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Friday, 20 December, 2024
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कौन हैं गहलोत खेमे को चुनौती देने वाली कांग्रेस की जाट चेहरा दिव्या मदेरणा, जिसने की राजे की तारीफ

पहली बार विधायक बनीं दिव्या मदेरणा दिग्गज राजनेताओं के एक परिवार से आती हैं और उन्होंने कांग्रेस के आलाकमान का लगातार समर्थन करके अपनी पहचान बनाई है, लेकिन फिर भी कई सारे विवादों ने उनके करियर को प्रभावित किया है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे का हवाला देते हुए, राजस्थान के ओसियां से पार्टी की विधायक दिव्या मदेरणा ने पिछले हफ्ते ट्वीट किया: ‘बकरीद में बचेंगे, तो मुहर्रम में नाचेंगे’

मदेरणा अशोक गहलोत सरकार में जल संसाधन मंत्री और कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक महेश जोशी की तरफ से कथित अनुशासनहीनता के लिए कांग्रेस नेतृत्व द्वारा उन्हें जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के सम्बन्ध में ट्वीट कर रही थीं. संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल को भी एक ऐसा ही नोटिस जारी किया गया है.

जोशी ने कथित तौर पर कुछ विधायकों को कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की उस बैठक में शामिल नहीं होने के लिए उकसाया था, जिसमें पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जो उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की योजना बना रहे थे, का उत्तराधिकारी नियुक्त करने के लिए अधिकृत किया जाना था.

इसके बजाय गहलोत के वफादार वे विधायक जो सीएलपी की बैठक में शामिल नहीं हुए, उन्होंने धारीवाल के आवास पर मुलाकात की और सचिन पायलट को अगले मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने की संभावना के विरोध में अपना सामूहिक त्याग पत्र सौंप दिया.

मदेरणा इस बहिष्कार की आलोचना में काफी मुखर रही हैं. उन्होंने कथित तौर पर कहा है, ‘अब से मैं उनसे (जोशी) कोई निर्देश नहीं लूंगीं. उन्होंने सभी विधायकों को सीएलपी (कांग्रेस विधायक दल) की बैठक के लिए आने हेतु फोन किया और फिर इसके समानांतर धारीवाल के आवास पर पार्टी विरोधी गतिविधियों का नेतृत्व किया.’

अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी की राजनेता, दिव्या मदेरणा ने साल 2010 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया था. उनके पिता और दादा दोनों हो राज्य के जाट समुदाय के बड़े नेता और कांग्रेस की राजस्थान सरकार में मंत्री रहे थे.

चूंकि राजस्थान में सत्ता के लिए खींचतान गहलोत और सचिन पायलट के बीच है, इसलिए मदेरणा ने लगातार मुख्यमंत्री गहलोत के करीबी विधायकों पर निशाना साधा हुआ है. राज्य के हालिया राजनीतिक संकट के दौरान, वह उन कुछ विधायकों में से एक थीं, जिन्होंने साफ-साफ कहा था कि वे आलाकमान के साथ हैं और गहलोत या पायलट समूह का हिस्सा नहीं हैं – यह एक ऐसा गुण है जिसे उनके दादा परसराम मदेरणा ने भी दो दशक पहले तब दर्शाया था जब आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से वंचित कर दिया था.

38-वर्षीय मदेरणा को पहली बार साल 2018 में जोधपुर की ओसियां सीट से विधानसभा चुनाव का टिकट दिया गया था. अपनी जीत के साथ उन्होंने 2013 में इसी सीट से हुई उनकी मां की हार का बदला लिया था.

हालांकि, 2023 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में जाट नेता हनुमान बेनीवाल और उनकी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का खतरा मंडरा रहा है.

कांग्रेस को अब एक प्रभावशाली जाट चेहरे की सख्त जरूरत है. इस संदर्भ में मदेरणा को उस पार्टी में एक खालीपन नजर आता है जिसे वह भर सकती हैं. हालांकि, अपने दादा की तरह जाट वोटों के रुझान को तय करने के लिए अभी शायद उन्हें एक लम्बा रास्ता तय करना है.


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राजस्थान का जाट वोट

मदेरणा और मिर्धा ऐसे दो परिवार रहे हैं जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस को राज्य में अपने जाट वोट को मजबूत करने में मदद की है. हालांकि, साल 1999, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ओबीसी श्रेणी के तहत जाटों के लिए आरक्षण की घोषणा की थी, के बाद से यह समुदाय धीरे-धीरे कांग्रेस से दूर हो गया है.

इसका परिणाम 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनावों में दिखाई दिया, जब कांग्रेस ने इस राज्य में काफी खराब प्रदर्शन किया.

यह समुदाय किसी जाट को कभी मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं करने के लिए भी कांग्रेस द्वारा ठगा गया महसूस करता है. साल 1998 में दिव्या मदेरणा के दादा की दावेदारी पर कांग्रेस आलाकमान द्वारा अशोक गहलोत को दी गई प्राथमिकता को इस समुदाय ने अच्छी तरह से नहीं लिया था.

जाट समुदाय राज्य के 4.76 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है और शेखावाटी एवं मारवाड़ जैसे इलाकों में काफी प्रभावशाली हैं. वे राजपूतों और गुर्जरों के साथ राजनीतिक प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, और इन दोनों ही समुदायों का कुल मतदाताओं की संख्या में पांच से छह प्रतिशत का हिस्सा है.

साक 2018 में, जब दिव्या मदेरणा को पहली बार चुनावी मैदान में उतारा गया था, तो कांग्रेस कुछ हद तक इस समुदाय को अपने पाले में वापस लाने में कामयाब रही थी.

कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक करण सिंह उचियार्डा के मुताबिक मदेरणा का ‘कांग्रेसवादी’ चरित्र काफी मजबूत है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘नेतागण आजकल अपना अधिकांश समय नेतृत्व और प्रशासन की नजर में अच्छे बने रहने की कोशिश में बिताते हैं. लेकिन मैंने दिव्या मदेरणा के इस तरह के व्यवहार में शामिल होने के बारे में कभी नहीं सुना. उनके पास एक मजबूत ‘गांधीवादी’ और ‘कांग्रेसवादी’ चरित्र है. वह नौकरशाहों और अन्य प्रशासकों से उसी तरह से बात करती हैं, जैसी एक विधायक की करनी चाहिए.’

जोधपुर के मदेरणा परिवार की उत्तराधिकारी

दिव्या मदेरणा ने अर्थशास्त्र में उच्च अध्ययन करने के लिए नॉटिंघम विश्वविद्यालय जाने से पहले पुणे विश्वविद्यालय में उसी विषय का अध्ययन किया था. अपने वापस आने के तुरंत बाद उन्होंने साल 2010 में हुए ओसियां जिला परिषद का चुनाव लड़ने और जीतने के साथ राजनीति में कदम रखा.

वर्तमान में, उनकी मां लीला देवी जोधपुर की जिला प्रमुख हैं.

उनके पिता स्वर्गीय महिपाल मदेरणा राजस्थान सरकार में मंत्री थे. वह उस भंवरी देवी हत्याकांड के मुख्य आरोपियों में से एक थे, जिसे पिछली गहलोत सरकार के सबसे ख़राब पलों में से एक माना जाता था.

उनके दादा, परसराम, कांग्रेस के एक बड़े नेता थे, और साल 1998 के विधानसभा चुनावों में हुई पार्टी की शानदार जीत के प्रमुख चेहरों में से एक थे. हालांकि, कहा जाता है कि कांग्रेस आलाकमान ने मदेरणा के मुकाबले गहलोत का पक्ष लिया था.

कांग्रेस विधायक उचियार्डा ने मदेरणा की नेतृत्व शैली का जिक्र करते हुए इस घटना का जिक्र किया है.

उचियार्डा ने दिप्रिंट को बताया, ‘पोती अपने दादा के नक्शेकदम पर चल रही है. साल 1998 में जब आलाकमान ने गहलोत का पक्ष लिया था तो कांग्रेस के 152 विधायकों में से 136 ने इस फैसले का विरोध करने की कोशिश की थी. लेकिन परसराम जी ने कहा था – ऊपर भगवान, नीचे आलाकमान, और उनके फैसले को स्वीकार कर लिया था.’

मदेरणा ने भी गहलोत को अपने दादा की वफादारी की याद दिलाई थी.

जब सीएलपी कांग्रेस अध्यक्ष को गहलोत का उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार देने वाला एक-पंक्ति का प्रस्ताव पारित करने में विफल रही थी, तब दिव्या मदेरणा ने कहा था, ‘मेरे दादा परसराम मदेरणा ने उस समय के प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में कहा था कि पार्टी आलाकमान का निर्णय सर्वोपरि है. अतीत में कांग्रेस में ऐसे सशर्त प्रस्ताव कभी पेश नहीं हुए थे. ‘

गहलोत के साथ अपने परिवार के कटु इतिहास के बावजूद, जब साल 2020 में मुख्यमंत्री पद को लेकर पायलट और गहलोत के बीच गुटबाजी छिड़ गई थी, तो मदेरणा गहलोत के समर्थन में सामने आईं थीं क्योंकि तब वह आलाकमान की पसंद थे.

स्पष्टवादी, प्रत्यक्ष

विधायक के रूप में बिताये अपने थोड़े से समय में ही मदेरणा कई विवादों के केंद्र में भी रही हैं.

साल 2019 में, मदेरणा के एक वीडियो ने विवाद खड़ा कर दिया था, जिसमें वह एक महिला सरपंच को अपने बगल की कुर्सी के बजाय फर्श पर बैठने के लिए कह रही थीं. मदेरणा ने आरोप लगाया था कि वह सरपंच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कार्यकर्ता थी और सवाल किया था कि कांग्रेस को वोट देने वाले ग्रामीणों को धन्यवाद देने के लिए आयोजित एक बैठक में उन्हें मंच पर बैठने की अनुमति कैसे दी जा सकती है?

मदेरणा ने कहा कि वह नहीं जानती थी कि महिला सरपंच थी क्योंकि उसका चेहरा घूंघट से ढका हुआ था.

इस साल की शुरुआत में, महेश जोशी के साथ उनकी एक और झड़प तब हुई थी, जब उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों की पानी की समस्याओं को दूर नहीं करने के लिए उन्हें ‘रबर स्टैंप’ कहा था.

मदेरणा ने कथित तौर पर जोशी से कहा था, ‘मैं आपको चेतावनी दे रही हूं कि मैं लोगों की सेवा के लिए राजनीति में आई हूं और अगर आप पानी की योजनाओं को जमींदोज़ करना जारी रखते हैं तो मैं आपके खिलाफ एक जन अभियान चलाऊंगी.’

उन्होंने आरोप लगाया था कि इस विभाग का सारा काम गहलोत के प्रधान सचिव द्वारा किया जा रहा है. उसी सिलसिले में उन्होंने राज्य की पूर्व भाजपा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भी प्रशंसा करते हुए उन्हें ‘अच्छा नेता’ कहा था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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