक ने स्वीकार किया कि पार्टी की राज्य इकाई अन्य दलों से दलबदलुओं के शामिल होने की उम्मीद के बारे में सही है इस बारे में समझाते हुए उन्होंने कहा कि इस साल की शुरुआत में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे, उनमें से चार में बीजेपी की जीत ने इसे कई लोगों के लिए एक मनचाहा विकल्प बना दिया है.
लेकिन समिति की प्रभाविकता के बारे में इस विधायक का नजरिया गलत नहीं है.
रविवार को, जेडी (एस) के वरिष्ठ एमएलसी और कर्नाटक विधान परिषद के वर्तमान अध्यक्ष, बसवराज होराट्टी, ने ऐलान किया कि वह अगला विधान परिषद चुनाव भाजपा की ओर से लड़ेंगे.
होराट्टी ने दिप्रिंट को बताया, ‘बीजेपी नेता खुद मेरे पास आये और उन्होंने मुझसे उनकी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने को कहा. मैं शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से कई बार निर्वाचित हुआ हूं और वर्तमान रुझान बीजेपी के पक्ष में है. मेरे कई सारे मतदाता आज के समय के युवा हैं जो बीजेपी और मेरे समर्थन के बीच बंटे हुए हैं. चीजों को आसान बनाने के लिए, मैंने पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है’
ये वरिष्ठ नेता बीजेपी की समिति की किसी समीक्षा प्रक्रिया से नहीं गुजरेंगे.
बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह सीधे पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के साथ बातचीत कर रहे हैं, जिन्होंने अमित शाह को उनके नाम की सिफारिश की थी. उनके मामले में समीक्षा प्रक्रिया बेमानी होगी.’
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