नई दिल्ली: विपक्षी पार्टियों ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा को सर्वसम्मति से 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है.
कभी भाजपा के कद्दावर नेताओं में रहे 84 वर्षीय सिन्हा अब केंद्र की मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में से एक हैं.
फारूख अब्दुल्ला, शरद पवार और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी के मना करने के बाद सिन्हा पर विपक्षी पार्टियों ने दांव लगाया है जिसके पीछे सबसे बड़ा कारण राजनीतिक हलकों में उनकी ‘ईमानदार छवि’ रही है.
जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर कहा, ‘मैं मानता हूं कि राष्ट्रपति पद के लिए यशवंत सिन्हा अच्छे उम्मीदवार हैं. परिपक्व, जानकार, ईमानदार, स्वतंत्र और बुद्धिमान हैं. निश्चित रूप से वे रबर स्टैंप नहीं होंगे. सभी सांसदों और विधायकों को, चाहे वे किसी भी पार्टी से जुड़े हों, उनका समर्थन करना चाहिए. खुशी है कि वह चुनाव लड़ने के लिए सहमत हुए.’
I think @YashwantSinha will be a fine President. Mature, intelligent, knowledgeable, honest, independent & wise. Will certainly not be a rubber stamp. All MPs & MLAs, irrespective of party affiliation should support him. Glad that he agreed to contest.
All the best Yaswant ji ??— Prashant Bhushan (@pbhushan1) June 21, 2022
मंगलवार को ही विपक्षी पार्टियों की संयुक्त बैठक से पहले यशवंत सिन्हा ने टीएमसी के सभी पदों से इस्तीफा दिया.
बैठक के बाद विपक्ष ने संयुक्त बयान में कहा, ‘अपने लंबे और सार्वजनिक जिंदगी में सिन्हा ने बतौर प्रशासक, एक बेहतर सांसद और वित्त और विदेश मंत्री के तौर पर काम किया है. भारतीय गणतंत्र के लोकतांत्रिक चरित्र और संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने के लिए वे योग्य हैं.’
सिन्हा को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनाने के बाद टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘सिन्हा सम्मानित और कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति हैं, जो निश्चित रूप से हमारे महान राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले मूल्यों को बनाए रखेंगे.’
I would like to congratulate Shri @YashwantSinha on becoming the consensus candidate, supported by all progressive opposition parties, for the upcoming Presidential Election.
A man of great honour and acumen, who would surely uphold the values that represent our great nation!
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) June 21, 2022
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आईएएस की नौकरी छोड़ राजनीति में आए
यशवंत सिन्हा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1960 बैच के अधिकारी रहे हैं और उन्होंने बिहार समेत केंद्र सरकार में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं.
1971 से 1973 के बीच जर्मनी स्थित भारतीय दूतावास में भी उन्होंने काम किया और 1973 में फ्रैंकफर्ट में काउंसल जनरल के तौर पर भी उनकी नियुक्त हुई थी. वहां से लौटने के बाद उन्होंने बिहार सरकार के साथ काम किया. और उसके बाद भारत सरकार के सर्फेस ट्रांसपोर्ट मंत्रालय में उन्होंने संयुक्त-सचिव के तौर पर भी काम किया.
आईएएस अधिकारी बनने से पहले उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान से पढ़ाई की थी वहीं 1958 से 1960 के बीच वहां पढ़ाया भी था.
लेकिन कद्दावर समाजवादी जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर सिन्हा ने 1984 में अपनी नौकरी छोड़ दी और वही साल उनके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.
1984 में उन्होंने जनता पार्टी ज्वाइन की और उन्हें 1986 में पार्टी का महासचिव बनाया गया. वहीं दो साल बाद ही यानी कि 1988 में यशवंत सिन्हा पहली बार संसद के उच्च सदन राज्य सभा के लिए चुने गए.
1989 में जब जनता दल का गठन हुआ तब उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया. 1990-91 के बीच थोड़े समय के लिए केंद्र में रही प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार के दौरान उन्होंने वित्त मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली.
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भाजपा के बड़े नेता से मोदी सरकार के आलोचक तक
1990 के दशक के मध्य में यशवंत सिन्हा ने भारतीय जनता पार्टी की तरफ तब रुख किया जब देशभर में राम मंदिर आंदोलन के बाद पार्टी की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी. भाजपा में शामिल होने के कुछ वर्षों बाद उन्हें 1996 में पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया.
उन्होंने सफलतापूर्वक 1998 में झारखंड के हजारीबाग से लोकसभा का चुनाव जीता और उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्रालय संभाला.
1999 में दूसरी बार फिर से उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता और अटल बिहारी कैबिनेट में 2002 से 2004 के बीच उन्हें विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था. सिन्हा अटल बिहार वाजपेयी के काफी करीबी लोगों में रहे हैं.
लेकिन 2004 में केंद्र में भाजपा की सरकार जाने के साथ ही वो भी अपना चुनाव हार गए थे और राज्य सभा के जरिए संसद में चुनकर आए. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में वे फिर से जीते लेकिन वाजपेयी युग खत्म होने के साथ ही पार्टी में वे लगातार हाशिए पर जाते रहे.
सिन्हा ने भाजपा से पहली बार उस समय बगावत कर दी जब 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर समर्थन किया.
उस समय सिन्हा ने कहा था, ‘मुखर्जी एक अच्छे राष्ट्रपति साबित होंगे.’
2014 में मोदी सरकार में आने के बाद वो पार्टी गतिविधियों से लगातार दूर बने रहे. उन्होंने हजारीबाग से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने की बजाए अपने बेटे जयंत सिन्हा को वहां से चुनाव लड़वाया. जयंत सिन्हा बाद में मोदी सरकार में मंत्री भी बने.
लेकिन 2018 में अचानक सिन्हा ने बीजेपी से अपने दो दशक से ज्यादा पुराने रिश्ते को ये कहते हुए तोड़ दिया कि वो देशव्यापी तौर पर लोकतंत्र को बचाने का कैंपेन शुरू करेंगे.
उन्होंने उस वक्त कहा था, ‘हमें राष्ट्र के लोकतांत्रिक विचारों पर फिर से सोचने की जरूरत है वरना ये देश हमें कभी माफ नहीं करेगा.’ सिन्हा ने कहा था कि केंद्र की एनडीए सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को खत्म कर रही है.
यशवंत सिन्हा ने भाजपा से अलग होने के बाद राष्ट्र मंच के नाम से 2018 में राजनीतिक पार्टी का गठन भी किया था जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल हुए थे.
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भाजपा के ‘दिवाली गिफ्ट’ और चंद्रेशखर के विश्वस्त
सिन्हा ने अपनी आत्मकथा रीलेंटलेस में लिखा है कि चंद्रशेखर उनके भाजपा में शामिल होने के खिलाफ थे. उनका कहना था कि चंद्रेशखर ने उन्हें चेताया था कि भाजपा उनका इस्तेमाल कर के उन्हें छोड़ देगी क्योंकि उनका आरएसएस का बैकग्राउंड नहीं रहा है.
सिन्हा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘मैंने 1993 में दिवाली के एक दिन बाद भाजपा ज्वाइन की. पार्टी अध्यक्ष एलके आडवाणी ने मुझे पार्टी के लिए ‘दिवाली गिफ्ट’ बताया था और कहा था कि भारत के इतिहास में आचार्य नरेंद्र देव के बाद मैं दूसरा ऐसा व्यक्ति हूं जिसने पार्टियां बदलने के बाद संसद से इस्तीफा दिया है.’
आत्मकथा में सिन्हा ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रेशखर को अपना राजनीतिक गुरु बताया है. उन्होंने लिखा, ‘मैंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत चंद्रशेखर के साथ की है और राजनीति में उन्हें अपना गुरु माना है. और हर स्थिति में पूरी तरह से उनका विश्वस्त रहने की कोशिश की.’
सिन्हा के अनुसार, ‘उनका साथ छोड़ना मेरे लिए काफी शर्मिंदगी भरा था. मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मुझमें उनसे मिलने और व्यक्तिगत रूप से यह बताने का साहस नहीं था कि मैं क्या करना चाहता हूं.’
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मोदी सरकार के आलोचक से ममता बनर्जी के साथी तक
मोदी सरकार की नीतियों की यशवंत सिन्हा 2018 के बाद लगातार आलोचना करते रहे हैं.
भाजपा छोड़ने के बाद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को वापस लेने के खिलाफ उन्होंने 3 हजार किलोमीटर की गांधी शांति मार्च लांच किया था.
सिन्हा ने अपनी किताब इंडिया अनमेड में ये दावा किया है कि वे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की सिफारिश की थी. इस बारे में बाद के एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘हां मैंने ऐसा किया था. लेकिन अब मैं अपने फैसले को लेकर पछताता हूं.’
सिन्हा मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की भी आलोचना करते रहे हैं. इसी साल मार्च में कहा था कि किसी को भी सरकारी की राजकोषीय स्थिति की चिंता नहीं है.
बीते हफ्ते सिन्हा ने मोदी सरकार को घेरते हुए कहा था कि देश की आर्थिक स्थिति के कारण भारतीय रुपए कोमा में जा रहा है. वहीं उन्होंने राफेल घोटाले का जिम्मेदार प्रधानमंत्री मोदी को बताया.
2021 में पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिन्हा ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी में शामिल हो गए.
तृणमूल कांग्रेस में शामिल होते वक्त उन्होंने कहा था, ‘अटल जी की भाजपा और अब की भाजपा अलग-अलग है. अटल जी सर्वसम्मति में भरोसा रखते थे, लेकिन आज की सरकार दबाने में विश्वास रखती है.’
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‘यूटीआई घोटाले’ में नाम और पप्पू यादव का आरोप
2013 में पूर्व सांसद पप्पू यादव ने अपनी आत्मकथा द्रोहकाल का पथिक में सिन्हा पर आरोप लगाया था कि उनकी इंडियन फेड्रल डेमोक्रेटिक पार्टी के तीन सांसदों को वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने एनडीए में शामिल होने के लिए 2001 में पैसे दिए थे.
लेकिन भाजपा समेत सिन्हा ने तब पप्पू यादव के दावे को खारिज कर दिया था.
2001 के यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) घोटाले को लेकर भी यशवंत सिन्हा पर आरोप लगे थे. एक इंटरव्यू में सिन्हा ने यूटीआई घोटाले पर कहा था, ‘2001 में यूटीआई घोटाला हुआ था और ये तहलका के खुलासे के बाद ही हुआ था. जिसके बाद स्टॉक मार्केट एकदम से गिर गया. इसके बाद जुलाई 2002 में मैंने वित्त मंत्रालय छोड़ दिया.’
वहीं 2017 में हजारीबाग में रामनवमी पर एक धार्मिक जुलूस निकालने के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था.
2020 में प्रवासी संकट को ठीक तरह से न संभाल पाने के खिलाफ यशवंत सिन्हा ने प्रदर्शन किया था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया है. हालांकि पुलिस ने इस दावे को खारिज कर दिया था.
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