नई दिल्ली: कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा, जिसका उद्देश्य दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों को श्रद्धांजलि देना है- को ‘देश को विभाजित करने’ वाला तथा ‘पंजाबी बनाम गैर-पंजाबी’ का नैरिटिव खड़ा करने का प्रयास बताया है.
गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे और उनके चार बेटे (जिन्हे चार साहिबजादे के रूप में याद किया जाता है) 21 और 27 दिसंबर 1704 के बीच सिखों और मुगलों के बीच हुई एक लड़ाई के दौरान अलग-अलग घटनाओं में शहीद हो गए थे.
मोदी द्वारा 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा इस रविवार को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती के अवसर पर की गई थी और इसे पंजाब में आगामी 14 फरवरी को होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस राज्य के सिख मतदाताओं को लुभाने के एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
मोदी ने रविवार को ट्वीट किया था कि 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाना इन ‘साहिबजादों ’ के लिए एक ‘श्रद्धांजलि’ होगी.
Today, on the auspicious occasion of the Parkash Purab of Sri Guru Gobind Singh Ji, I am honoured to share that starting this year, 26th December shall be marked as ‘Veer Baal Diwas.’ This is a fitting tribute to the courage of the Sahibzades and their quest for justice.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 9, 2022
पिछले पंजाब चुनाव के एक साल बाद यानी कि 2018 से ही भाजपा के कई सदस्य और सांसद इसकी मांग कर रहे थे.
हालांकि इस कदम से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जयंती (14 नवंबर को) पर मनाए जाने वाले बाल दिवस के महत्व को फीका करने की सत्ताधारी दल द्वारा किए गए एक दबे-ढंके प्रयास को भांपते हुए कांग्रेस खेमे के कई नेताओं में बेचैनी व्यापत है, फिर भी विपक्षी दल पीएम मोदी की इस घोषणा के प्रति अपनी प्रतिक्रिया में एहतियात बरत रहें हैं.
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राजनीति का विषय नहीं है आस्था: कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी ने पंजाब चुनाव से ठीक पहले भाजपा की मंशा पर सवाल उठाते हुए भाजपा के इस कदम को विभाजनकारी बताया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि कांग्रेस को इस घोषणा के साथ ‘कोई समस्या नहीं’ है, लेकिन यह तथ्य कि भाजपा हमेशा ‘पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू’ के कद को बौना करने की तलाश में रहती है, उसकी अपनी ‘असुरक्षा’ की तरफ इशारा करता है.
उन्होंने कहा, ‘धर्म और आस्था राजनीति का विषय नहीं है. मैं आस्था पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. चाहे यह गुरु गोबिंद सिंह साहब जी हों या उनके साहबजादे, उनसे जुड़े अवसरों को हर संभव तरीके से मनाया जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए. हमें (कांग्रेस पार्टी को) इससे कोई दिक्कत नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन पंडित नेहरू के कद को बौना करने का यह निरंतर प्रयास भाजपा की अपनी असुरक्षा को दर्शाता है. वह आधुनिक भारत के निर्माता हैं और उन्होंने ही इसके मजबूत लोकतंत्र की नींव रखी. उनका कद मोदी और उनकी ट्रोल सेना के लिए उन्हें कमजोर करने के हिसाब से बहुत बड़ा हैं.’
श्रीनेत ने यह भी कहा कि भाजपा ‘राज्य या केंद्र में कोई उम्मीद नहीं जगा सकती है और यही वजह है कि उसे इसे ‘पंजाबियों बनाम गैर-पंजाबियों’ वाला मुद्दा बनाने का सहारा लेना पड़ रहा है’.
पार्टी के एक और प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि भाजपा के लिए सब कुछ ‘हमेशा या तो उसके पक्ष में या उसके विरोध में’ वाला मामला ही रहा है.
खेड़ा ने कहा, ‘बीजेपी हर चीज को ‘या तो/अथवा’ वाले प्रतिमान से ही क्यों देखती है? यह देश ‘हम’ के रूप में सोचता है. बीजेपी हमेशा इसे ‘हम बनाम वे’ के रूप में बांटना चाहती है.’
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‘जमीनी स्तर पर इसकी प्रतिक्रिया के आधार पर राज्य इकाई लेगी फैसला’
इस घोषणा के मद्दनेज़र अपनी जवाबी चुनावी रणनीति के संदर्भ में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर यह एक चुनावी मुद्दे के रूप से उभर कर सामने आता है तो पार्टी ने पंजाब में अपनी राज्य इकाई को इस मुद्दे से अपने स्तर पर निपटने की अनुमति देने का फैसला किया है.
इस नेता ने आगे कहा, ‘वे इस बारे में पिछले कुछ समय से बात कर रहे हैं, लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने यह घोषणा हमारी तरफ से कोई प्रतिक्रिया हासिल करने की रणनीति के रूप में ही की है.’ उन्होंने कहा, ‘हमने जमीनी प्रतिक्रिया के आधार पर कांग्रेस के पंजाब नेताओं को इससे निपटने की जिम्मेदारी देने का फैसला किया है.’
इस नेता का कहना है कि पार्टी के दिल्ली नेतृत्व के तब तक ‘इससे बाहर रहने की संभावना है, जब तक कि उन्हें इसके बारे में बात करने की आवश्यकता न हो’.
पंजाब के एक कांग्रेस सांसद ने यह भी कहा कि यह मुद्दा ‘भावनात्मक’ है और चुनाव से पहले हुए इस घोषणा की गूंज जरूर लोगों के बीच पहुंचेगी.
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लंबे समय से चली आ रही मांग
अप्रैल 2018 में, इस तरह की खबरें आई थी कि 60 भाजपा सांसदों ने पीएम मोदी को 14 नवंबर के बजाय 26 दिसंबर को ‘बाल दिवस’ के रूप में नामित करने के लिए पत्र लिखा है.
इस पत्र को पश्चिमी दिल्ली के भाजपा सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा ने लिखा था और इस पर 59 अन्य सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे.
तब वर्मा ने कहा था कि 14 नवंबर को बाल दिवस के बजाय ‘चाचा दिवस’ या ‘अंकल डे’ के रूप में मनाया जा सकता है क्योंकि जवाहरलाल नेहरू को ‘चाचा नेहरू’ के नाम से भी जाना जाता था.’
2019 में भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने भी यही मांग उठाई थी और उन्होंने इस विषय पर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था. अपने पत्र में, तिवारी ने कांग्रेस पर ‘देश के बहादुर लोगों के इतिहास को दबाने’ की कोशिश करने का आरोप लगाया.
वर्मा ने दिसंबर 2021 में फिर से यही मांग की थी.
उन्होंने ट्वीट किया था, ‘बाल दिवस’ के असली हकदार गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादे हैं जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए इतनी कम उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी.‘
बाल दिवस 14 नवम्बर के बजाए 26 दिसम्बर को मनाना चाहिए। बाल दिवस के असली हकदार गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार साहिबजादे है जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिऐ छोटी उम्र में ही अपना बलिदान दे दिया। साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह जी व साहिबज़ादा फ़तेह सिंह जी के आज बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन। pic.twitter.com/rV2cp7HCBe
— Parvesh Sahib Singh (@p_sahibsingh) December 26, 2021
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