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Sunday, 7 September, 2025
होमराजनीतिगोपालगंज में SIR ने NDA और INDIA दोनों के वोटरों को 'मृत' बताया. लेकिन यह 'चुनावी मुद्दा नहीं है'

गोपालगंज में SIR ने NDA और INDIA दोनों के वोटरों को ‘मृत’ बताया. लेकिन यह ‘चुनावी मुद्दा नहीं है’

हालांकि इस कवायद से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है, लेकिन आम धारणा यही है कि नाम हटाए जाने से विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के मतदाता प्रभावित हुए हैं. 'वोट चोरी' अभियान का जमीनी स्तर पर कोई असर नहीं है.

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गोपालगंज/पटना: अभिषेक कुशवाहा बिहार के गोपालगंज ज़िले के एक गांव में अपने परिवार की इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाते हैं. यह इलाका राज्य की पूर्वी उत्तर प्रदेश से लगी सीमा के पास है.

इस इलाके के कई युवाओं की तरह उन्होंने भी नेटवर्क मार्केटिंग में हाथ आज़माया है. उन्हें कम निवेश पर ज़्यादा मुनाफे का वादा खींच लाया. कुशवाहा के लिए ज़िंदगी अभी शुरू ही हो रही है.

लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में, 25 साल का यह युवक कुछ समय से “मृत” है.

गोपालगंज के नौका टोला गांव के रहने वाले कुशवाहा का नाम चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) प्रक्रिया में स्थानीय मतदान केंद्र से हटाए गए 124 वोटरों की सूची में शामिल है.

हटाए गए नामों की यह सूची और हटाने की वजह 17 अगस्त को पहले चरण के बाद घोषित की गई. नौका टोला में हर नाम हटाने की वजह “मृत्यु” बताई गई.

हालांकि गोपालगंज ज़िला प्रशासन ने दिप्रिंट से माना कि नौका टोला में जिन लोगों को मृत दिखाया गया है, उनमें से कम से कम 21 लोग ज़िंदा हैं. यह गांव ज़िला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर है.

इस बड़े अभियान ने सियासी बवाल खड़ा कर दिया है. विपक्ष का आरोप है कि यह विरोधी-एनडीए वोटर हटाने की चाल है. लेकिन गांव में लोगों का मानना है कि इस प्रक्रिया का असर सभी पर पड़ा है, यहां तक कि एनडीए समर्थकों पर भी.

Abhishek Kushwaha, resident of Nauka Tola, is among 124 voters whose names have been struck off electoral rolls as they have been declared 'dead'.| Sourav Roy Barman/ThePrint
नौका टोला निवासी अभिषेक कुशवाहा उन 124 मतदाताओं में शामिल हैं जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं क्योंकि उन्हें ‘मृत’ घोषित कर दिया गया है | सौरव रॉय बर्मन/दिप्रिंट

कुशवाहा खुद एनडीए के मज़बूत समर्थक हैं. नौका टोला भोर विधानसभा सीट में आता है, जो अभी जेडीयू के सुनील कुमार के पास है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “यह सिर्फ मेरे साथ नहीं हुआ. मेरे परिवार और गांव के बहुत से लोग, जिनके नाम हटाए गए हैं, एनडीए को ही वोट देते हैं. हम शांति और विकास चाहते हैं. गांव में सिर्फ कुछ ही लोग विपक्ष का समर्थन करते हैं.”

नौका टोला के लोग, जिनमें ज़्यादातर भूमिहार और राजभर समुदाय के हैं, इस दावे को खारिज करते हैं कि SIR का इस्तेमाल विपक्षी वोटरों को चुनकर हटाने में हुआ.

क्या कुशवाहा को “सरकारी रिकॉर्ड में मृत” होने की चिंता नहीं?

Names of deleted electors displayed in the block office, Gopalganj Sadar, allowing people to file claims and objections. | Sourav Roy Barman/ThePrint
गोपालगंज सदर प्रखंड कार्यालय में हटाए गए मतदाताओं के नाम प्रदर्शित किए गए हैं, ताकि लोग दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकें | सौरव रॉय बर्मन/दिप्रिंट

उन्होंने थके हुए लहजे में कहा, “ऐसा होता है. मेरा नाम नए मतदान केंद्र में शिफ्ट हुआ था. शिफ्टेड लिखने की जगह मृत लिख दिया गया. लेकिन बीएलओ ने यह जानबूझकर नहीं किया. वह मेरे स्कूल में शिक्षक रहे हैं.”

बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर यहां जितेंद्र पांडेय हैं. वे सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं जिन्हें इस समय मतदाता सूची अपडेट करने का काम दिया गया है.

नौका टोला की ही 39 साल की लाली देवी ने पिछले हफ़्ते पाया कि उनका नाम भी मृत घोषित कर हटा दिया गया है. वे भी एनडीए समर्थक हैं. उन्होंने बताया कि बीएलओ ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनका नाम फिर से वोटर लिस्ट में जुड़ जाएगा.

लेकिन विपक्ष, खासकर भोर में मज़बूत पकड़ रखने वाली CPI(ML), इसे छोटी गलती नहीं मानता.

पास के बभनौली गांव के दलित मज़दूर गुड्डू राम ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ग़रीबों को, खासकर CPI(ML) समर्थकों को, जानबूझकर वोट से वंचित कर रहा है.

लेकिन उनके परिवार में ही मतभेद है. गुड्डू के दादा दुखी राम का नाम हटाया गया है. उनके रिश्तेदार शिंटू राम ने कहा, “बीएलओ घर-घर नहीं आए. वे सुनी-सुनाई बातों पर चले. वैसे भी दादा बिस्तर पर हैं. हमारे नाम तो सुरक्षित हैं.”

उसी गांव की 44 साल की इसारवती देवी ने बताया कि उनका नाम भी गायब है. लेकिन वे चिंतित नहीं हैं. उन्होंने कहा, “बीएलओ रिविज़न के दौरान मेरे घर नहीं आए. लेकिन पिछले हफ़्ते फॉर्म लाए और मेरे साइन लिए. उन्होंने कहा, ठीक हो जाएगा.”

यह हाल सिर्फ नौका टोला का नहीं है. पूरे गोपालगंज ज़िले में यही स्थिति है, जहां SIR के तहत सबसे ज़्यादा नाम हटाए गए.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक गोपालगंज, जो राजद प्रमुख लालू प्रसाद का इलाका है, ने 24 जून की तुलना में 15.01% वोटर घटा दिए. इसके बाद पूर्णिया (12.08%) और किशनगंज (11.82%) का नंबर आता है.

Kashi Ram, a Dalit landless labourer in Gopalganj, who says he is deprived of welfare measures despite having a Voter ID. | Sourav Roy Barman/ThePrint
गोपालगंज के एक दलित भूमिहीन मज़दूर काशी राम का कहना है कि वोटर आईडी होने के बावजूद उन्हें कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा गया है | सौरव रॉय बर्मन/दिप्रिंट

अगस्त के अंत में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा भी गोपालगंज से गुज़री. यह इलाका एनडीए का गढ़ माना जाता है. 2009 से अब तक जेडीयू यहां तीन बार लोकसभा सीट जीत चुकी है, 2019 और 2024 में भी. 2014 में भाजपा जीती थी.

गोपालगंज की छह विधानसभा सीटों में से दो-दो भाजपा, जेडीयू और राजद के पास हैं.

“‘वोट चोर, गद्दी छोड़.’ बताइए, ये भी कोई मुद्दा है?” यह कहना है बरईपट्टी गांव के प्रत्युष कुमार राय का. यह गांव निरंजन मतदान केंद्र में आता है, जहां 641 नाम हटाए गए. यह बिहार का सबसे बड़ा आंकड़ा है.

यहां 599 को शिफ्टेड, 39 को मृत और 3 को अनुपस्थित दिखाया गया.

भूमिहार जाति के प्रत्युष मुर्गी पालन का छोटा कारोबार करते हैं. उनका मानना है कि विपक्ष, यानी राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन, जनता का मूड समझने में असफल रहा है. उनके मुताबिक, “इसका ज़मीनी असर बिल्कुल नहीं है.”

उन्होंने कहा, “सर्वे (SIR) चुनाव से इतने क़रीब नहीं होना चाहिए था. थोड़ा समय होता तो बेहतर होता. कुछ महिलाओं के नाम हटे हैं, लेकिन वे पैरेंटल गांव के कागज़ दिखा देंगी तो नाम जुड़ जाएंगे. लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं है.”

उनकी बात पर वहां मौजूद कई और लोगों ने भी हामी भरी.

पिछले महीने संसद के सेंट्रल हॉल में राहुल गांधी ने सांसदों से कहा था कि विपक्ष का चुनाव में धांधली वाला मुद्दा बिहार में इतना गूंज रहा है कि चार साल के बच्चे भी ‘वोट चोर, वोट चोर’ बोल रहे हैं.

‘एक बेकार मौक़ा’

लेकिन गोपालगंज के निरंजन गांव में, धान और गन्ने के खेतों के बीच, ग्रामीण कहते हैं कि विपक्ष की वोटर अधिकार यात्रा (वोटर राइट्स मार्च) को ज़मीनी मुद्दों पर फोकस करना चाहिए था.

“यह एक बेकार मौक़ा था,” निरंजन के निवासी दिनेश ठाकुर ने कहा. “जब यात्रा गोपालगंज से गुज़री, तो मैं भी राहुल और तेजस्वी को देखने गया था. लेकिन उनका काफ़िला बस हमारे सामने से गुज़र गया,” उन्होंने कहा.

ठाकुर और गांव के अन्य लोगों के लिए असली मुद्दा मतदाता सूची से नाम हटाने का नहीं, बल्कि ससामूसा शुगर मिल का बंद रहना था, जो कभी किसानों की आमदनी का बड़ा साधन हुआ करता था.

Isaravati Devi is among those listed as dead in Nauka Tola village in Gopalganj. | Sourav Roy Barman/ThePrint
गोपालगंज के नौका टोला गांव में मृतकों की सूची में शामिल लोगों में इसरावती देवी भी शामिल हैं | सौरव रॉय बर्मन/दिप्रिंट

“पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि वे ससामूसा मिल को फिर से चालू करेंगे. उन्होंने कहा था कि यहां बनी चीनी से चाय पिएंगे. लेकिन मिल अब भी बंद है. किसानों के बकाए लटके हैं. यूरिया संकट है. लोगों के पैसे सहारा में फंस गए और वे अब भी क़र्ज़ चुका रहे हैं. नौजवान अब भी रोज़गार के लिए बाहर जा रहे हैं. विपक्ष को इन्हीं मुद्दों पर बात करनी चाहिए, जो रोज़ी-रोटी से जुड़े हैं,” ठाकुर ने कहा.

गोपालगंज के 14 प्रखंडों में से एक के प्रखंड विकास अधिकारी (BDO) ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि निरंजन में ज़्यादा नाम हटने की वजह गंडक नदी (गंगा की सहायक नदी) से कटाव है.

उन्होंने कहा, “बहुत सारे परिवार अपने घर बह जाने के बाद दूसरी जगह बस गए. वहां नए वोटर कार्ड बने. पुराने नाम हटाए गए ताकि डुप्लीकेट न रहें.”

दूसरे अधिकारी और स्थानीय लोग गोपालगंज की पुरानी जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों की ओर इशारा करते हैं. इनमें से एक है प्रवास.

एक अन्य BDO ने कहा, “इतिहास में, गोपालगंज के लोग दुबई, कुवैत और क़तर जैसे देशों में जाते रहे हैं. वे ड्राइवर, प्लंबर और पेंटर का काम करते हैं. यह विदेश नेटवर्क पीढ़ियों से बना है. कई पुरुष सालों से लौटे ही नहीं. इसलिए उनके नाम स्थायी रूप से शिफ्टेड दिखाए गए.”

ऐसा ही एक नाम है भरपुरवा गांव के मुन्ना कुमार राम का. उनके पिता, दलित किसान रामाकांत राम ने कहा कि मुन्ना रोज़गार के लिए विदेश चला गया है.

गोपालगंज की सामाजिक संरचना में प्रवास कितना गहरा है, यह आंकड़ों से भी झलकता है. इस ज़िले का लिंगानुपात 1,021 है, जो राज्य औसत से कहीं ऊपर है. इसे लंबे समय से पुरुषों के बाहर जाने से जोड़ा जाता है.

गोपालगंज, पड़ोसी सीवान के साथ, राज्य में सबसे ज़्यादा विदेशी रक़म (रेमिटेंस) प्राप्त करता है.

BDO का कहना है कि यूपी की सीमा लगने की वजह से सालों में कई लोगों ने यहां ज़मीन खरीदी, रजिस्ट्री करवाई और वोटर कार्ड बनवाए.

“वे यूपी और बिहार दोनों जगह से लाभ ले रहे थे. ऐसे कई नाम भी हटाए गए. इससे वोटर संख्या में गिरावट आई,” एक BDO ने कहा, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त रखी क्योंकि उन्हें SIR से जुड़े मामलों पर मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक गोपालगंज की मतदाता सूची से स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) के तहत कुल 3.10 लाख नाम हटाए गए. इनमें 71,135 को मृत, 1.29 लाख को स्थायी रूप से शिफ्टेड, 35,258 को मल्टीपल वोटर आईडी वाला और 75,070 को ग़ायब (अनट्रेसेबल) दिखाया गया.

रिकॉर्ड बताते हैं कि ज़िला चुनाव अधिकारियों को 58,315 दावे और आपत्तियां मिली हैं. इनमें 39,995 फॉर्म-6 (नए वोटरों के नामांकन), 4,665 फॉर्म-7 (मृत वोटरों को हटाने) और 13,647 फॉर्म-8 (सुधार और नाम शिफ्ट करने) के ज़रिए आईं.

71 वर्षीय भूमिहीन मज़दूर काशी राम ने कहा कि उन्हें कोई वजह नहीं लगी कि उनका नाम वोटर लिस्ट से हटाया जाएगा. उनका नाम 2003 की सूची में था, और उनके हिसाब से इससे वे इस बार भी पात्र हैं.

वे दिप्रिंट को अपने कच्चे झोपड़े तक ले गए, जो धान के खेतों के बीच कीचड़ भरे रास्ते पर बना है. उन्होंने बताया कि मान्य वोटर आईडी होने के बावजूद उन्हें कोई सरकारी लाभ नहीं मिला.

उन्होंने कहा, “विपक्ष कहता है कि अगर नाम हटे तो योजनाएं नहीं मिलेंगी. लेकिन मुझे तो वैसे भी नहीं मिलतीं. मैंने हमेशा ग़रीबी में ही जिया है. गांव के दलित टोले तक सड़क भी नहीं है. मुझे छह महीने से बुज़ुर्ग पेंशन भी नहीं मिली.”

लेकिन कुछ लोगों के लिए प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र और धर्म से जुड़ा गर्व ही असली आकर्षण है.

जैसे कि किसान हरि मिश्रा. दिप्रिंट ने उन्हें नेशनल हाइवे 28 के पास खेत पर दोपहर में सोते हुए पाया. यह हाइवे मुज़फ़्फ़रपुर और गोपालगंज होते हुए यूपी में जाता है.

उन्होंने कहा, “SIR कोई मुद्दा है? यह तो सिर्फ़ उन लोगों को परेशान कर रहा है जिनके पास नागरिकता साबित करने के काग़ज़ नहीं हैं.” उन्होंने यह भी कहा कि मतदाता सूची संशोधन और नाम हटाने से जनता में जेडीयू-भाजपा के खिलाफ नाराज़गी नहीं होगी.

'How is SIR an issue?' asks Hari Mishra, a farmer. 'It only bothers those who don’t have papers to prove their citizenship.'.| Sourav Roy Barman/ThePrint
किसान हरि मिश्रा पूछते हैं, “SIR कोई मुद्दा कैसे है?” वे आगे कहते हैं, “यह सिर्फ़ उन लोगों को परेशान करता है जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ नहीं हैं.” | सौरव रॉय बर्मन/दिप्रिंट

उनके लिए अहम बात मोदी की कूटनीति है, ख़ासकर डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ़ लगाने के बाद मोदी की प्रतिक्रिया. मिश्रा के मुताबिक, इससे प्रधानमंत्री की छवि एक वैश्विक नेता के तौर पर और मज़बूत हुई.

उन्होंने गर्व से कहा, “उन्होंने ट्रंप के फ़ोन तक नहीं उठाए. ट्रंप कॉल करते रह गए. बल्कि वे चीन और रूस के साथ खड़े हो गए. आपने देखा नहीं?”

करीब 150 किलोमीटर दूर, पटना में, पटना हाई कोर्ट के बाहर विष्णु साह अपने फ़ूड कार्ट पर खड़े थे. कुछ ही दूरी पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा का समापन करते हुए बी.आर. आंबेडकर की प्रतिमा पर माला चढ़ा रहे थे.

लेकिन साह, जो बनिया जाति के हैं, इससे प्रभावित नहीं लगे. उन्होंने कहा, “ये सब झूठ-मूठ के मुद्दे हैं. लोगों को बहकाने वाले मुद्दे.”

जब उनसे पूछा गया कि उनके लिए क्या मुद्दे अहम हैं, तो साह ने प्रभात खबर अख़बार की एक कॉपी दिखाई. उन्होंने अंदर के पन्ने पर बने एक इन्फ़ोग्राफ़िक की ओर इशारा किया.

ग्राफ़िक में दिखाया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक लोकप्रियता लगातार ऊंची बनी हुई है, ख़ासकर डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं की तुलना में.

ग्राफ़िक में लिखा था, “जहां ट्रंप की रेटिंग उनके दूसरे कार्यकाल के सिर्फ सात महीने में ही गिर गई है, वहीं पीएम मोदी की वैश्विक स्वीकृति दर 74-75 प्रतिशत पर बनी हुई है. ट्रंप की रेटिंग मोदी की आधी भी नहीं है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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