scorecardresearch
Monday, 22 December, 2025
होमराजनीतिअंदरूनी कलह ने कुछ सीटों पर महायुति और MVA को साथ ला दिया. महाराष्ट्र में इनका प्रदर्शन कैसा रहा है

अंदरूनी कलह ने कुछ सीटों पर महायुति और MVA को साथ ला दिया. महाराष्ट्र में इनका प्रदर्शन कैसा रहा है

पुणे और पिंपरी चिंचवड़ जैसी जगहों पर नगर निगम चुनावों के लिए भी ऐसे ही गठबंधन पर पहले से ही विचार किया जा रहा है. रविवार के नतीजे इस प्रयोग को और मज़बूती देंगे.

Text Size:

मुंबई: महाराष्ट्र में 288 नगर पंचायतों और नगर परिषदों के चुनाव नतीजे रविवार को घोषित किए गए. इनमें महायुति ने ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

हालांकि, 50 से ज्यादा स्थानीय निकायों में महायुति और महा विकास आघाड़ी के बीच आपसी समझ बनी, जिसके चलते वहां उन उम्मीदवारों की जीत हुई, जिनका स्थानीय नेतृत्व मजबूत था.

चूंकि ये स्थानीय स्तर के चुनाव हैं, जिनमें जमीनी कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम होती है, इसलिए कई जगह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों ने हाथ मिला लिया. ऐसा कोल्हापुर में एनसीपी और सिंधुदुर्ग में शिवसेना के मामले में देखा गया. इन इलाकों में ज्यादातर मुकाबला महायुति के भीतर ही था.

राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने दिप्रिंट से कहा, “यह पहली बार नहीं है जब इस तरह के गठबंधन हुए हैं. लेकिन इस बार सभी 288 नगर पंचायतों और परिषदों में एक साथ मतदान हुआ, इसलिए यह मुद्दा ज्यादा उभरकर सामने आया. साथ ही, जिस आक्रामकता से सत्तारूढ़ गठबंधन ने चुनाव लड़ा, उससे भी ऐसे गठबंधन चर्चा में आ गए.”

उन्होंने कहा, “स्थानीय निकाय चुनावों में जो नेता जमीन पर मजबूत होता है, बाकी लोग दूसरे सबसे मजबूत उम्मीदवार के खिलाफ उसके साथ आ जाते हैं. वे किसी एक राजनीतिक पार्टी के झंडे तले लड़ना नहीं चाहते और एक साझा प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ एकजुट हो जाते हैं.”

कुछ ही हफ्तों में 29 नगर निगमों के चुनाव होने हैं. ऐसे में ये नतीजे कम से कम धारणा की लड़ाई में पार्टियों को प्रभावित कर सकते हैं.

देशपांडे ने कहा, “हां, इसका असर कम से कम उन लोगों पर पड़ेगा जो अभी दुविधा में हैं और जमीनी कार्यकर्ताओं पर भी. उदाहरण के तौर पर, अगर ठाकरे पूरी तरह मुंबई पर ही ध्यान देंगे और बाकी नगर निगमों की अनदेखी करेंगे, तो जमीनी कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस कर सकता है और किसी दूसरी पार्टी में जा सकता है. इससे चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ सकता है.”

पुणे और पिंपरी चिंचवड़ जैसे इलाकों में भी इसी तरह के गठबंधनों पर विचार किया जा रहा है. रविवार के नतीजों से इस प्रयोग को बल मिलेगा.

ठाणे के अंबरनाथ और बदलापुर में शिवसेना का मुकाबला भाजपा से था. यह मुकाबला इसलिए अहम था क्योंकि ये सीटें एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे के संसदीय क्षेत्र में आती हैं. पिछले कुछ महीनों से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण और शिंदे परिवार के बीच तनाव बना हुआ है.

इन दोनों जगहों पर भाजपा की जीत हुई, जिससे शिंदे गुट को झटका लगा, क्योंकि ये दोनों सीटें पिछले 25 साल से शिवसेना के पास थीं.

एनसीपी मंत्री हसन मुशरिफ ने चंदगढ़ में भाजपा के खिलाफ और कागल में शिवसेना के खिलाफ शरद पवार गुट की एनसीपी के साथ हाथ मिलाया था. हालांकि चंदगढ़ में भाजपा जीती, लेकिन कागल में मुशरिफ का गठबंधन सफल रहा.

मुशरिफ ने मीडिया से कहा, “जब यह गठबंधन हुआ, तो यह लोगों और सभी के लिए चौंकाने वाला था. हमें नहीं पता था कि लोग इसे स्वीकार करेंगे या नहीं. यह हमारे लिए मुश्किल काम था, क्योंकि हमें नहीं मालूम था कि हमारे कार्यकर्ता कैसे प्रतिक्रिया देंगे. मैं कागल के मतदाताओं का भरोसा बनाए रखने के लिए धन्यवाद देता हूं. आगे भी हम ऐसे गठबंधन बनाएंगे.”

पड़ोसी सिंधुदुर्ग जिले में, भाजपा के कांकावली विधायक नितेश राणे, शिवसेना विधायक नीलेश राणे समर्थित शहर विकास अघाड़ी उम्मीदवार से हार गए.

नितेश राणे ने कहा, “मैं जनता के फैसले को स्वीकार करता हूं. यही लोकतंत्र है. आगे हम सोचेंगे कि क्षेत्र के लिए और क्या किया जा सकता है और अपने प्रदर्शन को कैसे बेहतर बनाया जाए.”

उनके भाई निलेश राणे ने महायुति के भीतर आंतरिक तनाव पर टिप्पणी करने से इनकार किया. उन्होंने कहा, “अब चुनाव खत्म हो चुके हैं, इसलिए हम महायुति के भीतर की खींचतान पर बात नहीं करना चाहते.”

रत्नागिरी के चिपलून में एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने महायुति सहयोगी एनसीपी अजीत पवार गुट को हराया. हालांकि नगर परिषद अध्यक्ष पद के लिए भाजपा के संदीप भीसे सिर्फ एक वोट से जीते.

रायगढ़ में मुकाबला एनसीपी अजीत पवार गुट और भाजपा बनाम शिंदे की शिवसेना के बीच था. रायगढ़ में संरक्षक मंत्री पद को लेकर खींचतान चल रही है, जहां एनसीपी के सुनील तटकरे, जिनकी बेटी अदिति को संरक्षक मंत्री बनाया गया है, और शिवसेना के भरत गोगावले आमने-सामने हैं.

स्थानीय विधायक गोगावले महाड़ के स्थानीय निकाय चुनावों में अपना प्रभाव दिखाने में सफल रहे. रायगढ़ जिले में एनसीपी ने 3, शिवसेना ने 3 और भाजपा ने 1 परिषद जीती. बाकी परिषदें महा विकास आघाड़ी की शिवसेना यूबीटी और एनसीपी एसपी को मिलीं.

गोगावले ने मीडिया से कहा, “महाड़ की जीत बताती है कि यहां के मतदाता क्या चाहते हैं. मैं उनका और उन दोस्तों का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने हमारी मदद की. कुछ जादू करना पड़ा. राजनीति में कुछ रणनीतियां अपनानी पड़ती हैं. हमने वही किया और जीत हासिल की.”

नासिक में, जहां संरक्षक मंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच मुकाबला है, छगन भुजबल ने येओला, भागूर और सिन्नर में शिवसेना के खिलाफ एनसीपी-भाजपा गठबंधन का नेतृत्व करते हुए जीत दर्ज की.

नासिक जिले के बाकी इलाकों में शिवसेना को एक और बीजेपी को दो सीटें मिलीं.

विपक्षी महा विकास आघाड़ी ने पालघर में शिंदे की शिवसेना के साथ हाथ मिलाया, जहां इंद्रधनुषी गठबंधन ने दो सीटें जीतीं. भाजपा को यहां सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा.

अपने पुराने गढ़ नांदेड़ में कांग्रेस ने वंचित बहुजन आघाड़ी के साथ गठबंधन किया, लेकिन 11 स्थानीय निकायों में से सिर्फ एक में ही जीत मिली. यहां भाजपा ने 3, एनसीपी ने 3, शिवसेना ने 2 और शिवसेना यूबीटी ने 1 सीट जीती. बाकी एक सीट अन्य उम्मीदवारों के खाते में गई.

अभय देशपांडे ने कहा, “भले ही राजनीतिक दल इसे दोस्ताना मुकाबला कहें, लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं था. सभी पार्टियों ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और नतीजे सबके सामने हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: पंजाब में आपराधिक हिंसा का नया और खतरनाक दौर — ‘गैंग और आतंकवाद का मेल’


 

share & View comments