मुंबई: महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार अगले महीने अपने दो साल पूरे कर रही है, तो शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शीर्ष नेतृत्व में नज़दीकियां बढ़ती नज़र आ रही हैं. लेकिन ज़मीनी स्तर पर दोनों पार्टियों के काडर्स, और दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच अदावत अभी भी बरक़रार है.
पिछले दो वर्षों में, कम से कम आठ ऐसे मौक़े आए हैं, जब एनसीपी और शिवसेना के नेता स्थानीय मुद्दों पर खुलेआम टकराए हैं, दोनों पार्टियों की ओर से एक दूसरे के खिलाफ तीखी बयानबाज़ियां हुई हैं.
एनसीपी नेताओं ने ऐसे बयानों से शिवसेना नेताओं को ग़ुस्सा दिलाया है कि सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ‘केवल एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के आशीर्वाद से’ सीएम बने हैं. उन्होंने एनसीपी के पोस्टर्स फाड़े जाने और पार्टी के पर कतरे जाने के आरोप भी लगाए हैं.
शिवसेना के नेताओं ने भी एनसीपी को झिड़कते हुए, पवार को ‘पीठ में छुरा घोंपने वाला’ कहा है और एक एनसीपी मंत्री छगन भुजबल को कोर्ट भी खींच ले गए हैं.
तकरार का ताज़ा बिंदु सोमवार को सामने आया, जब दोनों पार्टियां पिछले दिनों शिवसेना की अगुवाई में, ठाणे नगर निगम (टीएमसी) द्वारा चलाए गए टीकाकरण अभियानों के लिए, ‘श्रेय लेने की होड़’ में लग गईं.
एनसीपी ने आरोप लगाया कि शिवसेना कलवा में टीकाकरण स्थल पर, अपने पोस्टर लगाकर और व्यापारी वस्तुएं रखकर, आयोजन का पूरा श्रेय ले रही थी और सेना के पार्षद उनके पोस्टर हटा रहे थे, जिनमें लोगों से अभियान में शरीक होने की अपील की गई थी.
ठाणे के एक एनसीपी नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट को बताया, ‘आप सीसीटीवी फुटेज में सुबह 3 बजे शिवसेना पार्षदों को, हमारे बैनर हटाते हुए देख सकते हैं. शिवसेना नेता कहते हैं कि हालांकि अभियान टीएमसी की ओर से था, लेकिन उसके प्रबंध का ख़र्च सेना ने उठाया था, चूंकि एनसीपी के पास इस तरह का काम करने के संसाधन नहीं हैं. अगले ही दिन हम 20 लाख रुपए का एक चेक लेकर ठाणे महापौर के पास गए और उनसे कहा कि हम ऐसे दो और अभियान आयोजित करना चाहते हैं, जिनमें से एक सेना विधायक एकनाथ शिंदे के चुनाव क्षेत्र में होगा, लेकिन वो नाराज़ हो गए और उनके साथ तीखी कहा-सुनी हो गई’.
नेता ने कहा कि हालांकि दोनों पार्टियां राज्य स्तर पर सत्ता में भागीदार हैं, लेकिन ठाणे में वो शिवसेना के ‘प्रमुख विरोधी’ हैं, ‘इसलिए ऐसे मुद्दे खड़े होना लाज़िमी है’.
नेता ने आगे कहा, ‘एक पार्टी के तौर पर, हम हर उस चीज़ से सहमत नहीं हो सकते जो शिवसेना करती है. हम लंबे समय से विरोधी रहे हैं, इसलिए अचानक से हमारे बीच मधुर रिश्ते नहीं बन सकते’.
लेकिन, ठाणे के शिवसेना मेयर नरेश म्हास्के ने दिप्रिंट को बताया, कि शिवसेना ने टीकाकरण शिविर आयोजित करने में टीएमसी की सहायता की थी, और लोगों को कैंप तक लाने के प्रयास किए थे.
‘कैंप ऐसे इलाक़े में था, जहां हमारी पार्टी के पार्षद हैं, इसलिए अगर उन्होंने पण्डाल में अपनी पार्टी के पोस्टर लगा लिए, तो मुझे इसमें कोई समस्या नज़र नहीं आती. एनसीपी को अपने पोस्टर नहीं लगाने चाहिएं थे. जब हम अलग अलग टीकाकरण शिविर लगाते हैं, तो जानबूझकर ऐसे इलाक़ों से दूर रहते हैं जहां एनसीपी के पार्षद हैं, क्योंकि हम उनके इलाक़े में नहीं घुसना चाहते’.
म्हास्के ने आगे कहा कि गठबंधन सरकार में, सहयोगियों की संवेदनशीलताओं का सम्मान किया जाना चाहिए. ‘जब राज्य में एक गठबंधन सरकार है, तो वो (एनसीपी) मीडिया के सामने हमारे ऊपर आरोप लगाकर, इस तरह हमारा विरोध कैसे कर सकते हैं? जब एनसीपी के पोस्टर फाड़े गए, तो मामले को सुलझाने के लिए मैंने ख़ुद एनसीपी ठाणे अध्यक्ष आनंद परांजपे को फोन किया. लेकिन अगर पार्टी इस तरह खुलेआम शिवसेना को बुरा भला कहती रहेगी, तो हम भी ख़ामोश नहीं बैठे रह सकते’.
शिवसेना- NCP टकरावों का जारी इतिहास
शिवसेना और एनसीपी काडर के बीच टकराव के संकेत, एमवीए सरकार के गठन के चार महीने के अंदर ही सामने आने लगे थे.
मार्च 2020 में, एक शिवसेना नेता पूर्व शिरूर सांसद शिवाजी अधलराव पाटिल ने आरोप लगाया कि डिप्टी सीएम अजित पवार और एनसीपी, शिवसेना के साथ अन्याय कर रहे हैं और पार्टी को कुचल रहे हैं. उन्होंने कहा कि एनसीपी इलाक़े में शिवसेना के काम में ‘आड़े आने की’ कोशिश कर रही है, चूंकि शिवसेना के पास प्रदेश असेम्बली में, पुणे क्षेत्र से एक भी वरिष्ठ नेता नहीं है.
शिरूर लोकसभा चुनाव क्षेत्र को लेकर सेना और एनसीपी के बीच निरंतर वैमनस्य बना रहा है. ये सीट 2008 में बनाई गई थी, और 2009 से ही ये शिवसेना के पास रही है. पहले इस सीट का अधिकतर हिस्सा खेड लोकसभा सीट के अंतर्गत आता था, और वो भी शिवेना के पास थी.
2019 में, सेना के पदस्थ पाटिल और एनसीपी के अमोल कोल्हे के बीच तीखे संघर्ष के बाद, एनसीपी ने सेना का राज ख़त्म कर दिया. अमोल एक अभिनेता हैं जिन्होंने टेलीवीज़न पर छत्रपति शिवाजी के पुत्र सांभाजी का रोल अदा किया था.
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जुलाई 2021 में, शिवसेना और एनसीपी के बीच शिरूर चुनाव क्षेत्र के खेड ताल्लुक़ा में टकराव हुआ, जब सेना के पांच सदस्य खेड पंचायत समिति अध्यक्ष शिवसेना के भगवान पोखरकर के खिलाफ, अविश्वास प्रस्ताव पेश करने में एनसीपी के साथ मिल गए.
शिवसेना ने इस पूरे घटनाक्रम के लिए खेड विधायक दिलीप मोहिते पाटिल को जिम्मेदार ठहराया, और उसके बाद से शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत की, विधायक पाटिल से बहुत बार ज़ुबानी जंग हो चुकी है.
राउत ने दिप्रिंट से कहा, ‘किसी भी गठबंधन में, स्थानीय स्तर पर कुछ समस्याएं खड़ी होनी लाज़िमी हैं, क्योंकि कार्यकर्त्ताओं की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं होती हैं. ऐसा शिवसेना और बीजेपी तथा कांग्रेस और बीजेपी में भी हुआ करता था. लेकिन, ये मसले समय समय पर सुलझते रहते हैं’.
इस बीच एनसीपी के मोहिते पाटिल ने कहा, कि कार्यकर्त्ता विचार के मामले में हमेशा मज़बूत नहीं होते, और अकसर सिर्फ विरोध की ख़ातिर विरोध करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘वो इतने लंबे समय से दूसरी पार्टी के कार्यकर्त्ता को दुश्मन समझते आए हैं, कि अचानक अब उस शख़्स को अपना दोस्त नहीं समझ सकते’.
‘लेकिन, अगर आप देखें कि बीजेपी इस समय देश में क्या कर रही है, तो उसे हराने की सख़्त ज़रूरत है. शिवसेना 25-30 वर्षों से बीजेपी की ईमानदार सहयोगी रही है, लेकिन उस गठबंधन के पिछले पांच सालों में, बीजेपी ने शिवसेना के साथ बहुत बुरा सुलूक किया है. हमारा सिद्धांत ये है कि हमारे दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त होता है’.
एक महीने बाद जुलाई में, पूर्व और सिटिंग सांसद शिवाजी अधलराव पाटिल और कोल्हे, एक स्थानीय बाइपास को लेकर टकरा गए, जिसका दोनों ने दो दिन के भीतर अलग अलग उदघाटन किया था. कोल्हे के अंतर्गत उदघाटन के दौरान, एनसीपी सांसद ने ये कहकर स्थानीय सेना नेताओं को चिढ़ा दिया, कि पार्टी को ‘भूलना नहीं चाहिए’ कि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के आशीर्वाद से ही महाराष्ट्र सीएम बन पाए.
शिवसेना ने जवाबी हमला किया और पार्टी लीडर किशोर कान्हरे ने बयान जारी किया, कि एनसीपी को भी नहीं भूलना चाहिए कि वो किसकी सहायता से सत्ता में आ पाई, और उसे चेतावनी दी कि उसे सत्ता के अंगूरों को खट्टा नहीं करना चाहिए.
कोल्हे ने दिप्रिंट की कॉल्स का कोई जवाब नहीं दिया.
अगस्त 2021 में, जब पूर्व शिवसेना सांसद पाटिल ने, सेना के राज्य मंत्री अब्दुल सत्तार को परगांव गांव में पार्टी की एक नई प्रशासनिक इकाई, और ग्राम पंचायत ऑफिस के उदघाटन के लिए बुलाया, तो प्रोटोकोल का तक़ाज़ा था कि क्षेत्र के मौजूदा विधायक, एनसीपी के अतुल बेंके एमओएस के स्वागत के लिए मौजूद रहते. लेकिन, स्थानीय शिवसेना नेताओं ने दिप्रिंट को बताया, कि जब ये स्पष्ट हो गया कि बेंके के आयोजन स्थल पर आने में देरी हो गई है, तो ग़ुस्साए सत्तार मंच से उतरकर शिवसेना कार्यकर्त्ताओं की नारेबाज़ी के बीच वहां से चले गए.
पाटिल, सत्तार, या बेंके में से किसी ने, टिप्पणी के लिए दिप्रिंट की कॉल्स का जवाब नहीं दिया.
सितंबर में, शिवसेना विधायक सुहास कांडे ने बॉम्बे हाईकोर्ट से गुहार लगाई, कि एनसीपी के छगन भुजबल को ज़िले के संरक्षक मंत्री के पद से हटाया जाए, क्योंकि मंत्री ने ज़िला योजना विकास परिषद की निधि, उन चुनाव क्षेत्रों में ज़्यादा आवंटित की जहां एनसीपी के विधायक थे, और उनके चुनाव क्षेत्र नंदगांव के साथ धोखा किया गया.
एक प्रेस वार्त्ता को संबोधित करते हए, कांडे ने अपना नज़रिया पेश किया: ‘सारी बहस एक व्यक्ति (भुजबल) के ऊपर है, जिन्होंने बाला साहेब को सलाख़ों के पीछे कर दिया है. बहस एमवीए के बारे में नहीं है. मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इसे समझें’.
उसी महीने, कोंकण के रायगढ़ ज़िले में, शिवसेना के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत गीते ने कहा, कि शरद पवार ने कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपा था, और ऐसा आदमी शिवसेना का ‘गुरु’ नहीं हो सकता. इससे झल्लाए रायगढ़ के वरिष्ठ एनसीपी नेता सुनील तत्कारे ने पलटवार करते हुए कहा, कि ये ‘कुंठा में दिया हुआ’ बयान लगता है, और 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद, गीते दो साल से मैदान से लापता चल रहे थे.
गीते ने दिप्रिंट से कहा कि वो इसपर कुछ कहना नहीं चाहेंगे, जबकि तत्कारे ने दिप्रिंट की कॉल्स का जवाब नहीं दिया.
सेना बनाम NCP बनाम कांग्रेस: भागीदार, मित्र, और पुराने शत्रु
एमवीए में शिवसेना, एनसीपी, और कांग्रेस शामिल हैं. एनसीपी और कांग्रेस पारंपरिक सहयोगी रहे हैं, जबकि एमवीए का गठन होने से पहले तक, भगवा परिवार की पार्टी और बीजेपी की गठबंधन सहयोगी होने के नाते, शिवसेना उनकी वैचारिक शत्रु रही है.
पवार और शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे एक दूसरे के गहरे दोस्त, लेकिन घोर सियासी विरोधी थे. लेकिन 2019 के महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के बाद, जब चुनाव परिणामों में एक त्रिशंकु असेम्बली सामने आई, तो सरकार बनाने के लिए शिवसेना और एनसीपी ने हाथ मिला लिया, और सेना ने ये आरोप लगाते हुए बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ लिया, कि उसने सीएम समेत सभी पदों और विभागों के बटवारे के, अपने आश्वासन को पूरा नहीं किया.
आख़िरकार, एमवीए सरकार के गठन के लिए कांग्रेस भी दोनों पार्टियों के साथ आ गई, लेकिन जब ठाकरे और पवार में नज़दीकियां बढ़ीं, तो उसके नेताओं को लगने लगा कि जैसे वो तीसरे पहिए का काम कर रहे हैं.
शिवसेना और एनसीपी के बीच ऐसे मुद्दों पर, सत्ता की खींचतान पहले भी होती रही है, जैसे एनसीपी की अगुवाई में गृह विभाग की ओर से मुम्बई में, सीएम की स्पष्ट अनुमति के बिना कुछ पुलिस उपायुक्तों (डीसीपीज़) का एक तरफा तबादला, और पिछले साल अजीत पवार की मौजूदगी में, एनसीपी का पांच शिवसेना पार्षदों को पार्टी में शामिल करना. लेकिन, सीएम ठाकरे, शरद पवार और अजित पवार के बीच हुई सिलसिलेवार बैठकों के बाद, इन मुद्दों को सुलझा लिया गया. पुलिस उपायुक्तों के तबादलों को वापस ले लिया गया, और पांच पार्षदों को भी वापस शिवसेना में भेज दिया गया.
इस बीच, पवार की बात ठाकरे हमेशा सुनते रहे हैं. शासन और सियासी मुद्दों पर चर्चा के लिए, दोनों नेताओं ने अकसर बंद कमरों में बैठकें की हैं, और सीएम जब भी विपक्ष के निशाने पर आए हैं, पवार उनके समर्थन में पीछे खड़े रहे हैं.
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जुलाई 2020 में, पवार एकमात्र ग़ैर-ठाकरे लीडर बने जिनके शिवसेना के मुखपत्र सामना में इंटरव्यू किया गया. तीन हिस्सों के उस इंटरव्यू में पवार ने बताया था, कि 2014 में महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए, एनसीपी का बीजेपी को बाहर से समर्थन, एक ‘हिसाब से उठाया हुआ’ क़दम था, जिसका मक़सद शिवसेना को बीजेपी से दूर करके, उसे फायदा पहुंचाना था.
जून 2021 में, एनसीपी के स्थापना दिवस पर बोलते हुए, पवार ने अपने काडर से शिवसेना पर भरोसा करने के लिए कहा, चूंकि ‘इतिहास दिखाता है कि पार्टी पर भरोसा किया जा सकता है’.
शिवसेना ने भी एनसीपी और पवार के साथ नज़दीकियां बढ़ाई हैं, जिनकी बात पर ही एमवीए टिकी है. वो अकसर सुझाव देती रहती है, कि एनसीपी नेता को राष्ट्रीय स्तर पर एक विपक्षी गठबंधन का प्रभारी होना चाहिए.
लेकिन, शिवसेना और एनसीपी नेतृत्व के बीच ये नया भाई-चारा, नीचे टपकता हुआ ज़मीन पर इनके काडर्स के बीच तक नहीं आया है.
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