बेंगलुरू: ऐसे समय जब कर्नाटक असेम्बली चुनाव मुश्किल से एक साल दूर हैं, मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ऐसी बहुत सारी परियोजनाओं का अनुकरण करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे उनकी पार्टी ‘बीजेपी’ को उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी प्रांतों में फायदा मिला है. साथ ही, इससे उन्हें अपने लिंगायत समुदाय के बीच अपने समर्थकों का भरोसा जीतने की भी उम्मीद है.
पिछले दिसंबर में, बोम्मई ने कहा था कि कोप्पल में अंजनाद्री पहाड़ियों को- जिन्हें हिंदू देवता भगवान हनुमान की जन्मस्थली माना जाता है- अयोध्या के राम मंदिर की तर्ज़ पर विकसित किया जाएगा. अब राज्य सरकार कर्नाटक में तुंगाभद्रा नदी के किनारों पर एक ‘तुंगा आरती’ कराना चाहती है, जैसे अनुष्ठान वाराणसी में गंगा तट पर किए जाते हैं.
दो सप्ताह पहले दावणगेरे के हरिहर क़स्बे में बोम्मई ने पत्रकारों से कहा था, ‘हमारे प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पूरी तरह नवीनीकरण कर दिया है. पहले भीड़ भरी दुकानों के बीच आपको मंदिर को तलाशना पड़ता था. अब सभी घाटों को साफ कर दिया गया है’.
‘मंदिर का एक शानदार कायाकल्प हुआ है, और गंगा आरती ज़्यादा जोश के साथ की जा रही है. उसी तर्ज़ पर, हम दक्षिण भारत में तुंगाभद्रा आरती आयोजित कराना चाहते हैं’.
अपने दौरे के दौरान, उन्होंने हरिहर में तुंगाभद्रा के किनारों पर 108 ‘योग मंतपों’ के निर्माण की आधारशिला भी रखी.
शुक्रवार को, अपना पहला बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने, अंजनाद्री पहाड़ियों के विकास के लिए 100 करोड़ के आवंटन का ऐलान किया.
हालांकि ‘तुंगा आरती’ परियोजना का ऐलान पहली बार 2021 में, बोम्मई के सीएम पद संभालने के कुछ ही समय बाद हो गया था, लेकिन पिछले महीने उसे फिर दोहराया गया. ये परियोजना बोम्मई की घोषणाओं और कार्यों की उस लंबी कड़ी में जुड़ गई है, जिसका जाहिरी उद्देश्य बीजेपी के वैचारिक प्रमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को खुश करना, और खुद के बाहरी होने की आलोचना का जवाब देना नज़र आता है.
मंदिरों की स्वायत्तता, अंजनाद्री पहाड़ियां और अब तुंगाभद्रा आरती
पिछले दिसंबर में बोम्मई ने ऐलान किया था कि उनकी सरकार अंजनाद्री हिल्स को विकसित करेगी. ये क्षेत्र, जिसे बोम्मई सरकार किश्किंधा कहकर पुकारेगी- ये नाम हिंदू महाकाव्य रामायण से लिया गया है- वही है जहां तुंगाभद्रा दावणगेरे में हरिहर की ओर से बहकर आती है.
तुंगाभद्रा, जो चिक्कमगलुरू ज़िले से शुरू होती है, दो नदियों का संगम है, जहां तुंगा और भद्रा आकर मिलती हैं. क्रमश: 147 और 171 किलोमीटर बहने के बाद ये दोनों नदियां, शिवमोगा के कूडली गांव में एक होकर तुंगाभद्रा बन जाती हैं.
‘तुंगा पाना गंगा स्नाना’ एक लोकप्रिय कन्नड़ कहावत है- जिसका मतलब है, कि तुंगा का पानी पीजिए और गंगा के पानी में नहाईए- जिसमें देश के अलग अलग हिस्सों में स्थित, दो नदियों के महत्व की तुलना की गई है.
गंगा के किनारों की तरह ही, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी तुंगा, भद्रा, और तुंगाभद्रा के किनारों पर, बहुत से मंदिर बिखरे हुए हैं.
‘तुंगा आरती’ उन घोषणाओं में से एक है, जो बोम्मई ने हिंदुत्व को बढ़ावा देने के तहत की हैं. दिसंबर 2021 में बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में, उन्होंने पार्टी को ये आश्वासन भी दिया था कि एक कानून लाकर, मंदिरों को हिंदू धार्मिक संस्थान एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती (मुज़रई) विभाग से स्वायत्तता दी जाएगी. शुक्रवार को प्रदेश बजट पेश करते हुए, बोम्मई ने अधिकारिक रूप से ऐलान कर दिया, कि मंदिरों को स्वायत्तता प्रदान करने के लिए एक क़ानून लाया जाएगा.
कर्नाटक में संघ और बीजेपी नेताओं की ओर से, मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग लंबे से चली आ रही है.
विश्वविद्यालयों तथा अन्य शोध संस्थानों में स्थित विद्वानों के एक देशव्यापी नेटवर्क- लोकनीति नेटवर्क के राष्ट्रीय समन्वयक और राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संदीप शास्त्री, इसे चुनावी तैयारियों की क़वायद के रूप में देखते हैं.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘दूसरे बीजेपी राज्यों में जो चल रहा है, ये उसी सिलसिले का हिस्सा है. ये देखते हुए कि मुख्यमंत्री पद के लिए बोम्मई केंद्रीय नेतृत्व की पसंद थे, उन्हें वही करना है जो फिलहाल केंद्रीय स्तर पर नेतृत्व की प्राथमिकताएं हैं’.
108 ‘योगा मंतप’ जिनके लिए बोम्मई ने फरवरी में आधारशिला रखी, ‘तुंगाभद्राआरती’ के स्थल का काम करेंगे.
मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये एक 30 करोड़ रुपए की परियोजना है, जिसमें हरिहर का इनफ्रास्ट्रक्चर और पर्यटन विकास शामिल है. तुंगाभद्रा नदी और उसके किनारों की सफाई का काम सिंचाई विभाग द्वारा किया जाएगा’.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘एक धार्मिक प्रथा के तौर पर, तुंगा आरती का आयोजन स्थानीय ज़िला प्रशासन द्वारा किया जाएगा’.
अधिकारी ने ये भी कहा कि इसके पीछे मंशा यही है, कि अंजनाद्री हिल्स के विकास की राज्य सरकार की योजनाओं की तरह, यहां भी धार्मिक पर्यटन का विकास किया जाए.
उन्होंने कहा, ‘जिस तरह मुख्यमंत्री ने किश्किंधा को विकसित करने का आश्वासन दिया है, उसी तरह तुंगा आरती को भी शुरू किया जाएगा. एक उद्देश्य ये भी है कि हमारे धर्म के अनुरूप, अपने प्राकृतिक संसाधनों की उपासना को उजागर किया जाए’.
बोम्मई ने फरवरी में ये भी ऐलान किया था, कि हरिहर पर तुंगाभद्रा के विकास में हरिहरेश्वर मंदिर से एक पगडंडी का निर्माण, नदियों के दूषित पानी की सफाई, और शहरी क्षेत्रों में नदियों के प्रदूषण को रोकने का काम शामिल होगा.
हरिहर का हरिहरेश्वर मंदिर एक अनोखा हिंदू मंदिर है, जिसके भीतर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का एक दुर्लभ मेल स्थापित है.
कर्नाटक में, नदियों की उपासना के लिए बगीना (कर्मकाण्डी धन्यवाद) परंपरा का पालन किया जाता है. मॉनसून में जब नदियों का पानी ऊपर किनारे तक आ जाता है, और बांध अपनी अधिकतम क्षमता को पहुंच जाते हैं, तो मुख्यमंत्री धन्यवाद पेश करते हैं.
कर्नाटक में नदियों के लिए ‘आरती’ की अवधारणा पर- जिसे वाराणसी से लिया गया है- सबसे पहले 2018 में तुंगा नदी के तट पर, श्रंगेरी के श्री शारदा पीठम (अद्वैत दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरू आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख पीठों में से एक) की तेप्पोत्सवा के हिस्से के तौर पर अमल किया गया.
इसी का अनुकरण 2021 में युवा ब्रिगेड नामक एक संस्था ने, मांड्या ज़िला प्रशासन के सहयोग से ‘कावेरी आरती’ के रूप में किया. अब राज्य सरकार तुंगाभद्रा के किनारों पर, इसे एक अधिकारिक आयोजन बना देना चाहती है.
राजनीतिक विश्लेषक ए नारायण इसे बीजेपी द्वारा चुनावों से पहले, हिंदू कार्ड खेलने के प्रयास के तौर पर देखते हैं.
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड गवर्नेंस के फैकल्टी सदस्य नारायण ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसा लगता है कि बीजेपी के पास हिंदू कार्ड खेलने के अलावा, कुछ और विचार नहीं बचे हैं. उन्हें लगता है कि हिंदुत्व के अलंबरदार होने की छवि को बनाए रखने की ज़रूरत है, चूंकि उनकी झोली में और जो कुछ (जाति संतुलन, विकास) है, वो काम नहीं कर रहा है’.
‘संख्या में मज़बूत लिंगायत समूह को लुभाने की कोशिश’
हालांकि बोम्मई के कार्यालय के सूत्रों का कहना था, कि ये परियोजना हिंदुत्व को बढ़ावे के अनुरूप थी, लेकिन बीजेपी सूत्रों का कुछ और ही मानना है.
प्रदेश बीजेपी के एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘गंगा आरती काशी में इसलिए होती है क्योंकि विश्वनाथ मंदिर ठीक उसके किनारे पर स्थित है. लेकिन हरिहर में ये तुंगा आरती बोम्मई का निजी एजेंडा ज़्यादा लगती है, जो एक पंचमशाली मठ और उसके संत के प्रति प्रेम दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.
पंचमशाली जगदगुरु पीठ, जो लिंगायतों के पंचमशाली उप संप्रदाय के दो लोकप्रिय मठों में से एक है, हरिहर में स्थित है. बोम्मई का ताल्लुक़ लिंगायतों के अपेक्षाकृत छोटे उप संप्रदाय सदारू से है.
बोम्मई का ये क़दम अपनी खुद की पार्टी और संघ के अलावा, संख्या और राजनीतिक शक्ति के हिसाब से अधिक ताक़तवर पंचमशाली लिंगायतों को खुश करने का प्रयास है- ये विचार तब पैदा हुआ जब उन्होंने ऐलान किया, कि तुंगा आरती हरिहर में पंचमशाली जगदगुरु पीठ के श्री वचनानंद स्वामी जी की निगरानी में कार्यान्वित की जाएगी.
पूर्व मुख्यमंत्री और ताक़तवर लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा के एक क़रीबी सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘तुंगा आरती शुरू करने का प्रस्ताव सरकार को श्री वचनानंद ने दिया था. बोम्मई ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, क्योंकि चुनावों से पहले समुदाय को लुभाना मुनाफे का सौदा लगता है’.
वचनानंद स्वामी ने कुडालसंगमा पंचशील पीठ के संत जयामृत्युंजय स्वामी के साथ मिलकर, फरवरी 2021 में येदियुरप्पा सरकार के खिलाफ कोटा आंदोलन की अगुवाई की थी.
जयामृत्युंजय स्वामी ने दिप्रिंट से कहा, ‘बोम्मई समुदाय को ख़ुश करने के लिए ये इसलिए कर रहे हैं, कि कहीं ऐसा न हो कि वो आरक्षण की मांग को लागू न कर पाएं, जो हमने की है. परंपरा के तौर पर हम पहले ही ‘गंगा पूजा’ करते हैं. ये तुंगा आरती एक परायी अवधारणा है. समुदाय को इससे भटकाया नहीं जा सकता’.
पंचमशाली लिंगायत कथित रूप से राज्य के 1.1 करोड़ वीरशैव-लिंगायतों का क़रीब 60 प्रतिशत हैं, और पूरे मध्य और उत्तरी कर्नाटक में फैले हुए हैं. ये संप्रदाय ख़ुद एक दोराहे पर खड़ा है, जहां राज्य के उद्योग मंत्री मुरुगेश निरानी जैसे नेता, बागलकोट ज़िले में संप्रदाय के लिए एक तीसरी पीठ (धार्मिक सत्ता केंद्र) स्थापित किए जाने में, कथित तौर पर सहायता कर रहे हैं.
इससे पहले संप्रादाय के बीजेपी नेताओं- निरानी और सीसी पाटिल ने, पिछले साल जयामृत्युंजय स्वामी पर कांग्रेस से हाथ मिलाने का आरोप लगाया था.
प्रो. शास्त्री ने कहा कि धार्मिक संतों का संप्रदाय के अंदर जो असर है, उसे देखते हुए सत्ता में बैठे लोगों का, उनके साथ मिलकर काम करना स्वाभाविक हो गया है.
उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे समय जब धार्मिक नेताओं ने ख़ुद को, समाज से जुड़े सरोकारों में शामिल कर लिया है, और इन मुद्दों पर लोगों की अपेक्षाओं को वो सरकार के सामने रखते हैं, तो फिर स्वाभाविक है कि आप उन्हीं के पास वापस जाएंगे. क्योंकि वो उन हित समूहों, दबाव गुटों, या समर्थन समूहों का एक अहम हिस्सा होते हैं, जो ज़मीनी स्तर पर मौजूद रहते हैं’.
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