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Saturday, 25 October, 2025
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बिहार में इंडिया गठबंधन भूमि सुधारों पर विचार में, नीतीश की 2008 में ठंडी पड़ी रिपोर्ट फिर चर्चा में

वाम दल कांग्रेस और राजद पर दबाव बना रहे हैं कि वह भूमिहीन किसानों को सुरक्षा, भूमिहीनों को ज़मीन और सीमित भूमि स्वामित्व जैसे सुधारों की सिफारिशों को लागू करने का वादा करें.

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नई दिल्ली: बिहार में विपक्षी गठबंधन अपने चुनावी घोषणा पत्र में लंबे समय से लंबित भूमि सुधारों को शामिल करने पर विचार कर रहा है. इसके तहत 2006 की डी. बंद्योपाध्याय आयोग की सिफारिशों को फिर से लागू करने की बात हो रही है — वही रिपोर्ट जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में खुद समिति गठित करने के बावजूद खारिज कर दिया था.

यह आयोग सेवानिवृत्त नौकरशाह डी. बंद्योपाध्याय की अध्यक्षता में बना था, जिन्होंने 1970 के दशक के अंत में पश्चिम बंगाल में “ऑपरेशन बर्गा” के तहत भूमि सुधार लागू करने में अहम भूमिका निभाई थी. आयोग ने अप्रैल 2008 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

रिपोर्ट में बटाईदारों (यानी हिस्सेदारी पर खेती करने वाले किसानों) की सुरक्षा के लिए कानून बनाने और भूमि स्वामित्व की सीमा तय करने की सिफारिश की गई थी. इसका उद्देश्य था— ज़मीन के संकेंद्रण को रोकना, भूमिहीन किसानों को सुरक्षा देना और दलित तथा हाशिए के ग्रामीण मज़दूरों में भूमि का पुनर्वितरण करना.

लेकिन यह रिपोर्ट बिहार के ऊंची जाति के भूमिधारकों के विरोध का सामना बनी. नतीजतन, नीतीश कुमार ने इसकी सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया. यहां तक कि उस समय राजद ने भी इन सिफारिशों के खिलाफ प्रदर्शन किए थे.

बताया जाता है कि नीतीश कुमार ने बंद्योपाध्याय से कहा था कि “अगर कोई पैसे चोरी कर ले, तो लोग शायद कुछ न कहें, लेकिन अगर कोई किसी की पत्नी या ज़मीन लेने की कोशिश करे, तो हिंसा हो सकती है.” इस टिप्पणी से उन्होंने सामाजिक ढांचे को छेड़ने के राजनीतिक जोखिम का संकेत दिया था.

अब 17 साल बाद, विपक्षी दलों में यह बहस फिर उठी है कि क्या गठबंधन के चुनावी घोषणा पत्र में आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा शामिल किया जाए. इस पर सबसे ज़्यादा ज़ोर वामपंथी दल दे रहे हैं, जो कांग्रेस और राजद से इसे घोषणा पत्र में जोड़ने की मांग कर रहे हैं.

हालांकि, राज्य कांग्रेस के कुछ नेता इस पर संशय में हैं. एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि “पार्टी के भीतर ऊंची जाति के कुछ नेताओं को इस वादे पर आपत्ति है. वह मानते हैं कि यह कदम पार्टी को नुकसान भी पहुंचा सकता है.”

लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व का रुख ज़्यादा सकारात्मक बताया जा रहा है. उनके अनुसार, यह प्रस्ताव राहुल गांधी के ‘सामाजिक न्याय’ एजेंडे के अनुरूप है.

कांग्रेस नेता ने कहा, “यह जोखिम भरा कदम है. जब रिपोर्ट आई थी, तब कई नेता जिन्होंने बाद में नीतीश कुमार का साथ दिया, उन्होंने इसके खिलाफ महापंचायतें की थीं. इनमें मौजूदा केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह (ललन) भी शामिल थे. कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह, जो तब राजद में थे, उन्होंने भी लोजपा के साथ मिलकर विरोध किया था.”

आलोचकों का तर्क था कि रिपोर्ट की सिफारिशें बिहार की सामाजिक संरचना में और विभाजन पैदा करेंगी. नीतीश कुमार ने तब कहा था कि आयोग की सिफारिशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं हैं, जबकि तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने इसे “मरा हुआ मुद्दा” बताया था — जिससे रिपोर्ट पर रोक लग गई थी.

अब विपक्षी गठबंधन का घोषणा पत्र 28 अक्टूबर को जारी होने की उम्मीद है. सीपीआई(एम-एल) लिबरेशन के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि आयोग की सिफारिशों में पांच सदस्यीय परिवार के लिए अधिकतम 15 एकड़ भूमि की सीमा तय करने, सबसे गरीब कृषि मज़दूरों में भूमि वितरण करने और भूमिहीन गैर-कृषि ग्रामीण मज़दूरों को भी ज़मीन देने का प्रस्ताव शामिल है.

सिफारिशों में बटाईदारों के अधिकारों की रक्षा के लिए नया कानून बनाने की बात भी कही गई थी, जिसमें यह सुनिश्चित करने का सुझाव था कि अगर खेती का खर्च ज़मींदार उठाए तो पैदावार का 60% हिस्सा बटाईदार को मिले और अगर बटाईदार खुद निवेश करे तो 70-75% हिस्सा उसे दिया जाए.

जब नीतीश कुमार ने सिफारिशें लागू करने से पीछे हटे, तो बंद्योपाध्याय ने 2009 में Economic and Political Weekly में लिखा कि “सिफारिशें मानना या न मानना सरकार का अधिकार है, लेकिन इन्हें इस उद्देश्य से बनाया गया था कि बिहार की सत्ता में बैठे गठबंधन दलों को अर्ध-सामंती जंजीरों को तोड़ने और मेहनतकश किसानों की रचनात्मक क्षमता को मुक्त करने का अवसर मिले.”

डी. बंद्योपाध्याय को बिहार आयोग ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल के “ऑपरेशन बर्गा” के लिए भी याद किया जाता है.

1970 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुआ यह कार्यक्रम उन बटाईदारों को कानूनी मान्यता देता था जो किराए पर ज़मीन जोतते थे. इसने उन्हें बेदखली से सुरक्षा दी और पैदावार में उचित हिस्सा सुनिश्चित किया. इसे भारत के सबसे सफल भूमि सुधार अभियानों में से एक माना जाता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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