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Friday, 26 April, 2024
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आंबेडकर की जन्मस्थली: नेताओं का तीर्थस्थल मगर जनता का ‘जहन्नुम’

ग्राउंड रिपोर्ट: मध्य प्रदेश में महू के दलित मतदाता ऊहापोह में हैं कि किसे वोट करें. उनके लिए भाजपा ने 15 सालों में कुछ नहीं किया तो उससे पहले कांग्रेस ने भी कुछ नहीं किया.

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महू, मध्य प्रदेश: आधिकारिक रूप से डॉ.आंबेडकर नगर और व्यवहारिक रूप से महू के नाम से जाना जाने वाला यह इलाका कभी इंदौर ज़िले की एक शांत सैन्य छावनी था. लेकिन हाल के दिनों में यह दलित राजनीति का एक दिखावटी मंच और दलित राजनीतिक प्रतीकवाद का केंद्र बन गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जैसे शीर्ष राजनेता यहां दलितों का समर्थन पाने के लिए आते हैं. लेकिन क्यों? क्योंकि भारत के सबसे बड़े दलित आइकॉन डॉ. बीआर आंबेडकर का जन्म यहीं 1891 में हुआ था.

फिर भी महू के दलित मतदाताओं की दुर्दशा से पता चलता है कि ये सभी राजनीतिक यात्राएं सिर्फ प्रतीकात्मक हैं. इससे ज़्यादा कुछ नहीं. मतदाता आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर उहापोह में हैं. वे भाजपा को वोट करें जिसने पिछले 15 सालों में कुछ नहीं किया या फिर कांग्रेस को जिसने उससे पहले उनके लिए कुछ नहीं किया.

‘हम कीड़े की तरह रहते हैं’

महू में ‘काज़ी की चाल’ कचरे, मक्खियों, गोबर और भीड़ भरी एक जगह है. यहां रहने वाले मतदाताओं का कहना है कि वे कीड़े की तरह जी रहे हैं. सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस दोनों ने उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं किया है.

यहां रहने वाले सुमन कौशल ने कहा, ‘नेता यहां से कुछ ही किलोमीटर दूर बड़ी आंबेडकरजी की मूर्ति पर आते हैं, ये दिखाने को कि वे दलित के साथ हैं. और हम यहां गंदी नाली के कीड़े जैसे जीते रहते हैं.’

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वे आगे कहते हैं, ‘हमारे पास कोई जल निकासी की व्यवस्था नहीं है. कोई सफाई नहीं है और उचित पेयजल नहीं है. हमारे पास सड़कों पर कोई रोशनी नहीं है. इससे पहले हमें खुले में शौच करना पड़ता था. उस समय दलित होने के कारण लोग हम पर पत्थर भी मारते थे.’

सुमन कौशल कहते हैं, ‘अब यहां दो टॉयलेट हैं लेकिन 400 परिवारों के बस्ती के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं. भाजपा हो या कांग्रेस किसी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया.’

सुमन कौशल की बस्ती की ओर जाने वाली सड़क पर अनधिकृत कब्ज़ा हो चुका है. यहां रहने वाले लोग किसी भी दिन हटा दिए जाने की आशंका में जीते हैं. वे कहते हैं कि राजनेताओं ने उनके लिए उचित आवास व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए भी कुछ नहीं किया है.

बस्ती के रहने वाले एक और व्यक्ति रंजीत कुमार कहते हैं, ‘हम मुख्य शहर से दूर रहते हैं क्योंकि हम गरीब हैं और वहां घरों का खर्च नहीं उठा सकते हैं और इसलिए भी कि हम दलित हैं और ऊंची जातियों के लोग साथ रहने की अनुमति नहीं देते हैं. अगर हम अनधिकृत झोपड़ियों में रहते हैं, तो यह राजनीतिक वर्ग की सामूहिक विफलता है.’

भाजपा-कांग्रेस का गोरखधंधा

यहां बातचीत के दौरान कुछ लोग कहते हैं कि ‘चौहान सरकार की पहलों जैसे सस्ते राशन, बिजली की कीमतों में कमी, शौचालय निर्माण, गैस कनेक्शन ने समुदाय के लोगों की ज़िंदगी में राहत पहुचायी है तो वहीं दूसरे लोग कहते हैं कि इसके बावजूद भी उनकी स्थिति दयनीय ही बनी हुई है.’

काज़ी की चाल में रहने वाले और हलवाई का काम करने वाले रवि जाधव कहते हैं, ‘आंबेडकर की प्रतिमा पर बड़े राजनेताओं के आने का फायदा बाकी महू को तो हुआ है लेकिन हमारी ‘काज़ी की चाल’ का नहीं हुआ है. किसी ने दलितों के लिए कुछ नहीं किया है भले ही वह महू आंबेडकर जी के नाम पर आते हैं.’


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वे आगे कहते हैं, ‘मुझे वोट देने का मन नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि भाजपा सत्ता में आएगी. शिवराज चौहान से कुछ उम्मीदें हैं. उन्होंने कम से कम राशन और गैस कनेक्शन तो दिया है.’

यहीं के रहने वाले अर्जुन धोलपुरे भी जाधव से सहमत दिखे. उन्होंने कहा, ‘राजनेताओं का यहां आना पूरी तरह से दिखावा है. किसी ने कुछ नहीं किया. अगर भाजपा ने पिछले 15 सालों में कुछ नहीं किया तो कांग्रेस ने उससे पहले ही क्या किया था? शायद बीजेपी को एक और मौका दिया जा सकता है.’

हालांकि, कुछ लोग कांग्रेस को सत्ता में लाने के पक्ष में हैं. वे उम्मीद करते हैं कि कांग्रेस का शासन भाजपा से बेहतर होगा.

पास के ही एक दूसरी झुग्गी बस्ती में रहने वाली सुशीला बाई वाकड़े कहती हैं, ‘हमारी स्थिति खराब है. हम अवैध कॉलोनी में रहते हैं. तो यह किसकी ज़िम्मेदारी है कि हमें आवास दे? यह तब अवैध हो जाती है जब उन्हें हमें कुछ सुविधाएं देनी पड़ती हैं, लेकिन तब नहीं जब उन्हें वोट लेना होता है.’


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वे आगे कहती हैं, ‘यह आंबेडकर का जन्मस्थान है. और यहां पर दलितों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है. इस बार मैं कांग्रेस का समर्थन करूंगी, क्योंकि हमने देख लिया है कि शिवराज सरकार ने क्या किया है.’ इस दौरान वाकड़े के कुछ पड़ोसी तो उनसे सहमत दिखे तो कुछ असहमत भी नज़र आए.

यहीं के रहने वाले मनोहर सुरवड़े कहते हैं, ‘हर कोई यहां आता है, प्रवचन देता है और चला जाता है. कोई भी छोटा या बड़ा राजनेता हमारी बस्ती में नहीं आया है. जब वो आंबेडकर जी की मूर्ति से दो किमी दूर हमसे मिलने नहीं आ सकते हैं तो उनसे हम और क्या उम्मीद करें.’

इन सबसे बावजूद भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई होती दिख रही है. यहां बसपा को लेकर भी थोड़ा उत्साह है. फिलहाल मध्य प्रदेश में बसपा का प्रभाव मुख्यत: ग्वालियर-चंबल और रीवा क्षेत्र में है. महू में उसका प्रभाव कम है.

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