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Friday, 15 November, 2024
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जाटों का गुस्सा पश्चिम UP में बीजेपी की हार के लिए काफी नहीं, लेकिन RLD, SP को मिली बढ़त

2017 के पिछले विधान सभा चुनावों में, बीजेपी ने यहां से 51 सीटें जीतीं थी, जबकि 2012 में उसे 11 सीटें मिली थीं. 2017 में एसपी ने पश्चिम यूपी से 15 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस को दो, और आरएलडी तथा बीएसपी को एक- एक सीट मिली थीं.

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नई दिल्ली: भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 66 सीटों में से 35 सीटों पर गुरुवार शाम करीब 6 बजे तक आगे चल रही थी, जबकि अब निरस्त किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर के किसानों के आंदोलन के बावजूद भाजपा आगे चल रही है सपा एक करीबी दावेदार थी, जो इस क्षेत्र की 31 सीटों पर आगे चल रही है.

2017 के पिछले विधान सभा चुनावों में, बीजेपी ने यहां से 51 सीटें जीतीं थी, जबकि 2012 में उसे 11 सीटें मिली थीं. 2017 में एसपी ने पश्चिम यूपी से 15 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस को दो, और आरएलडी तथा बीएसपी को एक- एक सीट मिली थीं.

पश्चिम यूपी में बीजेपी की कामयाबी, कृषि क़ानूनों तथा गन्ना भुगतान के बक़ाया पर, जाटों के ग़ुस्से की आशंका के बावजूद आई है. जाट समुदाय यहां की आबादी का एक ख़ासा बड़ा हिस्सा है. जयंत चौधरी का राष्ट्रीय लोक दल (जिसे मुख्य रूप से जाट समुदाय का समर्थन मिलता है, और जो समाजवादी पार्टी का गठबंधन सहयोगी है) चुनावों से पहले आयोजित किए गए, अपने भाईचारा सम्मेलनों से कोई प्रभाव नहीं छोड़ सका- जिनका उद्देश्य अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच की दूरी को पाटना, और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था.

बल्कि, ये योगी आदित्यनाथ के अंतर्गत राज्य की क़ानून व्यवस्था में सुधार के बीजेपी के दावे, और केंद्र तथा राज्य की मोदी-योगी की डबल-इंजिन सरकारों द्वारा लाई गईं लाभार्थी योजनाएं (जैसे कि ग़रीबों तथा बेरोज़गारों के लिए मुफ्त राशन और वित्तीय सहायता) थीं, जिन्होंने लगता है कि मतदाता समर्थन की लहर को, बीजेपी के पक्ष में मोड़ दिया है.

सीएम आदित्यनाथ की ‘बुलडोज़र बाबा’ की छवि (कथित अपराधियों की संपत्तियों को तोड़ने के लिए, सरकार द्वारा बुलडोज़र्स के इस्तेमाल पर, एसपी प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा इस्तेमाल एक व्यंगात्मक शीर्षक) की भी, ख़ासकर ग़ैर-प्रमुख ओबीसी जातियों में गूंज सुनाई दी. इलाक़े में कई रैलियों में शाह ने हवाला दिया, कि किस तरह योगी सरकार द्वारा शुरू की गईं ‘रोमियो-विरोधी ब्रिगेड्स’ के नतीजे में, 14,454 लोगों की गिरफ्तारियां हुईं थीं. उन्होंने दावा किया कि इससे महिलाओं के प्रति अपराधों में 41.4 प्रतिशत कमी लाने में मदद मिली. ख़ुद सीएम ने दावा किया कि कथित गैंग्सटर्स से जुड़ीं, लगभग 18,000 करोड़ मूल्य की संपत्तियां ज़ब्त की गईं थीं.

लोगों की भावनाओं का ध्रुवीकरण करने के लिए, जैसा कि उसने 2017 में किया था, पार्टी ने 2013 के मुज़फ्फर दंगों (राज्य में एसपी सरकार के शासन के दौरान) की यादों का भी प्रभावी तरीक़े से इस्तेमाल किया. कैराना में घर-घर जाकर प्रचार के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह ने उन हिंदू परिवारों से मुलाक़ात की, जिन्हें दंगों के बाद कथित रूप से प्रवास करने पर मजबूर कर दिया गया था, और जो बाद में लौट आए थे. शाह ने योगी सरकार के अंतर्गत क़ानून व्यवस्था की सुधरी हुई स्थिति की भी बात की.

इस क्षेत्र में बीजेपी जातीय समीकरण बिठाने में भी कामयाब रही, और वो तमाम पिछड़ी जातियों के मतदाताओं तक पहुंच गई- जैसे सैनी, कुशवाहा, कुर्मी और जाटव- जिसके लिए उसने इन जातियों के नेताओं को आगे बढ़ाया. जाटव दलित समुदाय पर नज़र रखते हुए (जो बीएसपी सुप्रीमो मायावती का प्रमुख वोट बैंक है), सीएम आदित्यनाथ ने पिछले साल प्रदेश के एससी-एसटी आयोग का पुनर्गठन किया, और पूर्व बीजेपी विधायक रामबहु हरित (एक जाटव) को उसका अध्यक्ष बना दिया. इससे पहले एक और जाटव, लालजी निर्मल को यूपी दलित वित्त निगम का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

इस बीच, जसवंत सिंह सैनी भी, जिन्हें पिछले साल उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था, पश्चिम यूपी में बीजेपी के लिए स्टार-प्रचारक थे. पार्टी ने बेबी रानी मौर्य से भी उत्तराखंड राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिलवा दिया, और एक दलित चेहरे के तौर पर आगे बढ़ाते हुए, उन्हें यूपी के असेम्बली चुनावों में लड़ाया.

यही नहीं, पश्चिम यूपी में प्रचार करते हुए अमित शाह ने, जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए, विरोधी जयंत चौधरी के सामने शांति प्रस्ताव भी पेश कर दिया, और कहा कि आरएलडी प्रमुख ने (एसपी के साथ मिलकर) ‘ग़लत घर’ चुन लिया था, और उन्होंने इशारा किया कि बीजेपी में उनका स्वागत है.

इससे भी बीजेपी को यहां हिंदू पिछड़ी जातियों को लुभाने में मदद मिली.

जेएनयू में समाज विज्ञान के प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा, ‘बीजेपी के हाई-पिच अभियान की वजह से चुनावों का ध्रुवीकरण हो गया था, जिसमें एसपी को मुस्लिम-यादवों की पार्टी, और (हिंदुओं के खिलाफ) दंगों में सह-अपराधी के तौर पर प्रचारित किया गया’.

कुमार ने आगे कहा: ‘अखिलेश शासन की याद (बीजेपी के पक्ष में) एक कारक थी, लेकिन ध्रुवीकरण की वजह से मोटे तौर पर हिंदू मतदाता, कृषि या रोज़मर्रा के दूसरे मुद्दों पर नहीं बंटे. मोदी की डायरेक्ट बेनिफिट स्कीमों से भी पार्टी को फायदा पहुंचा. जाटों के कुछ वर्गों को छोड़कर, दूसरी ओबीसी जातियों ने पश्चिम यूपी में बीजेपी का साथ दिया’.


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जाट फेक्टर से RLD को फायदा नहीं हुआ

हालांकि पश्चिम यूपी के कुछ ज़िलों में, जाट आबादी का क़रीब 18 प्रतिशत हैं, और जाट वोटों पर नज़र रखते हुए बीजेपी ने अतीत में यहां आरएलडी से गंठबंधन किया है, लेकिन 2014 से (मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद जिनके नतीजे में वोटों का ध्रुवीकरण हुआ) जयंत चौधरी की पार्टी का, यहां के चुनावों में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा है.

सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के डेटा के अनुसार, 2012 के यूपी असेम्बली चुनावों में सिर्फ सात प्रतिशत जाटों ने बीजेपी को वोट दिया था. 2014 (लोकसभा चुनावों) में ये संख्या बढ़कर 77 प्रतिशत, और 2017 (यूपी चुनावों) में 91 प्रतिशत तक पहुंच गई.

2017 बीजेपी के 11 जाट विधायक थे, जबकि योगी आदित्यनाथ सरकार में चार मंत्री जाट थे.

इसकी तुलना में, आरएलडी को 2017 में सिर्फ छपरौली की एक सीट मिली, लेकिन वो विधायक भी 2018 में बीजेपी में शामिल हो गया. 2019 के लोकसभा चुनावों में, तीन जाट बीजेपी सांसद बने.

यूपी असेम्बली चुनावों के पहले और दूसरे चरणों के लिए, अपने उम्मीदवारों की सूची में एसपी ने 33 सीटें आरएलडी के लिए रखीं थीं, जबकि पांच एसपी उम्मीदवार आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर लड़े थे. गठबंधन ने 16 जाट उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जो बीजेपी की संख्या के बराबर थे.

बीजेपी मुस्लिम वोटों के बटवारे और दलित-ओबीसी ध्रुवीकरण, तथा युवा जाट मतदाताओं के एक बड़े हिस्से के समर्थन पर भी निर्भर कर रही थी.

ये भी अपेक्षा की जा रही थी, कि पश्चिम यूपी में एसपी के मुस्लिम उम्मीदवारों के खिलाफ, बीएसओ के 28 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े करने से भी, एसपी के लिए समर्थन कटेगा और ये बीजेपी के पक्ष में जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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