रांची : झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने एलान किया है कि वह बंगाल में पूरे दमखम के साथ इस साल होने वाला विधानसभा चुनाव लड़ेगी. पार्टी सुप्रीमो और राज्य सभा सांसद शीबू सोरेन, सीएम हेमंत सोरेन ने एक दौर की जनसभा भी बंगाल के झारग्राम में कर ली है.
जेएमएम के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि ‘हम 30-35 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं.’
भट्टाचार्य ने यह भी कहा, ‘बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जेएमएम की घोषणा से पूरी तरह तिलमिला गई हैं. उन्होंने (ममता) साफ कहा है कि हेमंत पहले झारखंड संभालें, फिर बंगाल की तरफ देखें.’
बता दें कि हेमंत के बंगाल चुनाव में कूदने के बाद ममता बनर्जी काफी दुखी हैं उन्होंने इस बात का मंच से इजहार भी किया है. ममता ने कहा, ‘ये क्या तरीका है. हेमंत सोरेन चले आए, उनको पार्टी का उम्मीदवार चाहिए. नहीं होगा…कैसे होगा. खाना, रहना, ढोल, मांदर हम देंगे, और वो आकर वोट मांगेंगे. जाओ न, पहले झारखंड को संभालो. मैं तो ये बात नहीं कहती, लेकिन मुझे दुख हुआ.’
बंगाल की सीएम ममता बनर्जी अपने एक और राजनीतिक प्रतिद्वंदी को जवाब देने के लिए तैयार हो चुकी हैं. ममता ने कहा, ‘आज मुझे दुःख पहुंचा. मैंने देखा हेमंत सोरेन हमारे राज्य में पॉलिटिक्स करने आए. उनके शपथग्रहण में मैं गई थी. कितना सपोर्ट किया था.’
ममता ने हेमंत सोरेन पर हमला करते हुए कहा, ‘आपलोग खाना नहीं देंगे, पढ़ने नहीं देंगे, 365 दिन राज्य में क्या हुआ, वो नहीं देखेंगे. लोग मरेंगे वह नहीं देखेंगे और केवल चुनाव के समय केवल वोट दो, वोट दो…हम कहां जाएंगे. अगर हेमंत सोरेन बंगाल में वोट मांगेंगे, तो झारखंड में बंगाली भी बहुत रहते हैं, मैं भी वहां जाकर वोट मांगूंगी.’
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बंगाल में जेएमएम का चुनावी इतिहास
पश्चिम बंगाल में जेएमएम का चुनावी सफर अब तक निराशाजनक ही रहा है. पार्टी 1991 से अब तक सात बार यहां चुनाव लड़ चुकी है लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई.
साल 2016 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम कुल 20 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन खाता भी नहीं खोल पाई. साल 2011 में 30 सीटों पर लड़ी और कुल 0.47 (पूरे राज्य में पड़ने वाले वोट का) वोट प्रतिशत के साथ यहां भी खाता नहीं खोल पाई. वहीं साल 2006 में कुल सात सीटों पर लड़ी और 0.18 प्रतिशत वोट के साथ उस वक्त भी नाकामी ही हाथ लगी.
साल 2001 में पांच सीटों पर लड़ी और 0.5 प्रतिशत वोट के साथ यहां भी हार मिली. साल 1996 में 26 सीट और वोट मिले 0.37 प्रतिशत. साल 1991 में 23 सीट (0.31 प्रतिशत वोट). साल 1982 में एक सीट (0.01 प्रतिशत वोट).
जिन इलाकों पर पार्टी की नज़र है उसमें झारखंड से सटे बंगाल सीमा के करीब आसनसोल, बांकुरा, झारग्राम, मालदा, वीरभूम, पश्चिम वर्धमान, पुरुलिया और मुर्शिदाबाद शामिल हैं.
बंगाल में लंबे समय तक पत्रकारिता कर चुके प्रभात खबर के पत्रकार सत्यप्रकाश कहते हैं, ‘झारग्राम, पुरुलिया, मालदा, मुर्शिदाबाद संताल आदिवासियों का इलाका है. अलीपुर, दार्जिलिंग, जलपाईगुरी में मिक्स ट्राइब्स हैं. ये झारखंड से माइग्रेट होकर चाय बगानों में काम करने गए थे. लेकिन इन इलाकों में अब जेएमएम के नेताओं ने आना बंद कर दिया है. इन इलाकों में अब बीजेपी के सांसद हैं.’
जेएमएम के बंगाल प्रभारी बिट्टू मुर्मू ने दिप्रिंट को बताया, ‘शीबू सोरेन के समय में हमें बंगाल में चुनाव लड़ने के लिए मदद मिलती रही थी. बाद के दिनों में यह नहीं मिली. इस बार भैया (हेमंत सोरेन) बोले हैं मदद करेंगे.’
मुर्मू ने कहा, ‘ अब देखिये, बीजेपी एक वोटर पर एक हजार रुपया बांटती है, हमलोग कहां से उतना कर पाएंगे. लेकिन अगर साधन मिला तो हम सात से आठ सीट जीत जाएंगे. हम आदिवासियों को पैसा नहीं, लेकिन इज्जत जरूर देंगे.’
वहीं जेएमएम के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि, ‘पहले से स्थिति बदली है. बीते समय में जहां लेफ्ट बनाम एंटी लेफ्ट चुनाव होते थे, इस बार कई दल चुनाव के मुख्य दोड़ में है. ऐसे में हमारे लिए भी मौका है. फिलहाल 30-35 सीटों पर लड़ेंगे और 25 सीटों पर मुख्य मुकाबले में रहेंगे. रिजल्ट में कितना होगा, यह कहना अभी मुश्किल है.’
‘जो जहां से चाहे, चुनाव लड़ सकता है’
बीती 18 जनवरी को हेमंत सोरेन ने नई दिल्ली में पहले राहुल गांधी से मुलाकात की, इसके बाद उनका केंद्रीय मंत्रियों से मिलने का सिलसिला शुरू हुआ. पहले उन्होंने कोयला एवं खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की. इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह और फिर सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मिले.
बता दें, हेमंत के दिल्ली जाने से ठीक दो दिन पहले केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान बिना किसी कार्यक्रम के खास हेमंत से ही मिलने रांची आए थे.
इसके बाद 23 जनवरी को हेमंत ने बांग्ला में ट्वीट कर लोगों को नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन की बधाई दी. फिर वह 28 को बंगाल के झारग्राम पहुंचे. यहां उन्होंने साफ कहा कि सीमावर्ती इलाका हमारा राजनीतिक क्षेत्र रहा है. अब जेएमएम बंगाल के आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ेगी.
ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं जेएमएम बीजेपी के इशारे पर इतनी सीटों पर तो नहीं लड़ रही?
टीएमसी के लोकसभा सदस्य सौगत रॉय ने दिप्रिंट से बातचीत में साफ तौर पर कहा, ‘जेएमएम को बीजेपी पीछे से सपोर्ट करती है. अगर जेएमएम बीजेपी के खिलाफ है, तो उसे बंगाल में इस बार चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था.’
टीएमसी के इस आरोप पर झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि, ‘ये कैसी बातें कर रहे हैं सौगत रॉय. जेएमएम सत्ता में है, हम विपक्ष में हैं, हम भला उन्हें क्यों सपोर्ट करेंगे. टीएमसी चुनाव लड़ने से पहले हार चुकी है, इसलिए ऐसी बयानबाजी कर रही है.’
वहीं हाल ही में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए पूर्व मंत्री सुब्रतो मुखर्जी कहते हैं, ’कोई भी राज्य किसी के पिताजी की संपत्ति नहीं है. जो जहां से चाहे, चुनाव लड़ सकता है.’
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केवल चुनावी फायदे के लिए तो नहीं है ग्रेटर झारखंड की मांग?
झारग्राम की जनसभा में हेमंत ने 70 के दशक को याद किया और झारखंड राज्य के आंदोलनकारियों को जगाने के अंदाज में कहा, ’70 के दशक में हमारा यह राजनीतिक क्षेत्र रहा है, यहां झारखंड राज्य आंदोलन के कई आंदोलनकारी हैं, उन सभी को फिर से जगाने का काम करेंगे. इस क्षेत्र में नए आंदोलन के साथ उतरेंगे. ताकि हम अपने पुराने सपने को फिर से जिंदा कर सकें.’
यहां पुराने सपने का अर्थ वृहद झारखंड से है, जो कि झारखंड राज्य आंदोलन के वक्त लगातार उठाए गए थे.
पत्रकार सत्यप्रकाश कहते हैं, ‘जेएमएम की ये राजनीति केवल और केवल ग्रेटर झारखंड की मांग को बनाए रखने के लिए की जा रही है. जिसमें बंगाल के पुरुलिया, झारग्राम, बांकुरा और ओडिसा के मयूरभंज और क्योंझर जिले को शामिल करने की मांग थी. झारखंड बनने से पहले इन इलाकों के लोग भी चाहते थे कि वह झारखंड में शामिल हों, लेकिन बदली हुई परिस्थिति में वह अब ग्रेटर झारखंड की मांग से खुद को अलग कर चुके हैं.’
सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, ‘ऐसा है कि ममता भी झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ती रही हैं. हर पार्टी की अपनी सांगठनिक मजबूरी होती है. फिलहाल तो ये तय है कि गठबंधन किसी के साथ नहीं होगा.’ वहीं इस बात को सौगत राय ने भी कन्फर्म किया कि जेएमएम और टीएमसी का कोई गठबंधन नहीं हो सकता.
दिप्रिंट से बातचीत में सुब्रतो मुखर्जी ने कहा, ‘राजनीतिक तौर पर तो यही होना चाहिए था कि हेमंत पहले झारखंड संभालते, फिर यहां लड़ते.’
राजनीतिक रूप से अस्थिर राज्य कहे जाने वाले झारखंड में एक बार फिर परिस्थितियों के उलटने-पलटने के आसार नज़र आने लगे हैं.
भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों में अंदरखाने खलबली मची हुई है. कौन किस तरफ कब चला जाएगा, ये कहना मुश्किल है.
राज्य बनने के बाद पहली बार रघुवर दास ने पांच साल तक स्थिर सरकार दी थी. इसके बाद आए हेमंत सोरेन ने भी जोर देकर कहा कि हमारी सरकार पांच साल पूरा करेगी. ऐसे में बंगाल चुनाव के बाद झारखंड की राजनीति किस करवट बैठेगी, यह चर्चा का विषय होगा.
(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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