झारखंड: अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन होना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे. निर्माण के लिए देशभर से मिट्टी मंगाई जा रही है. झारखंड के भी मंदिरों, सरना स्थलों से मिट्टी भेजी गई है लेकिन इस पर अब विवाद भी शुरू हो गया है. विवाद आदिवासियों के पूजा स्थल ‘सरना स्थल’ से मिट्टी भेजने को लेकर हो रहा है. एक गुट का कहना है कि आदिवासी न तो हिन्दू हैं और न ही ईसाई या मुस्लिम. ऐसे में सरना स्थल से राम मंदिर निर्माण के लिए मिट्टी भेजना गलत है.
सरना धर्मगुरू बंधन तिग्गा कहते हैं, ‘सरना स्थल अपने आप में पवित्र हैं. लेकिन बीजेपी की पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर ने चान्हों में एक ब्राह्मण को बुलाकर सरना स्थल को शुद्ध कराया, फिर वहां की मिट्टी भेजा गया. इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है. इसके अलावा वीएचपी के पदाधिकारी के खिलाफ नामकुम थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है.’
इसके जवाब में गंगोत्री कुजूर ने कहा कि वह इस मसले पर कुछ नहीं कहना चाहती हैं.
वहीं ध्यान देने वाली बात ये भी है कि इस समारोह में शामिल होने के लिए झारखंड से मात्र दो लोगों को निमंत्रण मिला है. जिसमें एक हैं आदिवासी सरना समाज के धनेश्वर राम मुंडा और दूसरे चैतन्य ब्रह्मचारी हैं. दोनों ही विश्व हिन्दू परिषद से ताल्लुक रखते हैं. धनेश्वर मुंडा के मुताबिक विरोध करने वालों में उरांव समुदाय के लोग ज्यादा हैं. ये सब ईसाई मिशनरियों के उकसावे पर कर रहे हैं.
विश्व हिन्दू परिषद के झारखंड प्रांत के संगठन मंत्री केशव राजू के मुताबिक झारखंड के कुल 21 सौ धार्मिक स्थलों से मिट्टी और जल भेजा गया है. इसमें 11 सौ सरना स्थलों की मिट्टी भेजी गई है. उन्होंने कहा कि, ‘सिख, जैन धर्म के लोगों ने भी अपने धार्मिक स्थल से मिट्टी भेजी है. हमने मुस्लिमों को इसके लिए आमंत्रित नहीं किया था. अगर वो अपने मन से देते हैं तो इसके बारे में सोचा जाएगा.’
फिलहाल इसका विरोध करने वालों में शामिल केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा का कहना है, ‘सरना धर्म का ईसाइत या हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नहीं है. दोनों ही धर्म के कर्मकांड से हम अलग हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जिन गली मोहल्लों में ईसाई लोग नहीं रहते हैं, वहां भी चर्च बनाकर आदिवासियों को बरगलाकर धर्मांतरण कराया जाता है.’
वीएचपी के केशव राजू एक बार फिर कहते हैं, ‘यह विरोध ईसाई संगठनों के इशारे पर हो रहा है. उनका आरोप है कि लॉकडाउन में भी ईसाई संगठनों ने धर्मांतरण का काम किया है जिसका बड़े पैमाने पर विरोध किया गया.’
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इससे पहले बुधवार 29 जुलाई को रांची में मिट्टी भेजने का विरोध कर रहे संगठनों की एक बैठक आयोजित की गई थी. इसमें 25 से अधिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. बैठक में मौजूद रांची यूनिवर्सिटी में मानव शास्त्र विभाग के डीन रहे डॉ. करमा उरांव ने कहा कि पूर्व विधायक रामकुमार पाहन, गंगोत्री कुजूर, रांची की मेयर आशा लकड़ा (तीनों बीजेपी के नेता हैं) सहित विश्व हिन्दू परिषद के इस मुहिम में शामिल कई अन्य लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है. जिन सरना स्थलों से मिट्टी गई है, वहां प्रार्थना सभा आयोजित कर उसे शुद्ध किया जाएगा. जवाब में मेयर आशा लकड़ा ने कहा कि बहिष्कार करने वाले पहले अपने अंदर झांक लें.
ईसाई से ज्यादा हिन्दू धर्म में हुआ है आदिवासियों का धर्मांतरण
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में आदिवासियों की संख्या 10,42,81,034 है. यह देश की कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत है. केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के मुताबिक देश के 30 राज्यों में कुल 705 जनजातियां रहती हैं. स्थिति ये है कि झारखंड सहित कई राज्यों में आदिवासी खुद को सरना आदिवासी नहीं मानते हैं. वहीं एक बड़ा वर्ग है जो खुद को हिन्दू धर्म के नजदीक पाता है, तो एक वर्ग ईसाई धर्म के नजदीक. शायद इसी द्वंद को ध्यान में रख कर पूर्व सांसद पद्मश्री रामदयाल मुंडा ने ‘आदि धर्म’ की वकालत की थी.
2018 में सूचना का अधिकार कानून के तहत अधिवक्ता दिप्ती होरो को झारखंड सरकार के गृह विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक झारखंड में 86 लाख से अधिक आदिवासी हैं. इसमें सरना धर्म मानने वालों की संख्या 40,12,622 है. वहीं 32,45,856 आदिवासी हिन्दू धर्म मानते हैं. ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या 13,38,175 है. इसी तरह से मुस्लिम 18,107, बौद्ध 2,946, सिख 984, जैन 381 आदिवासी इन धर्मों को मानने वाले हैं. वहीं 25,971 आदिवासी ऐसे हैं जो किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं.
डॉ. करमा उरांव एक बार फिर कहते हैं, ‘जो आदिवासी खुद को हिन्दू, ईसाई या अन्य धर्म का मानते हैं, वह अपने को सरना धर्मावलंबी कहना बंद करें. ये दोगलापन नहीं चलेगा. इसके लिए हम अपने समाज में जागरूकता लाने के लिए अभियान भी चलाएंगे.’
बेजीपी का आरोप, जेएमएम के इशारे पर हो रहा विरोध
मामला राजनीतिक रंग भी पकड़ने लगा है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश कहते हैं, ‘ये विरोध झारखंड मुक्ति मोर्चा के कहने पर हो रहा है. नहीं तो क्या वजह है कि विरोध करने वाले संगठन पुतला दहन करते हैं, जो कि राज्यभर में लागू धारा 144 का सरासर उल्लंघन है और उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई जाती. बंधन तिग्गा जैसे लोग, जेएमएम सरकार के इशारे पर ऐसा कर रहे हैं. रही बात मिट्टी की तो सरना स्थल के पाहनों (पुजारी) ने खुद लाकर मिट्टी दिया है. ये आपसी सौहार्द की बात है.’
इसके जवाब में कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष डॉ इरफान अंसारी ने कहा, ‘अयोध्या की मिट्टी तो अपने आप में पवित्र है. ऐसे में देशभर से कभी ईंट तो कभी मिट्टी ले जाना नौटंकी मात्र है. जब आदिवासी खुद को हिन्दू नहीं मानते हैं, तब मिट्टी ले जाकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है. गंगोत्री कुजूर नाटक कर रही हैं.’
वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के महासचिव और वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है, ‘सरना धर्म ही अलग है. ऐसे में सरना स्थल से मिट्टी लेकर राम मंदिर में निर्माण के लिए भेजना, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की चाल है. वह हमेशा से आदिवासियों के खिलाफ ऐसा करते रहे हैं. वहीं आदिवासी संगठनों पर कार्रवाई को लेकर उन्होंने कहा कि खुद दीपक प्रकाश दिल्ली से वापस आए हैं. क्वारेंटाइन में रहने के बजाए पार्टी ऑफिस जाकर कार्यक्रम करते हैं, कहते हैं आदिवासी संगठन नियम का उल्लंघन कर रहे हैं?’
बहरहाल हिन्दू संगठन चाहते हैं आदिवासी उनके करीब रहें, ईसाई संगठन चाहते हैं उनकी तरफ आएं. बड़ी संख्या में आदिवासी मानते हैं कि वह अलग धर्म हैं, उन्हें केंद्र सरकार सरना धर्म कोड लागू कर अपने तरीके से जीने का अधिकार दे.
इस बीच झारखंड का कुरमी समुदाय खुद को आदिवासियों के श्रेणी में रखने की मांग लगातार कर रह है. बड़ी संख्या में लोगों ने शादियों, पूजा-पाठ आदि में हिन्दू रीति-रिवाज को मानना बंद कर दिया है.
(आनंद स्वतंत्र पत्रकार हैं.)