नई दिल्ली: ग़ाज़ा संकट पर कांग्रेस पार्टी की लगातार जारी सोच को दोहराते हुए कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिहिंदू अख़बार में छपे अपने लेख में ग़ाज़ा में चल रहे युद्ध और ईरान के साथ बढ़ते तनाव पर भारत की चुप्पी पर गहरी चिंता जताई है.
“भारत की आवाज़ अब भी सुनी जा सकती है” शीर्षक वाले इस लेख में उन्होंने लिखा कि यह चुप्पी देश की पारंपरिक नैतिक और कूटनीतिक नीति से चिंताजनक बदलाव को दर्शाती है.
सोनिया गांधी ने सरकार से अपील की कि वह शांति बहाल करने के लिए बातचीत का रास्ता अपनाए और अपनी बात मजबूती से रखे.
उन्होंने यह भी कहा कि अब भी देर नहीं हुई है, भारत को जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए और पश्चिम एशिया में शांति बहाली के प्रयासों का समर्थन करना चाहिए.
एक्स पर एक पोस्ट में प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोनिया गांधी की लिखी गई यह बात साझा की, “नई दिल्ली की ग़ाज़ा में हो रही तबाही और अब ईरान के खिलाफ बिना उकसावे की बढ़ती स्थिति पर चुप्पी हमारे नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से चिंताजनक बदलाव को दर्शाती है. यह केवल आवाज़ खोने की बात नहीं है, बल्कि मूल्यों के आत्मसमर्पण की भी है.”
पोस्ट में आगे लिखा है, “अब भी देर नहीं हुई है। भारत को स्पष्ट बोलना चाहिए, जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए और सभी कूटनीतिक रास्तों का उपयोग करके पश्चिम एशिया में तनाव को कम करने और बातचीत की बहाली को बढ़ावा देना चाहिए.”
इस बीच, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी सोनिया गांधी के लेख का एक अंश साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि इस्लामी गणराज्य ईरान भारत के प्रति उसके पूर्ववर्ती, शाही शासन से कहीं ज़्यादा सहयोगी रहा है, जिसने 1965 और 1971 की जंगों में पाकिस्तान का समर्थन किया था.
एक्स पर अपनी पोस्ट में पवन खेड़ा ने लिखा, “वास्तव में, इस्लामी गणराज्य ईरान भारत के प्रति उसके पूर्ववर्ती शाही शासन से कहीं ज़्यादा सहयोगी रहा है, जिसने 1965 और 1971 की जंगों में पाकिस्तान की तरफ झुकाव दिखाया था.”
लेख की तारीफ़ करते हुए खेड़ा ने लिखा, “सोनिया गांधी का शानदार लेख, जो यह याद दिलाता है कि इतिहास और मानवता से मिली सीखें हमारी विदेश नीति के मज़बूत स्तंभ बने रहनी चाहिए.”
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