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Sunday, 22 December, 2024
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आखिर झारखंड को कब मिलेगा आदिम जनजाति का पहला विधायक

झारखंड में कुल 32 जनजातियां रहती हैं. इसमें से आठ को विलुप्तप्राय आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा गया है.

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रांची: झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. जहां आदिवासियों की संख्या लगभग 27 प्रतिशत है. विधानसभा की कुल 81 में 28 सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं. इन आदिवासियों में भी आदिम जनजातियों की भूमिका अब तक नगण्य रही है. आज तक उनकी जाति का कोई नुमाइंदा विधानसभा नहीं पहुंच सका है.

राष्ट्रीय पार्टियां मौका दें, वरना पंचायत चुनाव जीतना भी संभव नहीं

आदिम जनजातियों के नेता विमलचंद्र असुर साल 2014 में जेवीएम की टिकट पर विशुनपुर से चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि वह जीत नहीं पाए थे. इस बार जेएमएम ने टिकट नहीं दिया. संभावना है कि वह मार्क्सवादी समन्यव समिति (मासस) से चुनाव लड़ें. वह कहते हैं, ‘जब तक राष्ट्रीय पार्टियां हमें आगे आने का मौका नहीं देती, हम कभी नहीं जीत पाएंगे. क्योंकि हमारी आबादी तो पंचायत चुनाव लड़ने तक की नहीं है.’

इस बार की टिकट घोषणाओं पर नजर डालें तो बीजेपी ने अब तक सिर्फ एक सीट पर आदिम जनजाति के उम्मीदवार को टिकट दिया है. वहीं जेएमएम, जेवीएम, कांग्रेस, आजसू, आप ने एक भी टिकट नहीं दिया है.

पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष और सात बार सांसद रहे भारतीय जनता पार्टी के नेता करिया मुंडा कहते हैं ‘पिछली बार और इस बार भी हमने बरहेट सीट से सीमोन मालतो (सोरेया पहाड़िया आदिम जनजाति) को टिकट दिया है. पिछली बार वह चुनकर नहीं आ पाए तो इसमें पार्टी का क्या दोष है. उन्होंने साफ कहा कि चुनाव पूरी तरह से संख्याबल का खेल है. देखिये इसबार क्या होता है.’


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वहीं भारतीय जनता पार्टी के ही नेता सीमोन मालतो कहते हैं, ‘अब तक हुए सभी विधानसभा चुनाव हमने लड़ा है. उनका क्षेत्र पहाड़िया आदिम जनजाति बहुल है. इस बार उम्मीद है कि जीत कर झारखंड के पहले आदिम जनजाति विधायक बनेंगे.’

कई बार प्रयास किया, लेकिन वह जीत नहीं पाते

सीमोन मालतो ने यह भी कहा, कांग्रेस ने पहले तीन बार आदिम जनजातियों को टिकट दिया है. लेकिन कोई जीत नहीं पाया. संख्या ही नहीं है, तो कहां से जीतेंगे. फिर भी कोशिश कर रहे हैं.

झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव कहते हैं आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ापन की वजह से आदिम जनजाति के लोग चुनावी राजनीति में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. ‘मैंने कई बार प्रयास किया, लोकसभा-विधानसभा में न सही, पंचायत चुनाव में भी उनके बीच से कोई चुनकर आए, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया.’

इस बार कांग्रेस से किसी आदिम जनजाति को टिकट न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि, ‘नेता आप लाकर दीजिए, हम टिकट दे देंगे.’ डॉ उरांव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के चेयरमैन भी रह चुके हैं. पद पर रहते हुए उन्होंने जनगणना में आदिवासियों की संख्या पर सवाल भी उठाए थे.

वरिष्ठ पत्रकार फैजल अनुराग कहते हैं, ‘भले ही 28 एसटी आरक्षित सीटें हैं, लेकिन बमुश्किल 15 सीटों पर ही आदिवासी तय कर पाते हैं कि कौन जीतेगा. उनके मुताबिक झारखंड में अलग-अलग जनजाति अपने इलाकों में राजनीतिक और सामाजिक रूप से सक्रिय रहे हैं. लेकिन उरांव और मुंडा जनजाति का राजनीति में सबसे अधिक प्रभाव रहा है.’

सामाजिक कार्यकर्ता सुषमा असुर कहती हैं, ‘हमारे लोगों में ही कमी है. अभी तक पंचायत चुनाव में हिस्सेदारी नहीं हो पाई है, आप विधानसभा और लोकसभा की बात कर रहे हैं. मुझे नहीं पता यह सूखा कब खत्म होगा.’सुषमा इस वक्त असुर जनजाति के लिए तैयार हो रहे शब्दकोष को बनाने में झारखंड सरकार की मदद कर रही हैं.

कई अन्य जातियों का भी यही हाल

अन्य समुदायों में सिंधी, मल्लाह, डोम सहित कई अन्य हैं, जिनके जनप्रतिनिधि आज तक झारखंड विधानसभा नहीं पहुंच सके हैं.

कुम्हार समुदाय से अब तक मात्र एक विधायक रहे हैं. ये हैं बीजेपी के बेरमो से विधायक जोगेश्वर महतो बाटुल. झारखंड माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष चांत प्रजापति कहते हैं, ‘उनके समुदाय से झारखंड से एक एमएलए को छोड़ दें दो बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल तक में कोई नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘जब लोगों को छत की ज़रूरत हुई तो खपरैल, बरतन, पूजा करने के लिए मूर्ति बनाकर उनके लोगों ने दिया. लेकिन राजनीतिक उपस्थिति लगभग ना के बराबर है.’ उनका दावा है कि झारखंड में 12-13 लाख वोटर उनके समुदाय से आते हैं.

झारखंड विधानसभा चुनाव

अब झारखंड विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. गठबंधन बनने और टूटने का सिलसिला जारी है. नामांकन भरे जा रहे हैं. ज़ाहिर है सभी पार्टियां जातीय समीकरण का खासा ध्यान रख रही हैं. सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने 52, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन ने 12, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 04, कांग्रेस 25, झारखंड विकास मोर्चा ने 46, आम आदमी पार्टी 15, जनता दल यूनाइटेड 11, झारखंड पार्टी 09 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है.


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प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की ओर से 23 जुलाई 2018 को भारत सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी सूचना के मुताबिक देशभर में 75 आदिम जनजातियों को सूचिबद्ध किया गया है. वहीं झारखंड में इनकी जनसंख्या 2,92,359 है. यह कुल एसटी जनसंख्या का 3.38 प्रतिशत है. वहीं साल 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल आदिवासी आबादी 86,45,042 है. वहीं राज्य की कुल जनसंख्या  3,29,66,328 है.

झारखंड में कुल 32 जनजातियां रहती हैं. इसमें से आठ को विलुप्तप्राय आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा गया है. इनमें

जनजातियां   संख्या

संथाल – 27 लाख
उरांव- 17 लाख
मुंडा- 12 लाख
माल पहाड़िया- 1.35 लाख
बिरहोर- 10,727
कोरबा- 35,000 
बिरजिया- 6276
सौरेया पहाड़िया- 46,000
परहिया- 25000
कोरबा- 35 000
असुर- 22,459
सबर- 9688
बिझिंया- 14404 

विलुप्तप्राय जनजातियां
खोंड -221
बंजारा -487
बैगा -3582
बाथुड़ी -3464
गोड़ाईत -2975
कंवर -8145 है.

(सोर्स- ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीट्यूट की वेबसाइट.)

चुनाव आयोग के मुताबिक साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 65 पार्टियों ने चुनाव लड़ा था. इसबार भी इससे कुछ अधिक या कम चुनाव लड़ने जा रही है. शायद ही किसी की नज़र आदिम जनजातियों या फिर जिनकी जनसंख्या राज्य में कम है, उनकी ओर पड़े. सिवाय वोट मांगने के.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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