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Wednesday, 2 October, 2024
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राजस्थान में जाट वोट- जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन से BJP को क्या होगा फायदा

भाजपा नेताओं का कहना है कि राज्यसभा सभापति की भूमिका में धनखड़ को संतुलनकारी कार्य करना होगा, उनके उप-राष्ट्रपति पद के नामांकन से राजस्थान में जाटों को अच्छा संदेश जाने की उम्मीद है.

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नई दिल्ली: किसान पुत्र, पहली पीढ़ी के वकील और जनता का राज्यपाल है, भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के नाम की घोषणा करते हुए उनके बारे में कहा.

2019 में, धनखड़ को मुख्य रूप से एक विपक्षी शासित राज्य में उनकी कानूनी विशेषज्ञता के कारण पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था. तीन साल बाद, अगर वे 6 अगस्त को चुने जाते हैं, तो राज्यसभा में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हुए कानून की अपनी समझ से चीजों को आसान करेंगे.

धनखड़ की नियुक्ति राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा जाटों को मनाने में लगी है, जो कृषि आंदोलन के दिनों से मोदी सरकार से नाराज हैं. राजस्थान, जहां अगले साल चुनाव होने हैं, और हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस समुदाय का काफी प्रभाव है. धनखड़ के निर्वाचित होने के बाद, राजस्थान को संसद के दोनों सदनों में पीठासीन नेताओं को भेजने का गौरव प्राप्त होगा – लोकसभा स्पीकर ओम बिरला कोटा से सांसद हैं.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सूत्रों ने कहा कि जाट उम्मीदवार को मैदान में उतारकर पार्टी विपक्षी दलों में एकता को तोड़ने में सक्षम होगी जैसा कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के मामले में देखा गया है.

राजस्थान के झुंझुनू जिले के एक सुदूर गांव में एक किसान परिवार में जन्मे धनखड़ ने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की. जयपुर के महाराजा कॉलेज से फिजिक्स में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने 1979 में राजस्थान यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया.

पहली पीढ़ी के वकील होने के बावजूद वे राजस्थान के तमाम नामों में से वह एक बन गए. धनखड़ ने राजस्थान उच्च न्यायालय के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय में भी अभ्यास किया है.

उनके राजनीतिक करिअर की शुरुआत 1989 में हुई जब वे जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से चुनाव जीते. उन्हें चुनाव का टिकट मुख्य रूप से उनके गुरु देवीलाल के साथ उनके संबंधों के कारण दिया गया था. इसके बाद वे 1990 में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री बने. 1993 में, वह कांग्रेस के टिकट पर किशनगढ़ से राजस्थान विधानसभा के लिए चुने गए. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व वकील धनखड़ ने 2003 में बीजेपी में शामिल हुए थे. उनके भाई रणदीप धनखड़ अभी भी कांग्रेस के साथ हैं.

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि जब वह (धनखड़) विधायक चुने गए थे, तब भैरों सिंह सेखवत मुख्यमंत्री थे. वे उस समय कांग्रेस में थे. विधेयकों पर बहस के दौरान उनके तर्कों ने शेखावत का ध्यान उनकी ओर खींचा. चुनाव हारने के बाद, उन्होंने खुद को दिल्ली शिफ्ट कर लिया और ज्यादातर केंद्रीय नेताओं के संपर्क में रहे.’

धनखड़ के संबंधी पूर्व भाजपा सांसद राम सिंह कस्वां ने वरिष्ठ नेता के नेटवर्किंग कौशल की पुष्टि की. कस्वां ने कहा, ‘जब वह दिल्ली में थे तो वह कई लोगों से मिलते थे.’

भाजपा के एक अन्य सूत्र ने कहा कि धनखड़ उन वकीलों की टीम में थे, जिन्होंने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता इंद्रेश कुमार के खिलाफ लगाए गए आतंकी आरोपों का मुकाबला किया था, इसी समय वह संघ के करीब आए.

सूत्र ने कहा, ‘उन्होंने आरएसएस नेता की ओर से कई मुकदमे लड़े. उस समय वकील के रूप में उनकी भूमिका पर ध्यान दिया गया था और जब अमित शाह-नरेंद्र मोदी दिल्ली आए तो उन्हें पुरस्कृत किया गया.’

बंगाल के राज्यपाल के रूप में, धनखड़ के पास ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ सवाल खड़ा करने की एक श्रृंखला थी. वहीं बंगाल सरकार ने अक्सर उन पर ‘केंद्र का आदमी’ होने का आरोप लगाया है, धनखड़ ने कहा है कि उन्होंने संविधान द्वारा अनिवार्य अपनी भूमिका का पालन किया है.

जादवपुर विश्वविद्यालय की गड़बड़ी हो और डीजीपी की नियुक्ति, या सरकार द्वारा कोविड संकट से निपटने और चक्रवात अम्फान के बाद राहत के प्रयासों में, धनखड़ अक्सर ममता के विपरीत छोर पर थे. दोनों के बीच ऐसी तीखी नोकझोंक थी कि टीएमसी के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिसंबर 2020 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर राज्यपाल को वापस बुलाने का आग्रह किया था.


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ध्यान में राजस्थान का चुनाव 

कटारिया ने दिप्रिंट को बताया कि धनखड़ ने साबित कर दिया है कि वह न केवल कानून के जानकार हैं, बल्कि पश्चिम बंगाल जैसे विपक्ष शासित राज्य में भी काम कर सकते हैं. ‘राज्यसभा में प्रोसीडिंग करना भी बंगाल की स्थिति को मैनेज करने जैसा है. एनडीए के पास बहुमत है लेकिन बीजेपी को धनखड़ जैसे लोगों की जरूरत है, जिन्होंने मुश्किल हालात में सरकारी कामकाज चलाने की कला सीखी है.’ उन्होंने पिछले साल राज्यसभा के 12 सदस्यों के निलंबन का जिक्र करते हुए कहा.

कटारिया ने कहा कि राज्यसभा के सभापति की भूमिका के साथ न्याय करने के लिए एक मजबूत व्यक्तित्व की जरूरत है.

लेकिन भाजपा ने धनखड़ को चुनाव के लिहाज से भी चुना, यह देखते हुए कि प्रधानमंत्री से लेकर अन्य भाजपा नेताओं तक, सभी ने किसान पुत्र के रूप में और जाट किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए उनकी भूमिका का उल्लेख किया है.

राजस्थान में, जाट कुल मतदाताओं का लगभग 12 प्रतिशत हैं. भाजपा सूत्रों ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धनखड़ के नामांकन को लेकर विशेष रूप से असमंजस में रहेंगे क्योंकि वह उम्मीदवारी का विरोध करने के लिए अपनी पार्टी के व्हिप के खिलाफ नहीं जा सकते.

गंगानगर से भाजपा सांसद निहाल चंद चौहान ने दिप्रिंट को बताया कि धनखड़ के चयन से विधानसभा चुनाव से पहले जाटों को सही संदेश जाएगा. ‘उन्होंने जाट किसानों के लिए लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है … उन्होंने राजस्थान में जाटों के लिए ओबीसी का दर्जा पाने के लिए लड़ाई लड़ी थी.’

हालांकि, पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने दिप्रिंट को बताया कि 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी आरक्षण की मांग कर रहे जाट किसानों की एक रैली को संबोधित करने के लिए सीकर आए थे, तो भाजपा के दिग्गज ने घोषणा की थी कि सरकार बनने के बाद भाजपा आरक्षण की मांग पर ध्यान देगी. ‘ज्ञान प्रकाश पिलानिया उस आंदोलन के नेता थे; धनखड़ कुछ अन्य हिस्सों में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे.’

अन्य भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि धनखड़ जाट आंदोलन का चेहरा नहीं थे, लेकिन राजस्थान में इससे  जुड़ाव के कारण उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.

भाजपा के साथ समुदाय (जाट) की बेचैनी जगजाहिर है, जैसा कि पड़ोसी हरियाणा में पार्टी द्वारा गैर-जाट मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद देखा गया है. इसके बाद, भाजपा ने उस राज्य में समुदाय के गुस्से को शांत करने के लिए जननायक जनता पार्टी को गर्मजोशी से तवज्जो दी.

भाजपा के एक केंद्रीय नेता ने कहा कि जब धनखड़ राज्यसभा के सभापति के रूप में पदभार संभालेंगे तो ‘उन्हें वेंकैया नायडू द्वारा छोड़ी गई जगह को भरना होगा, जिनके पास अधिक विधायी अनुभव है और राजनीतिक दलों में उनके संबंध हैं. धनखड़ का जुझारू स्वभाव विपक्ष को नाराज कर सकता है. उन्हें अपने अनुनय और कानूनी कौशल का उपयोग हाउस ऑफ एल्डर्स में कार्यवाही को संभालने के लिए करना होगा’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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