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Tuesday, 2 September, 2025
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जरांगे का निशाना फडणवीस पर, लेकिन शांति दूत शिंदे क्यों हैं मराठा आंदोलन से दूर

हैरानी की बात यह है कि अब तक शिंदे ही संकटमोचक रहे हैं—बैक-चैनल बातचीत शुरू कर जारंगे को आंदोलन टालने के लिए मनाने वाले.

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मुंबई: आज़ाद मैदान में मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल का अनशन मंगलवार को पांचवें दिन में पहुंच गया. उनकी मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखने का संकल्प और मज़बूत होता दिख रहा है.

सत्ता पक्ष महायुति के कई नेता, खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के, इस पूरे आंदोलन पर किसी न किसी तरह से टिप्पणी कर चुके हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे अब तक चुप हैं.

हैरानी की बात यह है कि शिंदे अब तक संकटमोचक रहे हैं—बैक-चैनल बातचीत शुरू कर जरांगे को आंदोलन टालने के लिए मनाने वाले. हर बार, आखिरी बार जनवरी पिछले साल जब वे मुख्यमंत्री थे, शिंदे ने खुद को महाराष्ट्र सरकार और मराठा आरक्षण समर्थक कार्यकर्ता के बीच शांति कराने वाले सूत्रधार के तौर पर पेश करने से परहेज़ नहीं किया.

इस बार, चंद बयानों को छोड़ दें, तो न तो शिंदे और न ही शिवसेना के किसी मंत्री ने आंदोलनकारियों से बात करने की कोशिश की है.

पिछले शुक्रवार जब अमित शाह मुंबई में थे, शिंदे केंद्रीय गृहमंत्री के साथ गणेश पंडालों में नज़र आए, लेकिन वीकेंड में, जब जरांगे का आंदोलन मुंबई में तेज़ हुआ, शिंदे सतारा अपने गांव गणपति उत्सव में चले गए और हालात मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हवाले कर दिए. दूसरे डिप्टी सीएम, अजित पवार भी अपने गृह जिले पुणे में थे.

सोमवार को, दोनों डिप्टी सीएम मुंबई में फडणवीस की अध्यक्षता वाली बैठक में शामिल हुए, जिसमें मराठा आंदोलन पर सरकार की प्रतिक्रिया पर चर्चा हुई, जहां फडणवीस ब्राह्मण हैं और अब तक जरांगे का मुख्य निशाना रहे हैं, वहीं उनके दोनों डिप्टी सीएम मराठा समुदाय से आते हैं.

शिवसेना ने भले ही शिंदे की मुंबई से गैरहाज़िरी और आंदोलन पर उनकी चुप्पी को कमतर बताया हो, लेकिन कई नेताओं ने संकेत दिए कि इस समय शिंदे के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है.

शिवसेना मंत्री संजय शिरसाट ने दिप्रिंट से कहा, “सारी चर्चाएं सीएम और डिप्टी सीएम के बीच हो रही हैं. यह उनका आंतरिक मामला है, लेकिन वे आपस में संपर्क में हैं. हमारी पार्टी का सदस्य सब-कमेटी में है, जब तक हमें नहीं बुलाया जाता, हम बातचीत शुरू करने की पहल नहीं करेंगे.”

शिंदे का आंदोलन से दूरी बनाए रखने का फैसला ऐसे समय आया है, जब सीएम फडणवीस के साथ सत्ता संघर्ष भी चल रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भी उसी सत्ता संघर्ष का हिस्सा हो सकता है.

मराठवाड़ा के राजनीतिक विश्लेषक जयदेव डोले ने दिप्रिंट से कहा, “चूंकि, शिंदे को फडणवीस और अजित पवार ने किनारे कर दिया है, यह फडणवीस को जवाब लगता है. साथ ही, आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में, खासकर ग्रामीण महाराष्ट्र में, शिंदे अधिकतम मतदाताओं का समर्थन पाना चाहेंगे.”

उन्होंने कहा, “क्योंकि शिंदे की पार्टी के पास कांग्रेस और एनसीपी की तरह सहकारी, बैंकिंग और शिक्षा का कोई मजबूत आधार नहीं है, इस मराठा आंदोलन के ज़रिए वह ग्रामीण महाराष्ट्र में जड़ें फैलाना चाहते हैं. वह बैकडोर चैनल से आंदोलन को समर्थन भी दे सकते हैं.”

फरवरी 2024 में राज्य सरकार ने विधानसभा और परिषद में महाराष्ट्र राज्य SEBC आरक्षण विधेयक 2024 पारित किया, जिसके तहत मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया. यह कानून महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसने मराठों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा बताया था. हालांकि, यह अलग आरक्षण अभी अदालत की कसौटी पर खरा उतरना बाकी है.

इस बीच, मराठा समुदाय की मांग है कि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में कुंभी के तौर पर आरक्षण दिया जाए, क्योंकि उनका कहना है कि सभी मराठा कभी कुंभी थे. एक तीन-सदस्यीय समिति व्यक्तिगत दावों की जांच कर योग्य लोगों को मराठा-कुंभी प्रमाण पत्र दे रही है.

वहीं, ओबीसी समुदाय इस बात का कड़ा विरोध कर रहा है कि मराठों को कुंभी के तौर पर आरक्षण मिले. महायुति के मंत्री छगन भुजबल, जो अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से महाराष्ट्र के सबसे मज़बूत ओबीसी नेताओं में से एक हैं, अपने समुदाय के साथ खड़े हैं.


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रणनीतिक दूरी?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने जब यह टिप्पणी की कि दक्षिण मुंबई में प्रदर्शनकारियों की भीड़ से शहर ठप हो गया, तब शिंदे ने न तो बीएमसी अधिकारियों के साथ कोई समीक्षा बैठक की और न ही शहर की विभिन्न एजेंसियों की तैयारी पर कोई टिप्पणी की.

शिंदे सिर्फ मुंबई के पालक मंत्री ही नहीं, बल्कि शहरी विकास मंत्री भी हैं.

मुंबई के राजनीति प्राध्यापक अजिंक्य गायकवाड़ ने दिप्रिंट से कहा, “शिंदे की चुप्पी सोची-समझी है. इसके कई कारण हो सकते हैं. किसी भी समूह के पक्ष में बयान देने से होने वाला राजनीतिक नुकसान भारी पड़ सकता है.”

उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा, एक अनुभवी और चालाक नेता होने के नाते, वे अपने बयानों को विपक्ष द्वारा गलत तरीके से प्रस्तुत करने से बचेंगे. ऐसे में गठबंधन सहयोगियों को नाराज़ न करना और गठबंधन की स्थिरता बनाए रखना इस समय सबसे अहम काम है.”

अगस्त 2023 में शिंदे नेतृत्व वाली महायुति सरकार के दौरान अपने गांव अंतरवाली सराटी से आंदोलन शुरू करने वाले जरांगे 1 सितंबर को तब सुर्खियों में आए, जब तत्कालीन गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री फडणवीस के निर्देश पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया.

तब से जरांगे लगातार फडणवीस को निशाने पर लेते रहे, जबकि शिंदे के लिए उन्होंने अपेक्षाकृत नरम रुख दिखाया, क्योंकि शिंदे खुद भी मराठा हैं.

जरांगे पाटिल के आंदोलन को संभालना और उन्हें पीछे हटाने के लिए मनाना शिंदे के लिए उनकी राजनीतिक पहचान को मजबूत करने वाला कदम साबित हुआ. सितंबर 2023 में जरांगे ने 17 दिन बाद अपना अनशन खत्म किया और शिंदे के हाथ से जूस पीकर आंदोलन वापस लिया.

जनवरी 2024 में जब जरांगे अपने समर्थकों के साथ मुंबई की ओर बढ़े, तो आंदोलन नवी मुंबई की सीमा पर ही रोक दिया गया. शिंदे ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी मांगे पूरी होंगी. पाटिल और शिंदे ने एक-दूसरे को गुलाल लगाकर जीत का ऐलान किया.

उस वक्त शिंदे ने जरांगे को पानी पिलाकर उपवास तोड़ने को राज़ी किया और छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा के सामने शपथ ली कि वे मराठा आरक्षण लागू करेंगे. इसके बाद जरांगे अपने गांव जालना लौट गए.

राज्य सरकार ने ओबीसी श्रेणी में आरक्षण दिलाने के लिए योग्य मराठाओं को कुणबी प्रमाणपत्र जारी करने का मसौदा प्रस्ताव निकाला, बाद में इसमें योग्य मराठाओं के ‘सगे-सोयरे’ (रक्त संबंधी) को भी शामिल किया गया.

तब शिंदे ने कहा था, “मैंने छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने शपथ ली थी कि मैं मराठा आरक्षण लागू करूंगा. मैं वादे करके उन्हें निभाने में विश्वास रखता हूं.”

लेकिन इस बार शिंदे का किनारे रहना सबकी नज़र से छिपा नहीं. जरांगे पाटिल के सहयोगी श्रीराम कुरनकर ने कहा, “शिंदे या उनकी पार्टी से कोई हमारे पास नहीं आया. इस बार न्यायमूर्ति शिंदे समिति को छोड़कर सरकार से कोई बात करने भी नहीं आया.”

वहीं भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा कि जरांगे की मांगों पर विचार हो रहा है, लेकिन धैर्य रखना होगा. उन्होंने कहा, “उप-समिति इस पर काम कर रही है और कानूनी तौर पर टिकाऊ रास्ता निकालना होगा. समिति में सभी दलों के सदस्य हैं. महायुति के भीतर कोई समस्या नहीं है.”

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि शिंदे के लिए बेहतर यही है कि वे सीधे विवाद में न आएं और चीजें बैकडोर चैनलों से सुलझाएं.

गायकवाड़ ने कहा, “यह नकारा नहीं जा सकता कि शिंदे मराठा मोर्चा के साथ बैकडोर बातचीत कर रहे हों. दूसरा, आरक्षण का मुद्दा अब न्यायालय के दायरे में है और इस समय बयान देना जोखिम भरा है. अंततः, चुप्पी से उन्हें यह मौका भी मिलता है कि अगर कानूनी नतीजे प्रतिकूल आएं तो जिम्मेदारी और जवाबदेही कम से कम हो.”

राजनीतिक विश्लेषक डोले ने कहा कि शिंदे की गैरहाज़िरी का ताल्लुक आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों से भी है.

उन्होंने कहा, “सरकार का हिस्सा होने के नाते, आंदोलन को काबू करना भी शिंदे की जिम्मेदारी है, लेकिन वे इस समय परख रहे हैं कि स्थानीय चुनावों में उनकी पार्टी को समुदाय के भीतर कितना स्वीकार किया जाता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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