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Tuesday, 17 December, 2024
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JDU का ईबीसी और मुस्लिम वोटबैंक डगमगाया, बिहार में क्या मोदी बनेंगे नीतीश कुमार के संकटमोचक

बिहार के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री के लिए जनता का समर्थन बिहार में घटता दिखाई दे रहा है, जहां लोग मोदी को वोट देने का वादा कर रहे हैं, लेकिन राजद के तेजस्वी यादव के लिए भी समर्थन बढ़ रहा है.

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बेगुसराय/मुंगेर/जहानाबाद: बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर से भी कम दूरी पर सिमरिया गांव है, जो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्मस्थान है, जो आज़ादी से पहले लिखी गई विद्रोह और देशभक्ति की कविताओं के लिए लोकप्रिय रहे हैं.

दिनकर राज्यसभा के मनोनीत सदस्य होने के साथ-साथ पद्म भूषण और कई अन्य पुरस्कारों के विजेता थे. उनकी कविता ‘सिंहासन खाली करो के जनता आती है’ का उपयोग वी.पीं सिंह ने 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पद से हटाने के लिए किया था. सिंह ने 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को गद्दी से उतार दिया था.

इस साल, लोकसभा चुनावों के बीच, दिनकर के गांव में विद्रोह की बयार तेज़ हो गई है, जो कि बेगुसराय निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जो वर्तमान में केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गिरिराज सिंह के पास है.

गांव में दिनकर की प्रतिमा के पास बैठे 60-वर्षीय सुधाकर सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “गिरिराज सिंह को दिनकर की पुण्यतिथि पर भी उनके गांव जाने का समय नहीं मिला. उन्होंने पिछले पांच साल में यहां कोई विकास कार्य नहीं किया है. गिरिराज को वोट केवल (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी के कारण मिलेगा. पीएम यहां लोकप्रिय हैं क्योंकि उन्होंने गरीबों को राशन दिया है.”

सिंह, जिन्हें बेगुसराय से बीजेपी ने दोबारा उम्मीदवार बनाया गया है, के खिलाफ भूमिहार बहुल गांव में गुस्सा साफ देखा जा सकता था, जहां दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते दौरा किया था. सिंह भूमिहार जाति से आते हैं.

सिमरिया से लगभग 40 किलोमीटर दूर चेरिया बरियारपुर गांव है, जो कि बेगुसराय में ही है. केंद्रीय मंत्री का काफिला वहां रुके बिना गांव से गुज़र गया, जिससे इस सीट पर सिंह की संभावनाओं पर चर्चा शुरू हो गई.

चिलचिलाती धूप से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे शरण लेते हुए, एनडीए सहयोगी एलजेपी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान की ही जाति के उमाकांत पासवान ने कहा: “(बिहार के मुख्यमंत्री) नीतीश ने विश्वसनीयता खो दी है. वे एक पार्टी से दूसरी पार्टी में चले गए, उन पर कौन भरोसा करेगा? वे दिन-ब-दिन गिरते जा रहे हैं. यह मोदी ही हैं जिनके लिए हम वोट करेंगे.”

साथी ग्रामीण राम भोला पासवान ने सहमति में सिर हिलाया, जबकि चेरिया बरियारपुर के भूमिहार दीपक कुमार सिंह ने कहा, “गिरिराज ने हमारे गांव का दौरा नहीं किया है और लोग उनसे नाराज़ हैं, लेकिन यह मोदी का सवाल है. अगर पीएम मोदी कहेंगे तो लोग गधे को भी वोट देंगे.”

केंद्र में सत्तासीन भाजपा ने इस साल की शुरुआत में बिहार की सत्तारूढ़ जदयू को राजग के पाले में कर लिया. राजद से नाता तोड़ने और राज्य के महागठबंधन गठबंधन को छोड़ने के बाद, जद (यू) प्रमुख नीतीश ने नौवीं बार सीएम पद की शपथ ली. भाजपा और जदयू अब एनडीए के तहत बिहार चुनाव लड़ रहे हैं.

जब दिप्रिंट ने इन क्षेत्रों का दौरा किया तो बेगुसराय के साथ-साथ पटना से सटे मुंगेर और जहानाबाद के निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों ने इस लोकसभा चुनाव में बिहार में बदलते राजनीतिक रुख की एक स्पष्ट तस्वीर पेश की.

बिहार के सबसे लंबे समय तक सीएम रहे नीतीश की घटनी लोकप्रियता और उनके मूल मतदाता को उत्साहित करने की क्षमता स्पष्ट थी. पार्टी ईबीसी और महादलितों को अपने वोटबैंक में गिनती है — जो बिहार में सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े समूहों में से दो हैं.

जो बात सामने आई वो थी मोदी की बेहिसाब लोकप्रियता, जो अधिकांश मतदाताओं द्वारा बेरोज़गारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उठाए जाने के बावजूद बिहार में प्रेरक कारक बनी रही.

राज्य के लोगों का मानना ​​है कि मोदी के कारण भारत का कद बढ़ा है और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और किसान सम्मान निधि जैसी उनकी कल्याणकारी योजनाएं ग्रामीण इलाकों में वोट खींचने वाली रही हैं.

बिहार चुनाव को परिभाषित करने वाला तीसरा कारक राजद नेता तेजस्वी यादव का बढ़ता प्रभाव है और जद (यू) का नुकसान राजद का फायदा हो सकता है. हालांकि, त्रिकोणीय मुकाबले में जद (यू) मोदी फैक्टर की बदौलत बच सकती है.

दिप्रिंट से बात करते हुए मुंगेर के एक स्थानीय जेडी (यू) नेता ने कहा, “मोदी इस चुनाव में ईबीसी, दलितों और ऊंची जातियों को एकजुट करने वाले एकमात्र कारक हैं. महिला मतदाताओं के बीच नीतीश की कुछ पकड़ थी, लेकिन मुफ्त राशन, उज्ज्वला और आवास योजना की लाभार्थी योजनाओं के कारण अब मोदी की महिलाओं के बीच अधिक पकड़ है. हम ईबीसी वोट हासिल करने के लिए मोदी पर निर्भर हैं.”

बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के महासचिव निखिल आनंद ने भी कहा कि पीएम का विकास एजेंडा और लाभार्थी योजनाएं बिहार में चुनाव को आगे बढ़ा रही हैं.

नीतीश खुद भी दीवार पर लिखी इबारत से अनजान नहीं हैं.

पहले चरण के मतदान के बाद, मुख्यमंत्री ने उत्तर बिहार के मुसलमानों (यह वोट बैंक जेडी(यू) के प्रति सहानुभूति रखता है) को चेतावनी दी थी कि अगर वे सत्ता से बाहर हो गए तो हिंदुओं के साथ हिंसक झड़पें फिर से शुरू हो सकती हैं.


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बेगुसराय, मुंगेर और जहानाबाद

बेगुसराय में सिंह सीपीआई के अवधेश कुमार राय के खिलाफ मैदान में हैं.

बेगूसराय को कभी “बिहार का लेनिनग्राद” माना जाता था क्योंकि 1930 के दशक की शुरुआत से ही इस क्षेत्र में वामपंथी प्रभाव था, जब जमींदारों और गरीब लोगों के बीच वर्गीय संघर्ष सीपीआई के लिए उपजाऊ ज़मीन साबित हुआ. हालांकि, पार्टी ने यह सीट 1967 में ही जीती थी.

2014 में बेगुसराय में बीजेपी का आगमन हुआ जब भोला सिंह ने पार्टी के लिए सीट जीती. अगले चुनाव में सिंह ने सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार के खिलाफ जीत हासिल की.

पिछले दो लोकसभा चुनावों में, आरजेडी और सीपीआई ने अलग-अलग चुनाव लड़कर भाजपा के लिए राह आसान कर दी थी, लेकिन इस बार दोनों गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं.

पटना और बेगूसराय के बीच जेडी(यू) सांसद ललन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र मुंगेर है. अनुमान है कि यहां 1.40 लाख धानुक और 1.49 लाख कुर्मी हैं, जबकि आरजेडी के पारंपरिक समर्थक यादवों की संख्या 2.93 लाख है.

जेडी(यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन को फिर से टिकट दिया गया है और इस बार उन्हें कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि आरजेडी ने गैंगस्टर से नेता बने अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी को मैदान में उतारा है. अशोक कुर्मी हैं जबकि उनकी पत्नी धानुक हैं — दोनों जातियां नीतीश के मुख्य वोटबैंक का हिस्सा हैं.

अगर कुर्मी और धानुक यादवों के साथ वोट करते हैं तो ललन को चुनौती का सामना करना पड़ेगा. इस प्रकार यह सीट न केवल ललन बल्कि नीतीश के मुख्य वोटबैंक की भी परीक्षा लेगी.

चाय की दुकान पर चाय की चुस्की लेते हुए दिप्रिंट से बात करते हुए, मुंगेर के पंडारक गांव के राम अवधेश राय ने कहा कि उन्होंने तय किया हुआ है कि वे राजद को वोट देंगे.

उन्होंने कहा, “हम तेजस्वी यादव को वोट देंगे. उन्होंने रोज़गार का मुद्दा उठाया है और मोदीजी उन युवाओं के लिए रोज़गार पैदा करने में विफल रहे हैं, जो रोज़गार के लिए दूसरे राज्यों में गए हैं.”

गांव के एक अन्य व्यक्ति, दिनेश महतो ने विशेष रूप से ललन और नीतीश के लिए चेतावनी जारी की.

यह कहते हुए कि वे अपनी वोटिंग वरीयता के बारे में अनिश्चित हैं, महतो ने कहा, “आरजेडी उम्मीदवार हमारी जाति से हैं और नीतीश ने अपने वर्तमान कार्यकाल में (बिहार में) कुछ भी नहीं जोड़ा है. उन्होंने पहले और दूसरे कार्यकाल में अच्छी कानून-व्यवस्था बनाकर और सड़कें बनाकर और बिजली देकर काम किया, लेकिन अब उनकी उम्र बढ़ रही है. हर दिन, वे चीज़ें भूलने लगे हैं. वे केवल एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाकर सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं. उन्हें राज्य का नेतृत्व करने और अधिक विकास और रोज़गार लाने के लिए भाजपा या आरजेडी के लिए कुर्सी खाली कर देनी चाहिए.”

हालांकि, मुंगेर के एनडीए नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि ललन निराश उच्च जातियों के ध्रुवीकरण पर भरोसा कर रहे हैं, खासकर अशोक महतो की पत्नी को मैदान में उतारने के बाद, जिससे जंगल राज की वापसी की आशंका पैदा हो सकती है (जैसा कि 2005 से पहले बिहार में आरजेडी शासन के तहत आरोप लगाया गया था).

पटना से 50 किलोमीटर से भी कम दूरी पर जहानाबाद निर्वाचन क्षेत्र में यादव बहुल सोहे गांव है, जहां मौजूदा सांसद जदयू के चंदेश्वर प्रसाद हैं. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी के सुरेंद्र यादव को मात्र 1,700 वोटों के मामूली अंतर से हराकर जीत हासिल की थी. दोनों इस बार भी इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

गांव में एक झोपड़ी में बैठे देव नंदन महतो और विकास कुमार ने कहा कि उन्होंने पिछली बार जेडी(यू) उम्मीदवार को वोट दिया था, लेकिन उन्होंने “पांच साल से निर्वाचन क्षेत्र का दौरा नहीं किया है”.

Dev Nandan Mahto (first from right) and Vikas Kumar (second from right) in Sohe village in Jehanabad constituency | Photo: Shanker Arnimesh, ThePrint
जहानाबाद निर्वाचन क्षेत्र के सोहे गांव में देव नंदन महतो (दाएं से पहले) और विकास कुमार (दाएं से दूसरे) | फोटो: शंकर अर्निमेष/दिप्रिंट

विकास ने कहा, “इस बार, हम सुरेंद्र यादव को आजमाएंगे जो पिछली बार मामूली अंतर से हार गए थे. चंदेश्वर को दोबारा टिकट देना नीतीश कुमार की बड़ी गलती है.”

सोहे से एक किलोमीटर दूर भूमिहार और उच्च जाति बहुल करौना गांव है, जहां पिंटू कुशवाहा — जो कि पिछड़ी कुशवाहा जाति से हैं और आमतौर पर भाजपा या जद(यू) का समर्थन करते हैं — चंदेश्वर या निर्दलीय या जहानाबाद में बसपा द्वारा मैदान में उतारे गए पूर्व सांसद अरुण कुमार के बीच चयन करने की दुविधा का सामना कर रहे हैं.

Pintu Kushwaha in Karauna village | Photo: Shanker Arnimesh, ThePrint
करौना गांव में पिंटू कुशवाहा | फोटो: शंकर अर्निमेष/दिप्रिंट

अपनी छोटी सी दुकान में बैठे पिंटू ने दिप्रिंट से कहा, “जब जेडीयू उम्मीदवार के खिलाफ हर जगह विरोध प्रदर्शन हो रहा है तो नीतीश ने चंदेश्वर को क्यों दोहराया? अब दो ऊंची जाति के उम्मीदवार अरुण कुमार और निर्दलीय भूमिहार उम्मीदवार आशुतोष चंदेश्वर के वोट काटेंगे और राजद के लिए लड़ाई आसान कर देंगे. हम अरुण कुमार को वोट देना चाहते हैं जो सबसे अच्छे उम्मीदवारों में से एक हैं और सुलभ भी हैं, लेकिन हम आखिरी दिन माहौल देखने के बाद फैसला करेंगे.”

गौरतलब है कि उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए का हिस्सा होने और बिहार बीजेपी अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के भी इसी जाति से आने के बावजूद कुशवाहा जेडीयू का समर्थन करने को लेकर अनिच्छुक दिख रहे हैं.

भाजपा और जद(यू) नेताओं का मानना ​​है कि जद(यू) उम्मीदवार से नाराज लोग अंततः एनडीए को ही वोट देंगे और अरुण कुमार को दलितों (बसपा वोटबेस) का वोट मिलेगा, जिससे जहानाबाद में राजद को नुकसान होगा और जद(यू) को मदद मिलेगी.


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नीतीश के सामने चुनौतियां

पिछले हफ्ते, सीएम नीतीश ने किशनगंज, अररिया, मधेपुरा और पूर्णिया में चुनावी रैलियों में बात की, जहां मुस्लिम आबादी एक निर्णायक कारक है और मतदाताओं को राजद शासन के बारे में आगाह किया.

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “2005 से पहले हिंदू और मुसलमानों के बीच झड़पें होती थीं. ये लोग हिंदू और मुसलमानों के बीच झड़पों को भड़काते थे. जब मैं (2005 में सीएम) आया, तो मैंने इन झड़पों को खत्म कर दिया और अगर आप मुझे भूल गए और मुझे हरा दिया, तो आपको फिर से वही झड़पों का सामना करना पड़ेगा. इसे ध्यान में रखें.”

बिहार में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान नीतीश, भाजपा के साथ गठबंधन और राजद प्रमुख और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद के मुस्लिम-यादव चुनावी गणित के बावजूद मुसलमानों से अच्छी खासी संख्या में वोट हासिल करते थे.

नीतीश ओबीसी और ईबीसी तथा भाजपा के उच्च जाति के वोट बैंक की मदद से अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में सीटें जीतने में सफल रहे, लेकिन अब उनके पारंपरिक समर्थन आधार में स्पष्ट गिरावट के साथ, मुस्लिम वोट बैंक भी असमंजस में है कि उन्हें अपना वोट नीतीश पर बर्बाद करना चाहिए या तेजस्वी के साथ जाना चाहिए.

जहानाबाद जिले के शफीक रहमान ने दिप्रिंट से कहा: “हम नीतीश को वोट देते थे क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि है और उनका कोई सांप्रदायिक एजेंडा नहीं है. उन्होंने हर वर्ग के लोगों के लिए काम किया, लेकिन नीतीश का समय खत्म हो रहा है. यहां तक ​​कि उनके पिछड़ी जाति के समर्थक भी भाजपा को वोट दे सकते हैं क्योंकि पार्टी बढ़त में है. हमें नीतीश को वोट देने के बारे में सोचना होगा.”

सीएम के सामने चुनौती सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक को बनाए रखने की नहीं है, बल्कि ईबीसी को भी बनाए रखने की है. पूरे बिहार में इस वर्ग के मतदाताओं के 33 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है.

माना जाता है कि कुर्मी अब भी नीतीश के साथ हैं, लेकिन बिहार में पिछड़ी आबादी में 8-10 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले कुशवाहा, जद (यू) को लेकर उत्साहित नहीं दिख रहे हैं.

इस प्रकार रोड शो आयोजित करके और मतदाताओं को पत्र लिखकर, नीतीश 7 मई को तीसरे चरण के मतदान से पहले मतदाताओं को अपनी पार्टी के प्रति उत्साहित करने के लिए जंगल राज की यादों को जगा रहे हैं, जब जेडी(यू) के तीन उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और खगड़िया में मतदान होना है.

मोदी द्वारा लिखे गए पत्रों की तर्ज पर मतदाताओं को लिखे गए एक खुले पत्र में, जेडी(यू) प्रमुख ने उन्हें राजद शासन के दौरान बिहार की स्थिति और पिछले 20 साल में जेडी(यू) द्वारा किए गए विकास कार्यों, कानून और व्यवस्था से लेकर महिलाओं को सशक्त बनाने, स्थानीय निकायों में आरक्षण देने और रोज़गार की सुविधा प्रदान करने की याद दिलाई.

खगड़िया में जहां एनडीए की ओर से एलजेपी (रामविलास) के राजेश वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं, नीतीश ने राजनीति में रिश्तेदारों को बढ़ावा देने के लिए लालू के परिवार पर हमला किया.

उन्होंने पूछा, “मेरे लिए पूरा बिहार ही परिवार है, लेकिन कुछ लोग अपने बेटे-बेटी को ही परिवार मानते हैं. जेडी(यू) और बीजेपी में कोई परिवार नहीं है. क्या आपने नरेंद्र मोदी के परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में देखा है?”

बिहार में भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने नीतीश की घटती लोकप्रियता का बचाव करते हुए कहा, “हर चुनाव में लोग कई कारणों से लापरवाह हो जाते हैं. अगर उम्मीदवार अच्छा नहीं है तो मतदाता शुरू में गुस्सा दिखाते हैं, लेकिन अंत में वे एनडीए को ही वोट देते हैं. लोगों को लालू परिवार को फिर से सत्ता में लाने के खतरे का एहसास है. यह चुनाव प्रधानमंत्री चुनने के लिए है, इसलिए स्वाभाविक रूप से मोदी ही अभियान की अगुआई कर रहे हैं.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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